झारखंड विधानसभा में अब नियुक्ति घोटाला

 

  • झारखंड विधानसभा नियुक्ति घोटाला: राजनीतिक लड़ाइयों में मशीनरी क्यों लगाते हैं? CBI को सुप्रीम कोर्ट की फटकार

टीम एबीएन, रांची। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को झारखंड विधानसभा सचिवालय में नियुक्तियों और पदोन्नति में अनियमितताओं के आरोपों की जांच के लिए प्रारंभिक जांच शुरू करने की अनुमति मांगने वाली सीबीआई की याचिका खारिज कर दी।

अदालत ने कड़े शब्दों में पूछा कि केंद्रीय एजेंसी राजनीतिक लड़ाइयों के लिए मशीनरी का इस्तेमाल क्यों कर रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष 14 नवंबर को झारखंड हाईकोर्ट के 23 सितंबर 2024 के उस फैसले पर रोक लगा दी थी, जिसमें सीबीआई को मामले की जांच करने का निर्देश दिया गया था। 

मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के स्थान पर अब मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ सीबीआई की अंतरिम याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने सीबीआई से कहा कि आप अपनी राजनीतिक लड़ाइयों के लिए मशीनरी का इस्तेमाल क्यों करते हैं? हमने आपको कई बार बताया है। 

इसके साथ ही अदालत ने एजेंसी की याचिका खारिज कर दी। झारखंड विधानसभा सचिवालय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि यह चौंकाने वाला है कि जब भी कोई मामला आता है, सीबीआई उससे पहले ही अदालत में मौजूद रहती है।

23 सितंबर 2024 के आदेश को चुनौती दी थी

सीबीआई की ओर से उपस्थित अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने इसका खंडन करते हुए कहा कि इस मामले में ऐसा नहीं है। लेकिन सिब्बल ने दलील दी कि ऐसा कई मामलों में, विशेषकर पश्चिम बंगाल में, देखा गया है। राजू ने कहा कि सीबीआई तभी उपस्थित होती है जब किसी अपराध की आशंका होती है। 

इससे पहले भी जस्टिस गवई की पीठ ने हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाई थी, जिसमें नियुक्तियों और पदोन्नतियों में कथित अनियमितताओं की जांच का निर्देश दिया गया था। झारखंड विधानसभा सचिवालय और अन्य पक्षों ने हाईकोर्ट के 23 सितंबर 2024 के आदेश को चुनौती दी थी। 14 नवंबर 2024 के बाद इस मामले में कोई प्रभावी सुनवाई नहीं हुई थी।

अधिवक्ता तुलिका मुखर्जी के माध्यम से दायर एक याचिका में कहा गया कि हाईकोर्ट ने बिना किसी आपराधिक मामले या संज्ञेय अपराध के सीबीआई को जांच का आदेश दे दिया, जबकि यह पूरा मामला सिविल प्रकृति का है और इसमें सेवा संबंधी जटिल प्रश्न शामिल हैं। याचिका के अनुसार, इस मामले में न कोई FIR है और न ही कोई संज्ञेय अपराध बनता है। इसमें कहा गया कि पैसे के लेन-देन का कोई सबूत नहीं, धोखाधड़ी का कोई प्रमाण नहीं, कोई आपराधिकता स्थापित नहीं होती। 

याचिका में बताया गया कि झारखंड विधानसभा सचिवालय (भर्ती एवं सेवा शर्त नियम, 2003) 10 मार्च 2003 को अस्तित्व में आया, जिसके बाद सचिवालय और विभिन्न समितियों के कामकाज को देखते हुए भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई। विज्ञापन, एडमिट कार्ड और परीक्षा/साक्षात्कार की प्रक्रिया पूरी होने के बाद 2003-2007 के बीच नियुक्तियां और पदोन्नतियां की गईं।

30 बिंदुओं पर अपनी रिपोर्ट सौंपी

इसके बाद कुछ लोगों की कथित बातचीत की अनवेरिफाइड ऑडियो रिकॉर्डिंग एक सीडी में बदलकर स्पीकर को सौंपी गई। अक्टूबर 2007 में पांच सदस्यीय समिति बनाकर मामले की जांच कराई गई, जिसकी रिपोर्ट अगस्त 2008 में स्पीकर के सामने पेश हुई, लेकिन समिति के दो सदस्यों ने इसका विरोध किया।

 जुलाई 2014 में कैबिनेट सचिवालय एवं सतर्कता विभाग ने झारखंड हाईकोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश को इस पूरी भर्ती-पदोन्नति प्रक्रिया की जांच के लिए नियुक्त किया। इस आयोग ने 12 जुलाई 2018 को राज्यपाल को 30 बिंदुओं पर अपनी रिपोर्ट सौंपी।

अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने की मंजूरी

याचिका में कहा गया कि आयोग की रिपोर्ट आयोग जांच अधिनियम, 1952 के अनुसार राज्य सरकार को कभी भेजी ही नहीं गई। 10 सितंबर 2018 को राज्यपाल ने स्पीकर को रिपोर्ट के आधार पर उचित कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा, जिसके बाद 26 अगस्त 2019 को दो अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने की मंजूरी दी गई। 

अगस्त 2022 में कानूनी व्याख्या और तथ्यों की जटिलता को देखते हुए एक और आयोग गठित करने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया कि हाईकोर्ट ने यह नहीं देखा कि विधानसभा सचिवालय इस रिपोर्ट और ATR के आधार पर कार्रवाई कर रहा था। यह याचिका सार्वजनिक रोजगार में कथित अनियमितताओं से जुड़े मामले पर दायर की गई थी।

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