एबीएन डेस्क, रांची। आज पृथ्वी एवं प्रकृति विध्वंस के कगार पर आ गई है। आज मनुष्य की भौतिक शक्तियां एवं सुख भोग की भूख जैसे कुंभकरण के रूप में संसार में विचरण करने लगी है। पृथ्वी एवं प्रकृति इनके आहार बन गये हैं। ऐसा लगता है कि कुंभकरण रूपी इन दानवों से विश्व बेगि सब चौपट होई की घटना चरितार्थ हो रही है। विज्ञान के उत्सर्ग के चलते आज हम अन्य ग्रहों पर जाने लगे हैं। आज अग्रिम पंक्ति के वैज्ञानिक दिक् एवं काल (टाइम एवं स्पेस रहस्य-भेदन में लगे हैं। विज्ञान ने आज असंभव को संभव कर दिखाया है, लेकिन आज भी वह मनुष्य की पीड़ा, रोग एवं गरीबी नहीं दूर कर सका है। मात्र विज्ञान के सहारे किए जाने वाले विकास के चलते आज संसार का जल एवं वायु प्रदूषित होता जा रहा है। पृथ्वी की हरियाली खत्म होती जा रही है। बाढ़, तूफान, एवं भयंकर ताप से पृथ्वी तप्त होती जा रही है। यदि हमने इन भयंकर परिस्थितियों की तरफ ध्यान नहीं दिया तो संसार में मनुष्य जाति का जीवित रहना संभव नहीं हो पायेगा। विनाश हमारा दरवाजा खटखटा रहा है, पृथ्वी के पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। आज पर्यावरण की समस्याओं पर हमारे जीवन की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संपादित हो रही विकास योजनाओं पर गंभीरता से विचार करने पर लगता है कि हम पर्यावरण संरक्षण एवं विकास का सामंजस्य स्थापित कर सकेत हैं। हम पर्यावरण संरक्षण के साथ देश का ठोस विकास भी कर सकते हैं। हम मजदूर, पर्यावरण, व्यापार एवं विकास का तारतम्य स्थापित करने की दिशा में कार्य करके भविष्य का सृजन कर सकते हैं। आज ज्ञान एक बहुत बड़ी संपदा (रिसोर्स) है। इस संपदा का भरपूर उपयोग कर हम पर्यावरण-संरक्षण एवं विकास का सामंजस्य स्थापित कर सकते हैं। सिंगापुर एक ऐसा देश है, जहां प्राकृतिक संसाधनों के पूर्ण अभाव में भी देश ज्ञान संपदा का भरपूर उपयोग कर समृद्ध है। विश्व-पर्यावरण की समस्या का केंद्र-बिंदु नगर है। पर्यावरण की प्राय: सारी समस्याएं आज नगरीय विकास से जुड़ी हैं। नगरों के बढ़ते कदम पूरी पृथ्वी पर दीख पड़ते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट (1999) के अनुसार सन 1960 में संसार की एक-तिहाई आबादी शहरों में रहती थी। 1999 में 47 प्रतिशत लोग शहरों में रहते थे। सन् 2030 में 61 प्रतिशत लोगों के शहरों में रहने की संभावना है। शहर एवं गांव दोनों से संबंध रखने वाले समुदाय की जनसंख्या बढ़ती जा रही है और यही कारण है कि गांवों पर शहर की छाप दिनोंदिन गहराती जा रही है। अत: शहरों पर ध्यान देना और इनकी समस्याओं का समाधान करना पर्यावरण संरक्षण का एक बहुत कारगर कार्यक्रम हो सकता है। नगरों का आकार-प्रकार बढ़ता जा रहा है। इन नगरों की समस्याएं मूलत: पर्यावरण की समस्याएं हैं। नगरों में स्वच्छ जल एवं स्वच्छ वायु सुलभ कराना, खुले स्थान सुलभ कराना औज पर्यावरण की दृष्टि से सुखद एवं सक्षम यातायात सुलभ कराना आज पर्यावरण की बड़ी चुनौतियां हैं। हमें इन चुनौतियों का सामना करने के लिए दीर्घकालीन प्रयास करने होंगे। हमारे देश की पर्यावरणीय समस्याएं मूल रूप से दो कारणों से हैं। प्रथम विकास की प्रक्रिया से ऋणात्मक प्रभाव के कारण और दूसरी जनसंख्या, गरीबी, अशिक्षा, एवं पिछड़ेपन के कारण। वर्तमान में जिन समस्याओं का सामना भारत को करना पड़ रहा है, उनमें निम्न हैं : जनसंख्या वृद्धि के चलते जीवनयापन के साधनों पर पड़ रहे अधिभार के कारण विकास के धनात्मक प्रभाव का निष्प्रभावी हो जाना। बढ़ती हुई पशु संख्या के कारण घास के मैदानों एवं चारागाहों के क्षेत्र का कम होना। 3290 लाख हेक्टेयर भूमि में से 1750 लाख हेक्टेयर भूमि को विशेष उपचार की आवश्यकता है, ताकि उससे होने वाले लाभ एवं आमदनी को बढ़ाया जा सके। बढ़ता बुआ भू-अवकरण : (क) वायु एवं जल द्वारा (1590 लाख हेक्टेयर), (ख) लवणता एवं क्षारता द्वारा (80 लाख हेक्टेयर), (ग) नदियों द्वारा (70 लाख हेक्टेयर), 5. वनक्षेत्र में कमी (47500 हेक्टेयर प्रतिवर्ष)। इसके मुख्य कारण-पशुओं का जंगलों में चरना, लकड़ी के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, वनों का अतिक्रमण एवं अन्य क्रियाकलाप आदि, 6. कृषि क्षेत्र में वृद्धि एवं उनका स्थानांतरण सड़कों, मकानों, नहरों एवं विद्युत संयंत्रों का निर्माण, 7. पशु, पौधों एवं जीवाणुओं की प्रजातियों की संख्या में कमी (15,000 पशुओं एवं पौधों की प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा विद्यामान है), 8. सजल क्षेत्रों का प्रदूषण एवं उनमें मिट्टी जमा होने की गति में वृद्धि। 9. रसायनों एवं समुद्रीय जल द्वारा भूगर्भीय जल का प्रदूषण, 10. समुद्रतटीय क्षेत्रों में निर्माण के चलते बढ़ता प्रदूषण। 11. समुद्रतटीय वनस्पतियों में कमी। 12. वन के परितंत्र का अवकरण। 13. द्वीपों के परितंत्र का विनाश। 14. नगरों में बढ़ता प्रदूषण एवं स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी। 15. घातक अवशिष्टों एवं जैवीय प्रक्रिया से विघटित न हो सकने वाले अवशिष्टों का निस्तारण। 16. नदियों के प्रदूषण एवं उनमें मिट्टी जमा होने की गति में वृद्धि। 17. नगर क्षेत्रों में समीप उद्योगों एवं विकास योजनाओं की स्थापना द्वारा प्रदूषण एवं भीड़-भाड़ में वृद्धि। 18. ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों एवं नगरों की तरफ प्रवजन प्रमुख हैं। इनके निराकरण हेतु सुविचारित दीर्घकालीन नीति अपनाने की आवश्यकता है। आखिर, मिट्टी, हवा,जल तीनों को हम बुरी तरह से गंदा कर रहें हैं। इसके बाद पर्यावरण के बदलाव और उससे होने वाली आपदा का मार भी झेल रहें हैं लेकिन चंद देशों की उग्र प्रवृति को लेकर आज विश्व का अस्तित्व ही खतरे में हो गया है। (लेखक ग्रीन रिवोल्ट पर्यावरण समाचार पत्र के संपादक और पत्रकारिता विभाग रांची विवि के व्याख्याता हैं।)
Subscribe to our website and get the latest updates straight to your inbox.
टीम एबीएन न्यूज़ २४ अपने सभी प्रेरणाश्रोतों का अभिनन्दन करता है। आपके सहयोग और स्नेह के लिए धन्यवाद।
© www.abnnews24.com. All Rights Reserved. Designed by Inhouse