वन और पर्यावरण

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Published / 2021-04-06 15:01:50
सीसीएल रजरप्पा को मिला वाटर स्प्रिंकलर टैंकर पर्यावरण मित्र

रजरप्पा। सीसीएल रजरप्पा के महाप्रबंधक आलोक कुमार ने मंगलवार को वाटर स्प्रिंकलर टैंकर का विधिवत रूप से पूजा अर्चना कर व फीता काट कर उद्घाटन कर रजरप्पा परियोजना को समर्पित किया। इस दौरान प्रबंधक ने बताया की इन टैंकरों की क्षमता 28,000 लीटर है तथा यह आधुनिकतम सुरक्षा उपकरणों से लैस हैं। यदि चालक थका हुआ या नींद ग्रस्त हो तो अलार्म बजता है, जिससे चालक सतर्क होकर कोई दुर्घटना से सावधान हो जायेगा। साथ ही अन्य कई सुविधाएं इस टैंकर में लैस है जिससे रजरप्पा परियोजना को सावधानी सहित सुरक्षा के आधार पर कार्य करने में सुविधा होगी। वाटर स्प्रिंकलर टैंकर के आ जाने से रजरप्पा परियोजना तथा उसके आसपास के क्षेत्र में पर्यावरण संतुलन की दिशा में एक नई पहल हुई है। इसी कारण इन टैंकरों का नाम पर्यावरण मित्र रखा गया है। इसके आने के बाद कर्मियों ने महाप्रबंधक को धन्यवाद देते हुए आभार व्यक्त किया। मौके पर सीसीएल रजरप्पा के कई पदाधिकारी व कर्मी मौजूद थे।

Published / 2021-04-05 11:42:44
धनबाद : बंजर जमीन पर पार्क बनाने की कोशिश में जुटे पांच युवा

लोयाबाद। लोयाबाद पावर हाउस के पांच उत्साहित युवाओं ने एक बंजर जमीन पर अपने खर्च व बल पर पार्क बनाने की ठानी हैं। उक्त युवाओं का मानना है कि हमारा यह प्रयास आने वाले समय में आसपास के लोगों शांति व राहत देने का काम करेगी। इस काम की बीड़ा उठाने वालो में दो शिक्षक, एक सरकारी सेवक, एक मजदूर व एक सामाजिक युवा जुड़े हुए है। ये पांचो उत्साहित युवक अपने जेब से इस पार्क पर 50 हजार रुपये खर्च करने का मन बनाया है। इस अभियान में कृष्ण कुमार, रवि कुमार, मुन्ना झा, शिवशंकर यादव, दिलीप यादव, शामिल है। इन पांचो युवाओं की सकारात्मक पहल के कारण और भी कई लोग इस मुहिम में जुड़ने लगे हैं। अभियान में शामिल युवकों द्वारा बताया गया कि फिलहाल यहां करीब दस मजदूर काम पर लगे हुए है। करीब 12 हजार स्क्वायर फीट की इस जगह में पार्क के खूबसूरती के अलावा शुद्ध देशी चीजें स्थापित करने की भी योजना है। सरकारी उदासीनता का हवाला देते हुए युवाओं ने कहा कि इस क्षेत्र में करीब पांच हजार की आबादी है। निगम व शहरी क्षेत्र होने के बावजूद भी यहां एक भी जगह ऐसी नही है जहां लोग कुछ समय शांतिपूर्वक बिता सके। कहा कि यह हमारी ओर से एक छोटी सी प्रयास है कि आने वाले दिनों में लोग यहां आकर अपने दैनिक जीवन के तनाव को कुछ कम कर सके। युवाओं की इस सोंच को कई लोग सराहना कर रहे हैं।

Published / 2021-04-02 14:35:13
छत्तीसगढ़ के कृषि वैज्ञानिकों ने तैयार की चावल की खास किस्म, कोरोना से बचाने में कारगर

एबीएन डेस्क। दुनियाभर में फैली कोरोना महामारी (Corona epidemic) के बीच छत्तीसगढ़ के रायपुर से एक अच्छी खबर आ रही है। छत्तीसगढ़ के कृषि विश्वविद्यालय (Agricultural University of Chhattisgarh) के वैज्ञानिकों ने चावल की एक ऐसी किस्म तैयार की है जो आपको ना केवल कोविड से बचाने में मदद करेगा, बल्कि अगर कोरोना हो गया तो इसके बाद आपको ढेर सारी जिंक, मल्टी विटामिन्स और प्रोटीन की दवाईयां नहीं लेनी पड़ेंगी। आपकी थाली में परोसा गया यह चावल या नाश्ते की प्लेट में परोसा गया गर्मागर्म पोहा या चिवड़ा इसकी पूर्ति कर देगा। रायपुर में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के शोध से तैयार की गई धान की अलग-अलग वैरायटी को देश के कई रिसर्च संस्थानों ने सराहा है। वहीं अब यहां के वैज्ञानिकों ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। जी हां, यहां तैयार की गई है जिंको राइस एमएस, छत्तीसगढ़ जिंक राइस वन (Chhattisgarh Zinc Rice one) न केवल कोरोना से बचाएगी, बल्कि शरीर में जरूरी जिंक, मल्टी विटामिन्स और प्रोटीन की कमी को पूरा करेगी। चावल की खास वैरायटी को तैयार करने वाली टीम के प्रमुख और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ गिरीश चंदेल का दावा है कि यह चावल कोरोना के मर्ज की प्रमुख दवाई के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इसे खाने से प्रतिरोधक क्षमता को इतनी बढ़ जाएगी कि लोग संक्रमित होने से बच जाएंगे। वहीं यदि वायरस के संपर्क में आए हैं तो भी कम से कम प्रभावित होंगे। उनका कहना है कि विश्वविद्यालय ने करीब 20 साल तक रिसर्च करके धान की चार वैरायटी तैयार की थी, जिसमें जिंक, मल्टी विटामिन और प्रोटीन हो। अब कोरोना आने के बाद इसमें एक साल जुटकर काम किया गया, जिसके बाद ये वैरायटी तैयार की गई। इसे खासतौर पर कोरोना के अनुसार तैयार किया गया है, इसमें जिंक प्रचुर मात्रा में है, मल्टी विटामिन हैं।

Published / 2021-04-01 15:07:43
हजारीबाग : जरबेरा के फूलों से महिलाएं खोल रही हैं तरक्की का रास्ता

हजारीबाग। महिलाएं आत्मनिर्भर होने के लिए इन दिनों कई तरह से प्रयास कर रही हैं, लेकिन इनसे हटकर दारू प्रखंड की रामदेव खरीका की महिलाएं फूलों की खेती कर आत्मनिर्भर होने की ओर कदम बढ़ा रही हैं। इससे उनके जीवन में बदलाव भी आ रहा है और उनकी सोच भी सकारात्मक हो रही है। 2 महीने के अथक प्रयास के बाद अब पौधों में रंग बिरंगे फूल भी आ रहे हैं, जिसे देखकर खेती करने वाली महिलाएं बेहद खुश हैं तो दूसरी ओर पूरे गांव में यह चर्चा का विषय भी बना हुआ है। अनुदानित मूल्य पर दिया गया पौधा : झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के साथ जुड़कर महिलाएं कई तरह के कार्य कर रही हैं, जिससे केवल महिलाएं आत्मनिर्भर ही नहीं हो रही बल्कि उनके जीवन में भी बदलाव आ रहा है। हजारीबाग जिला के दारू प्रखंड के रामदेव खरीका की महिलाएं जरबेरा फूल की खेती कर आत्मनिर्भर बनने की कोशिश कर रही हैं। महिला ग्रुप की संगीता कुमारी ने कहा कि जेएसएलपीएस ने फूल की खेती के लिए उन लोगों से आवेदन भरवाया था। आवेदन भरने के बाद ना केवल उनके ग्रुप को ग्रीनहाउस दिया गया, बल्कि पौधा भी अनुदानित मूल्य पर दिया गया। साथ ही साथ पौधा उगाने के लिए, बेड बनाने के लिए भी प्रशिक्षण दिया गया। पौधे को विदेश से हवाई जहाज के जरिए रांची पहुंचाया गया और फिर रांची से हजारीबाग के दारू प्रखंड में। दूसरों को भी कर रहीं प्रेरित : आज इन महिलाओं की मेहनत रंग लायी है और फूल खिल रहे हैं। संगीता कुमारी ने बताया कि आने वाले समय में इसका अधिक मूल्य मिलेगा, जिसका लाभ उन महिलाओं को मिलेगा जो इस खेती से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने कहा कि अन्य महिलाओं को भी फूल की खेती के लिए वो प्रेरित करेंगी। फिलहाल लगन का समय नहीं है जब शादी का मौसम आएगा तो फूल की कीमत उन्हें और भी अधिक मिलेगी और वो आर्थिक रूप से सबल भी होंगी। उनका यह भी कहना है कि एक पौधा 3 सालों तक फूल देता है और इसके फूल सालों भर रहते हैं इस कारण यह मुनाफे वाली खेती है।

Published / 2021-03-27 14:16:55
फसल खेतों में पड़ी, किसानों को कैसे मिले ओटीएस का लाभ

वर्तमान में किसानों की फसल कटाई का काम चल रहा है, जबकि 50 फीसदी से अधिक किसानों की फसल अभी खेतों में खड़ी हुई है। ऐसे में अभी फसल मंडी भी नहीं पहुंच सकी है और क्रय केंद्रों पर भी एक अप्रैल से खरीद शुरू होनी है, ऐसे में नलकूप संयोजनों पर लागू की गई एक मुश्त समाधान योजना का लाभ किसानों को मिलना मुश्किल ही लग रहा है। इसके चलते अब किसान संगठनों द्वारा ऊर्जा मंत्री से किसान हित में मई के माह तक ओटीएस बढ़ाने की मांग की गई है। जनपद में वर्तमान में 5400 किसान उपभोक्ताओं द्वारा नलकूप संयोजन लेकर खेतों की सिंचाई कर रहे हैं और इन पर लाखों रुपये बकाया चल रहा है। एक-एक किसान पर लगभग डेढ़ से दो लाख रुपये तक का भी बकाया चल रहा है। ऐसे में बड़े बकाएदारों को सरचार्ज में छूूट देकर किसानों को राहत पहुंचाने के लिए शासन द्वारा इस बार घरेलू और किसान उपभोक्ताओं के लिए एक मुश्त समाधान योजना लागू की गई है। लेकिन यह योजना ऐसे समय तक लागू की गई है, जबकि अभी तक किसानों की फसलें खेतों में खड़ी है और बहुत से किसानों की खेतों में फसल कट रही है, लेकिन अभी तक मंडी नहीं पहुंच सकी है। अभी न तो किसान मंडी ही पहुंच पा रहा है और न ही अभी तक क्रय केंद्र ही खोले जा सके हैं। तो ऐसे में किसानों को शासन की किसान हित में लागू की गई इस महत्वपूर्ण योजना का लाभ कैसे मिले। इसके लिए कई किसान संगठनों द्वारा शासन से किसान हित में उक्त योजना को किसानों की फसल मंडी व क्रय केंद्रों की खरीद होने तक यानि मई माह तक बढ़ाए जाने की मांग की है।

Published / 2021-03-27 13:17:49
पलामू : तेजस्विनी क्लब ने किया पौधारोपण

उंटारी रोड पलामू। प्रखंड क्षेत्र में तेजस्विनी परियोजना अंतर्गत विभिन्न तेजस्विनी क्लब में पोषण अभियान के तहत वृक्षारोपण किया गया। जिसमें तेजस्विनी क्लब मुरमा कलां, प्रतापपुर, गवरलेटवा, सतबहिनी क्लब की किशोरियां एवं युवतियां ने आम, नींबू, अमरूद, गुलाब, गेंदा आदि विभिन्न प्रकार की पौधे का रोपण किया। परियोजना के क्षेत्रीय समन्वयक विशाल कुमार ने बताया कि पर्यावरण हमारे जीवन का आधार है हमारे लिए पर्यावरण बहुत ही जरूरी है। मौके पर आराधना कुमारी, प्रिया, खुशबू, गुड्डी, पूजा, लक्ष्मी भारती समेत कई युवतियों ने पौधारोपण किया।

Published / 2021-03-25 15:08:30
गिद्धों के संरक्षण के लिए संरक्षित की जायेगी हजारीबाग की वनभूमि

बरही। वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा ग्राम वन प्रबंधन, संरक्षण समिति के सदस्यों, ग्रामीणों एवं वन कर्मचारियों के बीच गिद्ध संरक्षण व गर्मी में जंगल में आग जाने को लेकर जवाहर घाट स्थित वन विश्रामागार में प्रशिक्षण सह कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता व संचालन वन प्रक्षेत्र पदाधिकारी गोरख राम ने किया। कार्यशाला में मुख्य रूप से हजारीबाग पश्चिमी वन प्रमंडल पदाधिकारी आरएन मिश्रा, पर्यावरणविद्द सत्यप्रकाश एवं इंद्रजीत सामंता शामिल हुए। कार्यशाला को संबोधित करते हुए हजारीबाग पश्चिमी वन प्रमंडल पदाधिकारी आरएन मिश्रा ने बताया कि मानव हितैशी पक्षी गिद्ध की बड़ी तेजी से इसकी प्रजाति विलुप्त हो रही हैं। उन्होंने गिद्ध के न रहने पर आने वाले खतरे को लेकर विस्तार पूर्वक जानकारी दी। साथ ही बताया कि गिद्ध एक मानव हितैशी पक्षी है, जो स्वभाव से शव भक्षण कर प्रकृति की सफाई करने के लिए जाना जाता है। साथ ही बताया कि एक लाख 37 हजार हेक्टयर वन भूमि को सुरक्षित, विकसित करने का प्रयास वनविभाग के द्वारा जारी हैं। वहीं जीपीएस के आधार पर वह पता लगा लेते है कि आग कहां लगी हैं, उसे बुझाने को लेकर क्षेत्रीय अधिकारी को भेजा जाता है, तांकि उसका बचाव किया जा सकें। अध्यक्षता कर रहे वन प्रक्षेत्र पदाधिकारी गोरख राम ने कहा कि गिद्ध को आहार श्रृंखला के सर्वोच्च स्थान पर रखा गया है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि गिद्ध एक सामाजिक पक्षी है। वह झुंड में रहना पसंद करता है और अपने साथी पक्षी के प्रति बेहद ईमानदार होता है। मौके पर महेश कुमार दास, आनन्द सिंह सहित दर्जनों लोग शामिल थे।

Published / 2021-03-24 12:25:19
देसी ज्ञान से बचेगा पर्यावरण

आज की प्रचलित प्रौद्योगिकी ने विकास के नाम पर विस्थापन, बिगाड़ और विनाश किया है। प्राचीन काल में संवेदनशील, अहिंसक विज्ञान से ही भारत आगे बढ़ा था। प्रौद्योगिकी और अभियांत्रिकी को जब संवेदनशील विज्ञान के साथ समग्रता से जोड़कर रचना और निर्माण होता है, वहीं विस्थापन, विकृति और विनाश मुक्त स्थायी विकास होता है। इस संपूर्ण प्रक्रिया में सदैव नित्य नूतन निर्माण होने से ही सनातन विकास बनता है। इसे ही हम नई अहिंसक प्रौद्योगिकी कह सकते हैं। इसी से जलवायु परिवर्तन के संकट से मुक्ति मिल सकती है। ऐसी प्रौद्योगिकी का आधार भारतीय जनतंत्र से ही हो सकता है। भारतीयों का भगवान भ-भूमि, ग-गगन, व-वायु, अ-अग्नि और न-नीर से रचा हुआ माना जाता है। आम लोग नीर-नारी-नदी को नारायण मानते हैं। यही भारतीय आस्था और पर्यावरण है। पर्यावरण विज्ञान संवेदनशील अहिंसक विज्ञान ही है। इसे आध्यात्मिक विज्ञान भी कह सकते हैं। आधुनिक विज्ञान तो केवल गणनाओं और समीकरणों के फेर में फंसकर संवेदना रहित विज्ञान की निर्मिति करता है। भारतीय ज्ञानतंत्र का ज्ञान-विज्ञान अनुभूति में आते-आते संवेदनशील और अहिंसक बन जाता है। आस्था के विज्ञान से ही अभी तक हमारे पर्यावरण का संरक्षण होता रहा है। जब से हमारे विज्ञान से संवेदना और आस्था गायब हुई है, तभी से जलवायु परिवर्तन का संकट और उससे जन्मी हिमालय की आपदाओं का चक्र भी बढ़ गया है। जाहिर है, समृद्धि केवल मानव के लिए होगी, तो प्रकृति और मानवीय रिश्तों में दूरी ही पैदा करेगी। ऐसी स्थिति में खोजकर्ता एटम बम बनाएगा और तीसरा विश्वयुद्ध कराएगा। जब मानवीय संवेदना कायम रहती है, तो शोध करके आरोग्य रक्षक आयुर्वेद का चरक बनता है, जो जीवन को प्राकृतिक औषधियों से स्वस्थ रहने, ज्यादा जीने और प्राकृतिक संरक्षण का काम करके साझा भविष्य को समृद्ध करने के काम में डूबा रहेगा। वह मानव के स्वास्थ्य में बिगाड़ नहीं करेगा, बल्कि दोनों को स्वस्थ रखने की कामना और सद्भावना अपने शोध द्वारा करेगा। कभी हमारी दृष्टि समग्र दृष्टि थी। इस दृष्टि के कारण हम जितना बोलते थे, उतना ही अनुभव करते थे। अनुभव से शास्त्र बनते और गढ़े जाते थे। अगली पीढ़ी उन शास्त्रों का ही पालन करती थी। ये शास्त्र आज के विज्ञान से अलग नहीं थे। वही समयसिद्ध गहरे अनुभव थे। आज के शास्त्र केवल कल्पना-गणना, क्रिया-प्रतिक्रिया से गढ़े जा रहे हैं। इसमें अनुभव तथा अनुभूति नहीं है। इसलिए कल जिस जंगल को काटकर खेती को बढ़ावा देने को क्रांतिकारी काम मान रहे थे, देश की जिन बावड़ियों तथा तालाबों के जल को रोग का भंडार मान उन्हें पाटने में करोड़ों रुपये खर्च कर रहे थे, आज उन्हीं तौर-तरीकों को संयुक्त राष्ट्र बैड प्रैक्टिस कह रहा है। भारत की प्रकृति की समझ में ऊर्जा थी। यही भारतीय ज्ञान दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम कहकर एक करने वाली ऊर्जा से ओतप्रोत था। तभी तो हम जैसलमेर जैसे कम वर्षा वाले क्षेत्र को पुराने जमाने में ही आज के वाशिंगटन से बड़ा व्यापार केंद्र बना सके थे। लेकिन अब हमने ऊर्जा और शक्ति में फर्क करना छोड़ दिया, और शक्ति को ही ऊर्जा कहने लगे। शक्ति निजी लाभ के रास्ते पर चलती है, जबकि ऊर्जा शुभ के साथ रास्ता बनाती है। इसलिए शक्ति विनाश और ऊर्जा सुरक्षा व समृद्धि प्रदान करती है। आज भू-जल भंडारों को उपयोगी बनाने के नाम पर भू-जल भंडारों में प्रदूषण और उन पर अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है। सृजन प्रक्रिया को रोककर आज पूरे ब्रह्मांड में प्रदूषण बढ़ रहा है। केवल प्राकृतिक प्रदूषण बढ़ा है, ऐसा ही नहीं है। हमारी शिक्षा ने मानवीय सभ्यता और सांस्कृतिक प्रदूषण को भी बुरी तरह बढ़ा दिया है। संवेदनशील विज्ञान ही हमें आज भी आगे बढ़ा सकता है। इसी रास्ते हम पूरी दुनिया को कुछ नया सिखा सकते हैं। यही आधुनिक दुनिया के प्राकृतिक संकट, जलवायु परिवर्तन का समाधान करने वाला विज्ञान सिद्ध हो सकता है।

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