एबीएन सेंट्रल डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में सभी राज्य सरकारों/ केंद्रशासित क्षेत्रों को यौन शोषण के पीड़ित बच्चों की मदद के लिए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के दिशानिदेर्शों के अनुसार अनिवार्य रूप सपोर्ट पर्सन की नियुक्ति करने को कहा है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने सभी राज्य सरकारों/ केंद्रशासित क्षेत्रों को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत लंबित मामलों में पीड़ित बच्चों की सहायता के लिए एनसीपीसीआर के दिशानिदेर्शों के मुताबिक सपोर्ट पर्सन की नियुक्ति, उनकी योग्यता और जिम्मेदारियां तय करने के आदेश पर अमल के बाबत चार हफ्ते में अनुपालन रिपोर्ट सौंपने को कहा है। शीर्ष अदालत के इस आदेश से देश भर की पॉक्सो अदालतों में लंबित ढाई लाख मामलों में पीड़ित बच्चों को राहत मिलेगी।
बताते चलें कि सपोर्ट पर्सन वह व्यक्ति होता है जो यौन शोषण व उत्पीड़न के शिकार बच्चों की भावनात्मक व कानूनी रूप से मदद करते हुए उन्हें पीड़ा से उबरने व समाज की मुख्य धारा में वापस लाने में सहयोग करता है। बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) की ओर से दायर याचिका में उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में 2022 में एक दलित नाबालिग बच्ची के साथ पांच महीने तक सामूहिक बलात्कार और शिकायत करने के लिए थाने जाने पर वहां एक पुलिस अधिकारी द्वारा उससे बलात्कार का मामला उठाते हुए बच्चों के प्रति मित्रवत नीतियों और बच्चों की सुरक्षा से जुड़े दिशानिदेर्शों पर अमल का आदेश देने की मांग उठायी गयी थी।
यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों के कानूनी संघर्षों को आसान बनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का स्वागत करते हुए एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा- यह एक उल्लेखनीय कदम है क्योंकि सपोर्ट पर्संस पर एनसीपीसीआर के दिशानिदेर्शों को शीर्ष अदालत ने मंजूरी दे दी है। अब, एनसीपीसीआर के दिशानिदेर्शों के कार्यान्वयन के संबंध में राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों की प्रतिक्रिया अहम है।
प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता भुवन ऋभु ने 2022 में एक अर्जी में यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों के लिए अनिवार्य रूप से सपोर्ट पर्सन की नियुक्ति का सुझाव दिया था। बच्चों के हक में इस आदेश को बदलाव का वाहक बताते हुए भुवन ऋभु ने कहा कि यह ऐतिहासिक आदेश है क्योंकि अब गरीब और अपने अधिकारों से अंजान बच्चे अब अकेले व असुरक्षित नहीं रहेंगे। अब उनके पास कोई है जो उन्हें जटिल कानूनी प्रक्रिया से गुजरने में मदद करेगा, उन्हें आवश्यक महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करेगा, गवाहों और पीड़ितों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा और उनके पुनर्वास और मुआवजे के लिए लड़ेगा। यह उनके लिए बहुत बड़ी जीत है जो पीड़ित से समाज की मुख्य धारा में शामिल होने की रूपांतरकारी यात्रा पर हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों व केंद्रशासित क्षेत्रों को एनसीपीसीआर के दिशा-निर्देशों पर अमल का निर्देश दिया है जो योग्यता का एक समान मानक स्थापित करते हैं, जहां नियुक्ति के इच्छुक अभ्यर्थियों के लिए सामाजिक कार्य, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान या बाल विकास में स्नातकोत्तर डिग्री अनिवार्य है। वैकल्पिक रूप से, स्नातक डिग्री और बाल शिक्षा, बाल विकास या बाल सुरक्षा के क्षेत्र में न्यूनतम तीन साल का अनुभव वाले उम्मीदवार भी पात्र हैं।
एनसीपीसीआर ने एक समग्र दिशा-निर्देश प्रस्तावित किया था जिस पर अब सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी है। दिशानिदेर्शों में इस बात पर जोर दिया गया है कि एक समान नीति तैयार की जानी चाहिए, जिससे आगे उचित समय पर बच्चों की सहायता में दक्ष व्यक्तियों का एक पैनल तैयार किया जा सके। साथ ही, सपोर्ट पर्सन को उनके कार्य और दायित्वों के अनुरूप उचित पारिश्रमिक का भुगतान किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, एक अखिल भारतीय पोर्टल भी बनाया जाए और यह आम लोगों और बाल संरक्षण की दिशा में कार्य कर रहे किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) और बाल कल्याण समितियों (सीडब्ल्यूसी) के लिए भी सुलभ हो। यह पोर्टल प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित क्षेत्र में उपलब्ध सभी सहायक व्यक्तियों की एक विस्तृत सूची प्रदान करेगा। प्रत्येक राज्य गैरसरकारी संगठनों का एक पैनल भी बनाए रखेगा और ऐसे व्यक्तियों का सहयोग करेगा जिनकी सेवाएं सीडब्ल्यूसी और जेजेबी के लिए उपयोगी हो सकती हैं।
इस पहल का उद्देश्य सहायक सेवाओं तक पहुंच को सुव्यवस्थित करना और बाल संरक्षण एजेंसियों के बीच समन्वय बढ़ाना है। शीर्ष अदालत ने देश के प्रत्येक थाने में अर्धन्यायिक स्वयंसेवियों की नियुक्ति के आदेश पर अमल के बाबत राष्ट्रीय विधिक सेवाएं प्राधिकरण (नालसा) को चार हफ्ते में अनुपालन रिपोर्ट सौंपने का निर्देश भी दिया। इस खबर से संबंधित और भी जानकारी पाने के लिए जितेंद्र परमार (8595950825) से संपर्क करें।
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