टीम एबीएन, रांची। गायत्री परिवार युगतीर्थ शक्तिपीठ सेक्टर टू धूर्वा रांची में महिला मंडल प्रतिनिधित्व में बहनों ने गुरूवार को देव संस्कृति की विरासत व विशेषता विषय पर स्वाध्याय पाठ हुआ। बताया गया कि आज के सांस्कृतिक संक्रमण के दौर से गुजर रहे काल में भारतीय संस्कृति पर चर्चा आवश्यक हो जाती है।
भारी संकट से गुजर रहे इन पलों में भारतीय संस्कृति से विशेष आशाएं हैं, क्योंकि मानवीय जीवन, अस्तित्व एवं सृष्टि का जितना गहरा एवं समग्र चिंतन इसमें मिलता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। आज के व्यक्ति, परिवार, समाज एवं विश्व की समस्याओं के समाधान सूत्र इसमें निहित हैं।अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण इसे विभिन्न नामों से जाना जाता रहा है।
वेदों में उसका आदि उद्भव हुआ, अत: इसे वैदिक संस्कृति कहा गया। मानवीय प्रकृति एवं सृष्टि के मर्मज्ञ ऋषियों द्वारा इसका सूत्रपात हुआ, अत: इसे ऋषि संस्कृति कहा गया। इसमें निहित मूल्य एवं समाधान किसी भी कालखंड तक सीमित न होकर सार्वभौम हैं, शाश्वत हैं।अत: इसे सनातन संस्कृति भी कहा जाता है, जिसका फलक विश्वव्यापी है।
पूरी मानवता इसके दायरे में आती है, इस कारण इसे विश्व संस्कृति, मानव संस्कृति भी कहा गया और भारतवर्ष में इसका आदि उद्भव हुआ, अत: इसे भारतीय संस्कृति कहा गया तथा भौगोलिक दृष्टि से कभी सिंधु के नीचे के भूखंड में इसके पुष्पित पल्लवित होने के कारण इसे हिंदू संस्कृति भी कहा गया।
यह विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है, इस कारण इसे आदि संस्कृति भी कहा गया। वैदिक ऋषियों का उद्घोष सा प्रथमा संस्कृतिर्विश्ववारा इसी महान तथ्य की पुष्टि करता है। इस संस्कृति के कुछ आधारभूत तत्त्व हैं, जो इसे विशिष्ट बनाते हैं और इसकी सामयिक उपयोगिता को भी सिद्ध करते हैं।
आगे बताया गया कि गायत्री एवं यज्ञ को देव संस्कृति की धुरी माना जाता है। गायत्री जहां सद्बुद्धि एवं ऋतंभरा प्रज्ञा की प्रतीक है, तो वहीं यज्ञ श्रेष्ठतम कर्म का प्रतीक है।गायत्री-यज्ञ के युग्म को भारतीय संस्कृति के माता-पिता की संज्ञा दी गई है।
यज्ञ के साथ संस्कार-प्रणाली वैदिक संस्कृति की अपनी विशिष्ट पहचान है, जिन्हें षोडश संस्कारों के रूप में जाना जाता है। दीदी ने बताया कि देव संस्कृति में मानवीय जीवन को समग्रता की दृष्टि से देखा गया है। उक्त जानकारी गायत्री परिवार के वरिष्ठ साधक सह प्रचार-प्रसार प्रमुख जय नारायण प्रसाद ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी।
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