एबीएन सेंट्रल डेस्क (नई दिल्ली)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किये गये देशव्यापी अभियान एक पेड़ मां के नाम... के तहत अब तक एक अरब पेड़ लगाये जा चुके हैं। शनिवार को केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने ट्वीट करके कहा कि एक पेड़ मां के नाम... अभियान एक बड़े पड़ाव पर पहुंच गया है। शनिवार को इस अभियान के तहत 1 अरब पेड़ लगाए जा चुके हैं।
उन्होंने कहा कि 5 जून, विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किया गया एक पेड़ मां के नाम... के नाम अभियान एक बड़े पड़ाव पर पहुंच गया है। भूपेंद्र यादव ने कहा कि हरित भारत के निर्माण की दिशा में अभियान की आश्चर्यजनक सफलता दशार्ती है कि हम अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी दोनों पर प्रगति के लिए कैसे दृढ़ हैं। प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर इस अभियान में लाखों भारतीयों की जनभागीदारी दर्शाती है कि भारत प्रकृति के साथ एकता के सिद्धांत से कैसे जीता है। उन्होंने पड़े लगाने का आह्वान किया।
टीम एबीएन, रांची। रांची में पिछले 24 घंटे में चक्रवाती तूफान दाना का अच्छा खासा असर देखने को मिला है। चक्रवाती तूफान दाना के कारण राज्य में ठंड ने दस्तक दे दी है। इस तूफान के कारण झारखंड का मौसम बदल गया है। तेज हवाओं और बारिश के कारण प्रदेश का तापमान तेजी से नीचे गया है। लोग मॉर्निंग वॉक करते समय स्वेटर पहन निकलने लगे हैं। तापमान में गिरावट के चलते रात में भी अब रजाई निकालनी पड़ सकती है।
इन इलाकों में भारी बारिश की संभावना मौसम विभाग ने राजधानी रांची समेत कुछ जिलें जैसे धनबाद, बोकारो, कोडरमा, लातेहार, चतरा, देवघर, पूर्वी व पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला खरसावां, सिमडेगा व खूंटी में जबरदस्त बारिश को लेकर अलर्ट जारी किया है। यहां पर 75 से 100 मिमी बारिश की संभावना है। इसके अलावा इन इलाकों में खास तौर पर वज्रपात को लेकर चेतावनी भी जारी की गयी है।
बता दें कि चक्रवाती तूफान दाना का सबसे अधिक असर शुक्रवार को कोल्हान प्रमंडल में रहा। इससे कोल्हान के कई इलाकों में अच्छी बारिश हुई। पिछले 24 घंटे में सबसे अधिक 71 मिमी बारिश पूर्वी सिंहभूम के गुड़ाबांधा में दर्ज की गयी है। वहीं, अगर आज तापमान की बात करें तो अधिकतम 28 व न्यूनतम 20 डिग्री दर्ज किया जा सकता है।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। हरियाणा-जम्मू-कश्मीर में नयी सरकारों के गठन और महाराष्ट्र-झारखंड में जोर पकड़ रही चुनावी तैयारियों के बीच छत्तीसगढ़ से आयी एक जरूरी खबर पर चर्चा की दरकार है। खबर ये है कि सरगुजा जिले के फतेहपुर और साली गांवों के पास करीब 5,000 पेड़ों की कटाई के मामले को लेकर स्थानीय निवासियों और पुलिस प्रशासन के बीच झड़प हो गयी, जिसमें दोनों ही पक्षों को चोटें आयी हैं।
सरकारी ड्यूटी पर तैनात जिन लोगों को शारीरिक चोट पहुंची है, उनका इलाज और मुआवजा दोनों सरकार के जिम्मे पूरा हो जायेगा, लेकिन प्रदर्शनकारियों का भविष्य क्या होगा, ये कोई नहीं जानता। दरअसल, ये सारा प्रदर्शन और सरकार के खिलाफ सीधा मोर्चा खोलने का फैसला भविष्य के सवाल से ही जुड़ा है। इंसानों के साथ-साथ जल, जंगल, जमीन और समूची प्रकृति के भविष्य का यह सवाल है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में पेड़ों को बचाने की लड़ाई लंबे वक्त से चल रही है। 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह घना जंगल छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है। इस घने जंगल के नीचे लगभग पांच अरब टन कोयला दबा है। इस वजह से पूंजीपतियों और पूंजीवादी सरकारों की गिद्ध दृष्टि यहां टिकी हुई है।
इस इलाके में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, लेकिन स्थानीय लोग इस खनन का लगातार विरोध कर रहे हैं। क्योंकि इसके लिए बड़ी बेदर्दी से जंगल को काटा जा रहा है और यहां की जैव विविधता के लिए बड़ा खतरा बन चुका है। इस समय यहां पर पेड़ों की कटाई राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) को दिये गये परसा कोल ब्लॉक खनन परियोजना के तहत की जा रही है।
बीते गुरुवार को भी पेड़ों की कटाई होनी थी, लेकिन बुधवार से ही लोग यहां जमा हो गये। ताकि अधिकारियों को कार्रवाई करने से रोका जा सके। सरकार की तरफ से भी पर करीब 400 पुलिस और वन विभाग के कर्मियों को तैनात किया गया था। पुलिस का कहना है कि स्थानीय लोग लकड़ी के डंडे, तीर और कुल्हाड़ी से लैस थे। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि पुलिस के लाठी चार्ज के बाद उन्होंने जवाबी हमला किया।
जबकि इन आरोपों से इंकार करते हुए सरगुजा के पुलिस अधीक्षक योगेश पटेल का कहना है ग्रामीण हिंसक हो गये और उन्होंने हम पर हमला कर दिया। उन्हें रोकने और तितर-बितर करने के लिए हमने उचित जवाब दिया। छत्तीसगढ़ में भाजपा के सत्ता में आते ही पिछले साल दिसंबर में हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा पूर्व और केते बासन (पीईकेबी) के दूसरे चरण विस्तार के तहत कोयला खदान के लिए पेड़ काटने की कवायद बड़े पैमाने पर हुई थी।
तब भी यह काम पुलिस के सुरक्षा घेरे में किया गया था। इससे पहले वन विभाग ने मई 2022 में पीईकेबी चरण-2 कोयला खदान की शुरुआत करने के लिए पेड़ काटने की कवायद शुरू की थी, तब भी स्थानीय ग्रामीणों ने कड़ा विरोध किया था। बाद में इस कार्रवाई को रोक दिया गया था। अब स्थानीय प्रशासन ने दावा किया है कि उसके पास पीईकेब में पेड़ काटने के लिए सभी आवश्यक अनुमतियां हैं, जो पीईकेबी खदान का विस्तार है।
अब सवाल यह है कि पेड़ काटने की जिन आवश्यक अनुमतियों के दावे हो रहे हैं, उसके निहितार्थ क्या हैं। सत्ता और प्रशासन में बैठे लोगों और पूंजीपतियों, उद्योगपतियों के बीच सांठ-गांठ का खेल सदियों से चला आ रहा है। विकास के नाम पर प्रकृति का बेदर्दी से दोहन किया जाता है और आने वाली पीढ़ियां उसका भुगतान करती हैं। अभी पूरी दुनिया में जलवायु गर्म होने, ग्लेशियर के पिघलने, अकाल और बाढ़ जैसी स्थितियों के निर्मित होने पर चर्चाएं होती हैं, लेकिन इनका हल कुछ नहीं निकलता, क्योंकि अनाप-शनाप खर्चों पर हाथीदांत की जिन मीनारों पर चढ़कर ये विमर्श होते हैं, वहां से जमीनी सच्चाई नजर नहीं आती है।
भारत भी इन चर्चाओं में अहम भागीदारी करता है और हमारे प्रधानमंत्री तो पर्यावरण बचाने के अचूक मंत्र वेद-पुराणों से निकालकर लाते हैं। लेकिन उनके अपने शासन के 11 सालों का हासिल ये है कि देश की राजधानी दिल्ली एक बार फिर वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण के नये झंडे गाड़ रही है। इसलिए पेड़ काटने की सरकारी सहमति और असहमति के बीच जरूरी मुद्दा यह है कि हजारों सालों में जो जंगल तैयार हुआ है, उसे मिनटों में उजाड़कर इन नुकसान की भरपाई कैसे की जायेगी।
गौरतलब है कि हसदेव अरण्य को 2010 में कोयला मंत्रालय एवं पर्यावरण एवं जल मंत्रालय के संयुक्त शोध के आधार पर पूरी तरह से नो गो एरिया घोषित किया था, अर्थात वहां प्रवेश निषिद्ध था, लेकिन इस फैसले को कुछ महीनों में ही रद्द कर दिया गया था और खनन के पहले चरण को मंजूरी दे दी गयी थी। बाद में 2013 में खनन शुरू हो गया था। यह समझना कठिन नहीं है कि किन लोगों के दबाव में एक जरूरी फैसले को कुछ महीनों में रद्द कर दिया गया।
एक रिपोर्ट के मुताबिक दावा है कि परसा खनन परियोजना के कारण 700 लोग विस्थापित होंगे और 840 हेक्टेयर घने जंगल नष्ट हो जायेंगे। वन विभाग की 2009 की जनगणना के अनुसार, लगभग 95,000 पेड़ इस परियोजना के कारण काटे जायेंगे। लोगों को तो फिर भी किसी तरह दूसरी जगह बसाया जा सकता है, लेकिन एक बार जो पेड़ कट जायेंगे, क्या उसमें पलने वाले जीव-जंतुओं को संरक्षित किया जा सकेगा, क्या इतनी जल्दी इतना विशाल जंगल खड़ा किया जा सकेगा, इन सवालों के जवाब भी पेड़ काटने की अनुमति का कागज दिखाने वालों को देना चाहिए।
बहरहाल, गुरुवार को हुई झड़प की घटना पर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एक पोस्ट में कहा है कि हसदेव अरण्य में पुलिस बल के हिंसक प्रयोग के जरिये आदिवासियों के जंगल और जमीन को जबरन हड़पने का प्रयास आदिवासियों के मौलिक अधिकारों का हनन है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के दौरान हसदेव जंगल को न काटने का प्रस्ताव विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित किया गया था- सर्वसम्मति का मतलब विपक्ष यानी भाजपा की संयुक्त सहमति है।
लेकिन, सरकार में आते ही उन्हें न तो यह प्रस्ताव याद आया और न ही हसदेव के इन मूल निवासियों की दुर्दशा और अधिकार। राहुल गांधी ने एक वाजिब बिंदु की तरफ इशारा किया है कि जब पहले हसदेव के जंगल न काटने में भाजपा की भी सहमति थी, तो अब उसे यह सहमति याद क्यों नहीं है। यहां कांग्रेस या भाजपा या किसी अन्य दल से ऊपर उठकर केवल जंगल को बचाने के बारे में विचार हो, यही सबके लिए बेहतर होगा। बताते चलें कि इस परियोजना के कारण 95,000 पेड़ काटे जायेंगे।
टीम एबीएन, रांची। अंडमान सागर और उससे सटे पूर्व मध्य बंगाल की खाड़ी में बना निम्न दवाब का क्षेत्र चक्रवात में तब्दील होकर उत्तर पश्चिम दिशा की ओर बढ़ रहा है। अनुमान है कि कल सुबह यह सीवियर चक्रवाती तूफान में तब्दील हो जाएगा। 25 अक्टूबर की सुबह ओडिशा के धमरा पोर्ट के पास सीवियर चक्रवाती तूफान के रूप में हीट करेगा।
इस समय साइक्लोनिक तूफान की गति 100 से 110 किलोमीटर प्रति घंटे की होगी। वहीं, हवा चलने की स्पीड 120 किलोमीटर प्रति घंटे रहने की संभावना है। रांची के निदेशक और वरिष्ठ मौसम पूवार्नुमान वैज्ञानिक अभिषेक आनंद ने बताया कि इस सिस्टम के प्रभाव से कल से ही कुछ जगहों पर आसमान में बादल दिखने लगे हैं। इसका मुख्य प्रभाव 24 और 25 अक्टूबर को देखने को मिलेगा।
चक्रवातीय तूफान दाना के प्रभाव से 24 और 25 अक्टूबर को कोल्हान प्रमंडल के अंतर्गत पड़ने वाले जिलों में भारी से अत्यधिक भारी बारिश,मेघगर्जन, वज्रपात के साथ-साथ 40 से 50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तेज हवा चलने का आरेंज अलर्ट जारी किया गया है। इस दौरान 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवा के झोंके चलेंगे। इन दो दिनों में रांची सहित राज्य के मध्य भाग में तेज हवा के झोंके, मेघ गर्जन और वज्रपात के साथ कहीं-कहीं मध्यम से भारी बारिश की संभावना है।
टीम एबीएन, रांची। बंगाल की खाड़ी के ऊपर बनने वाले चक्रवाती तूफान के कारण 24 और 25 अक्टूबर को झारखंड के कुछ हिस्सों में भारी बारिश का अनुमान है। मौसम विभाग के एक अधिकारी ने मंगलवार को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि कुछ भागों (मुख्य रूप से झारखंड के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र) में 40-60 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से तेज हवाएं चल सकती हैं और आकाशीय बिजली गिरने की भी आशंका है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार बंगाल की खाड़ी के ऊपर बना कम दबाव का क्षेत्र मंगलवार को दबाव में बदल गया और पूर्वी तट की ओर बढ़ गया। उन्होंने बताया कि 23 अक्टूबर को इसके तीव्र चक्रवाती तूफान में बदलने की आशंका है।
रांची मौसम विज्ञान केंद्र के प्रभारी अभिषेक आनंद ने मीडिया को बताया, झारखंड में मौसम में बदलाव बुधवार शाम से दिखने लगेगा। इसका वास्तविक असर 24 अक्टूबर से राज्य के दक्षिण-पूर्वी भागों में देखने को मिल सकता है, जहां बारिश और गरज के साथ छींटे पड़ सकते हैं। 25 अक्टूबर को पूरे झारखंड में बारिश हो सकती है।
उन्होंने कहा कि दक्षिण-पूर्व झारखंड के कुछ इलाकों में भारी बारिश हो सकती है, जबकि कुछ हिस्सों में आंधी और तेज हवाएं चलने की भी संभावना है। मौसम विभाग ने लोगों से कहा है कि वे 24 और 25 अक्टूबर को सतर्क रहें।
टीम एबीएन, रांची। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने बताया कि अंडमान सागर के ऊपर चक्रवाती स्थिति बन चुकी है, जिसके सोमवार तक कम दबाव वाले क्षेत्र में बदलने के आसार हैं।
इसका प्रभाव आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में पड़ेगा। आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय मोहापात्रा ने कहा कि निम्न दबाव वाले क्षेत्र में चक्रवात के बनने के बाद इसकी स्पष्ट तस्वीर सामने आयेगी। मौसम विभाग के अनुसार, चक्रवात के कारण ओडिशा के तटीय इलाकों में बारिश हो सकती है।
आईएमडी ने बुलेटिन में कहा, अंडमान सागर के ऊपर चक्रवात बना हुआ है। इसके प्रभाव से बंगाल की खाड़ी और उससे सटे अंडमान सागर के ऊपर 21 अक्तूबर को एक कम दबाव का क्षेत्र बनने की संभावना है। इससे बाद 23 अक्तूबर को उत्तर पश्चिम की तरफ इसका असर तेज हो जायेगा। आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय मोहापात्रा ने कहा, आईएमडी ने इसकी भविष्यवाणी नहीं की है कि यह प्रणाली चक्रवाती तूफान में बदलेगा या नहीं। अक्तूबर को चक्रवात के महीने के तौर पर जाना जाता है।
हम 10 से अधिक मौसम मॉडलों का आकलन करने के बाद किसी प्रणाली के मार्ग को पूवार्नुमान लगाते हैं, लेकिन अभी वहां कम दबाव का क्षेत्र बना नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि चक्रवात की भविष्यवाणी करना जल्दबाजी है। इस प्रणाली का असर उत्तरी आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के तटीय इलाकों पर पड़ने की संभावना है।
टीम एबीएन, रांची। उत्तरी बंगाल की खाड़ी और उससे सटे तटीय बांग्लादेश-पश्चिम बंगाल में निम्न दवाब का क्षेत्र बना है। इस निम्न दबाव की वजह से राज्य में एक बार फिर कुछ दिनों से रुकी हुई बारिश की शुरुआत होने का अनुमान है।
रांची मौसम केंद्र के निदेशक और वरिष्ठ मौसम पूर्वानुमान वैज्ञानिक अभिषेक आनंद ने बताया कि इस निम्न दबाव के क्षेत्र की वजह से झारखंड में कुछ दिनों से रुकी हुई बारिश की फिर से शुरुआत होने का अनुमान जरूर है।
मौसम केंद्र निदेशक ने बताया कि राज्य के पूर्वी भाग जिसमें संथाल और कोल्हान के जिले पड़ते हैं, उन इलाको में 05 और 06 अक्टूबर को आसमान में बादल छाने के साथ-साथ गर्जन वज्रपात की संभावना को देखते हुए येलो अलर्ट जारी किया गया है।
मौसम केंद्र, रांची के निदेशक अभिषेक आनंद ने बताया कि बंगाल की खाड़ी में बना निम्न दवाब का क्षेत्र, झारखंड से दूर है लेकिन उससे झारखंड को नमी मिल रही है, इसी नमी के प्रभाव से राज्य में आसमान में बादल बनने की पूरी संभावना है।
टीम एबीएन, रांची। वर्ष 2024 का मानसून समाप्त हो गया है और इस दौरान सामान्य से 7.6 प्रतिशत अधिक बारिश हुई। यह जानकारी भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने मंगलवार को दी। आईएमडी के आंकड़े के अनुसार, राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में अधिक बारिश हुई।
भारत के कृषि क्षेत्र के लिए मानसून बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि कुल खेती योग्य क्षेत्र का 52 प्रतिशत हिस्सा इस पर निर्भर है। यह जलाशयों को फिर से भरने के लिए भी आवश्यक है जिनसे देशभर में पेयजल की आपूर्ति होती है, साथ ही बिजली उत्पादन भी होता है।
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