एबीएन डेस्क, रांची। संकट काल में ही सच्चे मित्र की पहचान होती है। जब कोरोना महामारी के दूसरे लहर से पूरा देश संकटग्रस्त है ऐेसे समय में चिकित्सकों से लेकर सारे मेडिकल स्टाफ के समर्पण और उनके दिन रात के प्रयास की सराहना हुयी। चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों के अलावा एक और तबके ने पिछले दो महिनों में इस त्रासदी में करोड़ो लोगों की मदद की और खुद अपनी जान देकर लोगों की जान बचायी। ये तबका उन पत्रकारों का था जो भयावह परिस्थिति में भी कमजोर ,वंचितों और लाचार लोगों की मदद किसी न किसी रूप में करते रहा। मीडिया पर यह आरोप तो लगते हैं कि इन्होंने चरम संक्रमण के वक्त इस तरह से कोरोना के भयावहता को परोसा कि लोगों में भय हताशा का संचार हुआ, पर इसके इतर एक दूसरा पक्ष भी है कि फिल्ड रिपोर्टरों के प्रयास उनके कवरेज के चलते त्वरित सरकारी मदद आवश्यक अस्पतालों तक पहुंचायी जा सकी। एक अनुभवी पत्रकार सिर्फ सतही खबरों का संदेशवाहक नहीं होता बल्कि खामियों के खिलाफ उसकी निर्भिकता और मुखरता बढ जाती है, उसकी बातें सुनी जाती है। बहुतों की नजर में यह रसूखदार होना लगता है, पर कोराना संकट में इस कथित रसूख का एक धवल पक्ष दिखा। मैने देखा कि कई कमजोर और लाचार लोगों के लिये अस्पताल में बेड, आॅक्सीजन, वेंटिलेटर, दवा तक की उपलब्धता पत्रकारों की मुखरता के कारण ही हुयी। पत्रकारों ने अपनी जान जोखिम में डाल कर हताश निराश लोगों को चिकित्सा सुविधायें उपलब्ध करवायी। यहां तक कि कुछ निजि अस्पतालों ने बीमार संक्रमित लोगों से लाखो रुपए इलाज के नाम पर ले लिये। पत्रकारों को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया और इन निजी अस्पतालों को पैसे वापस तक करने पड़े। जिन कुछेक अस्पतालों में आॅक्सीजन सिलिंडर से लेकर, दवाओं की कालाबाजारी और जमाखोरी हो रही थी उसे भी इन्होंने उजागर किया और प्रशासन को इस पर नकेल कसनी पड़ी। मैंने देखा कि रांची में परेशान कोरोना मरीजों के परिजन पत्रकारों को ही मदद की उम्मीद में फोन लगा रहे थे। एक नजर में यह पहुंच पैरवी सी हरकत लग सकती है। दूसरा पक्ष है कि पत्रकारों से इलाज में मदद के लिये आस लगाने वालों में ज्यादतर निरीह और आम हताश लोग ही थे और प्रेस लॉ पत्रकारों को अलग से कोई कानूनी शक्ति नहीं देता। यह सद्प्रयास पत्रकारों पत्रकारों की पेशागत मददगार फितरत का नतीजा रहा। इन सबके बीच सबसे भी दुखद कि सिर्फ झारखंड में ही तीस से ज्यादा पत्रकारों को कोरोना ने हमसे छीन लिया। सोंचिये ये पत्रकार चाहते तो हम आप की तरह घर में छुपे रह कर अपनी जान भी बचा सकते थे। लेकिन इन्होंने ऐसा नहीं किया। दिल्ली के टीवी चैनल के प्रसिद्ध पत्रकार रोहित सरदाना से लेकर रांची प्रेस क्लब के सुनील सिंह सहित झारखंड में ही दर्जनों युवा पत्रकारों का पत्रकारिता जगत से चला जाना बहुत पीड़ादायी है। इसकी भरपाई कहीं से भी संभव नहीं है, पर इससे भी दुखद है कि पत्रकारों के इस योगदान को अनदेखा किया गया। कुछेक राज्यों में पत्रकारों को कोरोना वॉरियर बता कर उनकी आर्थिक मदद की घोषणा की गयी, । मीडिया पर सैकड़ो आरोप भी लगते हैं, पर यह हकीकत है कि आज भी आम जन सच्चाई के लिये, दबाये जा रहे तथ्यों और वाकयों को जानने के लिये, घोर संकट में अपनी बात को उचित मंच पर पहुंचाने के लिये पत्रकारों पर ही भरोसा रहता है। मैने पत्रकारिता के छात्रों को अपने विभाग में देखा है कि जैसे-जैसे पुराने होते जाते हैं उनकी सोच व्यापक होने लगती है। अवश्य ही इस पेशे में कुछ ऐसा है जो फितरतन पत्रकारों को वंचितो और आम लोगों की आवाज बना देती है। अपने कार्य में खुद कई तरह के तनाव झेलने वाले, आरोपों से हलकान और अक्सर आर्थिक संकट के पीड़ा व्यथा को चुपचाप सहने वाले पत्रकार कोरोना संकट में भी वंचितों और जरूरतमंदों के मददगार बने, शहीद भी हुये, पर अफसोस उनके कार्यों को कमतर करके आंका गया। आलोचना का एक सिद्धांत है कि सदैव मुखर की ही आलोचना होती है। आज मीडिया में श्रेष्ठ का ही चयन किया जाएगा उसे ही सुना जाएगा और समझा जाएगा। आम लोगों के मंच पर पत्रकारों की सूचनाधर्मिता अन्य प्रोफेशन से अलग है। इस कोरोना काल में हर एक मौत के साथ बचें जीवन की पूरी धारदार और प्रमाणिक सूचना देकर जीवन बचाने का काम किया। चाहे आॅक्सीजन की कमी की बात हो या वैक्सीन की कठिनाई की आज शासन-प्रशासन को सजग करने का काम मीडिया ही करता है और उसके माध्यम होते हैं हमारे देश के सजग पत्रकार जो हर व्यक्ति को अब इन पर विश्वास करने को प्रेरित कर रहा है। अबतक सैकड़ों पत्रकारों की जान कोविड महामारी के कारण जा चुकी है? स्विट्जरलैंड की मीडिया अधिकार और सुरक्षा से जुड़ी संस्थाय प्रेस एम्बलम कैम्पेन (पीएसी) ने कोरोना वायरस के चलते पत्रकारों की हुई मौत पर दुख जताते हुए एक बयान जारी किया है और बताया है कि दुनिया भर में हजार से ज्यादा पत्रकार कोरोना वायरस का शिकार हो चुके हैं और कुल 75 देशों के बीच भारत इस मामले में दूसरे नंबर पर है। पीईसी के महासचिव ब्लेतस लेम्पेयन ने कहा, यह इस पेशे को हुआ अप्रत्याशित नुकसान है और कत्लेआम है। इसलिए प्रेस आजादी दिवस पर आह्वान करते हैं कि उन सभी प्रतिष्ठित पत्रकार साथियों को हम श्रद्धांजलि दें जो महामारी का शिकार हो गए। पीईसी के मुताबिक दुनिया में हर दिन चार पत्रकारों की मौत हुई। मौत से सबसे ज्यादा प्रभावित चार देश हैं- ब्राजील (189), भारत (151), पेरू (140) और मेक्सिको (109)अच्छी बात ये है कि इस बीच यूरोप और अमेरिका में पत्रकारों की मौत की दर कम हुई है, जिसका श्रेय वहां टीकाकरण और सुरक्षा उपायों को जाता है। लैटिन अमेरिका सबसे अधिक प्रभावित है। (लेखक पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग रांची विश्वविद्यालय रांची के उपनिदेशक हैं।)
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