एबीएन सोशल डेस्क। श्री कृष्ण प्रणामी सेवा-धाम ट्रस्ट व विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है कि मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन अत्यंत पवित्र माना जाता है क्योंकि इसी दिन कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इस दिव्य घटना की स्मृति में हर वर्ष गीता जयंती मनाई जाती है।
इस वर्ष गीता जयंती का पर्व 1 दिसंबर दिन सोमवार को मनाया जाएगा। और संयोग से उसी दिन मोक्षदा एकादशी का व्रत भी रखा जाएगा।गीता केवल एक धर्मग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन के हर पक्ष पर प्रकाश डालने वाली ऐसी शिक्षाएं हैं जो पांच हजार वर्ष पहले जितनी प्रासंगिक थीं, आज भी उतनी ही प्रभावशाली हैं। इसलिए इसकी जयंती मनाने का उद्देश्य केवल पूजा करना नहीं, बल्कि गीता के संदेशों को जीवन में उतारना है।
गीता जयंती का मूल उद्देश्य उस दिव्य उपदेश उपदेश-दिवस का स्मरण करना है, जिसने मानवजाति को धर्म, कर्तव्य, कर्मयोग और भक्ति की सर्वांगपूर्ण दिशा प्रदान की। महाभारत के भयंकर युद्ध से पूर्व अर्जुन मोह और संशय में डूब गए थे। तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें जो उपदेश दिया, वही आगे चलकर 700 श्लोकों के पवित्र ग्रंथ- श्रीमद्भगवद्गीता-के रूप में संकलित हुआ।
गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं,बल्कि जीवन- व्यवहार का शाश्वत मार्गदर्शन है। इसी कारण इस दिन को मनाकर समाज में ज्ञान, आत्मानुशासन, सत्य और कर्म के महत्व को पुनः प्रतिष्ठित किया जाता है।गीता जयंती का संदेश समय, समाज और परिस्थितियों से परे है। गीता बताती है कि मनुष्य को फल की चिंता किये बिना कर्तव्यनिष्ठ होना चाहिए- कर्मण्ये वाधिकारस्ते।
यह उपदेश व्यक्ति को निराशा से निकालकर आत्मबल, धैर्य और सकारात्मकता का संचार करता है। आज के तनावपूर्ण और प्रतिस्पर्धात्मक युग में गीता के सिद्धांत न केवल नैतिक मूल्यों को मजबूत करते हैं, बल्कि जीवन-प्रबंधन एवं मानसिक संतुलन के लिए भी अत्यंत उपयोगी हैं।साथ ही, गीता जयंती भारतीय संस्कृति की उस दिव्य धरोहर का उत्सव है जिसने विश्वभर में आध्यात्मिकता और दर्शन के क्षेत्र में भारत को विशिष्ट स्थान प्रदान किया।
विदेशों तक में यह दिन बड़े सम्मान और श्रद्धा से मनाया जाता है, जिससे यह सिद्ध होता है कि गीता का संदेश संपूर्ण मानवजाति के लिए है। गीता जयंती के अवसर पर मंदिरों, आध्यात्मिक संस्थानों और गुरुकुलों में गीता पारायण, यज्ञ, धर्म-सभाएँ, व्यास-पीठ से प्रवचन, तथा कुरुक्षेत्र में विशाल गीता महोत्सव का आयोजन होता है।
कई विद्यालय और महाविद्यालय इस दिन गीता- वाचन, निबंध प्रतियोगिताएँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कर युवा पीढ़ी में नैतिक शिक्षाओं का प्रसार करते हैं। आध्यात्मिक उत्सवों के साथ-साथ यह दिन आत्ममंथन, सदाचार और सेवा–भाव को अपनाने का अवसर भी प्रदान करता है।गीता जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि चेतना को जागृत करने वाला आध्यात्मिक उत्सव है।
यह हमें जीवन के संघर्षों में संतुलन बनाए रखने, कर्तव्य को सर्वोपरि रखने और सत्य-अहिंसा-धर्म जैसे सार्वभौमिक मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देता है। गीता का संदेश जितना प्राचीन है, उतना ही आज के युग में प्रासंगिक और इसी सार्वभौमिकता के कारण गीता जयंती हर वर्ष नवचेतना का पर्व बनकर आती है।
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