मोबाइल फोन में बच्चों की अश्लील फिल्में देखने पर केरल हाई कोर्ट के फैसले की समीक्षा करेगा सुप्रीम कोर्ट

 

  • बच्चों के अश्लील वीडियो रखने और देखने को अपराध नहीं मानने के केरल हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने की सुनवाई 
  • 120 से ज्यादा गैरसरकारी संगठनों के गठबंधन जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस ने दायर की थी याचिका  
  • मद्रास हाई कोर्ट के इसी तरह के एक अन्य फैसले के खिलाफ इस बाल अधिकार संगठन की ओर से दायर अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार
  • एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2018 से 2022 के बीच बच्चों की अश्लील फिल्मों के मामलों में 2561% की बढ़ोतरी 

एबीएन सेंट्रल डेस्क। मोबाइल फोन में बच्चों की अश्लील फिल्में और वीडियो डाउनलोड करने या देखने को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम या सूचना तकनीक अधिनियम के तहत आपराधिक कृत्य नहीं मानने के केरल हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। 

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुआई में न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला व न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने सुनवाई के दौरान मद्रास हाई कोर्ट के भी इसी तरह के एक फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि सिर्फ बच्चों की अश्लील फिल्में देखने भर को अपने आप में आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता।  प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मद्रास हाई कोर्ट के फैसले पर निर्णय सुरक्षित है और इसका केरल हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर भी असर पड़ेगा। लिहाजा याची को फैसले का इंतजार करना चाहिए।  

केरल हाई कोर्ट ने जून 2024 में 27 साल के सेबिन थामस को आरोपमुक्त कर दिया था जिसके मोबाइल फोन में बच्चों की अश्लील फिल्में पाई गई थीं। हाई कोर्ट ने कहा कि मोबाइल फोन में अपने आप ही या दुर्घटनावश ऐसे वीडियो डाउनलोड हो जाने पर जिसमें बच्चे यौन कृत्यों में लिप्त हैं, पॉक्सो या सूचना कानून तकनीक के तहत अपराध नहीं है।   इस मामले में याची जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस देशभर में बच्चों के यौन शोषण, बाल दुव्यार्पार (चाइल्ड ट्रैफिकिंग) और बाल विवाह के खिलाफ काम कर रहे 120 से ज्यादा गैरसरकारी संगठनों का गठबंधन है। 

याचिका में एलायंस ने कहा कि दोनों उच्च न्यायालयों के फैसलों की देशभर में खासी चर्चा हुई और इससे इस तरह का संदेश गया कि बच्चों के अश्लील वीडियो डाउनलोड करने या देखने पर किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं होगी। इससे बच्चों की अश्लील फिल्में देखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा जो बच्चों और उनके भले के हित में नहीं होगा।   

बच्चों की अश्लील फिल्मों के मामलों पर उच्च न्यायालयों के हालिया फैसलों पर जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस के संयोजक रवि कांत ने कहा, ह्लयह चिंता की बात है कि बच्चों की अश्लील फिल्मों और वीडियो जैसे गंभीर अपराधों में विभिन्न राज्यों के हाई कोर्ट भ्रामक फैसले दे रहे हैं जबकि इस तरह के कृत्यों में लिप्त लोगों को बेहद सख्त और स्पष्ट संदेश देने की जरूरत है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार बच्चों की अश्लील फिल्मों के मामलों में बेहद चिंताजनक बढ़ोतरी हुई है। 

वर्ष 2018 में बच्चों की अश्लील फिल्मों के जहां सिर्फ 44 मामले थे जो 2022 में बढ़कर 1171 तक पहुंच गए। हमें भ्रम फैलाने वाले फैसलों के बजाय इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने और कार्रवाई करने की जरूरत है। याची की तरफ से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ वकील एच.एस. फूलका ने खंडपीठ को बताया कि केरल पुलिस ने पाया है कि 8 से 10 और 15 से 16 आयु वर्ग के कई बच्चों का इस्तेमाल आपत्तिजनक और अश्लील फिल्में बनाने में किया जा रहा है। 

आरोपी को केरल पुलिस की बाल यौन शोषण निरोधक (सीसीएसई) टीम के विशेष अभियान पी-हंट के दौरान गिरफ्तार किया गया जो बच्चों के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए गठित साइबरडोम के तहत कार्य करती है। सुनवाई के दौरान याची ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के हवाले से बच्चों की अश्लील फिल्मों और वीडियो के मामलों में साल दर साल बढ़ोतरी के ब्योरेवार आंकड़े पेश किए जो इसमें तकरीबन 2516 प्रतिशत की बढ़ोतरी दिखाता है।

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