एबीएन न्यूज नेटवर्क, पटना। केंद्रीय मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आवास से रवाना हुए। एनडीए बिहार में ऐतिहासिक जीत की ओर आगे बढ़ रही है।
बिहार के चुनाव परिणामों में एनडीए की बढ़त पर भाजपा नेता गौरव वल्लभ ने कहा कि यह जीत पीएम मोदी की विकास की राजनीति और प्रदर्शन की जीत है। यह नीतीश कुमार के प्रयासों और पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं के समर्पण की जीत है। यह अमित शाह के सूक्ष्म स्तर के प्रबंधन की जीत है। बिहार के लोगों ने वंशवादी राजनीति से ऊपर उठकर राज्य के विकास और वृद्धि के लिए वोट दिया है।
बिहार का जनादेश लगभग स्पष्ट है। एनडीए 204 सीटों पर ठोस बढ़त मिली है। नतीजों में महागठबंधन का सूपड़ा साफ हो चुका है। राजद नीत महागठबंधन की झोली में महज 34 सीटें दिख रही हैं। थोड़ी देर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा मुख्यालय पहुंचेंगे और एनडीए में शामिल दलों के कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे। बिहार में जश्न शुरू हो चुका है।
पीएम मोदी ने सोशल मीडिया पर बिहार चुनाव के नतीजों पर लिखा कि सुशासन की जीत हुई है। विकास की जीत हुई है। जन-कल्याण की भावना की जीत हुई है। सामाजिक न्याय की जीत हुई है। बिहार के मेरे परिवारजनों का बहुत-बहुत आभार, जिन्होंने 2025 के विधानसभा चुनावों में एनडीए को ऐतिहासिक और अभूतपूर्व जीत का आशीर्वाद दिया है। यह प्रचंड जनादेश हमें जनता-जनार्दन की सेवा करने और बिहार के लिए नये संकल्प के साथ काम करने की शक्ति प्रदान करेगा।
मैं एनडीए के प्रत्येक कार्यकर्ता का आभार व्यक्त करता हूं, जिन्होंने अथक परिश्रम किया है। उन्होंने जनता के बीच जाकर हमारे विकास के एजेंडे को सामने रखा और विपक्ष के हर झूठ का मजबूती से जवाब दिया। मैं उनकी हृदय से सराहना करता हूं!
एबीएन सेंट्रल डेस्क। चुनाव आयोग के अंतिम आंकड़ों के अनुसार बिहार में कुल महिला मतदाता (वोटर) की संख्या लगभग 3.50 करोड़ है। यह आंकड़ा चुनाव आयोग द्वारा अक्टूबर 2025 में घोषित मतदाता सूची पर आधारित है, जिसमें कुल मतदाताओं की संख्या करीब 7.43 करोड़ थी। इनमें पुरुष 3.92 करोड़, महिलाएं 3.50 करोड़ और थर्ड जेंडर 1,725 हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में हुए।
चुनाव में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 71.6 प्रतिशत रहा, जो पुरुषों 62.8 प्रतिशत से अधिक है। इस आधार पर महिलाओं के कुल पड़े वोट लगभग 2.51 करोड़ होते हैं। महिलाओं के मुकाबले पुरुषों के इस बार 2.97 करोड़ वोट पड़े हैं। महिलाओं से यह संख्या 46 लाख अधिक होती है।
क्या महिलाओं के खाते में भेजे गए 10 हजार रुपए का असर 1.21 करोड़ जीविका दीदियों पर नहीं पड़ा होगा? क्या 1.11 करोड़ मुफ्त बिजली जलाने वाले जाति-धर्म का विवेक छोड़ नीतीश को वोट नहीं किए होंगे? बेटे-बहू के भय से खैनी-बीड़ी के लिए 5 रुपए मांगने में संकोच करने वाले 1.90 करोड़ लोग भूल पाएंगे कि अब उनकी पेंशन तिगुनी हो गई है?
ऐसे क्षेत्र 2-4 हों तो सूची सटीक बन सकती है। पर, ये आंकड़े तो मोटा-मोटी कामों के हैं। सड़कों के जाल से नीतीश ने जिलों से राजधानी पटना की पहुंच 5 घंटे की करा दी है। गांवों की पगडंडियां भी नीतीश ने पक्की बनवा दी हैं। बेटियों के नाम पर बिदकने वाले अगर आज बेटियों का सम्मान करने लगे हैं तो इसके पीछे सिर्फ एक आदमी का विजन है और वे हैं नीतीश कुमार।
क्या लोग नीतीश के ऐसे कामों को मामूली मानते होंगे। संभव है कि उन्हें नीतीश के बुढ़ापे और बीमारी की विपक्ष की ओर से फैलाईं गईं खबरों ने थोड़ा सोचने पर मजबूर किया होगा, लेकिन उन्होंने यह भी सोचा हो कि जो फैसले नीतीश की सरकार ले रही है, वे तो जनहित में ही है। फिर वे ही ठीक हैं। क्यों नए को आजमाने की जहमत उठाई जाए? (वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क k फेसबुक वाल से साभार)
एबीएन न्यूज नेटवर्क, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में 6 और 11 नवंबर को मतदान होने के बाद नतीजे शुक्रवार यानी 14 नवंबर को आने हैं। चुनावों में किसे जीत मिलेगी इसका पता नतीजों के आने के बाद चलेगा। इन नतीजों से पहले 11 नवंबर को अलग-अलग सर्वे एजेंसियों के एग्जिट पोल आयेंगे। इसमें किस पार्टी को कितनी सीट मिलेगी, इसका अनुमान लगाया जायेगा। यह अनुमान मतदाताओं से बातचीत के आधार पर निकाला जाता है।
आखिर ये एग्जिट पोल क्या होते हैं? क्या इनमें किए गए दावे हमेशा सटीक होते हैं? बीते दो चुनावों में इन पोल में क्या कहा गया था और बाद में नतीजे क्या निकले? आइये जानते हैं...
दरअसल एग्जिट पोल एक तरह का चुनावी सर्वे होता है। मतदान वाले दिन जब मतदाता वोट देकर पोलिंग बूथ से बाहर निकलता है तो वहां अलग-अलग सर्वे एजेंसी के लोग मौजूद होते हैं। वह मतदाता से वोटिंग को लेकर सवाल पूछते हैं। इसमें उनसे पूछा जाता है कि उन्होंने किसको वोट दिया है? इस तरह से हर विधानसभा के अलग-अलग पोलिंग बूथ से वोटर्स से सवाल पूछा जाता है।
मतदान खत्म होने तक ऐसे सवाल बड़ी संख्या में आंकड़े एकत्र हो जाते हैं। इन आंकड़ों को जुटाकर और उनके उत्तर के हिसाब से अंदाजा लगाया जाता है कि जनता का मूड किस ओर है? गणितीय मॉडल के आधार पर ये निकाला जाता है कि कौन सी पार्टी को कितनी सीटें मिल सकती हैं? इसका प्रसारण मतदान खत्म होने के बाद ही किया जाता है।
बिहार में 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच में मुकाबला था। इस चुनाव में महागठबंधन में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू भी शामिल थी। जदयू के अलावा राजद और कांग्रेस ने साथ मिलकर यह चुनाव लड़ा।
वहीं, एनडीए में भाजपा के साथ लोजपा, जीतन राम मांझी की हम और उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा शामिल थे। 2015 में बिहार के एग्जिट पोल की बात करें तो आंकड़े एनडीए और महागठबंधन दोनों के पक्ष में बराबर जाते दिखाई दे रहे थे।
2015 में बिहार की 243 सीटों पर पांच चरणों में हुए चुनावों के नतीजे 8 नवंबर 2015 को सामने आए थे। नतीजे एग्जिट पोल से बिल्कुल अलग थे। 2014 में भाजपा की लहर के कारण माना जा रहा था कि बिहार में भी भाजपा अकेले सरकार बनाने में सफल हो जायेगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नतीजों में एनडीए को बड़ा झटका लगा और केवल 58 सीटों पर सिमट गई। महागठबंधन ने 178 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रहा।
वाम दलों के खाते में तीन सीटें गईं थी। दलवार आंकडे़ की बात करें तो राजद को सबसे ज्यादा 80 सीटें मिली थीं। जदयू के खाते में 71 और कांग्रेस को 27 सीटों पर सफलता मिली थी। एनडीए में सबसे ज्यादा 53 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। लोजपा और रालोसपा को दो-दो और हम को एक सीट जीतने में सफलता मिली थी। वाम दलों में तीनों सीटें भाकपा (माले) ने जीती थीं। बाकी चार सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार जीतने में सफल रहे थे। इस तरह 2015 में महागठबंधन सरकार बनाने में सफल हुई थी।
2020 में एक बार फिर एनडीए और महागठबंधन के बीच मुकाबला देखने को मिला, लेकिन इस बार दलों में हेर फेर था। पिछली बार के समीकरण इस बार बदल चुके थे। इस बार एनडीए में भाजपा के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू भी शामिल थी। इसके साथ वीआईपी और हम भी एनडीए का हिस्सा था।
महागठबंधन की बात करें तो इसमें राजद, कांग्रेस और बाकि वाम दल शामिल थे। एग्जिट पोल की बात करें तो महागठबंधन को पूर्ण बहुमत मिलते हुए दिखाया गया था। किसी ने अपने पोल में एनडीए को बहुमत का आंकड़ा नहीं दिया था। लेकिन दोनों के बीच कांटे की टक्कर दिखायी गयी थी।
2020 में तीन चरणों में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के नीतजे 10 नवंबर 2020 को सामने आए थे। नतीजे एग्जिट पोल के समान ही नजर आये थे। लेकिन नतीजों में कांटे की टक्कर के बाद एनडीए ने किसी तरह बहुमत का आंकड़ा छू लिया था। इस तरह एग्जिट पोल पूरी तरह गलत नहीं हुए और 243 सदस्यीय विधानसभा में एनडीए ने 125 सीटें जीतीं थीं। इनमें सबसे ज्यादा 74 सीटें भाजपा के खाते में गई थीं।
जदयू को 43, वीआईपी और हम को 4-4 सीट पर सफलता मिली थी। राज्य की 110 सीटें महागठबंधन के खाते में गई थीं। 75 सीटें जीतकर राजद राज्य का सबसे बड़ा दल बना था। इसके साथ ही कांग्रेस को 19, वामदलों को 16 सीट पर जीत मिली थी। इनमें 12 सीटें भाकपा (माले) और दो-दो सीटें भाकपा और माकपा के खाते में गयी थी। अन्य दलों की बात करें तो एआईएमआईएम ने पांच, बसपा, लोजपा और निर्दलीय को एक-एक सीट पर जीत मिली थी।
एबीएन न्यूज नेटवर्क, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के लिए आज दूसरे चरण का मतदान था। मतदान खत्म हो गया है और एग्जिट पोल के अनुमान सामने आ गये हैं। बिहार चुनाव पर चाणक्य स्ट्रेटजीज ने एक बार फिर से एनडीए की वापसी का अनुमान जताया है।
चाणक्य के एग्जिट पोल के अनुसार बिहार में एनडीए को 130 से 138 सीटें मिल सकती है तो वहीं महागठबंधन को 100 से 108 सीट मिल सकती है। जबकि अन्य को 3 से 5 सीटें मिल सकती है। अन्य में प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज पार्टी भी शामिल है।
चाणक्य एग्जिट पोल के अनुसार अन्य को 3 से 5 सीटें मिल रही है। इसमें असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी अकटकट और प्रशांत किशोर की जन सुराज भी शामिल है। बता दें कि प्रशांत किशोर सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ रही है तो वहीं ओवैसी की पार्टी 32 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
ओवैसी सीमांचल में अच्छी सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं तो वहीं प्रशांत किशोर सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। हालांकि एग्जिट पोल अनुमान के अनुसार दोनों को निराशा हाथ लग सकती है। असली नतीजे 14 नवंबर को आयेंगे।
चाणक्य एग्जिट पोल के अनुसार बिहार में महागठबंधन के घटक दल राजद को 75 से 80, कांग्रेस को 17 से 23, विकासशील इंसान पार्टी को 7 से 9 और लेफ्ट को 10 से 16 सीटें मिल सकती हैं। तो वहीं एनडीए के घटक दल भाजपा को 70 से 75, जनता दल यूनाइटेड को 52 से 57, लोजपा (रामविलास) को 14 से 19, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को जीरो से दो और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को दो से तीन सीट मिल सकती है।
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए दो चरणों में मतदान हुआ है। पहले चरण के लिए 6 नवंबर को वोट डाले गए थे जबकि दूसरे चरण के लिए आज यानी 11 नवंबर को वोटिंग हुई है। 14 नवंबर को सुबह 8 बजे से वोटों की गिनती शुरू होगी और दोपहर तक पिक्चर क्लियर हो जायेगी।
एबीएन न्यूज नेटवर्क, पटना। बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए चल रहा प्रचार अभियान का शोर रविवार शाम 5 बजे थम गया। राज्य की 121 सीटों पर पहले चरण में 6 नवंबर को बंपर वोटिंग हो चुकी है।
अब दूसरे और अंतिम चरण में राज्य के 20 जिलों की 122 सीटों पर होने वाले मतदान से सत्ता का समीकरण सामने आया। दूसरे चरण का प्रचार अभियान रविवार शाम 5 बजे थम जाएगा। इसके बाद इन जिलों में किसी भी प्रकार की सभा, रैली या रोड शो पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहेगा।
दूसरे चरण में जिन 20 जिलों में मतदान होगा उनमें पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, बांका, जमुई, नवादा, गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल, कैमूर और रोहतास शामिल हैं।
पहले चरण के चुनाव में, आजादी के बाद सर्वाधिक 65 प्रतिशत से अधिक वोटिंग को देखते हुए दूसरे चरण में भी रिकॉर्ड मतदान होने की उम्मीद है। पहले चरण में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा मतदान किया। कुल मतदान प्रतिशत 65.08 फीसदी रहा। महिलाओं का मतदान प्रतिशत 69.04 जबकि पुरुषों का 61.56 फीसद रहा। मीनापुर सीट पर सबसे ज्यादा 77.54 प्रतिशत मतदान हुआ।
इस चरण में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कई मंत्री चुनाव लड़ रहे हैं, जिनमें सुपौल से बिजेंद्र प्रसाद यादव, चकाई से सुमित कुमार सिंह, झंझारपुर से नीतीश मिश्रा, अमरपुर से जयंत राज, छातापुर से नीरज कुमार सिंह बबलू, बेतिया से रेणु देवी, धमदाहा से लेशी सिंह, हरसिद्धि से कृष्णनंदन पासवान और चैनपुर से जमा खान शामिल हैं।
एबीएन न्यूज नेटवर्क, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए वोटिंग खत्म होने को है। कुल 121 सीटों पर मतदान हो रहा है। शाम 6 बजे मतदान खत्म हो जाएगा। आज मतदान केंद्रों पर मतदाताओं की लंबी कतारें नजर आईं।
उसका ही नतीजा है कि बिहार में बीते पांच चुनावों में राज्य सबसे ज्यादा वोटिंग परसेंट की ओर बढ़ रहा है। चुनाव आयोग ने मतदान को शांतिपूर्ण और निष्पक्ष बनाने के लिए कड़े सुरक्षा इंतजाम किए हैं। राज्यभर में सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ाई गई है। संवेदनशील और अति-संवेदनशील बूथों पर अतिरिक्त फोर्स लगाई गई है।
हवाई निगरानी के साथ-साथ ड्रोन कैमरों से भी नजर रखी जा रही है। पहले चरण के चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। मतदान शाम 5 बजे तक जारी रहेगा। आयोग ने मतदाताओं से अपील की है कि वे अपने मताधिकार का प्रयोग करें और लोकतंत्र को मजबूत बनाएं। पहले चरण की सभी सीटों पर सुबह 7 बजे से वोटिंग की शुरुआत हो गई है।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार पर हमला बोलते हुए कहा कि अगर उनके बेटे को सत्ता मिली तो बिहार में हत्या, अपहरण और रंगदारी के तीन नए मंत्रालय बनाये जायेंगे। मुजफ्फरपुर में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए शाह ने दावा किया कि अगर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार बरकरार रही तो बिहार को बाढ़मुक्त बनाया जाएगा और इसके लिए एक अलग मंत्रालय का गठन किया जायेगा। शाह ने कहा, अगर राजग की सत्ता बरकरार रहती है तो बिहार को बाढ़मुक्त बनाया जायेगा। बाढ़ नियंत्रण के लिए एक अलग मंत्रालय स्थापित किया जायेगा। उन्होंने जनता से अपील की कि वे राजग को वोट देकर राजद शासन के दौरान देखे गए जंगलराज की पुनरावृत्ति को रोकें।
शाह ने कहा, अगर लालू जी के बेटे (तेजस्वी यादव) मुख्यमंत्री बने, तो बिहार में तीन नये मंत्रालय बनेंगे-एक हत्या के लिए, दूसरा अपहरण के लिए और तीसरा रंगदारी के लिए। आपके वोट बिहार को फिर से जंगलराज में जाने से बचायेंगे। नये चेहरों के साथ फिर से जंगलराज लाने की कोशिश हो रही है। गृह मंत्री ने राजद प्रमुख लालू प्रसाद और कांग्रेस नेता सोनिया गांधी पर निशाना साधते हुए कहा, दोनों अपने-अपने बेटों को बिहार का मुख्यमंत्री और देश का प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं, जबकि दोनों पद खाली नहीं हैं।
शाह ने कहा, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को सुरक्षित, समृद्ध और सशक्त बनाया है और उन्होंने अनेक जनकल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं। वैशाली में आयोजित एक दूसरी सभा में शाह ने कहा, राजद शासन में अपहरण, हत्या और अत्याचार की घटनाएं आम थीं। मतदाता इस बार वोट देकर उस दौर की वापसी को रोकें। उन्होंने कहा, अगर लालू जी के बेटे मुख्यमंत्री बने तो बिहार में तीन नये विभाग बनेंगे-हत्या, अपहरण और रंगदारी के लिए। आपके वोट बिहार को फिर से जंगलराज में जाने से बचायेंगे। नये चेहरों के साथ जंगलराज वापस लाने की कोशिश हो रही है।
शाह ने यह भी कहा कि महागठबंधन के घटक दलों में अंदरूनी कलह चल रही है। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को सुरक्षित, समृद्ध और सशक्त बनाया है और अनेक जनकल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में केंद्र सरकार के कार्यों का उल्लेख करते हुए शाह ने कहा कि जीएसटी में कटौती से बिहार के लीची उत्पादकों को लाभ मिलेगा, जबकि मुजफ्फरपुर में 20,000 करोड़ रुपये की लागत से एक मेगा फूड पार्क स्थापित करने की दिशा में कदम उठाये जा रहे हैं।
उन्होंने कहा, मोदी-नीतीश शासन में बिहार देश का पहला राज्य बना जिसने रेल इंजन का निर्यात किया और गया में इंजीनियरिंग क्लस्टर स्थापित किया गया। वैशाली की सभा में उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने एक योजना तैयार की है जिससे कोसी, गंगा और गंडक नदियों का पानी बिहार के खेतों तक सिंचाई के लिए पहुंचाया जायेगा। शाह ने घोषणा की कि बिहार के सीतामढ़ी, जिसे माता सीता की जन्मभूमि माना जाता है, से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक एक विशेष वंदे भारत ट्रेन शुरू की जायेगी।
उन्होंने कहा कि यह सेवा सीतामढ़ी में 850 करोड़ रुपये की लागत से मंदिर निर्माण के बाद शुरू की जायेगी। राजग के घटक दलों को पांच पांडव बताते हुए शाह ने कहा, भाजपा, जद (यू), चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास), हम और कुशवाहा की पार्टी मिलकर बिहार को समृद्ध बनायेंगी।
एबीएन एडिटोरियल डेस्क। बिहार में विधानसभा के लिए इस बार दो चरणों में चुनाव होने हैं। पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को, जबकि दूसरे चरण के लिए 11 नवंबर को वोट डाले जायेंगे। नतीजे 14 नवंबर को आयेंगे। इसके बाद पता चल सकेगा कि बिहार में सत्ता की बागडोर किसके हाथ में जाएगी। इन नतीजों से पहले चलिए जानते हैं कि बिहार में पिछले चुनावों का इतिहास क्या रहा है? बिहार की जनता ने कब, कौन-सी पार्टी को राज्य की जिम्मेदारी सौंपी?
साल 1951 से शुरू हुए बिहार विधानसभा के चुनावी सफर में साल 2020 तक कुल 17 चुनावों की गिनती पूरी हुई है। कई दिलचस्प मोड़ भी आये जिसमें साल 2005 का विधानसभा चुनाव है जब नतीजों के बाद सरकार का गठन नहीं होने पर कुछ माह में दोबारा चुनाव कराने पड़े। साल 2020 का विधानसभा चुनाव सबसे पहले बात करते हैं साल 2020 के विधानसभा चुनाव की। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने साथ मिल कर लड़ा था। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में इन दोनों दलों के अलावा जीतराम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और मुकेश सहनी की विकासशील इन्सान पार्टी (वीआईपी) भी शामिल थी।
चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने राजग से अलग होकर चुनाव लड़ा था। दूसरी ओर महागठबंध में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, वाम दलों में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन (सीपीआई-एमएल), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (सीपीएम) का गठजोड़ था। इस चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल 75 सीटें जीत कर सबसे बड़े दल के रूप में उभरा। भाजपा ने 74 सीटें जीती और वह दूसरे स्थान पर रही। नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जदयू को केवल 43 सीटें मिल पाई। कांग्रेस को 19 सीटों पर सफलता मिली, जबकि एलजेपी एक सीट जीतने में सफल रही। राजग की सरकार बनी और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने।
इससे पहले अक्टूबर-नवंबर 2015 में हुए बिहार विधानसभा के चुनाव पांच चरणों में पूरे हुए थे। इन चुनावों में सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड (जदयू), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस, जनता दल, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकपा), इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) और समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) ने महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा। वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के साथ चुनावी मैदान में उतरा था।
2015 का चुनाव सभी 243 सीटों पर हुआ था, जिसमें बहुमत के लिए 122 सीटों की जरूरत थी। इस चुनाव में लालू यादव की राजद और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जदयू ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस ने 41 और भाजपा ने 157 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। चुनाव नतीजे आने पर राजद 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। जदयू को 71 सीटें और भाजपा को 53 सीटें मिली थीं। इस चुनाव में कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं। इन चुनाव के बाद महागठबंधन की सरकार बनी और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया।
हालांकि, साल 2017 में जदयू महागठबंधन से अलग हो गया और नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनायी।
2010 विधानसभा चुनावबात 2010 के विधानसभा चुनाव की करें, तो साल 2010 में हुआ विधानसभा चुनाव को छह चरणों में बांटा गया। 243 सीटों पर हुए इन चुनावों में नीतीश कुमार की जदयू सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इन चुनावों में राजग गठबंधन में जदयू और भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा और उनके सामने राजद और लोक जनशक्ति पार्टी का गठबंधन था। इन चुनावों में जदयू ने 141 में से 115 सीटें और बीजेपी ने 102 में से 91 सीटें जीतीं।
वहीं, राजद ने 168 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 22 सीटें जीत सका, जबकि लोजपा 75 सीटों में से तीन सीटें लेकर आई। कांग्रेस ने पूरी 243 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन उसे सिर्फ़ चार सीटें ही मिली थीं। इस चुनाव में बिहार की बड़ी पार्टी माने जाने वाली राजद का प्रदर्शन बहुत खराब रहा, जो फरवरी 2005 के चुनावों की 75 सीटों के मुकाबले सिमटकर 22 सीटों पर आ गई। 2010 में राजग की सरकार बनी और नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाया गया।
साल 2005 में ऐसा पहली बार हुआ, जब एक ही साल के अंदर दो बार बिहार में विधानसभा चुनाव कराने पड़े। साल 2003 में जनता दल के शरद यादव गुट, लोक शक्ति पार्टी, जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार की समता पार्टी ने मिलकर जनता दल (यूनाइटेड) का गठन किया था। तब लालू यादव के करीबी रहे नीतीश कुमार ने उन्हें विधानसभा चुनाव में बड़ी चुनौती दी।
फरवरी 2005 में हुए इस चुनाव में राबड़ी देवी के नेतृत्व में राजद ने 215 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से उसे 75 सीटें मिलीं। वहीं, जदयू ने 138 सीटों पर चुनाव लड़कर 55 सीटें जीतीं और भाजपा 103 में से 37 सीटें लेकर आई। कभी बिहार में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस इस विधानसबा चुनाव में 84 में से 10 सीटें ही जीत पाई। इस चुनाव में 122 सीटों का स्पष्ट बहुमत ना मिल पाने के कारण कोई भी सरकार नहीं बन पाई और कुछ महीनों के राष्ट्रपति शासन के बाद अक्टूबर-नवंबर में फिर से विधानसभा चुनाव हुए।
दूसरे विधानसभा चुनाव में जदयू 88 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। जदयू ने 139 सीटों पर चुनाव लड़ा था। भाजपा ने 102 में से 55 सीटें हासिल की थीं। वहीं, राजद ने 175 सीटों पर चुनाव लड़कर 54 सीटें जीतीं, लोजपा को 203 में से 10 सीटें मिलीं और कांग्रेस 51 में से नौ (09) सीटें ही जीत पाई। साल 2000 में ही लोजपा का गठन हुआ था। इन चुनावों में नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी।
साल 2000 का विधानसभा चुनावयदि बात साल 2000 के विधानसभा चुनाव की करें, तो इस चुनाव से पहले बिहार में काफी उथल-पुथल मचा था। लालू यादव ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को अपनी जगह बिहार का मुख्यमंत्री बनाया था और 1997 में लगभग तीन हफ़्तों का राष्ट्रपति शासन भी लगा था। इसके बाद मार्च 2000 में विधानसभा चुनाव हुए। ये वो समय था, जब बिहार से अलग करके झारखंड राज्य नहीं बनाया गया था। साल 2000 के नवंबर में झारखंड का गठन हुआ था।
तब बिहार में 324 सीटें हुआ करती थीं और बहुमत के लिए 162 सीटों की जरूरत होती थी। इन चुनावों में राजद ने 293 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे 124 सीटें मिली थीं। वहीं, भाजपा को 168 में से 67 सीटें हासिल हुईं। इसके अलावा समता पार्टी को 120 में से 34 और कांग्रेस को 324 में से 23 सीटें हासिल हुई थीं। 2000 के चुनाव के बाद राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी थीं। 1995 का विधानसभा चुनाव बिहार विधानसभा का यह वो चुनाव था, जब ना तो बिहार में राजद थी और ना जदयू। हालांकि, 1994 में नीतीश कुमार जरूर समता पार्टी बनाकर लालू यादव से अलग हो गए थे।
तब लालू यादव के नेतृत्व में जनता दल ने 264 सीटों पर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा और वो 167 सीटें जीतने में सफल हुई। भाजपा ने 315 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन सिर्फ़ 41 सीटें ही जीत पाई। कांग्रेस 320 सीटों पर चुनाव लड़कर 29 सीटें जीतीं। उस समय भी बिहार में 324 सीटों के लिए चुनाव लड़ा गया था। संयुक्त बिहार में हुए इस आखिरी चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने 63 में से 10 सीटें जीतीं और समता पार्टी को 310 में से सात (07) सीटें मिली थीं।
इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के साथ लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने, लेकिन साल 1997 में चारा घोटाले में फंसने के कारण लालू यादव को बिहार के मुख्यमंत्री के पद से हटना पड़ा और उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया। उनके इस फैसले की काफी आलोचना हुई और पार्टी में फूट भी पड़ गई। 1997 में ही राष्ट्रीय जनता दल का भी गठन हुआ।
1990 के विधानसभा चुनाव में कई दलों के विलय से बने जनता दल ने पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा था। जनता दल 276 सीटों पर चुनाव लड़कर 122 सीटों पर जीत हासिल की और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हालांकि, बहुमत का आंकड़ा 162 सीटों का था। वहीं, कांग्रेस को 323 सीटों में से 71 सीटें और भाजपा को 237 सीटों में से 39 सीटों हासिल हुईं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 109 सीटों पर चुनाव लड़कर 23 सीटें जीतीं। जेएमएम 82 में से 19 सीटें जीत पाई थी। तब बिहार में लालू यादव के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी थी। इस चुनाव के बाद ही बिहार में एक ही कार्यकाल में कई मुख्यमंत्री बनने का दौर खत्म हुआ।
1985 विधानसभा चुनावकांग्रेस 1985 के बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। कांग्रेस को 323 में से 196 सीटें मिली थीं, जो बहुमत से कहीं ज्यादा थीं। इसी चुनाव के बाद बिहार में एक ही कार्यकाल में चार मुख्यमंत्री बने थे। इस चुनाव में लोकदल को 261 में से 46 और भाजपा को 234 में से 16 सीटें मिली। उस समय जनता पार्टी भी चुनावी मैदान में थी, जो बाद में जनता दल में शामिल हो गई। जनता पार्टी को 229 में से 13 सीटें मिली थीं।
इस चुनाव में 1985 से 1988 तक बिंदेश्वरी दुबे बिहार के मुख्यमंत्री रहे। उनके बाद लगभग एक साल भागवत झा आजाद, फिर कुछ महीनों के लिए सत्येंद्र नारायण सिन्हा और जगन्नाथ मिश्र मुख्यमंत्री बने थे।
1980 का विधानसभा चुनावबिहार में साल 1980 में हुए विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस (इंदिरा) को 311 में से 169 सीटें मिली थीं और कांग्रेस (यू) को 185 में से 14 सीटें मिली थीं। तब भाजपा ने 246 में से 21 सीटें जीती थीं और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 135 में से 23 सीटें हासिल की थीं।
जनता पार्टी (एससी) को तब 254 में से 42 सीटें मिली थीं। इस कार्यकाल में भी लगभग चार महीने राष्ट्रपति शासन लागू रहा। उसके बाद करीब तीन साल के लिए जगन्नाथ मिश्र और एक साल के लिए चंद्रशेखर सिंह बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। 1977 विधानसभा चुनावसाल 1977 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी ने राज्य की 311 सीटों पर चुनाव लड़ा और 214 सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस को इस चुनाव में 286 में से 57 सीटें मिली। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 73 में से 21 सीटें हासिल की।
बिहार में जनता पार्टी की सरकार बनी। पहले लगभग दो महीने राष्ट्रपति शासन लागू रहा। उसके बाद लगभग एक-एक साल के लिए 1979 तक कपूर्री ठाकुर और फिर 1980 तक रामसुंदर दास बिहार के मुख्यमंत्री बने। 1972 विधानसभा चुनावयदि बात 1972 के विधानसभा चुनाव की करें, तो इसमें कांग्रेस की जीत हुई और उसे 259 में से 167 सीटें मिली। कांग्रेस (ओ) 272 में से 30 सीटें ही मिल पाई। इसके अलावा भारतीय जनसंघ को 270 में से 25 सीटें हासिल हुई थीं।
तब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) को 256 सीटों पर चुनाव लड़ कर 33 सीटें मिलीं। इस कार्यकाल में भी लगभग दो महीने राष्ट्रपति शासन लगा रहा और उसके बाद केदार पांडे, अब्दुल गफूर और जगन्नाथ मिश्र बिहार के मुख्यमंत्री रहे।
साल 1969 के चुनाव में भी इंडियन नेशनल कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। हालांकि, उसे पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। उस समय बिहार में 318 सीटों के लिए विधानसभा चुनाव हुआ था और जीत के लिए 160 सीटों की जरूरत थी। कांग्रेस को 318 में से 118 सीटें मिलीं और भारतीय जनसंघ को 303 में से 34 सीटें हासिल हुईं।
इस चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) को 191 में से 52 और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को 162 में से 25 सीटें मिलीं। इस कार्यकाल में भी राष्ट्रपति शासन के बाद दारोगा प्रसाद राय, कपूर्री ठाकुर और भोला पासवान शास्त्री कुछ-कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री बने। 1967 विधानसभा चुनाव1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 318 में से 128, एसएसपी को 199 में से 68 और जन क्रांति दल को 60 में से 13 सीटें मिली थीं। इन तीनों राजनीतिक दलों से थोड़े-थोड़े समय के लिए कुल चार मुख्यमंत्री रहे थे। इन चुनावों में भारतीय जनसंघ ने 271 में से 26 सीटें हासिल की थीं।
1951, 1957 और 1962 के चुनावदेश की आजादी के बाद पहली बार हुए साल 1951 के चुनाव में कई पार्टियों ने भाग लिया लेकिन कांग्रेस ही उस समय सबसे बड़ी पार्टी थी। इस चुनाव में कांग्रेस को 322 में से 239 सीटें मिली। श्रीकृष्ण सिंह बिहार के पहले मुख्यमंत्री बने। साल 1957 के चुनाव में कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी बनी और उसे 312 में से 210 सीटें मिली थीं। साल 1962 के चुनाव में भी कांग्रेस को 318 में से 185 सीटों के साथ बहुमत हासिल हुआ था। उसके बाद स्वतंत्र पार्टी को सबसे अधिक 259 में से 50 सीटें मिली थीं। (लेखक, स्वतंत्र स्तंभकार हैं।)
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