एबीएन सोशल डेस्क। आज के प्रवचन में परम पूज्य आचार्य भगवन 1008 श्री रामलाल जी म.सा. की आज्ञानुवर्ती शासन दीपिका समिया श्री जी म.सा. ने इस बात पर जोर दिया की मनुष्य अपनी जीवन रूपी पूंजी को सही इस्तेमाल कर के अपनी लोक गति को सुधार सकता है। प्रत्येक आत्मा चार गतियों में विचरण करती रहती है - मनुष्य, तिर्यंच, नर्क और देव गति।
आत्मा का उद्देश्य होता है सिद्ध गति को प्राप्त करना। हमें अपनी दैनिक क्रिया कलाप में यथोचित संवेदना लानी चाहिए। जीवन में छोटे छोटे परिवर्तन कर के आत्मा की शुद्धि हो सकती है।आत्मा सभी एक जैसी होती है चाहे वो हमारी आत्मा हो या फिर कोई सिद्ध आत्मा। केवल अंतर हमारे कर्मों का आवरण का मैल है जो हमारी आत्मा पर चढ़ा हुआ है और उसी आवरण के कारण हम ज्ञान को अनदेखा कर रहे हैं। हम सभी को आत्मा की शुद्धि का लक्ष्य रखना चाहिए।
हवा, पानी, अग्नि, पृथ्वी आदि सभी जगह सूक्ष्म जीव होते हैं जिनके प्रति हमें संवेदना रखते हुए अपने दैनिक कार्यों को संपन्न करने चाहिए। मोबाइल, बिजली, पानी और अन्य उपकरण का अनावश्यक प्रयोग रोक कर उस से होने वाली हिंसा को हमें रोकना चाहिए।
क्रोध रूपी कषाय हमारी आदतों में इतना घुल मिल गया है की कई बार हमें पता ही नहीं चलता कि हम क्रोध कर रहे हैं। एक व्यक्ति ने क्रोध किया और अगर सामने वाला शांत स्वाभाव से उत्तर दे तो क्रोधी भी शांत हो जाता है। क्रोध के ऊपर हम अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपनी आत्मा भी मैली कर लेते है।
आज के प्रवचण में रांची, कोलकाता, टाटानगर और दुर्ग से पधारें श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे। श्री साधुमार्गी जैन संघ रांची के अध्यक्ष अशोक सुराणा ने सबका आभार व्यक्त किया। प्रवचन में आज जय जैन, कोमल गेलड़ा, मोहन लाल नाहटा सहित कई श्रावक श्राविकाएं उपस्थित थे।
प्रवचन सुबह 9 से 10 एवं ज्ञान चर्चा के लिए दोपहर में 2 से 4 तक का समय रखा गया हैं। रांची प्रवास के दौरान सभी साध्वियां श्री शुभकरण जी बच्छावत के आवास पर विराजी हुई हैं।
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