समय के साथ बदल रहा डाक विभाग

 

  • विश्व डाक दिवस (9 अक्टूबर) पर विशेष 

रमेश सर्राफ धमोरा 

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। पूरी दुनिया में 9 अक्टूबर को विश्व डाक दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 1874 में इसी दिन यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का गठन करने के लिए स्विट्जरलैंड की राजधानी बर्न में 22 देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था। 1969 में जापान के टाकियो शहर में आयोजित सम्मेलन में विश्व डाक दिवस के रूप में इसी दिन को चयन किये जाने की घोषणा की गयी थी। 01 जुलाई 1876 को भारत यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बनने वाला भारत पहला एशियाई देश था। जनसंख्या और अंतरराष्ट्रीय मेल ट्रैफिक के आधार पर भारत शुरू से ही प्रथम श्रेणी का सदस्य रहा है। 

भारत में डाकघर का इतिहास ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के समय से शुरू होता है जब रॉबर्ट क्लाइव ने 1766 में पहली डाक व्यवस्था स्थापित की। वॉरेन हेस्टिंग्स ने 1774 में कोलकाता में पहला डाकघर खोला और 1854 में लॉर्ड डलहौजी ने भारत में एक राष्ट्रीय डाक सेवा की शुरूआत की। आज भारतीय डाक दुनिया के सबसे बड़े डाक नेटवर्क में से एक है जो बैंकिंग, बीमा और अन्य सेवाओं के साथ आम आदमी का भरोसेमंद साथी है। 01 अक्टूबर 1854 को भारतीय डाक विभाग की स्थापना के साथ भारत में पहली बार डाक टिकट भी जारी किया गया था। 

विश्व डाक दिवस का मकसद देश के सामाजिक और आर्थिक विकास में डाक क्षेत्र के योगदान के बारे में जागरुकता पैदा करना है। दुनिया भर में प्रत्येक वर्ष 150 से ज्यादा देशों में विविध तरीकों से विश्व डाक दिवस आयोजित किया जाता है। भारतीय डाक प्रणाली का जो उन्नत और परिष्कृत स्वरूप आज हमारे सामने है, वह लंबे सफर की देन है। अंग्रेजों ने डेढ़ सौ साल पहले अलग-अलग हिस्सों में अपने तरीके से चल रही डाक व्यवस्था को एक सूत्र में पिरोने की पहल की थी। उन्होने भारतीय डाक को नया रूप-रंग दिया। पर अंग्रेजों की डाक प्रणाली उनके सामरिक और व्यापारिक हितों पर केंद्रित थी। 

हमारे देश में पहले डाक विभाग का इतना अधिक महत्व था कि फिल्मों तक में डाकिये पर कई मशहूर गाने फिल्माये गये हैं। मगर अब नजारा पूरी तरह से बदल चुका है। इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव ने डाक विभाग के महत्व को बहुत कम कर दिया है। आज लोगों ने हाथों से चिट्ठियां लिखना छोड़ दिया है। अब ई-मेल, वाट्सएप व सोशल मीडिया, इंटरनेट के माध्यमों से मिनटो में लोगो में संदेशों का आदान प्रदान हो जाता है। 

आज डाक में लोगों की चिट्ठियां तो गिनती की ही आती है। मनीआर्डर भी बन्द ही हो गये हैं। मगर डाक से अन्य सरकारी विभागों से संबंधित कागजात, बैंकों व अन्य संस्थानो के प्रपत्र काफी संख्या में आने से डाक विभाग का महत्व फिर से एक बार बढ़ गया है। डाक विभाग कई दशकों तक देश के अंदर ही नहीं बल्कि एक देश से दूसरे देश तक सूचना पहुंचाने का सर्वाधिक विश्वसनीय, सुगम और सस्ता साधन रहा है। लेकिन इस क्षेत्र में निजी कम्पनियों के बढ़ते दबदबे और फिर सूचना तकनीक के नये माध्यमों के प्रसार के कारण डाक विभाग की भूमिका लगातार कम होती गयी है। वैसे इसकी प्रासंगिकता पूरी दुनिया में आज भी बरकरार है। 

भारत में डाक विभाग के महत्व को मशहूर शायर निदा फाजली के शेर-सीधा-साधा डाकिया जादू करे महान, एक ही थैले में भरे आंसू और मुस्कान से समझा जा सकता है। शायर निदा फाजली ने जब यह शेर लिखा था उस वक्त देश में संदेश पहुंचाने का डाक विभाग ही एकमात्र साधन था। डाकिये के थैले में से निकलने वाली चिट्ठी पढ़कर कोई खुश होता था तो कोई दुखी। कुछ वर्ष पूर्व तक डाक विभाग हमारे जनजीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होता था। गांव में जब डाकिया आता था तो बच्चे-बूढ़े सभी उसके साथ डाक घर की तरफ इस उत्सुकता से चल पड़ते थे कि उनके भी किसी परिजन की चिट्ठी आयेगी।

डाकिया जब नाम लेकर एक-एक चिट्ठी बांटना शुरू करता तो लोग अपनी या अपने पड़ोसी की चिट्ठी ले लेते व उसके घर जाकर उस चिट्ठी को बड़े चाव से देते थे। उस वक्त शिक्षा का प्रसार ना होने से अक्सर महिलायें अनपढ़ होती थी। इसलिए चिट्ठी लाने वालों से ही चिट्ठियां पढ़वाती भी थी और लिखवाती भी थी। कई बार चिट्ठी पढ़ने-लिखने वाले बच्चों को ईनाम स्वरूप कुछ पैसा या खाने को गुड़, पताशे भी मिल जाया करते थे। इसी लालच में बच्चे ज्यादा से ज्यादा घरों में चिट्ठियां पहुंचाने का प्रयास करते थे। 

उस वक्त गांवों में बैक शाखा नहीं होती थी। इस कारण बाहर कमाने गये लोग अपने घर पैसा भी डाक में मनीआर्डर से ही भेजते थे। मनीआर्डर देने डाकिया स्वयं प्राप्तकर्ता के घर जाता था व भुगतान के वक्त एक गवाह के भी हस्ताक्षर करवाता था। डाक विभाग अति आवश्यक संदेश को तार के माध्यम से भेजता था। तार की दर अधिक होने से उसमें संक्षिप्त व जरूरी बातें ही लिखी जाती थी। तार भी साधारण और जरूरी होते थे। जरूरी तार की दर सामान्य से दोगुनी होती थी। देश में पहली बार 11 फरवरी 1855 को शुरू हुई तार सेवा को सरकार ने 15 जुलाई 2013 से बन्द कर दिया है। इसके साथ ही डाक विभाग ने रजिस्टर्ड डाक सेवा को भी 01 अक्टूबर 2025 से स्पीड पोस्ट में विलय कर दिया है। 

भारतीय डाक विभाग पिनकोड नंबर (पोस्टल इंडेक्स नंबर) के आधार पर देश में डाक वितरण का कार्य करता है। पिनकोड नंबर का प्रारम्भ 15 अगस्त 1972 को किया गया था। इसके अंतर्गत डाक विभाग द्वारा देश को नो भौगोलिक क्षेत्रों में बांटा गया है। संख्या 1 से 8 तक भौगोलिक क्षेत्र हैं व संख्या 9 सेना की डाक सेवा को आवंटित किया गया है। पिन कोड की पहली संख्या क्षेत्र दूसरी संख्या उपक्षेत्र, तीसरी संख्या जिले को दर्शाती है। अंतिम तीन संख्या उस जिले के विशिष्ट डाकघर को दर्शाती है। 

डाक विभाग के अंतर्गत केंद्र सरकार ने इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक (आईपीपीबी) शुरू किया है। देश के हर व्यक्ति के पास बैंकिंग सुविधाएं पहुंचाने के क्रम में यह एक बड़ा विकल्प होगा। इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक ने देशभर में बैंकिंग सेवाएं शुरू कर दी है। आने वाले दिनों में इस के माध्यम से देश का सबसे बड़ा बैंकिंग नेटवर्क अस्तित्व में आयेगा, जिसकी हर गांव तक मौजूदगी होगी। इन सेवाओं के लिए पोस्ट विभाग के 11000 कर्मचारी घर-घर जाकर लोगों को बैंकिंग सेवाएं देंगे। 

बदलते हुए तकनीकी दौर में दुनिया भर की डाक व्यवस्थाओं ने मौजूदा सेवाओं में सुधार करते हुए खुद को नयी तकनीकी सेवाओं के साथ जोड़ा है। डाक, पार्सल, पत्रों को गंतव्य तक पहुंचाने के लिए एक्सप्रेस सेवाएं शुरू की हैं। डाक घरों द्वारा मुहैया करायी जानेवाली वित्तीय सेवाओं को भी आधुनिक तकनीक से जोड़ा गया है। दुनियाभर में इस समय 55 से भी ज्यादा विभिन्न प्रकार की पोस्टल ई-सेवाएं उपलब्ध हैं। भविष्य में पोस्टल ई-सेवाओं की संख्या और अधिक बढ़ायी जायेगी। डाक विभाग से 82 फीसदी वैश्विक आबादी को होम डिलीवरी का फायदा मिलता है। 

भारत की आजादी के बाद हमारी डाक प्रणाली को आम आदमी की जरूरतों को केंद्र में रख कर विकसित करने का नया दौर शुरू हुआ था। नियोजित विकास प्रक्रिया ने ही भारतीय डाक को दुनिया की सबसे बड़ी और बेहतरीन डाक प्रणाली बनाया है। राष्ट्र निर्माण में भी डाक विभाग ने ऐतिहासिक भूमिका निभायी है। जिससे इसकी उपयोगिता लगातार बनी हुई है। आज भी आम आदमी डाकघरों और डाकिये पर भरोसा करता है। तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद देश में आम जनता का इतना विश्वास कोई और संस्था नहीं अर्जित कर सकी है। यह स्थिति कुछ सालों में नहीं बनी है, इसके पीछे डाक विभाग के कार्मिकों का बरसों का श्रम और लगातार प्रदान की जा रही सेवा छिपी है। (लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)

Newsletter

Subscribe to our website and get the latest updates straight to your inbox.

We do not share your information.

Tranding

abnnews24

सच तो सामने आकर रहेगा

टीम एबीएन न्यूज़ २४ अपने सभी प्रेरणाश्रोतों का अभिनन्दन करता है। आपके सहयोग और स्नेह के लिए धन्यवाद।

© www.abnnews24.com. All Rights Reserved. Designed by Inhouse