एबीएन डेस्क। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने अपने टिप्पणी पर सफाई दी है जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार फिर से कृषि कानून वापस लाएगी। इस बयान पर कृषि मंत्री ने सफाई देते हुए कहा है कि मैं कभी यह कहा ही नहीं। मैंने यह कहा कि भारत सरकार ने अच्छे कानून बनाए थे। अपरिहार्य कारणों से हम लोगों ने उन्हें वापस लिया है। कृषि से जुड़े नए मसौदे के सवाल पर तोमर ने कहा- यह नहीं कहा… बिल्कुल गलत प्रचार है। उन्होंने किसानों से इस मुद्दे पर कांग्रेस द्वारा पैदा किए जा रहे भ्रम से सावधान रहने का आग्रह किया। मंत्री ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र के नागपुर में एक कृषि कार्यक्रम में दिए संबोधन के दौरान इस मुद्दे पर उनकी टिप्पणियों को गलत समझा गया और उनकी मंशा वह नहीं थी जो दिखाया जा रहा है। उन्होंने कहा, कार्यक्रम में मैंने कहा था कि हमने कृषि कानूनों पर एक कदम पीछे लिया है लेकिन सरकार किसानों की भलाई की दिशा में काम करने के लिए हमेशा आगे बढ़ती रहेगी। अत: इस मुद्दे पर कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए और सरकार का कृषि कानूनों को फिर से लाने का कोई इरादा नहीं है।
छतरपुर/हरिहरगंज। प्रमंडलीय आयुक्त जटा शंकर चौधरी शनिवार को छतरपुर प्रखंड क्षेत्र के शिवदयालडीह गांव पहुंचे। इस दौरान उन्होंने किसान अजीम अंसारी द्वारा 50 डिसमिल में लगाए गए ड्रैगन फ्रुट की खेती को देखा। ड्रैगन फ्रुट के खेती की अवलोकन के दौरान आयुक्त ने पाया कि खेती से जुड़े किसानों को ड्रैगन फ्रुट की खेती की देखभाल से संबंधित जानकारी का अभाव है। उन्होंने तत्काल जिला कृषि पदाधिकारी को किसानों को इसकी खेती के लिए प्रशिक्षित करते हुए पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराने का निदेश दिया, ताकि किसान ऐसे वैक्लिपक खेती फसल का अधिक मुनाफा ले सकें। किसान ने ड्रैगन फ्रुट की खेती के साथ टमाटर का फसल भी लगाया है, ताकि ड्रेगन फ्रुट की फसल तैयार होने के पूर्व टमाटर की खेती से आर्थिक मुनाफा ले सकें। इसके बाद आयुक्त ने हरिहरगंज के कटकोंबा गांव पहुंचकर वहां हो रहे थाई वैरायटी की अमरूद के बाग का अवलोकन किया और इससे जुड़े किसानों का हौसला बढ़ाया। उन्होंने जिला कृषि पदाधिकारी को निदेश दिया कि अमरूद की खेती को जिले एवं राज्य के अन्य किसानों को दिखायें, ताकि उनमें इस तरह की खेती के लिए जागरूकता आए और किसानों की रूचि नगदी फसलों के उत्पादन की ओर बढ़े। उन्होंने कहा कि इस तरह की खेती को दिखाये जाने से किसानों में जागरूकता आएगी और वे भी प्रेरित होकर ऐसे नगदी फसलों की खेती कर उत्पादन बढ़ायेंगे और मुनाफा लेंगे। विदित हो कि हरिहरगंज के कटकोंबा गांव में बंजर भूमि पर किसान अजय मेहता अपने अन्य सहयोगी किसानों की मदद से 60 एकड़ की भूमि पर 42 हजार से अधिक थाई वैराईटी के अमरूद का पौधा लगाया है। वर्तमान समय में करीब 70 क्विंटल प्रतिदिन अमरूद की बिक्री पटना, गया, धनबाद, सासाराम, डेहरी तथा लोकल बाजार हरिहरगंज एवं छतरपुर में बिक्री की जा रही है। मौके पर आयुक्त जटा शंकर चौधरी के साथ जिला कृषि पदाधिकारी अरूण कुमार, छतरपुर अनुमंडल पदाधिकारी एनपी गुप्ता, एटीएम मुकेश शर्मा उपस्थित थे। आयुक्त छतरपुर अनुमंडल पदाधिकारी कार्यालय पहुंचकर अनुमंडल क्षेत्र में विकासात्मक योजनाओं पर चर्चा की। आपके अधिकार-आपकी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम को लेकर आयोजित हो रहे कैंपों में आवेदनों का निष्पादन से संबंधित जानकारी भी ली। वहीं फोरलेन के कार्यों के संबंध में जानकारी प्राप्त करते हुए इसमें तेजी लाने हेतु आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया।
एबीएन डेस्क (शिवशंकर उरांव)। हिमालय तीन प्रमुख भारतीय नदियों का स्रोत है- सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र। भारतीय संस्कृति की साक्षी गंगा अपने मूल्यवान पारिस्थितिकी, आर्थिक और सांस्कृतिक महत्त्व के साथ भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक है। लगभग ढाई हजार किलोमीटर की यात्रा करने वाली यह भारत की सबसे लंबी नदी है। गंगा नदी घाटी क्षेत्र देश की छब्बीस फीसद भूमि का हिस्सा है और भारत की तियालीस फीसद आबादी इससे पोषित होती है। भारत के कुल अनुमानित भूजल संसाधनों का लगभग चालीस फीसद गंगा बेसिन से आता है। शहरी, आर्थिक और औद्योगिक क्षेत्रों से मीठे पानी की लगातार बढ़ती मांग और संरचनात्मक नियंत्रण के कारण गंगा का पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो गया है। पारंपरिक नदी प्रबंधन में संरचनात्मक नियंत्रण का प्रभुत्व था, जिसके परिणामस्वरूप नदी कार्यों का स्तर कम होता गया। गंगा पुनर्जीवन और संरक्षण के चार संरचनात्मक स्तंभ हैं- अविरल धारा (निरंतर प्रवाह), निर्मल धारा (स्वच्छ जल), भूगर्भिक इकाई (भूवैज्ञानिक विशेषताओं का संरक्षण) और पारिस्थितिक इकाई (जलीय जैव विविधता का संरक्षण)। हमें यह जानना चाहिए कि चार पुनर्स्थापना स्तंभों को एकीकृत किए बिना हम गंगा की सफाई के सपने को साकार नहीं कर सकते। भारत में पानी राज्य का विषय है और जल प्रबंधन वास्तव में ज्ञान आधारित सोच और समझ पर नहीं टिका है। गंगा के प्रबंधन में ह्यबेसिन-व्यापक एकीकरणह्ण का अभाव है, साथ ही विभिन्न तटवर्ती राज्यों के बीच भी तालमेल की भारी कमी है। इसके अलावा, जल जीवन मिशन के तहत 2024 तक सभी निर्दिष्ट स्मार्ट शहरों में जलापूर्ति और अपशिष्ट जल उपचार के बुनियादी ढांचे को उन्नत करने और स्वच्छ जलापूर्ति सुनिश्चित करने की एक बड़ी चुनौती है। सीमित जल संसाधनों को देखते हुए यह कार्य बहुत बड़ा है। लगभग तीन दशकों तक गंगा को साफ करने के लिए अलग-अलग रणनीतियां अपनाई गईं। इनमें गंगा एक्शन प्लान (जीएपी, चरण एक और दो ) और राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की स्थापना जैसे प्रयास थे, लेकिन लंबे समय तक इनके ठोस नतीजे नहीं मिले। दिसंबर 2019 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में अपनी पहली बैठक में गंगा परिषद ने पांच राज्यों में गंगा बेसिन के दोनों ओर पांच किलोमीटर क्षेत्र में जैविक समूहों को बढ़ावा देकर गंगा के मैदानों में स्थायी कृषि को बढ़ावा देने की योजना पर काम किया। सरकार को अंतत: बेसिन में अधिक क्षेत्र को शामिल करने के लिए इसे फैलाने की योजना बनानी चाहिए। नदी किनारे की कृषि संपूर्ण जैविक होनी चाहिए। शहरीकरण के विस्तार और जनसंख्या के कारण नदियाँ प्रदूषित हुई हैं। इसका असर यहाँ की स्वर्णरेखा नदी पर भी पड़ा है। यह छोटानागपुर के पठारी भूभाग नगड़ी से निकलती है। राँची जिÞले से प्रवाहित होती हुई स्वर्ण रेखा नदी सिंहभूम जिÞले में प्रवेश करती है तथा उड़ीसा राज्य में चली जाती है। स्वर्ण रेखा के सुनहरी रेत में सोने की मात्रा पाई जाती है। किन्तु इसकी मात्रा अधिक न होने के कारण व्यवसायी उपयोग नहीं किया जाता है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण परिषद की रिर्पोट से स्वर्णरखा के प्रदूषण के स्तर का खुलासा हुआ है। आलम यह है कि ड्रेनेज तथा सिवेज का निकास इस नदी में हो रहा है। इसके प्रदूषण के सन्दर्भ में झारखण्ड उच्च न्यायालय को स्वत: संज्ञान लेना पड़ा। उच्च न्यायालय ने राज्य को सरकार को निर्देश दिया है। इसके लिये राज्य सरकार ने 1319 करोड़ रुपये की लागत से योजना का प्रारूप तैयार किया है। राज्य में गंगा साहेबगंज जिले से प्रभाहित होती है। बिहार के तर्ज पर पीने का जल हम वहां से उन जिलों को उपलब्ध करा सकते हैं जहां कठिनाई है। राज्य सरकार ने पहले भी इस योजना को स्वीकृत करने के लिये मंत्रालय से अनुरोध किया था, लेकिन मंत्रालय की ओर से कार्रवाई की सूचना अप्राप्त है। केन्द्र सरकार से अनुरोध किया है कि वह सम्पूर्ण सीवेज सिस्टम को विकसित कर बहुप्रतिक्षित माँग को पूरा करें। उन्होंने योजना की राशि केन्द्र के स्तर से या अन्तरराष्ट्रीय वित्त पोषण के माध्यम से उपलब्ध कराने का भी सुझाव दिया है। झारखण्ड की दूसरी महत्त्वपूर्ण नदी है दामोदर। दामोदर नदी का पानी पीने लायक नहीं रह गया है। पीने की बात तो दूर पानी इतना काला और प्रदूषित है कि लोग नहाने से भी कतराते हैं। इस प्रदूषण के जिम्मेदार हैं यहां के कल-कारखाने और खदान। हजारीबाग, बोकारो एवं धनबाद जिलों में इस नदी के दोनों किनारों पर बड़े कोलवाशरी हैं, जो प्रत्येक दिन हजारों घनलीटर कोयले का धोवन नदी में प्रवाहित करते हैं। इन कोलवाशरियों में गिद्दी, टंडवा, स्वांग, कथारा, दुगदा, बरोरा, मुनिडीह, लोदना, जामाडोबा, पाथरडीह, सुदामडीह एवं चासनाला शामिल हैं। इन जिलों में कोयला पकाने वाले बड़े-बड़े कोलभट्ठी हैं जो नदी को निरन्तर प्रदूषित करते रहते हैं। चन्द्रपुरा ताप बिजलीघर में प्रतिदिन 12 हजार मिट्रिक टन कोयले की खपत होती है और उससे प्रतिदिन निकलने वाले राख को दामोदर में प्रवाहित किया जाता है। इसके अतिरिक्त बोकारो स्टील प्लांट का कचरा भी इसी नदी में गिरता है।नजीजतन दामोदर नदी के जलनमूने में ठोस पदार्थों का मान औसत से अधिक है। नदी निरन्तर छिछली होती जा रही है और इसके तल एवं किनारे का हिस्सा काला पड़ता जा रहा है।दामोदर नदी के जल में भारी धातु- लौह, मैगजीन, तांबा, लेड, निकेल आदि पाये जाते हैं। प्रदूषण का आलम यह है कि नदी के जल में घुलित आॅक्सीजन की मात्रा औसत से काफी कम है। इसके सवाल पर निरन्तर आन्दोलन होता आया है। 3 फरवरी 2015 को हुई बैठक में यह किया गया था कि दामोदर नदी जो गंगा की सहायक नदी है, उसे नमामि गंगे परियोजना में शामिल किया जाएगा। नदियों में मिलने वाले सभी प्राकृतिक नाले आज सीवेज चैनल में बदल गए हैं। ऐसे नालों को फिर से स्वस्थ जल निकायों में बदलना होगा।झारखंड की नदियों का संरक्षण और उनका सदउपयोग के साथ गंगा के जल से राज्य को होने वाले लाभ का अधिकाधिक उपयोग भी आवश्यक है। आखिर जल ही जीवन है और हरियाली भी। (लेखक भाजपा एसटी मोर्चा झारखंड के अध्यक्ष हैं)।
एबीएन डेस्क। एक साल में झारखंड का गिरिडीह पूर्ण सौर ऊर्जा से संचालित शहर होगा। जलवायु परिवर्तन की लगातार गंभीर होती समस्या पर विचार करने के लिए स्काटलैंड के शहर ग्लासगो में कोप-26 शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया जो 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक चला। जलवायु परिवर्तन को लेकर काम करने वाली संस्था इंटरगवर्नमेंटल पैनल आॅन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) का लक्ष्य उत्सर्जन के स्तर को जीरो करने का है यानी ऐसी स्थिति जहां कोई भी देश ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन की मात्रा में बढ़ोतरी नहीं होने देगा। 2050 तक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर नहीं जाने दिया जाएगा। 130 से अधिक देशों ने इस लक्ष्य को स्वीकार किया है लेकिन भारत इस में शामिल नहीं है। 2 सप्ताह तक चले 26 में वैश्विक सम्मेलन में भारत ने अंतिम समय पर अपने कड़े प्रतिरोध के कारण कोयला ऊर्जा संबंधी घोषणा से फेजआउट (उत्पादन खत्म करना)को हटवा कर फेज डाउन (धीरे-धीरे कम करना) जुड़वा दिया। इस बात के लिए दुनिया भर की आलोचना झेलने के बाद भारत की तरफ से यह स्पष्ट किया है कि मसौदे में बदलाव में अकेले भारत की नहीं है? यह भी गौरतलब है कि संपन्न देशों को अपनी नैतिक जिम्मेदारी का पूर्ण एहसास इन 2 सप्ताह के दौरान नहीं कराया जा सका। परिणाम स्वरूप विकासशील देशों की मांग कि धनी देश ऊर्जा स्थानांतरण (प्रदूषण करने वाले उर्जा स्रोतों की जगह स्वच्छ ऊर्जा की ओर जाने) में विकास शील देशों की ज्यादा मदद करें, लगभग अनसुनी रही। 2009 और 2015 में विकसित देशों ने वादा किया था कि 2020 से वे हर साल इस मद में 100अरब डालर देंगे। तापमान वृद्धि रोकने का लक्ष्य 2 डिग्री से घटाकर 1.5 डिग्री किया गया है, इसलिए ऊर्जा ट्रांसफर करने में अधिक पैसों की जरूरत होगी। सम्मेलन में अपेक्षा की गई कि 2025 तक 100 अरब डॉलर प्रतिवर्ष देने के बाद यह देश इस राशि को और बढ़ाएंगे ताकि सन 2030 तक कोयला आधारित बिजली को काफी हद तक कम किया जा सके। भारत और चीन धीरे-धीरे कोयले पर निर्भरता कम करना चाहते हैं, क्योंकि दोनों देशों में कोयला प्रचूर मात्रा में है और अचानक दूसरे ऊर्जा स्रोतों (सौर, पवन या परमाणु ऊर्जा) पर निर्भर नहीं हुआ जा सकता क्योंकि इन स्रोतों से उत्पादन प्रति मेगावाट कई गुना ज्यादा खर्च आता है । फिर कोयला, पेट्रोलियम, गैस एलपीजी आदि में लगे लाखों कर्मचारियों के रोजगार का भी प्रश्न है। भारत 1342 ट्रिलियन यूनिट बिजली उत्पादन करता है जिसमें 948 ट्रिलियन यूनिट कोयले से बनती है ।भारत में कोयला खदानों से लेकर अंतिम खपत तक 40 लाख लोग नौकरी करते हैं? इसलिए भारत अभी इसका इस्तेमाल बंद नहीं कर सकता। कोयला सबसे सस्ता इंधन है जो अर्थव्यवस्था रोशन कर लाखों लोगों को गरीबी के अंधेरे से निकालने के लिए घरेलू रूप से उपलब्ध है। चीन 4876 ट्रिलियन यूनिट बिजली कोयले से बनाता है ।भारत ने 2019 में 999 ट्रिलियन यूनिट उत्पादन किया और 2020 में इससे कम कर 948 ट्रिलियन पर ले आया। चीन, भारत और अमेरिका मिलकर उतना कोयला इस्तेमाल करते हैं जितना पूरी दुनिया कुल मिलाकर करती है। 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में आस्ट्रेलिया में प्रति व्यक्ति कोयला उत्सर्जन सबसे अधिक है इसके बाद दक्षिण कोरिया, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और चीन है। जीवाश्म ईंधन - कोयला, तेल और गैस में कोयला पर्यावरण का सबसे बड़ा शत्रु है जो 20% ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करता है। कोयला जलने से वायु प्रदूषण, स्मोग एसीड रेन जैसे पर्यावरणीय दुष्परिणामों और स्वास्थ संबंधी बीमारियों का खतरा है, इसलिए दुनिया कोयले के विकल्प ध्यान दे रही है। 6 साल पहले पेरिस में दुनिया भर के देश जलवायु परिवर्तन को लेकर कार्यक्रमो पर सहमत हुए थे तब ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने और 1.5 डिग्री सेल्सियस करने की कोशिश पर रजामंदी बनी थी। पेरिस समझौते में विकसित देशों ने शपथ ली थी कि वे हर साल जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए सौ बिलियन डॉलर देंगे मगर ऐसा हुआ नहीं। सी ओ पी 26 मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए और उन्होंने साहसी घोषणा करते हुए कहा कि भारत वर्ष 2070 में कुल 0 उत्सर्जन /नेटजीरो का लक्ष्य प्राप्त करेगा। इसके साथ ही उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत एक मात्र देश है जो पेरिस समझौते के तहत जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए उसकी भावना के तहत अक्षरश: कार्य कर रहा है। गैर जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता को 450 गीगावॉट से बढ़ाकर 500 गीगावॉट करने की घोषणा की उनके अनुसार भारत 500 गीगावॉट के जीवाश्म ईंधन क्षमता 2030 तक हासिल करेगा। भारत 2030 तक अपनी ऊर्जा जरूरतों का 50% नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त करेगा। भारत आज से 2030 के बीच अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में कटौती करेगा। पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली को बनाया जाए। मोदी ने याद कि विकसित देशों को जलवायु पित्त पोषण के लिए 100 अरब डॉलर देने के अपने वादे को पूरा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसकी निगरानी इसी तरह की जानी चाहिए जैसे जलवायु की होती है। भारत का दुनिया की आबादी में 17% हिस्सेदारी है लेकिन उत्सर्जन महज 5% है। 2070 तक नेट जीरो की लक्ष्य को प्राप्त करना भारत के लिए चुनौतीपूर्ण है। कोयले के चलन को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की राह में खड़ी बाजार की शक्तियां, दुरुह वित्तीय स्थितियां और अन्य कई बाधाएं हैं।भारत के विकास में बने चुनौतियों को और जलवायु से जुड़े रणनीतियों को सिर्फ कोयले तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता मगर कोयला निश्चित रूप से चर्चा का प्रमुख केन्द्र है। अक्षय ऊर्जा कोयले से बनने वाली बिजली के मुकाबले अधिक प्रतिस्पर्धी और किफायती हैं। यह बहुत महत्वकांक्षी लक्ष्य है। वर्ष 2030 तक हमारी कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता का 57% गैर जीवाश्म इंधन स्रोतों से होगा। कोयले का आयात पर किए जाने वाला खर्च एक लाख करोड़ प्रतिवर्ष से कुछ नीचे है जो 2030 में 13 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है। विकसित देशों की तरफ से क्लाइमेट फाइनेंस की जो प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है वह जरूरत के हिसाब से बहुत थोड़ी है। 100 बिलियन डॉलर ना तो वैश्विक तापमान वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए काफी है और न नेटजीरो सिनेरियो के लिए पर्याप्त है। एक अनुमान के मुताबिक विकासशील देशों को वर्ष 2030 तक 5.9 ट्रिलियन डॉलर की जरूरत होगी। अकेले भारत को ही अपनी 500 गीगा वाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित करने और अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए 1 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा क्लाइमेट फाइनेंस की आवश्यकता होगी।
रांची। झारखंड पर एक और चक्रवाती तूफान का खतरा मंडराने लगा है। बंगाल की खाड़ी के मौसमी दशाओं में परिवर्तन के कारण चक्रवात के अनुकूल माहौल बन चुका है। मौसम वैज्ञानिक के अनुसार, दक्षिण-पूर्व बंगाल की खाड़ी में एक साइक्लोनिक सर्कुलेशन बना है, जिसके निम्न दबाव के क्षेत्र में बदलने की उम्मीद है। तटीय क्षेत्रों के साथ ही इसका असर झारखंड में भी व्यापक पैमाने पर देखा जा सकता है। मौसम विभाग ने फिलहाल प्रदेश में बारिश या तूफान आने की चेतावनी जारी नहीं की है। मौसम विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक अभिषेक आनंद ने बताया कि झारखंड में दीपावली के आसपास से ठंड की शुरुआत होगी। रांची मौसम विज्ञान केंद्र ने अगले 5 दिनों के मौसम पूर्वानुमान की जानकारी देते हुए बताया है कि आने वाले 5 दिन में सुबह और शाम सिहरन वाली ठंड रहेगी। हालांकि इसे लेकर मौसम विभाग ने किसी भी तरह का अलर्ट जारी नहीं किया है।
रांची। झारखंड में मानसून खत्म होने के साथ ही सर्दी का अहसास होने लगा है। राजधानी रांची में भी लोगों को ठंड का अहसास होने लगा है। पिछले कई दिनों से शाम के समय लोगों को ठंड महसूस होती है। हालांकि अभी तक झारखंड में कुछ खास ठंड का असर नहीं हुआ है। मौसम विज्ञान केंद्र के अनुसार दीपावली और छठ पूजा के दौरान झारखंड में ठंड में थोड़ा सा इजाफा होगा।मौसम विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक अभिषेक आनंद ने बताया कि झारखंड में दीपावली के आसपास से ठंड की शुरुआत होगी। रांची मौसम विज्ञान केंद्र ने अगले 5 दिनों के मौसम पूर्वानुमान की जानकारी देते हुए बताया है कि आने वाले 5 दिन में झारखंड का मौसम शुष्क रहने वाला है। इस दौरान सुबह और शाम सिहरन वाली ठंड रहेगी। इसे लेकर मौसम विभाग ने किसी भी तरह की चेतावनी जारी नहीं की है। 15 नवंबर से 15 दिसंबर के बीच भी झारखंड में ठंड कम होती है। वहीं अगर बात करें 15 दिसंबर से 15 जनवरी के बीच की तो इस समय कड़ाके की ठंड का लोगों को अहसास होता है। हालांकि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष 1 से 15 अक्टूबर के बीच रात का तापमान बढ़ा हुआ महसूस किया गया। जबकि 15 अक्टूबर के बाद तापमान में थोड़ी गिरावट महसूस की गई है, जो अब तक यथास्थिति बरकरार है। हालांकि शुरुआती ठंड में ही लोगों ने सर्दी को लेकर अपनी तैयारी शुरू कर दी है। लोगों ने गर्म कपड़े खरीदने शुरू कर दिये हैं।
एबीएन डेस्क। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि किसानों और कृषि वैज्ञानिकों में इतनी क्षमता है कि हम दुनिया में भारत सभी जिंसों के उत्पादन में पहले स्थान पर आ पहुंच सकता है। आधिकारिक बयान के अनुसार तोमर ने किसानों के लिए राष्ट्रीय खाद्य एवं पोषण अभियान की शुरूआत करते हुए यह बात कही। कार्यक्रम का आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने किया। उन्होंने कहा कि देश ने खाद्यान्न के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। कृषि व सम्बद्ध उत्पादों के मामले में हमारा देश दुनिया में पहले या दूसरे स्थान पर है। हमारे किसानों व वैज्ञानिकों की इतनी क्षमता है कि हम दुनिया में प्रतिस्पर्धा करें तो लगभग सभी जिंसों में पहले स्थान पर हो सकते हैं। मंत्री ने कहा कि देश ने उत्पादन और उत्पादकता के मामले में शानदार प्रगति की है। हालांकि आजादी के 75वें वर्ष में हम ऐसे मुकाम पर खड़े है, जहां हमें आत्मावलोकन करने के साथ ही चुनौतियां तथा उनके समाधान पर विचार करना होगा। उन्होंने कहा कि आईसीएआर वर्षा आधारित और अन्य क्षेत्रों में कब-कौन सी खेती हो तथा किन बीजों को विकसित किये जाएं, इस पर सफलतापूर्वक काम रही है। यह भी प्रयत्न किया जा रहा है कि कृषि व किसान नई तकनीक से जुड़े। तोमर ने कहा, उत्पादन में हम अव्वल हैं। लेकिन इस प्रचुरता को प्रबंधित करना भी महत्वपूर्ण है। यह सरकार के साथ किसानों की भी जिम्मेदारी है कि हमारे उत्पाद गुणवत्तापूर्ण हो, वैश्विक मानकों पर खरे उतरे, किसान महंगी फसलों की ओर आकर्षित हो, कम रकबे-कम सिंचाई में, पर्यावरण मित्र रहते हुए पढ़े-लिखे युवा कृषि की ओर आकर्षित हों।
एबीएन डेस्क। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में गन्ना किसानों के हित में एक बड़ा फैसला लिया गया है। केंद्र ने अक्टूबर, 2021 से शुरू होने वाले अगले विपणन सत्र के लिए गन्ने का उचित और लाभकारी (एफआरपी) मूल्य पांच रुपये बढ़ाकर 290 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल की बुधवार को हुई बैठक में 2021-22 के विपणन वर्ष (अक्टूबर-सितंबर) के लिए गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य बढ़ाने का फैसला किया गया। खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद यह जानकारी दी। चालू विपणन वर्ष 2020-21 के लिए उचित और लाभकारी मूल्य 285 रुपये प्रति क्विंटल है। हर साल गन्ना पेराई सत्र शुरू होने से पहले केंद्र सरकार एफआरपी की घोषणा करती है। मिलों को यह न्यूनतम मूल्य गन्ना उत्पादकों को देना होता है। हालांकि, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे कई राज्य अपनी गन्ना दरों (राज्य परामर्श मूल्य या एसएपी) की घोषणा करते हैं।
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