भारतीय पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाने वाली होली पर्व के आगमन की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है। यही कारण है कि होलाष्टक को होली पर्व की सूचना लेकर आने वाला एक हरकारा कहा जाता है।होलाष्टक से होली के आने की दस्तक मिलने के साथ ही इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती है।होलाष्टक दो शब्दों के योग से बना है - होला+ अष्टक अर्थात होली से पूर्व के जो आठ दिन होते हैं, वे होलाष्टक कहलाते हैं। उल्लेखनीय है कि होली एक दिन का पर्व न होकर पूरे नौ दिनों का त्यौहार है। धुलेण्डी के दिन रंग और गुलाल के साथ इस पर्व का समापन होता है। अर्थात होली पर्व की शुरूआत होलाष्टक से प्रारम्भ होकर धुलैण्डी तक रहती है।इसके कारण प्रकृति में खुशी और उत्सव का माहौल रहता है। मान्यता है कि जब भगवान श्री भोलेनाथ ने क्रोध में आकर कामदेव को भस्म कर दिया था, तो उस दिन से होलाष्टक की शुरुआत हुई थी। वर्ष 2021 में 21 मार्च 2021 से 28 मार्च, 2021के मध्य की अवधि होलाष्टक पर्व की रहेगी ।होलाष्टक अर्थात होली से पहले के आठ दिनों में शुभ मुहूर्त देखकर किये जाने वाले विवाह, ग2ह प्रवेश, नवीन व्यवसाय प्रारंभ करने या अन्यान्य शुभ कार्य आरंभ नहीं किये जाते। होलाष्टक से सम्बन्धित पौराणिक मान्यता के अनुसारहिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र भक्त प्रहलाद को भगवद्भक्ति से हटाने और स्वयं अर्थात हिरण्यकशिपु को ही भगवान की तरह पूजन हेतु तैयार करने के लिए अनेक यातनाएं दी लेकिन जब किसी भी उपाय से प्रहलाद के द्वारा भगवद्भक्ति से मुंह न मोड़ने और अपने पिता हिरण्यकशिपु को भगवान की तरह पूजने के लिए तैयार न होने पर होली से ठीक आठ दिन पहले उसने प्रह्लाद को मारने के प्रयास आरंभ कर दिये थे, लेकिन लगातार आठ दिनों तक भगवान अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा करते रहे । फाल्गुन पूर्णिमा का दिन होलिका के अंत और नरसिंह भगवान के द्वारा हिरण्यकशिपु को मार दिए जाने पर यह सिलसिला थमा। इसलिये आज भी भारतीय इन आठ दिनों को अशुभ मानते हैं। लोगों का बिश्वास है कि इन दिनों में शुभ कार्य करने से उनमें विघ्न बाधाएं आने की संभावनाएं अधिक रहती हैं।एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने अपनी तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर क्रोद्ध में आकर कामदेव को फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था, तब से ही होलाष्टक की शुरूआत हुई । कामदेव प्रेम के देवता माने जाते हैं, इनके भस्म होने के कारण समस्त संसार में शोक की लहर फैल गई थी। जब कामदेव की पत्नी रति द्वारा भगवान शिव से क्षमा याचना की गई, तब शिव ने कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया। इसके बाद लोगों ने खुशी मनाई। होलाष्टक का अंत धुलेंडी के साथ होने के पीछे एक कारण यह माना जाता है।ज्योतिष शास्त्र में भी होली से आठ दिन पूर्व शुभ कार्यों के करने की मनाही होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन दिनों में किए गए कार्यों से कष्ट, अनेक पीड़ाओं की आशंका रहती है तथा विवाह आदि संबंध विच्छेद और कलह का शिकार हो जाते हैं या फिर अकाल मृत्यु का खतरा या बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है।होलाष्टक में शुभ कार्य न करने के पीछे ज्योतिषीय कारण भी बताई जाती है। ज्योतिषियों के अनुसार इन दिनों में नकारात्मक उर्जा अर्थात नेगेटिव एनर्जी काफी हावी रहती है। होलाष्टक अष्टमी तिथि से आरंभ होता है। और अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक अलग-अलग ग्रहों की नकारात्मकता अर्थात नेगेटिविटी काफी उच्च रहती है। जिस कारण इन दिनों में शुभ कार्य न करने की सलाह दी जाती है। इनमें अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चुतर्दशी को मंगल तो पूर्णिमा को राहू की ऊर्जा काफी नकारात्मक रहती है। इसी कारण यह भी कहा जाता है कि इन दिनों में जातकों के निर्णय लेने की क्षमता काफी कमजोर होती है जिससे वे कई बार गलत निर्णय भी कर लेते हैं जिससे हानि होती है। लोक मान्यतानुसार होलाष्टक के दौरान विवाह व अन्य कार्यों हेतु शुभ मुहूर्त नहीं होने के कारण इन दिनों में विवाह, गृह प्रवेश जैसा मांगलिक कार्य संपन्न नहीं करना चाहिये।भूमि पूजन भी इन दिनों में नहीं किया जाना बेहतर रहता है।नवविवाहिताओं को इन दिनों में मायके में रहने की सलाह दी जाती है। इन दिनों भारतीय संस्कृति में प्रचलित सोलह संस्कार में से किसी भी संस्कार को संपन्न नहीं करना चाहिये। दुर्भाग्यवश इन दिनों किसी की मौत होती है तो उसके अंत्येष्टि संस्कार के लिये भी शांति पूजन करवाया जाता है। इन दिनों में सोलह संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है। किसी भी प्रकार का हवन, यज्ञ कर्म भी इन दिनों में नहीं किये जाते। शुभ कार्यों के करने की मनाही होने के बाद भी होलाष्टक में अपने आराध्य देव की पूजा अर्चना किया जा सकता है। इन दिनों व्रत उपवास करने से भी पुण्य फल प्राप्त होती है। इन दिनों में धर्म कर्म के कार्य, वस्त्र, अनाज व अपनी इच्छा व सामर्थ्य के अनुसार जरुरतमंदों को धन का दान करने से भी लाभ मिल सकता है। साथ ही कुछ शास्त्रोक्त विधि अपनाकर नकारात्मक उर्जा के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
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