एबीएन बिजनेस डेस्क। यदि आप राइड के लिए ओला-उबर और खाना मंगाने के लिए स्विगी और जोमैटो का इस्तेमाल करते हैं तो आपकी जेब पर भार बढ़ने वाला है। भारत में 21 नवंबर से लागू हुए नए लेबर कोड्स का सीधा असर स्विगी, जोमैटो, ओला और उबेर जैसे गिग-इकोनॉमी प्लेटफॉर्म पर पड़ सकता है।
कंपनियों को अब सोशल-सिक्योरिटी फंड में योगदान देना होगा, जिससे उनकी प्रति-आर्डर और आपरेशन कॉस्ट बढ़ने की आशंका है। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यह अतिरिक्त खर्च आखिरकार यूजर्स तक पहुंच सकता है। यानी फूड डिलीवरी, कैब राइड और क्विक-कॉमर्स सर्विसेज का बिल आने वाले दिनों में बढ़ सकता है।
कोटक इक्विटीज की रिपोर्ट के मुताबिक नये लेबर कोड्स लागू होने से ओला, उबेर, जोमैटो और स्विगी जैसी कंपनियों की प्रति आर्डर लागत बढ़ेगी। सरकार के सोशल-सिक्योरिटी फंड में कंपनियों को सालाना टर्नओवर का 1-2% या गिग वर्कर्स को दिए भुगतान का 5% तक योगदान देना पड़ सकता है।
अगर 5% की सीमा लागू होती है तो फूड डिलीवरी आर्डर पर औसतन 3.2 रुपये और क्विक-कॉमर्स आॅर्डर पर 2.4 रुपये अतिरिक्त लागत जुड़ जायेगी। रिपोर्ट का अनुमान है कि इसका सीधा बोझ यूजर्स पर डाला जायेगा।
रिपोर्ट बताती है कि कंपनियां यह लागत प्लेटफॉर्म फीस बढ़ाकर, सर्ज-आधारित चार्जेज लगाकर या डिलीवरी प्राइस में बदलाव करके यूजर्स से वसूल सकती हैं। फिलहाल ये प्लेटफॉर्म्स दुर्घटना बीमा, हेल्थ इंस्योरेंस, इनकम प्रोटेक्शन और मैटरनिटी बेनिफिट जैसी सुविधाएं अलग से उपलब्ध कराते हैं।
अगर सभी लाभ एक केंद्रीकृत फंड के जरिये दिये जाते हैं तो प्रति-आॅर्डर अतिरिक्त लागत थोड़ा कम होकर 1-2 रुपये तक रह सकती है। फिर भी कुल खर्च बढ़ना लगभग तय माना जा रहा है।
नये लेबर कोड्स से संगठित स्टाफिंग कंपनियों को फायदा मिलेगा क्योंकि कंप्लायंस आसान और केंद्रीकृत होगा। इससे टीमलीज जैसी कंपनियों की भूमिका मजबूत हो सकती है। हालांकि, गिग वर्कर्स के अनियमित कार्य समय, बार-बार प्लेटफार्म बदलने और मल्टीपल ऐप्स पर एक साथ काम करने जैसी वजहों से सोशल-सिक्योरिटी लाभों की ट्रैकिंग चुनौतीपूर्ण होगी। इस प्रक्रिया में सरकार का ई-श्रम डेटाबेस अहम भूमिका निभायेगा।
चार नये लेबर कोड्स ने 29 पुराने कानूनों को बदलकर एकीकृत सिस्टम दिया है। पहली बार गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को औपचारिक सामाजिक सुरक्षा ढांचे में शामिल किया गया है। वेजेसकोड के तहत अब केंद्र सरकार राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी तय करेगी, हालांकि यह गिग वर्कर्स पर लागू होगी या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है। कोटक का मानना है कि मजबूत डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और रियल-टाइम वर्कर ट्रैकिंग के बिना इन लाभों को समान रूप से पहुंचाना मुश्किल होगा।
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