एबीएन एडिटोरियल डेस्क। बचपन में दिखने वाले छोटे संकेत अक्सर हमारी नज़र से छूट जाते हैं, और बाद में हमें पता चलता है कि वही शुरुआती संकेत बच्चे के विकास को गहराई से प्रभावित कर रहे थे। विशेष बच्चों, जैसे सेरेब्रल पाल्सी, ऑटिज़्म और एडीएचडी के साथ काम करते हुए यह समझ आता है कि कई बार परिवार कुछ लक्षणों को सामान्य मानकर आगे बढ़ जाता है।
जन्म के बाद बच्चे का तुरंत न रोना, बहुत ज़्यादा या बहुत कम रोना, लेटकर दूध पिलाने की आदत बन जाना, बोलने में देरी होना, सरल निर्देश न मानना, बार-बार चिड़चिड़ापन, बहुत कम या बहुत अधिक नींद, या फिर लगातार दौड़ते-भागते रहना—ये सब केवल बच्चों की आदतें नहीं होतीं। कई बार ये संकेत होते हैं कि बच्चा किसी विकासात्मक चुनौती से गुजर रहा है और उसे समय रहते सहारा चाहिए।
बच्चे कब पलटते हैं, कब बैठते हैं, कब बोलते हैं, कब चलना शुरू करते हैं, ये सभी विकासात्मक माइलस्टोन उनके मस्तिष्क और शरीर की प्रगति बताते हैं। इन्हें समझना और समय पर पहचानना माता-पिता और शिक्षकों दोनों के लिए ज़रूरी है।
अगर किसी भी तरह की देरी या असामान्यता दिखे तो विशेषज्ञ से सलाह लेने में देर नहीं करनी चाहिए। समय रहते कदम उठाया जाए तो बच्चा बहुत बेहतर तरीके से आगे बढ़ सकता है। बचपन को समझना ही उसके भविष्य को सुरक्षित बनाना है। राँची में दीपशिखा विशेष बच्चों को निरंतर सहयोग और सहायता प्रदान करती है I (लेखक अदिति विवेक भसीन रांची की प्रसिद्ध मनोविज्ञानी हैं।)
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