टीम एबीएन, रांची। रांची जिला मारवाड़ी सम्मेलन के संयुक्त महामंत्री सह प्रवक्ता एवं अग्रवाल सभा के पूर्व प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है कि इस वर्ष महाराजा अग्रसेन जयंती 3 अक्टूबर दिन गुरुवार को मनाई जाएगी। अश्विन शुक्ल प्रतिपदा अर्थात नवरात्रि के प्रथम दिवस को महाराज अग्रसेन के जन्म दिवस के रूप में अग्रसेन जयंती मनायी जाती है। महाराज अग्रसेन का जन्म द्वापर युग के अंत में भगवान श्री कृष्ण के समकालीन हुआ था।
महाराजा अग्रसेन अग्रवाल अर्थात वैश्य समाज के जनक कहे जाते हैं। विश्व समाज धार्मिक मान्यतानुसार इनका जन्म सूर्यवंशीय महाराजा वल्लभ सेन के अन्तिमकाल और कलियुग के प्रारंभ में आज से 5187 वर्ष पूर्व हुआ था। उनके राज में कोई दुखी या लाचार नहीं था। बचपन से ही वे अपनी प्रजा में बहुत लोकप्रिय थे। वे एक धार्मिक, शांति दूत, प्रजा वत्सल, हिंसा विरोधी, बली प्रथा को बंद करवाने वाले, करुणानिधि, सब जीवों से प्रेम, स्नेह रखने वाले दयालु राजा थे। ये बल्लभ गढ़ और आगरा के राजा बल्लभ के ज्येष्ठ पुत्र, शूरसेन के बड़े भाई थे।
महाराजा अग्रसेन भगवान राम के पुत्र कुश के 34 वीं पीढ़ी के हैं। 15 वर्ष की आयु में, अग्रसेन जी ने पांडवों के पक्ष से महाभारत युद्ध लड़ा था। भगवान कृष्ण ने टिप्पणी की है कि अग्रसेनजी कलयुग में एक युग पुरुष और अवतार होंगे जो जल्द ही द्वापर युग की समाप्ति के बाद आने वाले हैं। अग्रसेन सौरवंश के एक वैश्य राजा थे। जिन्होंने अपने लोगों के लाभ के लिए वानिका धर्म अपनाया था । वस्तुत:, अग्रवाल का अर्थ है। अग्रसेन की संतान या अग्रोहा के लोग प्राचीन में एक शहर हरियाणा क्षेत्र में हिसार के निकट कुरु पंचला की स्थापना अग्रसेन ने की थी।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र के वृत्तांत के अनुसार, महाराजा अग्रसेन एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे, जिनका जन्म महाभारत महाकाव्य काल में द्वापर युग के अंतिम चरणों में हुआ था, वे भगवान कृष्ण के समकालीन थे। वह राजा वल्लभ देव के पुत्र थे जो कुश (भगवान राम के पुत्र) के वंशज थे। वह सूर्यवंशी राजा मान्धाता के वंशज भी थे। अग्रसेन ने 18 गोत्र की स्थापना जो 18 ऋषियों के नाम पर आधारित है, जिनसे अग्रवाल गोत्र अस्तित्व में आये। अग्रसेन ने राजा नागराज कुमुद की बेटी माधवी से विवाह किया, दूसरी पत्नी का नाम सुंदरावती था।
उनके 18 पुत्र थे। महाराज अग्रसेन ने अपने प्रजा-जनों की खुशहाली के लिए शिवजी की घोर तपस्या की, जिससे भगवान शिव ने प्रसन्न हो उन्हें मां लक्ष्मी की तपस्या करने की सलाह दी। मां लक्ष्मी ने परोपकार हेतु की गयी तपस्या से खुश हो उन्हें दर्शन दिये और कहा कि अपना एक नया राज्य बनाएं और क्षात्र धर्म का पालन करते हुए अपने राज्य तथा प्रजा का पालन - पोषण व रक्षा करें। उनका राज्य हमेशा धन-धान्य से परिपूर्ण रहेगा एवं महाराजा अग्रसेन जी के सभी पुत्रों के घर में हमेशा के लिए निवास करने का वरदान तो दिया ही लेकिन साथ में महाराजा अग्रसेन जी के सभी पुत्रों की कुलदेवी होने का वरदान भी दिया।
अपने नये राज्य की स्थापना की। जिसका नाम अग्रेयगण या अग्रोदय रखा गया। जिसकी राजधानी अग्रोहा रखा गया। जो आज के हरियाणा के हिसार के पास हैं। आज भी यह स्थान अग्रवाल समाज के लिए पांचवे धाम के रूप में पूजा जाता है, वर्तमान में अग्रोहा विकास ट्रस्ट ने बहुत सुंदर मंदिर, धर्मशालाएं आदि बनाकर यहां आने वाले अग्रवाल समाज के लोगो के लिए सुविधायें जुटा दी है। महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का अग्रदूत कहा जाता है।
अपने क्षेत्र में सच्चे समाजवाद की स्थापना हेतु उन्होंने नियम बनाया कि उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले प्रत्येक परिवार की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक परिवार उसे एक तत्कालीन प्रचलन का सिक्का व एक ईंट देगा, जिससे आसानी से नवागंतुक परिवार स्वयं के लिए निवास स्थान व व्यापार का प्रबंध कर सके। महाराजा अग्रसेन ने तंत्रीय शासन प्रणाली के प्रतिकार में एक नई व्यवस्था को जन्म दिया, उन्होंने पुन: वैदिक सनातन आर्य सस्कृंति की मूल मान्यताओं को लागू कर राज्य की पुनर्गठन में कृषि-व्यापार, उद्योग, गौपालन के विकास के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की पुन: प्रतिष्ठा का बीड़ा उठाया। इस तरह महाराज अग्रसेन के राजकाल में अग्रोदय गणराज्य ने दिन दूनी- रात चौगुनी तरक्की की।
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