बाल विवाह व दुष्कर्म के 49 वर्षीय मुजरिम को 10 साल का सश्रम कारावास

 

पीड़िता को मिलेगा 10.5 लाख रुपये का मुआवजा

दिल्ली के तीस हजारी की विशेष पॉक्सो अदालत ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला

एबीएन सेंट्रल डेस्क। दिल्ली की एक अदालत ने 13 साल की एक नाबालिग बच्ची से विवाह के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 49 वर्षीय आरोपी को बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 (पीसीएमए), बलात्कार व पॉक्सो की धाराओं के तहत दोषी ठहराते हुए दस साल के सश्रम कारावास की सजा सजा सुनायी है। साथ ही अदालत ने पीड़िता को 10.5 लाख रुपए का मुआवजा देने का भी आदेश दिया है। 

अभियुक्त दो किशोरवय बेटियों का पिता है। उसने अदालत में बच्ची को बालिग साबित करने की कोशिश की लेकिन बोन एज टेस्ट से यह साबित हो गया कि विवाह के समय पीड़िता की उम्र 13 साल से थोड़ी ही ज्यादा थी। दिल्ली के तीस हजारी की विशेष पॉक्सो अदालत के जज अंकित मेहता ने फैसले में सभी पहलुओं पर विचार करते हुए अभियुक्त को बाल विवाह और बलात्कार की धाराओं में मिलने वाली अधिकतम सजा सुनाई।

मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष यह साबित करने में सफल रहा कि पीड़िता परिस्थितियों से लाचार थी और बच्ची के हालात का फायदा उठाते हुए उसकी मर्जी के खिलाफ उसका विवाह और यौन शोषण किया गया। बच्ची के पिता नहीं थे जबकि मां का मानसिक संतुलन ठीक नहीं था और वह भी बच्ची के साथ नहीं रहती थी। ऐसे में बच्ची को उसकी नानी ने पाला पोसा लेकिन खराब स्वास्थ्य व गरीबी के कारण वह जल्द से जल्द बच्ची के हाथ पीले करना चाहती थी। इस मामले में पड़ोसियों ने बच्ची के साथ लगातार मारपीट को देखकर दिल्ली पुलिस को सूचना दी जिसने फिर जांच और एफआईआर की प्रक्रिया शुरू की। 

यह दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) था जिसने पीड़िता की कानूनी और अन्य तरीकों से मदद के लिए जो कि बच्ची को न्याय दिलाने के लिए जरूरी था, वकील वीरेंदर वर्मा की नियुक्ति की। फैसले का स्वागत करते हुए वीरेंदर वर्मा ने कहा कि उन्होंने अदालत से आरोपी को अधिकतम व सश्रम कारावास की सजा के अलावा बच्ची को पर्याप्त क्षतिपूर्ति देने की मांग की थी। उन्होंने कहा, मैं अदालत का आभार प्रकट करता हूं जिसने इस मामले के सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार करते हुए फैसला सुनाया। 

दिल्ली की अदालत के इस फैसले को ऐतिहासिक और स्वागत योग्य बताते हुए अधिवक्ता, बाल अधिकार कार्यकर्ता एवं बाल विवाह मुक्त भारत (सीएमएफआई) के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा कि इस फैसले से एक बार यह तथ्य स्थापित हुआ है कि बाल विवाह का एक ही नतीजा है और वह है  बच्चों से बलात्कार। मैं उम्मीद करता हूं कि यह फैसला एक नजीर बनेगा। 

बाल विवाह के खिलाफ निर्णायक कदमों से हम 2030 तक देश से इसका खात्मा कर सकते हैं। सरकार का लक्ष्य भारत को एक विकसित देश बनाने का है पर यह 18 वर्ष की उम्र तक अनिवार्य मुफ्त शिक्षा और बाल विवाह के खात्मे से ही संभव हो पायेगा। इससे पहले पीड़िता ने अदालत में अपने बयान में कहा कि वह इकलौती संतान थी लेकिन उसके माता-पिता नहीं थे। वह अपनी नानी के घर पली-बढ़ी जहां उसे बोझ समझा जाता था।

बच्ची ने बताया कि उसकी नानी की तबीयत खराब रहती थी। इसलिए उन्होंने गांव के सरपंच और अन्य ग्रामीणों से सिफारिश की कि इससे पहले कि उन्हें कुछ हो जाये, वे किसी तरह बच्ची का विवाह करा दें। इसमें एक महिला ने बिचौलिए की भूमिका निभायी और उसकी नानी को बताया कि उसकी नजर में एक लड़का है जो अच्छा कमाता है और जिसकी पहली पत्नी का निधन हो चुका है।

बच्ची ने बताया कि इसी बीच उसकी नानी की मृत्यु हो गई और उसके बाद ग्रामीणों ने उसकी मर्जी के खिलाफ जबरन उस व्यक्ति से विवाह करा दिया। आरोपी ने 23 फरवरी 2017 को बिहार में उससे विवाह किया जब वह सिर्फ 13 साल की थी। विवाह के बाद उसे पता चला कि आरोपी पूर्व में दो शादियां कर चुका था। उसकी पहली पत्नी का निधन हो गया जिससे उसकी दो किशोर उम्र की बेटियां हैं जो आरोपी की मां के साथ रहती हैं जबकि दूसरी पत्नी उसे छोड़कर चली गयी थी।  

बच्ची ने बताया कि विवाह के पहले दो महीनों में आरोपी उसकी बेरहमी से पिटाई और यौन उत्पीड़न करता था। इस बात की खबर गांव में फैल जाने पर आरोपी उसे दिल्ली ले आया जहां यौन संबंध बनाने के लिए वह लगातार उसका उत्पीड़न करता था।  बच्ची ने अदालत को दिए बयान में बताया कि उसके साथ साल भर तक लगातार बलात्कार होता रहा और उसे पता नहीं था कि वह कहां जाये और किससे मदद मांगे। 

उसकी 66 वर्षीय सास ने भी उसका उत्पीड़न किया और एक बच्चे की लालसा में आरोपी के साथ यौन संबंध बनाने के लिए लगातार दबाव डालती रही। पीड़िता की शिकायत पर उसकी सास को भी आरोपी बनाया गया था लेकिन अदालत ने उसे बरी कर दिया। इससे संबंधित और जानकारी के लिए जितेंद्र परमार (8595950825) से संपर्क कर सकते हैं।

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