विचार

View All
Published / 2025-11-03 20:18:06
दलहन आत्मनिर्भरता मिशन

डॉ देवेश चतुर्वेदी 

दलहन आत्मनिर्भरता मिशन: किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में देश का बड़ा प्रयास 

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। दलहन, भारत की खाद्य और कृषि परंपराओं का एक अभिन्न अंग हैं, जो नागरिकों की पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ करोड़ों किसानों को आजीविका भी प्रदान करती हैं। दलहन, स्वास्थ्यप्रद होने के साथ-साथ प्रोटीन का भी एक प्रमुख स्रोत हैं। 
प्रधानमंत्री ने दिनांक 11 अक्टूबर, 2025 को वर्ष 2030-31 तक दलहन आत्मनिर्भरता में वृद्धि करने हेतु 11,440 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ दलहन आत्मनिर्भरता मिशन का शुभारंभ किया। 

मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा, दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन  का उद्देश्य न  सिर्फ दाल उत्पादन में वृद्धि करना है, अपितु पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराकर भावी पीढ़ियों को सशक्त बनाना भी है। मिशन का उद्देश्य, उच्च उपज वाले बीजों और किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित करने के साथ-साथ दलहन की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करते हुए पोषण सुरक्षा प्राप्त करने  पर केन्द्रित है।  

दलहन उत्पादन की चुनौतियां 

भारत में फसल वर्ष 2014-2016 के दौरान दलहन उत्पादन कम हुआ, इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, भारत सरकार ने उत्पादन बढ़ाने के लिए कई कदम उठाये हैं। इन निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप, दलहन उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यद्यपि घरेलू दलहन उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है फिर भी दलहन की खपत आपूर्ति से अधिक बनी हुई है, जिसके फलस्वरूप समय-समय पर दालों के आयात की आवश्यकता पड़ती है। 

लंबे समय से आ रही आयात की चुनौतियों को दूर करने हेतु दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता आवश्यक है। अधिकांशत: वर्षा सिंचित दलहन फसलें अनियमित वर्षा और सूखा, दोनों ही स्थितियों से प्रभावित होती हैं। मौसम संबंधी अनिश्चितताओं के अलावा, कीटों और रोगों का खतरा तथा उन्नत बीजों की सीमित उपलब्धता के कारण कम उत्पादकता भी दलहन के उत्पादन को प्रभावित करती है।  

दलहन आत्मनिर्भरता मिशन में पांच वर्षों की लक्षित अवधि के भीतर भारत की कृषि अर्थव्यवस्था को बदलने की अपार क्षमता है। इस मिशन का उद्देश्य उत्पादकता और उत्पादन में वृद्धि करके इन चुनौतियों का सामना करना है इसमें दलहन की खेती किसानों के लिए अधिक लाभदायक और विश्वशनीय बनेगी साथ ही साथ राष्ट्र के लिए एक स्थाई और प्रोटीन युक्त खाद्य स्रोत सुनिश्चित होगा।  

दलहन में आत्मनिर्भरता हेतु  रणनीति 

दलहन आत्मनिर्भरता मिशन, बीज से लेकर बाजार तक, एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए इस अंतर को कम करने का प्रयास करता है, जिससे अंतत: उत्पादन, उत्पादकता और किसानों की आय में वृद्धि होगी। 

यह मिशन, प्रभावी कार्यान्वयन और व्यापक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए किसान उत्पादक संगठनों और सहकारी समितियों की अधिक भागीदारी के साथ एक क्लस्टर-आधारित कार्यनीति का पालन करेगा। लक्षित उपायों के साथ क्षेत्र और उपज क्षमता के आधार पर फसल विशिष्ट क्लस्टर विकसित किये जायेंगे। 

इस मिशन के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान पर सलाहकार समूह जैसे संस्थानों की मदद से अधिक उपज वाले, जलवायु- सहिष्णु और उच्च तापमान प्रतिरोधी बीज विकसित किये जायेंगे। यह मिशन, एक प्रभावी बीज श्रृंखला के माध्यम से अधिक उपज देने वाली किस्म के बीजों के उत्पादन और वितरण को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करेगा। 

इससे गुणवत्तापूर्ण ब्रीडर, फाउंडेशन और प्रमाणित बीजों की किसानों तक पहुंच सुनिश्चित होगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों, कृषि विज्ञान केंद्रों और राज्य कृषि विभागों द्वारा प्रदर्शन के माध्यम से किसानों को बेहतर कृषि पद्धतियों से अवगत कराया जायेगा। लक्षित चावल परती भूमि में संभावित विस्तार, फसल विविधीकरण और अंतर-फसली के जरिए दलहन की खेती के अंतर्गत क्षेत्र विस्तार में सहायता मिलेगी।  

आत्मनिर्भर दलहन की दिशा में सशक्त पहल 

फसलोपरांत नुकसान को कम करने और किसानों को बेहतर मूल्य उपलब्ध कराने में सहायता हेतु देशभर में 1000 प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित की जायेंगी। आगामी चार वर्षों तक सभी पंजीकृत और इच्छुक किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर तुअर, उड़द और मसूर की खरीद की सुविधा सुनिश्चित की जायेगी। आशा है कि इन प्रयासों से किसानों में विश्वास बढ़ेगा, कीमतों में स्थिरता आयेगी और सतत आय सुनिश्चित होगी।

ऐसे सकारात्मक प्रयास, अधिक से अधिक किसानों को दलहन की खेती करने तथा क्षेत्र विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित कर, दलहन की खेती में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकते हैं। यह मिशन अधिक उत्पादन और उचित मुनाफा सुनिश्चित कर, दलहन की खेती करने वाले किसानों में विश्वास जागृत करेगा और देश के प्रोटीन-आधार को सुदृढ़ बनायेगा। 

इस मिशन का लक्ष्य वर्ष 2030-31 तक, दलहन की खेती के क्षेत्रफल को वर्ष 2023-24 में 275 लाख हेक्टेयर के मुकाबले बढ़ाकर 310 लाख हेक्टेयर करना और उत्पादन को 242 लाख टन से बढ़ाकर 350 लाख टन करना तथा दलहन उत्पादकता के स्तर को 881 किग्रा/ हेक्टेयर से बढ़ाकर 1130 किग्रा/ हेक्टेयर करना है। इस मिशन से सीधे तौर पर लगभग 2 करोड़ किसानों को सीधे लाभान्वित होने की आशा है। 

उत्पादन लक्ष्यों से परे, इस मिशन में दलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सतत और जलवायु-अनुकूल कृषि को अपनाने की परिकल्पना की गयी है, जिससे जल संरक्षण होगा और नाइट्रोजन स्थिरीकरण के माध्यम से मृदा स्वास्थ्य समृद्ध होगा तथा रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होगी। 

खेत-खलिहानों में हरियाली, भविष्य में खुशहाली 

सरकार का लक्ष्य, इस मिशन को सूक्ष्म सिंचाई, मशीनीकरण, फसल बीमा और कृषि ऋण जैसी तत्कालीन योजनाओं से जोड़कर, दीर्घकालिक स्थिरता के लिए सहक्रिया और संयोजन को बनाना है। इसके अतिरिक्त, प्रसंस्करण, पैकेजिंग और संपूर्ण दलहन मूल्य श्रृंखला को बढ़ाने में सहायता की जायेगी। 

यह मिशन, भारत के विजन 2047 के अनुरूप है, जो खाद्य-सुरक्षा, सतत और आत्मनिर्भर कृषि क्षेत्र की परिकल्पना करता है। किसानों को बेहतर बीज, सुनिश्चित बाजार और आधुनिक तकनीक प्रदान कर, सरकार एक दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती है, जो किसान और मिट्टी दोनों को महत्व देती है। 

जैसे-जैसे भारत दलहन में आत्मनिर्भरता के निकट पहुंच रहा है, यह मिशन खाद्य और पोषण सुरक्षा की दिशा में देश की यात्रा का एक महत्वपूर्ण बिंदु है। अंतत: दलहनों में आत्मनिर्भरता मिशन फसलों में निवेश से कहीं अधिक है, यह आत्मविश्वास में निवेश है : किसानों का आत्मविश्वास जो अब इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि उनकी उपज का मूल्य और भविष्य दोनों सुरक्षित हैं।   (लेखक सचिव और संजय कुमार अग्रवाल, संयुक्त सचिव, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार हैं।)

Published / 2025-11-03 20:14:47
हर घर तक पहुंचेगा आरएसएस का संदेश

5 नवंबर से तीन सप्ताह का गृह संपर्क अभियान 

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक, जबलपुर (30 अक्टूबर - 1 नवंबर 2025) 

संजय कुमार  

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। जबलपुर में 30 अक्टूबर से 1 नवम्बर 2025 तक आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक सफलता पूर्वक सम्पन्न हुई। देशभर के सभी प्रांतों से आये प्रतिनिधियों ने इस बैठक में भाग लिया। इसमें संघ के विविध कार्यों, संगठन की विस्तार योजना, राष्ट्रीय चेतना, सांस्कृतिक पुनर्जागरण एवं सामाजिक समरसता के विषयों पर व्यापक चर्चा हुई। 

श्रद्धांजलि अर्पण 

बैठक में देशभर की 207 दिवंगत विभूतियों को श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। इनमें झारखंड प्रांत के चार विशिष्ट व्यक्तित्व शामिल रहे। इन महान विभूतियों के राष्ट्र, समाज एवं जनसेवा के प्रति योगदान का भावपूर्ण स्मरण किया गया। 

  1. दिशोम गुरु नाम से विख्यात स्व. शिबू सोरेन जी (पूर्व मुख्यमंत्री, झारखंड) 
  2. स्व. चन्द्रशेखर दुबे जी (ददई दुबे - प्रसिद्ध नाम) 
  3. स्व. राजेश जी (बऊआ जी, धनबाद) 
  4. स्व. सुधीर अग्रवाल जी (लोहरदगा) 

विजयादशमी उत्सव 2025 - व्यापक जनभागीदारी 

इस वर्ष देशभर में 62,555 स्थानों पर विजयादशमी उत्सव आयोजित हुए। झारखंड प्रांत में 1783 स्थानों पर कुल 1879 विजयादशमी उत्सव संपन्न हुए, जिनमें 74,347 लोगों की उपस्थिति रही। 

झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों के 1,264 मंडलों में से 948 मंडलों में कार्यक्रम हुए। आस-पास के मंडलों के सम्मिलन से कुल 1,016 मंडलों का प्रतिनिधित्व 317 स्थानों पर हुआ। 31,678 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित रहे तथा 390 स्थानों पर पथ संचलन आयोजित हुए। यह कार्यक्रम झारखंड के सभी जिलों और अंचलों में आयोजित हुए, जिससे संघ के कार्य का व्यापक प्रसार एवं समाज की गहरी सहभागिता परिलक्षित हुई।

धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा : 150वीं जयंती वर्ष पर विशेष विवेचन 

बैठक में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने अपने वक्तव्य में धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा केवल जनजातीय समाज के नायक नहीं, बल्कि संपूर्ण भारत की आत्मा के प्रतीक हैं, जिन्होंने स्वराज, स्वाभिमान, संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए अल्पायु में ही अद्वितीय संघर्ष किया। 

अबुआ दिसुम, अबुआ राज (अपना देश, अपना राज) का उनका उद्घोष आज भी जन-जागरण का प्रेरक संदेश है। उन्होंने अंधविश्वास, अन्याय और पाखंड के विरुद्ध जनचेतना जगायी और समाज को एकता, आत्मनिर्भरता व धर्मनिष्ठा का मार्ग दिखाया। 

सरकार्यवाह ने कहा कि बिरसा मुंडा के जीवन से आज के समाज को आत्मगौरव, एकात्मता और संगठन की प्रेरणा लेनी चाहिए। उनके विचार और कार्य पथ हमें स्वत्व बोध तथा स्वाभिमान के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। 

15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जन्म जयंती जनजातीय गौरव दिवस के रूप में पूरे देश में मनायी जाती है। मौके पर झारखंड प्रांत में अनेक कार्यक्रम एवं श्रद्धांजलि सभाएं आयोजित की जायेंगी, जिनमें बिरसा मुंडा के जीवन, संघर्ष और विचारों को समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचाने का संकल्प लिया गया है। 

संघ शताब्दी वर्ष की ओर अग्रसर : व्यापक गृह संपर्क अभियान 

बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि संघ शताब्दी वर्ष (2025-26) को ध्यान में रखते हुए आगामी महीनों में विविध कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे। इसी क्रम में 5 नवंबर 2025 से तीन सप्ताह तक चलने वाला गृह संपर्क अभियान प्रारंभ होगा। 

इस अभियान का उद्देश्य प्रत्येक परिवारों से सीधा संवाद स्थापित करना है। संघ के स्वयंसेवक मोहल्लों, बस्तियों और ग्रामों में टोली बनाकर प्रत्येक घर तक पहुंचेंगे, संघ के विचार, कार्य एवं साहित्य के माध्यम से समाज से आत्मीय संपर्क स्थापित करेंगे। 

इस अभियान के माध्यम से समाज के मानस के लिए पंच परिवर्तन यानि सामाजिक समरसता, कुटुंब भाव, पर्यावरण, स्व का बोध व नागरिक कर्तव्य  के माध्यम से समाज में समरसता, पारिवारिक मूल्य एवं राष्ट्रभाव को सशक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है। 

राष्ट्रीय स्मरण : वंदे मातरम् एवं गुरु तेगबहादुर जी 

बैठक में दो अन्य ऐतिहासिक प्रसंगों का भी उल्लेख किया गया। वंदे मातरम् की रचना के 150 वर्ष पूर्ण होने पर मातृभूमि के प्रति समर्पण की भावना को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लिया गया। श्री गुरु तेगबहादुर जी के 350वें प्रकाश वर्ष पर उनके अद्वितीय बलिदान एवं भारतीय परंपरा की रक्षा हेतु किये गये योगदान का स्मरण किया गया। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, झारखंड प्रांत ने इस अवसर पर संकल्प लिया कि  समरस, संगठित और स्वाभिमानी समाज ही आत्मनिर्भर भारत की आधारशिला बनेगा। संघ के स्वयंसेवक इस भाव को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आगामी कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से सहभागी होंगे। (लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत कार्यवाह हैं।)

Published / 2025-11-01 11:07:52
साहित्य समाज का दर्पण है...

त्रिवेणी दास

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद ने कहा था कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी इस कथन को स्थापित किया था। समाज की छवि, आर्थिक शैक्षणिक स्थिति, संस्कृति, परंपरा एवं विरासत और विचारधारा को उसका साहित्य ही स्पष्ट करता है।

समाज की वास्तविकता का प्रतिबिंब तथा उसकी सामाजिक गतिविधि का लेखा-जोखा उसका अपना साहित्य ही होता है। तत्कालीन युग का साहित्य उस समय के समाज का विचारधारा, उसके संघर्ष एवं उन्नति का आलेख होता है।

रामायण महाभारत तथा विभिन्न धर्मो के ग्रंथ तत्कालीन युग के साहित्य के रूप में लोक-व्यवहार को प्रतिबिंबित करता है। सामाजिक जीवन-शैली की मर्यादा को रेखांकित करता है। सफलता एवं असफलता के कारणों की शिक्षा देता है।

लोक व्यवहार इतना महत्वपूर्ण है कि वही व्यक्तित्व के प्राथमिक परिचय का आधार बन जाता है। वाणी (बोलचाल) व्यवहार का प्रमुख घटक है। पूरे समाज का लोक व्यवहार उसके साहित्य से समझा जा सकता है।

जिस समाज के पास अपना साहित्य नहीं होता है अथवा साहित्य की रचना में अभिरुचि नहीं होती है वह समाज संसार की नजरों से ओझल हो जाता है तथा अपनी पहचान के संकट से जूझता रहता है।

समाज के पास उपलब्ध साहित्य मात्र पूजा की वस्तु नहीं होती है बल्कि इसका अध्ययन एवं लोक व्यवहार में उतारने की आवश्यकता है जिससे सब प्रकार के सफलता एवं संतुष्टि प्राप्त किया जा सके। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

Published / 2025-10-31 19:30:17
कानून के ज्ञाता, सादगी के प्रतीक और समाजसेवा के दीपक थे प्रो विष्णु चरण महतो

मृत्युंजय प्रसाद 

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। झारखंड की धरती ने अनेक प्रतिभाओं को जन्म दिया है, पर उनमें एक नाम सदा श्रद्धा से लिया जाता है — प्रोफेसर विष्णु चरण महतो। वे केवल एक कानून के अध्येता नहीं, बल्कि सादगी, ईमानदारी, और जनसेवा के जीवंत प्रतीक थे। 
छोटानागपुर विधि महाविद्यालय के प्राध्यापक, सिल्ली प्रखण्ड के प्रथम प्रमुख, और झारखंड आंदोलन के प्रखर योद्धा के रूप में उन्होंने जो छाप छोड़ी, वह आज भी अविस्मरणीय है। 

ज्ञान के पथिक से समाज के पथप्रदर्शक तक 

23 फरवरी 1926 को सिल्ली प्रखण्ड के कांटाडीह गांव में जन्मे प्रो. महतो एक साधारण किसान परिवार से थे, लेकिन उनके सपने असाधारण थे। बाल्यकाल से ही वे मेधावी, गंभीर और अनुशासित विद्यार्थी रहे। 

रांची जिला स्कूल से मैट्रिक, पटना विश्वविद्यालय से स्नातक और पटना विधि महाविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ समय पटना उच्च न्यायालय में कार्य किया। लेकिन समाज और शिक्षा के प्रति लगाव ने उन्हें रांची वापस खींच लाया। यहां वे न केवल वकालत करने लगे, बल्कि छोटानागपुर विधि महाविद्यालय में अध्यापन के माध्यम से सैकड़ों विद्यार्थियों के जीवन को दिशा दी। 

झारखंड आंदोलन के सच्चे सिपाही 

झारखंड आंदोलन में प्रो. महतो ने मारांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया। उन्होंने झारखंड पार्टी के उम्मीदवार के रूप में 1952 और 1957 के विधानसभा चुनाव लड़े। दोनों बार मामूली अंतर से हारने के बावजूद उनका जज्बा अटूट रहा। वे कहा करते थे चुनाव हारने से आदर्श नहीं हारते, असली जीत लोगों के दिलों में होती है। 

शिक्षा ही समाज का असली दीपक 

प्रो. महतो का दृढ़ विश्वास था सूखी रोटी खाओ, लाल चाय पियो, लेकिन अपने बच्चों को जरूर पढ़ाओ। वे शिक्षा को समाज सुधार का सबसे सशक्त साधन मानते थे। उन्होंने नारी शिक्षा को विशेष महत्व दिया और कहा शिक्षित नारी ही समाज की असली शक्ति है। 

जनसेवा की मिसाल 

सिल्ली प्रखंड प्रमुख के रूप में उन्होंने कई ऐतिहासिक कार्य किये। सिंगपुर से कांटाडीह तक श्रमदान से सड़क बनवाई, गांव में बिजली पहुंचायी, किसानों के लिए सिंचाई की सुविधा करायी और बेरोजगार युवाओं को शिक्षक के रूप में रोजगार दिलाया। उन्होंने सिंगपुर (मुरी) में बनने वाले भारत माता अस्पताल के लिए अपनी जमीन दान में दी। यह उनकी मानवता और त्याग की मिसाल है। 

कुरमाली भाषा के रक्षक और प्रेरणा स्रोत 

कुरमाली भाषा और संस्कृति के संरक्षण के लिए वे जीवनभर प्रयासरत रहे। उनके मार्गदर्शन से अनेक शोधकतार्ओं ने कुरमाली लोक-साहित्य पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। 

वे चाहते थे कि रांची विश्वविद्यालय में कुरमाली भाषा का शोध केंद्र स्थापित हो और आज कुरमाली भाषा परिषद एवं बाईसी कुटुम परिषद उनके इसी सपने को साकार करने में जुटी हैं। 

युवाओं के प्रेरणास्रोत 

वे हमेशा युवाओं को प्रोत्साहित करते थे। जब नंदलाल महतो का चयन बिहार प्रशासनिक सेवा में हुआ, तो उन्होंने गर्व से कहा कि यू आर द सेकंड कुरमी आफ छोटानागपुर रीजन आफ्टर ठाकुर दास महतो! उनकी प्रेरणा ने अनगिनत युवाओं को सफलता की राह दिखायी। 

दीपावली के दिन बूझ गया एक दीपक 

एक नवंबर 1986 दीपावली की रात, जब घर-घर में दीप जल रहे थे, उसी दिन यह सादगी और सेवा का दीपक सदा के लिए बुझ गया। परंतु उनके विचार, उनके कर्म और उनके आदर्श आज भी हजारों दिलों में रौशनी फैला रहे हैं। (लेखक वरीय अधिवक्ता एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Published / 2025-10-29 21:22:46
भारत की श्रम संहिताएं: समावेशी आर्थिक विकास की दिशा में एक परिवर्तनकारी कदम

चंद्रजीत बनर्जी

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। भूमि और श्रम; भारत के विकास के आधार-स्तंभ हैं— भूमि अवसंरचना और औद्योगिक विकास को गति देती है, जबकि श्रम उत्पादकता और समावेश को बढ़ावा देता है। इस संदर्भ में, भारत की नई श्रम संहिताएं एक परिवर्तनकारी कदम को रेखांकित करती हैं, 29 कानूनों को एक आधुनिक, एकीकृत संरचना में समेकित करती हैं तथा श्रम परिदृश्य में स्पष्टता, एकरूपता और समानता सुनिश्चित करती है।

श्रमिकों के लिए, ये संहिताएं मजबूत सामाजिक सुरक्षा, सुरक्षित कार्यस्थल और औपचारिक लाभों तक व्यापक पहुंच की सुविधा प्रदान करती हैं, जबकि व्यवसायों को सरलीकृत अनुपालन, कार्यबल प्रबंधन में लचीलेपन और सभी क्षेत्रों में समान अवसर का लाभ मिलता है। हालांकि अंतिम प्रभाव कार्यान्वयन की गुणवत्ता पर निर्भर करेगा, लेकिन ये संहिताएं भारत के श्रम बाजार को 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम हैं।

जयपुर में वितरण सेवाओं से लेकर साणंद में तकनीकी भूमिकाओं और गुवाहाटी में निर्माण कार्य तक— विभिन्न क्षेत्रों में भारत के कार्यबल की आकांक्षा एक-जैसी है: सुरक्षित कार्य परिस्थितियों तक पहुंच, उचित पारिश्रमिक और दूसरी जगह ले जाने योग्य एवं विश्वसनीय सामाजिक सुरक्षा। श्रमिक चाहे कारखानों में कार्यरत हों या खेतों में, या प्लेटफॉर्म-आधारित सेवाओं से जुड़े हों, वे तीन प्रमुख आश्वासन चाहते हैं: आय स्थिरता, पूवार्नुमानित सामाजिक सुरक्षा और रोजगार में सम्मान। 

भारत की चार श्रम संहिताएं इस आकांक्षा को जीवंत वास्तविकता में बदलने के उद्देश्य से तैयार की गयी हैं, ताकि समता और सुरक्षा के सिद्धांत का कार्य जगत में अंतर्निहित होना सुनिश्चित हो सके। सुधारों के केंद्र में है - सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार। लाखों असंगठित, गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिक, जो भारत के कार्यबल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, नयी व्यवस्था के तहत औपचारिक मान्यता प्राप्त करेंगे और कई सुविधाओं के पात्र बन जायेंगे। 

भविष्य निधि, स्वास्थ्य बीमा और मातृत्व लाभ के प्रावधान अब औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारियों तक ही सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि ऐतिहासिक रूप से बहिष्कृत श्रेणियों तक इनका विस्तार हो जायेगा। यह बदलाव, न केवल कमजोर श्रमिकों के लिए सुरक्षा सुविधा को मजबूत करता है, बल्कि उद्यमों को रोजगार को औपचारिक बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक सुरक्षा के समग्र आधार का विस्तार होता है।

सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 औपचारिक रूप से गिग, प्लेटफॉर्म और असंगठित श्रमिकों को मान्यता देती है तथा केंद्र और राज्यों को उनके लिए समर्पित सामाजिक-सुरक्षा कोष स्थापित करने की सुविधा देती है। एग्रीगेटर्स को टर्नओवर का 1-2 प्रतिशत, भुगतान का अधिकतम 5 प्रतिशत, योगदान करने के लिए बाध्य किया जा सकता है, जो गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लाभों के वित्तपोषण का एक व्यावहारिक तरीका है।

आधार-आधारित पंजीकरण पहले ही अधिसूचित किया जा चुका है और ई-श्रम पोर्टल में 31 करोड़ से अधिक श्रमिक नामांकित हैं। प्रत्येक श्रमिक को एक सार्वभौमिक खाता संख्या (यूनिवर्सल अकाउंट नंबर, यूएएन) दी गयी है, जिसके जरिये स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व सहायता, या वृद्धावस्था पेंशन जैसे लाभों को नये कार्य-स्थल में स्थानांतरित किया जा सकता है, चाहे वे कहीं भी काम करते हों। ई-श्रम रजिस्ट्री, वास्तव में, अनौपचारिक श्रमिकों के संदर्भ में भारत का पहला राष्ट्रीय डेटाबेस है— जो समावेशी विकास और आपदा सहनीयता की दिशा में एक आवश्यक कदम है।

व्यवसाय सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य परिस्थितियां संहिता भी उतनी ही परिवर्तनकारी है, जो सुरक्षा मानदंडों को एकीकृत करती है और विशेष रूप से, महिलाओं को सहमति और सुरक्षा उपायों के साथ रात्रि पाली में काम करने की अनुमति देती है। यह प्रगतिशील उपाय महिलाओं के लिए अवसरों का विस्तार करता है, जबकि सुरक्षा को अनिवार्य बनाये रखता है। 

ओएसएच संहिता लाइसेंस और निरीक्षण प्रणालियों को भी युक्तिसंगत बनाती है, जो दंड के बजाय रोकथाम की संस्कृति को बढ़ावा देने के क्रम में जोखिम-आधारित, प्रौद्योगिकी-सक्षम अनुपालन की ओर अग्रसर है। इसी तरह, वेतन संहिता सभी क्षेत्रों में न्यूनतम वेतन और समय पर भुगतान व्यवस्था को सार्वभौमिक बनाती है, चाहे उनका क्षेत्र या कौशल स्तर कुछ भी हो। 

औद्योगिक संबंध संहिता, विवाद समाधान तंत्र को मजबूत करने और सामाजिक संवाद को बढ़ावा देने का प्रयास करती है। विवाद बढ़ने से पहले बातचीत, सुलह और मध्यस्थता को प्रोत्साहित करके, यह संहिता एक अधिक स्थिर औद्योगिक संबंध वातावरण का निर्माण करती है। इसके अतिरिक्त, ट्रेड यूनियन मान्यता और बड़े उद्यमों के लिए स्थायी आदेशों से संबंधित सरलीकृत नियम; नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों में पारदर्शिता और पूवार्नुमान में सुधार को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किये गये हैं। 

उद्यमों, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए, श्रम संहिताओं का अर्थ है सरल अनुपालन: मानकीकृत परिभाषाएं, कम रजिस्टर, डिजिटल रूप से दाखिल करना और बहुत कम अस्पष्टता। भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह वित्त वर्ष 2021-22 में 83.6 बिलियन डॉलर रहा था और वित्त वर्ष 2024-25 में यह 81 बिलियन डॉलर के साथ मजबूत स्थिति में है। इस अवधि में, भारत सरकार ने कई महत्वपूर्ण सुधार लागू किए, जिनमें श्रम सुधारों का अधिनियमन भी शामिल है। वित्त वर्ष 2021-22 में पूंजीगत व्यय के लिए लगभग 13 लाख करोड़ रुपये से अधिक का उच्चतम आवंटन हुआ। 

इसके अलावा, संस्थागत नीति, डिजिटल सुधारों, देश में व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देने और भारत को एक आकर्षक निवेश गंतव्य स्थल बनाने के माध्यम से अनुपालन बोझ को कम करने के लिए कई महत्वपूर्ण सुधार किये गये। इसी अवधि में विनिर्माण क्षेत्र में सुधार तथा सेमीकंडक्टर उद्योग, कोयला क्षेत्र, ऊर्जा और खनिज क्षेत्र को मजबूत करने से वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बाजार में देश की स्थिति को और मजबूत करने में योगदान मिला। 

फिर भी, कानून पारित करना केवल आधी यात्रा है। श्रम समवर्ती सूची का विषय है, जिसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य दोनों को कार्यान्वयन के लिए नियम बनाने और अधिसूचित करने होंगे। हालांकि अधिकांश राज्यों ने चारों संहिताओं के अंतर्गत नियमों का मसौदा तैयार कर लिया है, लेकिन अंतिम अधिसूचना जारी करने की गति असमान बनी हुई है। एक राष्ट्र, एक श्रम कानून व्यवस्था के विजन को साकार करने के लिए, यह आवश्यक है कि केंद्र और सभी राज्य कार्यान्वयन की दिशा में तेजी से आगे बढ़ें। 

इस बदलाव को प्रभावी बनाने के लिए, कुछ प्राथमिकताएं उभर कर सामने आती हैं- 

  1. पहला, असंगठित श्रमिकों के कवरेज को क्रियान्वित करना। एग्रीगेटर्स के लिए अंशदान दरों की सूचना देना, पारदर्शी नामांकन और लाभ-वितरण प्रणालियां स्थापित करना तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक डैशबोर्ड बनाना। 
  2. प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिए सिंगापुर के केंद्रीय भविष्य निधि (सीपीएफ) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मॉडल, मूल्यवान जानकारी प्रदान कर सकते हैं। दूसरा, डिजिटल अवसंरचना को वास्तविक पात्रता में बदलना। ई-श्रम, ईपीएफओ और ईएसआईसी डेटाबेस को लिंक करना, ताकि श्रमिक जहां भी जायें, लाभ उनके साथ चलें। आधार का उपयोग दूसरी जगह ले जाने की सुविधा (पोर्टेबिलिटी) के लिए किया जाना चाहिए, न कि बहिष्करण के लिए। 
  3. तीसरा, जागरूकता और क्षमता का निर्माण। 

एमएसएमई को संहिताओं को समझने के लिए हेल्प-डेस्क और सरलीकृत मार्गदर्शिकाओं की आवश्यकता है; श्रमिकों को बहुभाषी हेल्पलाइन और जमीनी सहायता की जरूरत होती है। सरकार, उद्योग निकायों और यूनियनों के संयुक्त प्रयास यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कागज पर लिखे अधिकार, लाभ-प्राप्ति में परिवर्तित होंगे। मूलत:, यह सुधार इस विश्वास पर आधारित है कि काम सुरक्षित होगा और उचित भुगतान किया जाएगा; सामाजिक सुरक्षा श्रमिक के साथ बनी रहेगी और अनुपालन इतना सरल होगा कि सभी इसमें भाग ले सकेंगे। 

इस संरचना के निर्माण के लिए सरकार प्रशंसा की पात्र है। यदि हम इन्हें गति, पारदर्शिता और सहयोग के साथ कार्यान्वयन करते हैं, तो ये संहिताएं भारत के अगले विकास अध्याय का आधार बन सकती हैं - व्यवसायों के लिए प्रतिस्पर्धा, श्रमिकों के लिए सम्मानजनक कार्य और निवेशकों के लिए पूर्वानुमानित व्यावसायिक वातावरण।  यही विकसित भारत का सार है - समावेश के साथ विकास और समृद्धि, जो प्रत्येक श्रमिक तक पहुंचती हो। (लेखक भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के महानिदेशक हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)

Published / 2025-10-29 20:23:45
भारत की श्रम संहिताएं: समावेशी आर्थिक विकास की दिशा में एक परिवर्तनकारी कदम

चंद्रजीत बनर्जी

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। भूमि और श्रम; भारत के विकास के आधार-स्तंभ हैं— भूमि अवसंरचना और औद्योगिक विकास को गति देती है, जबकि श्रम उत्पादकता और समावेश को बढ़ावा देता है। इस संदर्भ में, भारत की नई श्रम संहिताएं एक परिवर्तनकारी कदम को रेखांकित करती हैं, 29 कानूनों को एक आधुनिक, एकीकृत संरचना में समेकित करती हैं तथा श्रम परिदृश्य में स्पष्टता, एकरूपता और समानता सुनिश्चित करती है।

श्रमिकों के लिए, ये संहिताएं मजबूत सामाजिक सुरक्षा, सुरक्षित कार्यस्थल और औपचारिक लाभों तक व्यापक पहुंच की सुविधा प्रदान करती हैं, जबकि व्यवसायों को सरलीकृत अनुपालन, कार्यबल प्रबंधन में लचीलेपन और सभी क्षेत्रों में समान अवसर का लाभ मिलता है। हालांकि अंतिम प्रभाव कार्यान्वयन की गुणवत्ता पर निर्भर करेगा, लेकिन ये संहिताएं भारत के श्रम बाजार को 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम हैं।

जयपुर में वितरण सेवाओं से लेकर साणंद में तकनीकी भूमिकाओं और गुवाहाटी में निर्माण कार्य तक— विभिन्न क्षेत्रों में भारत के कार्यबल की आकांक्षा एक-जैसी है: सुरक्षित कार्य परिस्थितियों तक पहुंच, उचित पारिश्रमिक और दूसरी जगह ले जाने योग्य एवं विश्वसनीय सामाजिक सुरक्षा। श्रमिक चाहे कारखानों में कार्यरत हों या खेतों में, या प्लेटफॉर्म-आधारित सेवाओं से जुड़े हों, वे तीन प्रमुख आश्वासन चाहते हैं: आय स्थिरता, पूवार्नुमानित सामाजिक सुरक्षा और रोजगार में सम्मान। 

भारत की चार श्रम संहिताएं इस आकांक्षा को जीवंत वास्तविकता में बदलने के उद्देश्य से तैयार की गयी हैं, ताकि समता और सुरक्षा के सिद्धांत का कार्य जगत में अंतर्निहित होना सुनिश्चित हो सके। सुधारों के केंद्र में है - सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार। लाखों असंगठित, गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिक, जो भारत के कार्यबल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, नयी व्यवस्था के तहत औपचारिक मान्यता प्राप्त करेंगे और कई सुविधाओं के पात्र बन जायेंगे। 

भविष्य निधि, स्वास्थ्य बीमा और मातृत्व लाभ के प्रावधान अब औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारियों तक ही सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि ऐतिहासिक रूप से बहिष्कृत श्रेणियों तक इनका विस्तार हो जायेगा। यह बदलाव, न केवल कमजोर श्रमिकों के लिए सुरक्षा सुविधा को मजबूत करता है, बल्कि उद्यमों को रोजगार को औपचारिक बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक सुरक्षा के समग्र आधार का विस्तार होता है।

सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 औपचारिक रूप से गिग, प्लेटफॉर्म और असंगठित श्रमिकों को मान्यता देती है तथा केंद्र और राज्यों को उनके लिए समर्पित सामाजिक-सुरक्षा कोष स्थापित करने की सुविधा देती है। एग्रीगेटर्स को टर्नओवर का 1-2 प्रतिशत, भुगतान का अधिकतम 5 प्रतिशत, योगदान करने के लिए बाध्य किया जा सकता है, जो गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लाभों के वित्तपोषण का एक व्यावहारिक तरीका है।

आधार-आधारित पंजीकरण पहले ही अधिसूचित किया जा चुका है और ई-श्रम पोर्टल में 31 करोड़ से अधिक श्रमिक नामांकित हैं। प्रत्येक श्रमिक को एक सार्वभौमिक खाता संख्या (यूनिवर्सल अकाउंट नंबर, यूएएन) दी गयी है, जिसके जरिये स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व सहायता, या वृद्धावस्था पेंशन जैसे लाभों को नये कार्य-स्थल में स्थानांतरित किया जा सकता है, चाहे वे कहीं भी काम करते हों। ई-श्रम रजिस्ट्री, वास्तव में, अनौपचारिक श्रमिकों के संदर्भ में भारत का पहला राष्ट्रीय डेटाबेस है— जो समावेशी विकास और आपदा सहनीयता की दिशा में एक आवश्यक कदम है।

व्यवसाय सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य परिस्थितियां संहिता भी उतनी ही परिवर्तनकारी है, जो सुरक्षा मानदंडों को एकीकृत करती है और विशेष रूप से, महिलाओं को सहमति और सुरक्षा उपायों के साथ रात्रि पाली में काम करने की अनुमति देती है। यह प्रगतिशील उपाय महिलाओं के लिए अवसरों का विस्तार करता है, जबकि सुरक्षा को अनिवार्य बनाये रखता है। 

ओएसएच संहिता लाइसेंस और निरीक्षण प्रणालियों को भी युक्तिसंगत बनाती है, जो दंड के बजाय रोकथाम की संस्कृति को बढ़ावा देने के क्रम में जोखिम-आधारित, प्रौद्योगिकी-सक्षम अनुपालन की ओर अग्रसर है। इसी तरह, वेतन संहिता सभी क्षेत्रों में न्यूनतम वेतन और समय पर भुगतान व्यवस्था को सार्वभौमिक बनाती है, चाहे उनका क्षेत्र या कौशल स्तर कुछ भी हो। 

औद्योगिक संबंध संहिता, विवाद समाधान तंत्र को मजबूत करने और सामाजिक संवाद को बढ़ावा देने का प्रयास करती है। विवाद बढ़ने से पहले बातचीत, सुलह और मध्यस्थता को प्रोत्साहित करके, यह संहिता एक अधिक स्थिर औद्योगिक संबंध वातावरण का निर्माण करती है। इसके अतिरिक्त, ट्रेड यूनियन मान्यता और बड़े उद्यमों के लिए स्थायी आदेशों से संबंधित सरलीकृत नियम; नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों में पारदर्शिता और पूवार्नुमान में सुधार को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किये गये हैं। 

उद्यमों, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए, श्रम संहिताओं का अर्थ है सरल अनुपालन: मानकीकृत परिभाषाएं, कम रजिस्टर, डिजिटल रूप से दाखिल करना और बहुत कम अस्पष्टता। भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह वित्त वर्ष 2021-22 में 83.6 बिलियन डॉलर रहा था और वित्त वर्ष 2024-25 में यह 81 बिलियन डॉलर के साथ मजबूत स्थिति में है। इस अवधि में, भारत सरकार ने कई महत्वपूर्ण सुधार लागू किए, जिनमें श्रम सुधारों का अधिनियमन भी शामिल है। वित्त वर्ष 2021-22 में पूंजीगत व्यय के लिए लगभग 13 लाख करोड़ रुपये से अधिक का उच्चतम आवंटन हुआ। 

इसके अलावा, संस्थागत नीति, डिजिटल सुधारों, देश में व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देने और भारत को एक आकर्षक निवेश गंतव्य स्थल बनाने के माध्यम से अनुपालन बोझ को कम करने के लिए कई महत्वपूर्ण सुधार किये गये। इसी अवधि में विनिर्माण क्षेत्र में सुधार तथा सेमीकंडक्टर उद्योग, कोयला क्षेत्र, ऊर्जा और खनिज क्षेत्र को मजबूत करने से वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बाजार में देश की स्थिति को और मजबूत करने में योगदान मिला। 

फिर भी, कानून पारित करना केवल आधी यात्रा है। श्रम समवर्ती सूची का विषय है, जिसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य दोनों को कार्यान्वयन के लिए नियम बनाने और अधिसूचित करने होंगे। हालांकि अधिकांश राज्यों ने चारों संहिताओं के अंतर्गत नियमों का मसौदा तैयार कर लिया है, लेकिन अंतिम अधिसूचना जारी करने की गति असमान बनी हुई है। एक राष्ट्र, एक श्रम कानून व्यवस्था के विजन को साकार करने के लिए, यह आवश्यक है कि केंद्र और सभी राज्य कार्यान्वयन की दिशा में तेजी से आगे बढ़ें। 

इस बदलाव को प्रभावी बनाने के लिए, कुछ प्राथमिकताएं उभर कर सामने आती हैं- 

  1. पहला, असंगठित श्रमिकों के कवरेज को क्रियान्वित करना। एग्रीगेटर्स के लिए अंशदान दरों की सूचना देना, पारदर्शी नामांकन और लाभ-वितरण प्रणालियां स्थापित करना तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक डैशबोर्ड बनाना। 
  2. प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिए सिंगापुर के केंद्रीय भविष्य निधि (सीपीएफ) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मॉडल, मूल्यवान जानकारी प्रदान कर सकते हैं। दूसरा, डिजिटल अवसंरचना को वास्तविक पात्रता में बदलना। ई-श्रम, ईपीएफओ और ईएसआईसी डेटाबेस को लिंक करना, ताकि श्रमिक जहां भी जायें, लाभ उनके साथ चलें। आधार का उपयोग दूसरी जगह ले जाने की सुविधा (पोर्टेबिलिटी) के लिए किया जाना चाहिए, न कि बहिष्करण के लिए। 
  3. तीसरा, जागरूकता और क्षमता का निर्माण। 

एमएसएमई को संहिताओं को समझने के लिए हेल्प-डेस्क और सरलीकृत मार्गदर्शिकाओं की आवश्यकता है; श्रमिकों को बहुभाषी हेल्पलाइन और जमीनी सहायता की जरूरत होती है। सरकार, उद्योग निकायों और यूनियनों के संयुक्त प्रयास यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि कागज पर लिखे अधिकार, लाभ-प्राप्ति में परिवर्तित होंगे। मूलत:, यह सुधार इस विश्वास पर आधारित है कि काम सुरक्षित होगा और उचित भुगतान किया जाएगा; सामाजिक सुरक्षा श्रमिक के साथ बनी रहेगी और अनुपालन इतना सरल होगा कि सभी इसमें भाग ले सकेंगे। 

इस संरचना के निर्माण के लिए सरकार प्रशंसा की पात्र है। यदि हम इन्हें गति, पारदर्शिता और सहयोग के साथ कार्यान्वयन करते हैं, तो ये संहिताएं भारत के अगले विकास अध्याय का आधार बन सकती हैं - व्यवसायों के लिए प्रतिस्पर्धा, श्रमिकों के लिए सम्मानजनक कार्य और निवेशकों के लिए पूर्वानुमानित व्यावसायिक वातावरण।  यही विकसित भारत का सार है - समावेश के साथ विकास और समृद्धि, जो प्रत्येक श्रमिक तक पहुंचती हो। (लेखक भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के महानिदेशक हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)

Published / 2025-10-25 20:25:29
छठ पूजा : लोक आस्था, संयम और पर्यावरण संतुलन का पर्व

शिवानंद उपाध्याय  

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। छठ भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक ऐसा पर्व हैं जो न केवल धार्मिक आस्था का  प्रतीक हैं, बल्कि सामाजिक एकता, पर्यावरणीय चेतना और मानव-प्रकृति के सामंजस्य को उजागर भी करताहैं। यह पर्व श्रद्धा, संयम, आत्मसंयम और सामूहिक एकता की ऐसी मिसाल प्रस्तुत करता है, जो भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक, सामाजिक और दार्शनिक मूल्यों की सशक्त अभिव्यक्ति है। 

छठ पूजा केवल पूजा या व्रत का अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह जीवन के प्रति कृतज्ञता, आत्मबल और प्रकृति के साथ संतुलित सह-अस्तित्व का उत्सव है। यह पर्व मूलत: सूर्य देवता की उपासना का पर्व है, जिन्हें जीवनदायिनी ऊर्जा, प्रकाश और स्वास्थ्य का स्रोत माना जाता है। सूर्य के प्रति यह श्रद्धा मानव जीवन की निरंतरता, कृषि की समृद्धि और पर्यावरणीय संतुलन की अभिव्यक्ति है। 

आध्यात्मिक और दार्शनिक आयाम 

आध्यात्मिक दृष्टि से छठ पूजा आत्मसाक्षात्कार और आत्मशुद्धि का पर्व है। व्रती इस अवसर पर अपनी इच्छाओं और इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हैं, जो आत्म-नियंत्रण और आत्मबल का प्रतीक है। व्रत के दौरान शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता पर विशेष बल दिया जाता है। यह संयम न केवल भौतिक तपस्या है, बल्कि आत्मा की उन्नति का माध्यम भी है। 

सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा हमें यह सिखाती है कि जीवन में जो भी प्राप्त है, उसके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए। यह अर्घ्य केवल जल का नहीं, बल्कि श्रद्धा, आभार और विनम्रता का प्रतीक है। डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने की परंपरा यह भी दशार्ती है कि जीवन में उतार-चढ़ाव दोनों को समान भाव से स्वीकार करना चाहिए। दार्शनिक रूप से, यह कर्मयोग का संदेश देती हैकि हर परिस्थिति में निरंतर कर्म ही जीवन का आधार है। 

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि 

छठ पूजा की उत्पत्ति प्रारंभिक वैदिक काल से जुड़ी मानी जाती है। छठ पूजा की मूल भावना-सूयोर्पासना और कृतज्ञता प्रकट करना-वैदिक परंपरा से जुड़ी है। ऋग्वेद में सूर्य और उषा की उपासना का उल्लेख मिलता है, जिसमें सूर्य को जीवनदायिनी ऊर्जा और समस्त सृष्टि के पोषक के रूप में वर्णित किया गया है। यह पर्व वैदिक आर्य संस्कृति की उस परंपरा को आगे बढ़ाता है, जिसमें प्रकृति और उसके तत्वों-सूर्य, जल, वायु और भूमि-की आराधना की जाती थी। 

प्राचीन भारत में कृषि और गोपालन आर्थिक विकास के प्रमुख आधार थे। छठ पर्व इसी कृषि संस्कृति से जुड़ा है। यह किसानों का पर्व है, जो भूमि, जल और सूर्य के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है। सूर्योपासना इस बात का प्रतीक है कि सूर्य ही कृषि उत्पादन और जीवन का मूल स्रोत है। इस पूजा में प्रयुक्त होने वाला ईख (गन्ना), ऐसा कहा जाता है कि ईक्ष्वाकु वंश के समय में ईक्षु (गन्ना) से शक्कर उत्पादन आरंभ हुआ था। श्रीराम के शासनकाल में ईख की खेती और शक्कर उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिससे कृषि अर्थव्यवस्था को बल मिला। आज भी सरयू क्षेत्र में ईख की खेती उस प्राचीन परंपरा की याद दिलाती है, जो भारत के कृषि-आधारित आर्थिक विकास की जड़ में है। 

सामाजिक और समतावादी स्वरूप 

छठ पूजा की सबसे विशिष्ट विशेषता इसका लोकाभिमुख और समतावादी स्वरूप है। यह पर्व समाज के हर वर्ग को समान रूप से जोड़ता है। अन्य कई धार्मिक उत्सवों के विपरीत, इसमें पूजा का अनुष्ठान करने या कराने वाले पंडितों या पुरोहितों की मध्यस्थता की आवश्यकता नहीं होती। उपासक स्वयं ही अनुष्ठान करते हैं, जिससे यह पूजा आत्म-उपासना का प्रतीक बन जाती है। यह अनुष्ठानिक लोकतंत्र का एक सुंदर उदाहरण है, जहां जाति, वर्ग, धर्म या आर्थिक स्थिति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता। 

इस पर्व का सामुदायिक पहलू भी अत्यंत सशक्त है। परिवार के सदस्य और पड़ोसी मिलकर तैयारी करते हैं ेघरों की सफाई, घाटों की सजावट और प्रसाद की तैयारी में सभी सहभागी होते हैं। इस सामूहिकता में सहयोग, समानता और एकता की भावना निहित है, इसलिए यह पर्व सामाजिक एकसूत्रता का पर्याय है। 

पर्यावरणीय दृष्टिकोण 

छठ पूजा को सबसे अधिक पर्यावरण-अनुकूल त्योहार माना जाता है। जहां अनेक आधुनिक त्योहारों पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगते हैं, वहीं छठ पर्व पूर्णत: प्रकृति-संगत और सादगीपूर्ण है। इस त्योहार में प्लास्टिक, कृत्रिम सजावट या आतिशबाजी का प्रयोग नहीं होता। इसके स्थान पर प्राकृतिक वस्तुओं, जैसे बांस से बने सूप, दौरा, मिट्टी के चूल्हे और घर में बनी मिठाइयों का प्रयोग किया जाता है।इस प्रकार, यह पर्व ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

छठ पूजा का पर्यावरणीय पहलू केवल वस्तुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी संपूर्ण भावना में निहित है। यह पर्व पक्षियों के मौसमी प्रवास के समय के साथ मेल खाता है और प्राय: नदियों, तालाबों या प्राकृतिक जलस्रोतों के तट पर मनाया जाता है। इन अनुष्ठानों से मनुष्य और प्रकृति के बीच के सामंजस्यपूर्ण संबंध का प्रतीकात्मक प्रदर्शन होता है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि प्रकृति के साथ तालमेल में रहना ही स्थायी जीवन का आधार है। 

छठ व्रत : संयम और आत्मशक्ति का उत्सव 

छठ व्रत को सबसे कठोर और पवित्र व्रतों में से एक माना जाता है। इसमें व्रती तीन दिन तक कठोर नियमों का पालन करते हैं, जिसमें उपवास, निराहार रहना, पवित्रता बनाए रखना और प्रकृति के प्रति श्रद्धा प्रकट करना शामिल है। व्रती बिना किसी आडंबर या दिखावे के यह व्रत पूर्ण निष्ठा और समर्पण से करते हैं। यह आत्म-संयम का उत्सव है, जो व्यक्ति को भीतर से मजबूत बनाता है और आत्मबल की गहराई को अनुभव कराता है। 

छठ पूजा : पर्यावरण से एकाकार का पर्व  

छठ पूजा केवल धार्मिक आस्था का उत्सव नहीं, बल्कि यह जीवन का एक गहन दर्शन है। यह आत्मसंयम के माध्यम से आत्म-शक्ति प्राप्त करने, श्रम की गरिमा का सम्मान करने, प्रकृति के प्रति सम्मान विकसित करने और समाज में समानता तथा सहयोग की भावना को सुदृढ़ करने का पर्व है। यह कृषि के आर्थिक चक्र का उत्सव है।  

आस्था के साथ-साथ यह पर्व एक आर्थिक और पर्यावरणीय आंदोलन भी है, जो दर्शाता है कि परंपराएं केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास का भी आधार बन सकती हैं। यह केवल पूजा का दिन नहीं, बल्कि यह जीवन के उस दर्शन का उत्सव है जो कहता है- प्रकृति ही जीवन है, और उसका सम्मान ही सच्ची उपासना।

Published / 2025-10-17 21:50:37
छात्रों के अधिकार और प्रतियोगी परीक्षाएं

एनके मुरलीधर 

एबीएन एडिटोरियल डेस्क। छात्रों और प्रतियोगी परीक्षार्थियों को भी विधिक अधिकार प्राप्त होते हैं। लेकिन जानकारी के अभाव में अक्सर परीक्षार्थी या विद्यार्थी इनका इस्तेमाल नहीं करते हैं। अगर उन्हें परीक्षा प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी लगे या तय सुविधा न मिले या फिर भेदभाव हो तो वे निश्चित प्लेटफॉर्म पर उसकी शिकायत कर न्याय प्राप्त कर सकते हैं। 

भारत में छात्र और किसी परीक्षा को देने वाले परीक्षार्थी अपनी पढ़ाई और परीक्षा के संबंध में कई तरह के कानूनी और संवैधानिक अधिकारों के मालिक होते हैं। लेकिन ज्यादातर को इस सबके बारे में पता नहीं होता। तो जानना उपयोगी है कि छात्रों और प्रतियोगी परीक्षार्थियों के विधिक और संवैधानिक अधिकार क्या-क्या होते हैं और उन्हें कैसे नीतिगत सुरक्षा में बांटा जा सकता है। परीक्षा प्रक्रिया में गड़बड़ी लगे तो पहले ये कदम उठायें। 

आनलाइन शिकायत करायें दर्ज 

अगर छात्रों या विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाएं देने वाले परीक्षार्थियों को परीक्षा प्रक्रिया में किसी गड़बड़ी का अहसास हो। जैसे उन्हें लगे कि पेपर लीक हो गया है या जो परिणाम आया है, वो गलत है या किसी भी तरह की परीक्षा में पारदर्शिता की कमी है, तो वे शिकायत करने और अपनी शिकायत के संबंध में न्याय पाने के लिए ये कदम उठा सकते हैं। सबसे पहले वे परीक्षा की आयोजक संस्था, चाहे वह यूपीएससी हो, एसएससी हो, एनटीए हो या पीएससी हो, आधिकारिक शिकायत प्रणाली यानी पोर्टल आदि पर आनलाइन शिकायत दर्ज कराएं। अगर उन्हें इसका पता नहीं है तो परीक्षा भवन में स्थित प्रबंधक के कार्यालय से इसकी जानकारी हासिल कर सकते हैं। 

आरटीआई आवेदन या ट्रिब्यूनल में केस 

परीक्षा में गड़बड़ी लगे तो दूसरे कदम के रूप में परीक्षार्थी अपने ओएमआरसी या आंसर शीट अथवा मार्किंग विवरण मांगने के लिए आरटीआई आवेदन कर सकते हैं। जबकि तीसरे चरण के रूप में ये छात्र अगर इन्हें लगता है कि पहले दो कदमों से उन्हें संतोषजनक जवाब नहीं मिला, तो वे हाईकोर्ट में पिटीशन अनुच्छेद 226 के तहत या सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में केस दायर कर सकते हैं, इसका उन्हें कानूनी हक है और चौथे व अंतिम कदम के रूप में पेपर लीक आदि के लिए सीबीआई/ईडी जांच की मांग की जा सकती है। 

अगर कॉलेज या स्कूल में समस्या हो 

ऐसी स्थिति में पहले कदम के रूप में उस संस्थान की जहां से आपका संबंध हो, ग्रीवांस रिड्रेसल सेल्फ/यूजीसी कम्पलेंट पोर्टल पर शिकायत करें। दूसरे कदम के रूप में राज्य शिक्षा विभाग या विश्वविद्यालय में इसकी लिखित शिकायत करें। तीसरे कदम के रूप में अगर छात्र पर मानसिक उत्पीड़न/ हिंसा/ भेदभाव हुआ है तो आईपीसी और एससी/ एसटी एट्रोसीटीज एक्ट जैसे कानूनों के तहत एफआईआर दर्ज करायी जा सकती है। चौथे कदम के रूप में फीस और सुविधाओं से जुड़ी समस्याओं के लिए कंज्यूमर कोर्ट में दस्तक दी जा सकती है। 

अगर दिव्यांग छात्रों को जरूरी सहूलियत न मिलें इसके लिए पहले कदम के रूप में परीक्षा प्राधिकरण/संस्थान से लिखित शिकायत करें कि आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 का पालन नहीं हो रहा। दूसरे कदम के रूप में जिला स्तर पर चीफ कमिशनर फॉर पर्संस विद डिसएबिलिटी को शिकायत भेजें और तीसरे कदम के रूप में जरूरत पड़ने पर हाईकोर्ट में रिट डालकर अतिरिक्त समय स्क्राइब या अन्य सहूलियत की मांग करें। 

परीक्षार्थियों को मानसिक दबाव हो... 

ऐसी स्थिति में पहले कदम के रूप में छात्र या उसके परिजन मेंटल हेल्थ हेल्पलाइन पर संपर्क करें, जो कि 1800-599-7019- किरण हेल्पलाइन है। दूसरे कदम के रूप में मेंटल हेल्थ केयर अधिनियम 2017 के तहत हर छात्र को मुफ्त काउंसलिंग और इलाज का अधिकार है। अगर संस्थान दबाव बना रहा हो, जैसे असंभव टारगेट, भेदभाव, तो पुलिस या शिक्षा विभाग में शिकायत दर्ज करायें। 

अगर रिजल्ट या मेरिट लिस्ट में गड़बड़ हो 

ऐसे में पहले कदम के रूप में आधिकारिक उत्तर कुंजी और कटआफ की कॉपी आरटीआई के जरिये प्राप्त करें। दूसरे कदम के रूप में आवश्यक आंसर शीट का रिवैल्यूएशन मांगें और तीसरे कदम के रूप में स्टे आर्डर या रि-एंग्जाम की मांग की जा सकती है। 

कहां-कहां से मिल सकती है मदद 

विशेषकर प्रतियोगी परीक्षा भर्ती विवादों के लिए आरटीआई पोर्टल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में शिकायत कर सकते हैं। भेदभाव या उत्पीड़न के मामले में नेशनल कमीशन फॉर शिड्यूल कास्ट/ट्राइब/माइनरटीज/वुमन्स, फीस/सुविधा से जुड़े विवाद में कंज्यूमर कोर्ट से मदद मिल सकती है। 

कुछ अन्य अधिकार भी 

भारत में हर छात्र को समान अवसर देना संस्थान की जिम्मेदारी है। चौदह साल तक की उम्र के हर व्यक्ति को मुफ्त शिक्षा का अधिकार है। परीक्षा भर्ती और कॉलेज प्रशासन आदि से जुड़ी सूचनाएं पाने का सबको अधिकार है। भारत में हर छात्र और प्रतियोगी परीक्षार्थी को निष्पक्ष परीक्षा का अधिकार है, उसे समान अवसर व आरक्षण के लाभ का अधिकार है। बता दें कि इस जानकारी को कानूनी मदद, स्रोत के तौरपर नहीं इस्तेमाल किया जा सकता। सिर्फ पाठकों में अपने अधिकारों के प्रति सजगता बढ़ाने के लिए इसका उपयोग संभव है।

Page 2 of 61

Newsletter

Subscribe to our website and get the latest updates straight to your inbox.

We do not share your information.

Tranding

abnnews24

सच तो सामने आकर रहेगा

टीम एबीएन न्यूज़ २४ अपने सभी प्रेरणाश्रोतों का अभिनन्दन करता है। आपके सहयोग और स्नेह के लिए धन्यवाद।

© www.abnnews24.com. All Rights Reserved. Designed by Inhouse