एबीएन सेंट्रल डेस्क। केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा इस सप्ताह मंजूर की गई सरकार की औद्योगिक पार्क नीति, विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) अधिनियम 2005 के बाद कारोबार के अनुकूल क्षेत्र तैयार करने की सबसे महत्त्वाकांक्षी पहल है। 28,600 करोड़ रुपये की लागत से 12 ऐसे एन्क्लेव विकसित करने की योजना है जिसे वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने औद्योगिक पार्कों के स्वर्णिम चतुर्भुज का नाम दिया है। याद रहे कि यह अटल बिहारी वाजपेयी की सफल सड़क निर्माण परियोजना का नाम था।
योजना के मुताबिक राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र के साथ मिलकर एकीकृत स्मार्ट औद्योगिक शहर बसाये जाने हैं जिनमें आवासीय और वाणिज्यिक क्षेत्र होंगे। इसके जरिये 1.5 लाख करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित करने का लक्ष्य है। राज्यों का योगदान जमीन के रूप में होगा और केंद्र सरकार इक्विटी या डेट मुहैया करायेगी।
कुछ औद्योगिक टाउनशिप अन्य देशों के साथ मिलकर विकसित की जाएंगी जिन्होंने ऐसी व्यवस्था में अभिरुचि दिखायी है। इस विषय में सरकार की मंशा कहीं से गड़बड़ नहीं लग रही। बहरहाल एक सवाल यह है कि इसका क्रियान्वयन कैसे होगा? ऐसा इसलिए क्योंकि अतीत में औद्योगिक गतिविधियों को देश की कारोबारी सुगमता क्षेत्र की मानक अकुशलताओं से अलग-थलग रखने के प्रयासों को बहुत सीमित सफलता मिली है।
सरकारी आंकड़े बताते हैं देश में करीब 4,420 औद्योगिक पार्क और 270 एसईजेड हैं। इनमें से अधिकांश को निवेश बढ़ाने में कोई उल्लेखनीय कामयाबी नहीं मिली है। एसईजेड नीति में भी इसी प्रकार इलाके चिह्नित किए गए थे जहां कर राहत प्रदान करके चीन की शैली में निर्यात क्षेत्र विकसित किए गए। शुरूआती रुचि के बाद जब कर रियायत समाप्त हुई तो ये क्षेत्र अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे और इन्हें लेकर उत्साह समाप्त हो गया।
देश के कुल निर्यात में एसईजेड की हिस्सेदारी केवल एक तिहाई रह गई। विनिर्माण में निवेश आकर्षित करने की सरकार की नीतिगत मंशा सफल नहीं हुई। एसईजेड में आए निवेश का करीब 60 फीसदी आईटी और आईटीईएस में आया। उसके बाद आया डेवलपमेंट आफ एंटरप्राइज ऐंड सर्विस हब्स (देश), विधेयक 2023। इसके माध्यम से एसईजेड कानून की कमियों को दूर करने का प्रयास किया गया। इस विधेयक की स्थिति अस्पष्ट है।
खबरों के अनुसार तो शायद इसे खारिज भी कर दिया गया है। ताजातरीन नीति में देश में निवेश से जुड़ी शाश्वत बाधाओं को दूर करने का प्रयास दिखता है।उदाहरण के लिए भूमि अधिग्रहण हमेशा से एक चुनौती रहा है। यहां तक कि एसईजेड भी निजी क्षेत्र के अचल संपत्ति कारोबार में बदलकर रह गये। औद्योगिक पार्कों में वे जमीनें शामिल होंगी, जो सरकार द्वारा पहले ही अधिग्रहीत हैं और जिनके लिए पर्यावरण मंजूरी मिल चुकी है।
दूसरा, एकल खिड़की मंजूरी के लिए स्पेशल परपज व्हीकल बनाने का प्रस्ताव भी है। तीसरा, पार्कों की लोकेशन को समर्पित माल ढुलाई गलियारे से लगे औद्योगिक गलियारे से जोड़ा गया है जिससे लॉजिस्टिक्स की एक अहम समस्या दूर हो सके। इनमें से पांच अमृतसर-कोलकाता बेल्ट पर, दो दिल्ली-मुंबई बेल्ट पर और पांच दक्षिणी एवं मध्य मार्गों पर स्थित हैं।
इस लिहाज से देखें तो कई व्यापक मुद्दे हैं जिन्हें हल करना होगा, तभी हमारे पार्क चीन जैसा प्रभाव उत्पन्न कर सकेंगे। उनमें से एक है आकार ताकि विनिर्माताओं के पास वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं जैसी पहुंच हो सके और वे सही मायनों में प्रतिस्पर्धी बन सकें। यह एक चुनौती हो सकती है। देश में एसईजेड का औसत आकार 0.25 वर्ग किमी से 14 वर्ग किमी तक का है।
इसके विपरीत चीन के सबसे पुराने और बड़े एसईजेड में से एक शेनझेन का आकार 316 वर्ग किमी का है। इन शहरों के इर्द-गिर्द जीवंत सामाजिक ढांचे की उपलब्धता भी अहम है। गुरुग्राम और बेंगलुरु इस मामले में मिसाल हैं क्योंकि उन्होंने नये दौर के श्रमिकों के समायोजन के लिए ढांचा विकसित किया है।
यहां तक कि केरल जैसी अंकुश वाली मदिरा नीति या बिहार जैसी पूर्ण शराबबंदी भी पार्कों में विदेशी निवेश के निर्णयों को प्रभावित कर सकती हैं। नवीनतम नीति यकीनन निवेश जुटाने की एक नयी कोशिश है। देखना होगा कि इसे कामयाबी मिलती है या नहीं।
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