विचार

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Published / 2021-03-23 11:43:21
लोकप्रियता में आज भी सबसे आगे हैं मोदी

भारतीय राजनीति दरअसल ऐसी ही है। लोगों से पूछिए कि क्या उन्हें परेशानी हो रही है तो वे कहेंगे हां। क्या वे इसके लिए मोदी को दोष देते हैं? याद कीजिए कुछ महीने पहले कठिन परिस्थितियों में पैदल अपने घरों को लौट रहे प्रवासी श्रमिकों में से अनेक का कहना था कि मोदी क्या कर सकते हैं? उन्होंने लोगों की जान बचाने के लिए जोखिम उठाया। चीन और अर्थव्यवस्था के बारे में भी ऐसी ही बातें सुनने को मिलती हैं। सत्तर साल की गड़बड़ियों को ठीक करने में वक्त तो लगता ही है। कांग्रेस ने हमें एक कमजोर सेना दी। सबसे पहले भ्रष्टाचार से निपटना था। उन्होंने जोखिम उठाते हुए और कीमत चुकाते हुए समय पर लॉकडाउन लगाया। मास्क और शारीरिक दूरी रखने की बात कही और बोरिस जॉनसन, डॉनल्ड ट्रंप या जायर बोलसोनारो की तरह महामारी को हल्के में नहीं लिया। अब यदि यह वायरस नियंत्रण में आ ही नहीं रहा तो वह क्या कर सकते हैं? यदि आप मोदी के आलोचक हैं तो मुझे पता है कि मैं आपको और परेशान कर रहा हूं। लेकिन यही असली बात है। राजनीति को समझने के लिए आपको हकीकत को स्वीकार करना होगा चाहे वह कितनी भी कड़वी क्यों न हो? इंडिया टुडे ने देश का मिजाज जानने के लिए हाल में जो सर्वेक्षण किया है उसमें आप लाख कमियां निकालें लेकिन उसका प्रदर्शन अब तक अच्छा ही रहा है। सर्वेक्षण का कहना है कि मोदी इस समय अपनी लोकप्रियता के शिखर पर हैं जबकि इस समय अर्थव्यवस्था की हालत खस्ता है, राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न है, आंतरिक सद्भाव बिगड़ा हुआ है और महामारी सर पर सवार है। आखिर चल क्या रहा है? कहीं भी जाइए और किसी अजनबी से पूछिए। वे मानेंगे कि हालत खराब है लेकिन क्या वे मोदी को वोट देकर पछता रहे हैं? अगर दोबारा चुनाव हो तो वे किसे वोट देंगे? क्या कोई विकल्प दिख रहा है? माफ कीजिएगा उनका जवाब आपको और परेशान कर सकता है। क्या लोग इतने नादान हैं? इसे जरा अलग तरह से देखते हैं। आम आदमी जब किसी गंभीर बीमारी के बाद अस्पताल में भर्ती होता है तो वह क्या करता है? वह चिकित्सकों पर यकीन करता है। उसे लगता है वे अपनी ओर से हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। अस्पताल बदलने की कोशिश कम ही होती है। भारतीय मतदाता भी ऐसे ही हैं। पिछले कुछ समय में ऐसे मशविरों की बाढ़ आ गई है कि मोदी को कैसे हराया जाए और क्या नहीं किया जाए। एक पुरानी रट तो यही है कि विपक्ष को एकजुट किया जाए। परंतु मजबूत नेताओं के समक्ष यह कारगर नहीं होता। याद कीजिए सन 1971 में इंदिरा गांधी के खिलाफ बने महागठजोड़ को। समस्त वाम और धर्मनिरपेक्ष दलों को साथ ले आने की बात करें तो वाम दल हमेशा से एक भुलावा रहे हैं। असली राजनीति यही रही है कि अगर कोई धर्म के बूते लोगों को जोड़ रहा है तो उन्हें जाति के आधार पर बांट दो। बात खत्म। अगर नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, राज्यपाल और आरएसएस प्रमुख के साथ अयोध्या में राम मंदिर के भूमिपूजन में शामिल हुए और असदुद्दीन ओवैसी के अलावा कोई इसके खिलाफ कुछ नहीं बोला तो आप समझ जाइए कि सन 1989 के बाद की मंदिर बनाम मंडल की कहानी खत्म हो गई है। देश के राजनीतिक मानचित्र पर राज्य दर राज्य नजर डालिए। आपको ऐसा कोई नेता नजर आता है जो मोदी को चुनौती दे सके? अमरिंदर सिंह, ममता बनर्जी, ठीक है लेकिन कोई तीसरा नेता? तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना इससे बाहर हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में जो दल शासन कर रहे हैं वे बड़े मुद्दों पर भाजपा के ही अनुसरणकर्ता हैं। ओडिशा का भी यही हाल है। अन्य संभावनाएं? कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन हो। राहुल गांधी को जाने दें तो उनकी जगह कौन लेगा? कुछ लोग उनकी बहिन का नाम लेंगे तो कुछ और कहेंगे कि नया नेता गांधी परिवार से बाहर का हो। एक सुझाव तो यह भी है कांग्रेस का पुनर्गठन किया जाए और ममता बनर्जी, शरद पवार, वाई एस जगन मोहन रेड्डी तथा संगमा परिवार जैसे सभी लोगों को वापस लाया जाए। लेकिन क्या ये लोग भी ऐसा चाहते हैं? मान लिया वे सहमत भी हो जाएं तो नेतृत्व कौन करेगा? फिलहाल यह कपोल कल्पना है। इसके लिए बहुत सारी समझ और कई इच्छाएं पालनी होंगी। एक कारगर मशीन बनाने के लिए बहुत सारे कलपुर्जे जुटाने होंगे। यहां हम उस विचार पर पहुंचते हैं जिससे कई लोग पहले से परिचित होंगे। परंतु मुझे इसके बारे में हाल ही में पता चला। पांच महीने बाद इंडिया इंटरनैशनल सेंटर जाने का यह भी एक लाभ है। इसे आॅखम रेजर कहते हैं। सन 1285 में इंगलैंड में जन्मे विलियम आॅखम एक सुधारवादी चर्च में पादरी बने और वह कोई तर्कशास्त्री नहीं थे। बल्कि उन्होंने दैवीय चमत्कारों को उचित ठहराने के लिए एक सिद्धांत विकसित किया। उनका कहना था कि जब किसी घटना या उसके घटित होने की संभावना के बारे में तमाम बातें कही जा रही हों तो वह बात मान लो जो सबसे सरल हो। यानी किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए जितनी कम पूर्व धारणाएं रखी जाएं उतना बेहतर। इसके विपरीत अगर बहुत सारी कल्पनाएं लेकर चलेंगे तो गलत होने की संभावना अधिक रहेगी। उन्होंने इसका बार-बार सफल इस्तेमाल किया और आगे चलकर इसे आॅखम के रेजर का नाम दे दिया गया। शायद इसलिए क्योंकि उन्होंने इसका इस तरह इस्तेमाल किया जैसे लोग रेजर का करते हैं। मुझसे बातचीत करने वाले ने देश के राजनीतिक भविष्य पर इस सिद्धांत को लागू किया। हमने 2024 को लेकर कई संभावनाओं पर चर्चा की और उसने कहा कि देखिए इनमें से कौन सी सबसे कम पूवानुर्मानों पर आधारित है? वह संभावना थी मोदी का पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापस आना। बाकी सभी अनुमान आखम रेजर की परीक्षा में विफल रहे। इस बात ने मुझे मजबूर किया कि मैं गूगल की शरण में जाकर और जानकारी जुटाऊं। इसे सरल रखने के लिए सभी अनुमानों को परे रखिए और अपने राजनीतिक इतिहास पर नजर डालिए, शायद कुछ रोशनी नजर आए।

Published / 2021-03-19 11:45:03
पंछियों का संसार और हम

भारत शानदार परिदृश्यों और निवास का देश है। उनमें से एक है सवाना घास का मैदान जो राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक के शुष्क क्षेत्रों में वितरित है। हालांकि घास के मैदानों को बड़े पैमाने पर अन्य भूमि उपयोग प्रकारों में बदल दिया गया है, एक बड़ा भाग अभी भी राजस्थान के जैसलमेर, कच्छ के छोटे रण और दक्कन प्रायद्वीप के कुछ हिस्सों में है। जाहिर है ऐसे घास के मैदान यहां पाए जा सकते हैं। इन क्षेत्रों की यात्रा पर, भाग्य अच्छा होने पर, एक शाही पक्षी जिसे अंग्रेजी में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड कहते हैं, को देखने का मौका प्राप्त हो सकता है। यह एक बड़े आकार का, भारी एवं छोटी उड़ान भरने वाला, बस्टर्ड प्रजाति का पक्षी है, जो विश्वभर में, केवल भारतीय उपमहाद्वीप पर पाया जाता है। इसकी हूंक जैसी पुकार के वजह से इसे हिंदी में हुकना नाम से जाना जाता है। पक्षी एक नाम अलग अपनी धीमी चाल की वजह से, राजस्थान में इसे गोडावण नाम दिया गया है। गुजरात में इसे घोरड़ तथा महाराष्ट्र में मालढोक के नामों से जाना जाता है। हुकना का वजन 15-18 किलोग्राम के बीच होता है, तथा ऊंचाई 1 मीटर। इसका शरीर भूरे रंग का होता है, शीश एवं गर्दन सफेद, तथा सिर पर एक सुंदर काला मुकुट और कलगी होती है। सवाना के सघन घास के बीच में इसकी धीमी गति की चाल अति मनमोहक होती है, तथा राजस्थान के महाराजाओं के राजसी गौरव का एक सहज अनुस्मारक है। भारतीय उपमहाद्वीप पर उड़ान भर पाने वाला यह सबसे भरी पक्षी है। मादा हुकना को रिझाने के लिए, नर हुकना के गर्दन पर स्थित गूलर की थैली सावन के महीने में अति लंंबी और फूल जाती है। सामान्यतः, हुकना साल में केवल एक अंडा देता है, जिसे वह मैदानों में भूमि पर ही घोसंलों में रखता है। पाया गया है कि आमतौर पर 40-50% बार ही उसके अंडे में से नवजात, सफलता से निकलते हैं। यह प्राकृतिक विशेषता हुकना की आबादी को तेज़ी से बढ़ने नहीं देती। मुग़ल और अंंग्रेज हुकना का शिकार करना तथा उसका मास भक्षण करना अत्यधिक पसंद करते थे। हालांकि अब हुकना को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) के तहत कानूनी संरक्षण प्राप्त है।

Published / 2021-03-18 11:45:12
प्रधानमंत्रियों के दामाद

लाल बहादुर शास्त्री के दोनों दामादों क्रमश: कौशल कुमार और विजय नाथ सिंह की भी। ये हमेशा विवादों से परे रहे। कौशल कुमार बड़े दामाद थे। उनकी पत्नी कुसुम का बहुत पहले निधन हो गया था। कौशल कुमार आईएएस अफसर थे। उनका जीवन भी बेदाग रहा। विजय नाथ सिंह सरकारी उपक्रम में काम करते थे। लाल बहादुर शास्त्री ने कभी भी अपने बच्चों या दामादों को इस बात की इजाजत नहीं दी कि वे उनके नाम या पद का दुरुपयोग करें। क्या इस तरह का दावा वाड्रा या प्रियंका कर सकते हैं। चौधरी चरण सिंह की भी चार बेटियां थीं। उनके सभी दामाद भी कभी विवादों में नहीं रहे। एक दामाद डॉ जेपी सिंह राजधानी के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के प्रमुख भी रहे। पीवी नरसिंह राव के तीन पुत्र और पांच पुत्रियां थीं। राजनीति में आने के बाद उनका अपने बेटों या बेटियों से किसी तरह का घनिष्ठ संबंध नहीं था। वे जब प्रधानमंत्री भी बने तब भी उनके पास उनका कोई बेटा या बेटी नहीं रहते थे। राव साहब की पत्नी के 70 के दशक में निधन के बाद उनका अपने परिवार से कोई खास संबंध नहीं रहा। जब उनका कोई पुत्र या पुत्री उनके पास आते भी थे तो वे उनसे मिलने के कुछ देर के बाद ही उन्हें विदा कर देते थे। एचडी देवागौड़ा की दोनों पुत्रियों डी अनुसूईया और एडी शैलेजा के पति डॉ सीएन मंजूनाथ और डा. एच.एस.जयदेव मेडिकल पेशे से जुड़े हैं। इन पर भी कभी अपने ससुर के नाम का बेजा इस्तेमाल का आरोप नहीं लगा। अगर बात डॉ मनमोहन सिंह के दामादों की करें तो ये भी विवादों से बहुत दूर ही रहे। उनकी सबसे बड़ी पुत्री डॉ उपिंदर सिंह के पति डॉ विजय तन्खा दिल्ली यूनिवर्सिटी में अध्यापक रहे। दूसरी बेटी दमन सिंह के पति अशोक पटनायक आईपीएस अफसर थे। तीसरी बेटी अमृत सिंह अमेरिका में अटार्नी हैं। उसके पति अध्यापक हैं। मतलब साफ है कि रॉबर्ट वाड्रा इन सबसे अलग हैं। उनमें कोई गरिमा नाम की चीज नहीं है। इसलिए ही उनके प्रति देश लेश मात्र भी सम्मान का भाव नहीं रखता है। वे इस देश के एक खास परिवार के दामाद है। वे अपने सम्मान को तार-तार कर चुके हैं।

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