एबीएन स्पेशल... कोल्हान की 20 सीटों की बदौलत किंग मेकर बनेंगे चंपई!

 

अकेले चंपई के गढ़ से करीब 20 फीसदी सीटें

बासुकीनाथ पाण्डेय

टीम एबीएन, रांची। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन अब नये तेवर में हैं। हमेशा शांत चित्त रहने वाले चंपई अचानक आग बबूला हैं। और हों भी क्यों न, उनके साथ सचमुच गलत हुआ है। आप ही बताइये न, यदि वे करीब चार महीने और सीएम रह भी जाते, तो हेमंत का क्या बिगड़ जाता? यहां तक कि उन्हें सहानुभूति के नाम पर बड़ा दिल वाले सीएम का तमगा मिल जाता। और पार्टी की जो छवि बनती, उसका तो कहना ही नहीं। लेकिन खैर अब बात बहुत आगे बढ़ चुकी है।  

45 दिन पहले ही आने लगी थी बगावत की बू 

चंपई की सियासी बगावत कहने को तो 24 घंटे पहले ही खुलकर सामने आयी है। लेकिन हकीकत में इसकी पूरी पटकथा आज से तकरीबन 45 दिन पहले 3 जुलाई को ही लिखी जा चुकी थी। दरअसल, वह तीन जुलाई का दिन था, जब चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए विधायक दल की बैठक में कहा गया था। 

उसी दिन तय हो गया था कि झारखंड की सियासत में आने वाले विधानसभा चुनाव से पहली बड़ी बगावत देखने को मिल सकती है। दरअसल, झारखंड में चंपई सोरेन जिस आदिवासी कोल्हान इलाके से आते हैं, वहां पर पूरे राज्य की तकरीबन 20 फीसदी सीटें हैं। सियासी गलियारों में कहा जा रहा है कि अगर चंपई सोरेन भाजपा के साथ नहीं जाते हैं, तो आने वाले चुनाव में नयी पार्टी बनकर सियासी मैदान में उतर सकते हैं।

सियासी तूफान के साथ बगावती सुर

झारखंड में जो सियासी तूफान चंपई सोरेन के बगावती सुर के साथ देखने को मिल रहा है, दरअसल उसकी पटकथा तो पहले ही लिखी जानी शुरू हो गई थी। जून के आखिरी सप्ताह में जब यह तय हुआ कि हेमंत सोरेन जेल से बाहर आ रहे हैं। तो ऐसा माना जा रहा था कि सत्ता का हस्तांतरण बहुत आसानी से हो जायेगा। चूंकि इसके लिए जो वैधानिक प्रक्रिया है, उसे अपनाने के लिए विधायक दल की बैठक बुलाने का प्रस्ताव रखा गया। झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ सदस्य प्रविध उरांग कहते हैं कि 3 जुलाई को आयोजित होने वाली विधायक दल की बैठक में जब मुख्यमंत्री चंपई सोरेन से इस्तीफा देने की बात कही गयी, तो बैठक के दौरान सब कुछ सामान्य नहीं था।

चंपई ने भी इस बात का जिक्र किया है कि उनके लिए मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने की घोषणा 3 जुलाई को ही विधायक दल की बैठक में की गयी। चंपई मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने के बाद खुद को पूरी तरह से टूटा हुआ महसूस करते रहे। राजनीतिक जानकार और झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार अनुरंजन पांडे कहते हैं कि 3 जुलाई की घटना वैसे तो एक बंद कमरे में हुई थी। लेकिन उस बैठक के अंदर क्या हुआ था, इसे लेकर झारखंड के सियासी गलियारों में कई बातें निकलकर सामने आ रही थीं।

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