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Published / 2025-03-03 19:03:11
बढ़ते अस्थमा रोग से घटती फेफड़ों की कार्यक्षमता चिंता का विषय बचाव के लिए करे योग-प्राणायाम : योगाचार्य महेश पाल

एबीएन हेल्थ डेस्क। हाल के दिनों में अस्थमा के मरीज बढ़ते जा रहे हैं। योगाचार्य महेश पाल बताते हैं की,भारत में करीब 35 मिलियन लोग अस्थमा से प्रभावित हैं।   अस्थमा को दमा भी कहा जाता है। अस्थमा फेफड़ों में वायुमार्ग से संबंधित एक बीमारी है, विशेषकर इसमें साँस लेने और छोड़ने में तकलीफ महसूस होती है, ब्रोन्कियल ट्यूबों में सूजन हो जाती है, जिसके कारण मांसपेशियों के बीच से हवा पास करने में दिक्कत होती आपके फेफड़ों में कई छोटे-छोटे वायुमार्ग होते हैं, जो हवा से आक्सीजन को छानकर आपके ब्लड में पहुंचाते हैं। 

लेकिन जब वायुमार्ग की परत में सूजन आ जाती है और मांसपेशियों में तनाव होता है, तो अस्थमा के संकेत आपको मिलने लगते हैं। फिर वायुमार्ग में बलगम भर जाती है और सांस लेने में कठिनाई होती है, जिसके कारण छाती में जकड़न और खांसी जैसी स्थिति महसूस होती है। इसे अस्थमा या दमा भी कहते हैं। 

जब अस्थमा होता तो हमारे सामने कई लक्षण नजर आते हैं जिसमें छाती में जकड़न, सांस लेने में परेशानी, थकान बलगम वाली खांसी या सूखी वाली खांसी, एक्सरसाइज के दौरान ज्यादा हालत गंभीर होना, रात के समय स्थिति और गंभीर हो जाना,बार-बार इंफेक्शन होना, हंसते समय खांसी का बढ़ना, जैसे ही हमारे सामने यह लक्षण नजर आते हैं हमें तुरंत प्राथमिक चिकित्सा के रूप योग प्राणायाम प्रारंभ कर देना चाहिए और  डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

योग के अंतर्गत भस्त्रिका प्राणायाम व भुजंगासन का अभ्यास किया जाना चाहिए, भस्त्रिका प्राणायाम के अभ्यास से ब्रोन्कियल ट्यूब में सूजन आने से बचाव होता है जिससे हमें सांस लेने मै कठिनाई नहीं होती है, भुजंगासन के अभ्यास करने से छाती की जकड़न व एलर्जी दूर होती है और यह वायु मार्ग में बलगम भरने से रोकता है।

जिससे हम अस्थमा जैसी गंभीर समस्या से बच्चे रहते हैं, अस्थमा रोग होने के पीछे कई कारण होते हैं जिसमें आनुवंशिक कारण वायरल संक्रमण का इतिहास हाइजीन हाइपोथिसिस, एलर्जी रेस्पिरेटरी इंफेक्शन जैसी स्वास्थ्य स्थितियां, तंबाकू धूम्रपान, खराब लाइफस्टाइल, अव्यवस्थित भोजनचर्या, प्रदूषण अस्थमा रोग हमारी अवस्थित जीवनचार्य वह हर चर्चा के कारण हो जाता है।

तब हमारे शरीर में इससे होने वाले कई अन्य शारीरिक समस्याएं जन्म लेती है जिसमें, फेफड़ों की कार्यक्षमता कम होना, श्वसन तंत्र की विफलता, निमोनिया, और मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। इन सारी समस्याओं से बचाव के लिए और हमारी इम्यूनिटी क्षमता विकसित करने के लिए योग प्राणायाम अति आवश्यक है।

भस्त्रिका प्राणायाम के अभ्यास के लिए सर्वप्रथम हम सुखासन पद्मासन में बैठ जाएं दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें और धीरे-धीरे लंबी गहरी श्वास लें और छोड़ें यह अभ्यास 5 मिनट तक करे, भुजंगासन के अभ्यास के लिए हम पेट के वल लेट जाएं दोनों हाथों को पास में रखते हुए लंबी गहरी सांस खींचते हुए दोनों हाथों को कोहनी तक सीधा रखें और नाभी तक शरीर को उठाए।

फिर आसमान की ओर ऊपर देखें कुछ देर रोककर रखे फिर वापस आ जाए, इससे हमें कई शारीरिक व मानसिक लाभ प्राप्त होते हैं, हमें हमारे दिनचर्या में योग प्राणायाम को अवश्य शामिल करना चाहिए, जिससे हम अस्थमा सहित अन्य बीमारियों से हम बचे रहे।

Published / 2025-02-26 21:10:54
योग आध्यात्मिक चरम व भगवान शिव की शरण में पहुंचने का उत्तम मार्ग : योगाचार्य महेश पाल

एबीएन हेल्थ डेस्क। भगवान शिव राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के प्रतीक माने जाते हैं, योगाचार्य महेश पाल बताते है कि भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करने का विशेष अवसर है। महाशिवरात्रि, जो भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन का दिन माना जाता है।  इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं और महाशिवरात्रि का व्रत रखने से पापों का नाश होता है। मानसिक शांति, आध्यात्मिक ऊर्जा और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। 

प्रतिवर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है, योग विद्या मै भगवान शिव को आदियोगी आदि गुरु  आदि नामो से जाना जाता है। भगवान शिव द्वारा माता पार्वती को योग की विद्या का ज्ञान दिया, जिसको संकलित हठयोगीक ग्रंथ शिवसंहिता में किया गया। जिसमें योग ज्ञान का वर्णन, नाड़ी संस्थान का वर्णन करने के साथ ही पांच प्राण उप प्राण का वर्णन, आसन व प्राणायाम व मुद्रा और साधक की घट परिचय निष्पत्ति आदि अवस्था का वर्णन मिलता है। 

आगे इसमें साधक के प्रकार व सप्त चक्र किस तरह हमारे जीवन में उपयोगी हैं। उसका विस्तार से माता पार्वती जी को भगवान शिव द्वारा बताया गया है। सामान्य मानव जीवन के लिए योग आवश्यक है। योग के द्वारा मानव अपने मन व इंद्रियों को स्थिर कर स्वयं को संसार के सभी बंधनों से मुक्त कर सकता है और धर्म की राह पर आगे बढ़कर योग द्वारा अपनी चेतना को विकसित कर अपने जीवन के उद्देश्य को पूर्ण करने में सफल हो जाता है। 

ध्यान के बारे में बताया गया है कि मस्तक में जो शुभ्र-वर्ण का कमल है। योगी प्रभात-काल में उस पदम में गुरू का ध्यान करते हैं कि वह शांत, त्रिनेत्र, द्विभुज है और वह वर एवं अभय मुद्रा धारण किये हुए हैं। इस प्रकार यह ध्यान, गुरू का स्थूल ध्यान है। वही मूलाधार और लिंगमूल के मध्यगत स्थान में कुण्डलिनी सार्पाकार में विद्यमान हैं। इस स्थान में जीवात्मा दीप-शिखा के समान अवस्थित है। 

इस स्थान पर ज्योति रूप ब्रह्म का ध्यान करे। पूर्व जन्म के पुण्य उदय होने पर साधक की कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होती है। यह शक्ति जाग्रत होकर आत्मा के साथ मिलकर नेत्ररंध्र-मार्ग से निकलकर उर्ध्व-भागस्थ अर्थात ब्रह्मरंध्र की तरफ जाती है और जब यह राजमार्ग नामक स्थान से गुजरती है तो उस समय यह अति सूक्ष्म और चंचल होती है। इस कारण ध्यान-योग में कुंडलिनी को देखना कठिन होता है। 

साधक शांभवी-मुद्रा का अनुष्ठान करता हुआ, कुंडलिनी का ध्यान करे, इस प्रकार के ध्यान को सूक्ष्म-ध्यान कहते हैं। इस दुर्लभ ध्यान-योग द्वारा आत्मा का साक्षात्कार होता है और ध्यान सिद्धि की प्राप्ति होती है।योग आध्यात्मिक चरम व भगवान शिव के शरण मैं पहुंचाने का एक माध्यम है। जिसके द्वारा हम भगवान शिव का साक्षात्कार कर पाते और हम समस्त बंधनों से मुक्त होकर हमारी आत्मा उस परम सत्य में लीन हो जाती है।

 महाशिवरात्रि को शिव तत्त्व को आत्मसात करने, नकारात्मक ऊर्जाओं को समाप्त करने और आध्यात्मिक उत्थान प्राप्त करने का सबसे उत्तम अवसर माना जाता है। इसलिए मानव जीवन में योग आवश्यक है योग से हम स्वस्थ रहते हैं और आध्यात्मिक के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए अपनी आत्मा को परमात्मा में लीन कर देते हैं जिससे कि हमारे जीवन के उद्देश्य पूरा हो जाता, इसलिए हमें हमारी दिनचर्या में योग को जरूर स्थान देना चाहिए।

Published / 2025-02-19 21:18:26
राज अस्पताल रांची के आपातकालीन विभाग को मिली एनएबीएच की मान्यता

टीम एबीएन, रांची। नेशनल एक्रिडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (एनएबीएच) ने राज अस्पताल  के आपातकालीन विभाग को एनएबीएच की मान्यता दी। बोर्ड ने  राज अस्पताल  के आपातकालीन विभाग का मूल्यांकन किया है, और पाया कि यह एनएबीएच बोर्ड के सभी मानकों का बखूबी अनुपालन करता है। 

राज हॉस्पिटल, रांची के प्रबंध निदेशक डॉ बीरेंद्र कुमार ने कहा कि एनएबीएच की मान्यता भारत में आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं सहित अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए मानक निर्धारित करता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अस्पताल स्वास्थ्य सेवाओं में सर्वोत्तम गुणवत्ता और सुरक्षा के मानकों को पूरा कर सकें। वर्तमान में एनएबीएच कि मान्यता भारत में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए उच्चतम बेंचमार्क मानक हैं। 
आपातकालीन विभाग के प्रमाणीकरण के लिए निर्धारित किये गये मानक आपातकालीन विभाग में भर्ती मरीजों को गुणवत्तापूर्ण देखभाल और सुरक्षा के लिए रूपरेखा प्रदान करते हैं। 

ये मानक किसी संगठन को उनकी सेवाओं के विभिन्न पहलुओं में निरंतर गुणवत्ता बनाये रखने में मदद करते हैं। उनका लक्ष्य देश में न्यायसंगत, सुरक्षित और उच्च गुणवत्ता वाली आपातकालीन चिकित्सीय सेवाएं स्थापित करना है, जिससे मरीजों को इलाज के सर्वोत्तम परिणाम मिल सकें। 

आपातकालीन विभाग के प्रमुख चिकित्सक डॉ. श्याम प्रसाद (एम डी, एम ई एम) ने कहा कि 255 विभिन्न उद्देश्यों एवं 49 गुणवत्ता मानकों के कठोर निरीक्षण प्रक्रिया के बाद, राज अस्पताल को यह मान्यता प्रदान किया गया है, जिसके बाद राज अस्पताल का यह आपातकालीन विभाग एनएबीएच की गुणवत्ता मान्यता प्राप्त करने वाला झारखंड का पहला और एकमात्र अस्पताल बन गया है। उन्होंने यह भी कहा कि राज अस्पताल, रांची को पहले ही अस्पताल के लिए एनएबीएच की 5वें संस्करण की पूर्ण मान्यता मिल चुकी है और एनएबीएच इमरजेंसी के साथ हमारा अस्पताल यह उपलब्धि हासिल करने वाला पूरे झारखंड राज्य में एकमात्र अस्पताल बन गया है। 

उन्होंने यह भी कहा कि राज अस्पताल के आपातकालीन विभाग में 10 बेड हैं जो मरीज की इलाज  एवं देखभाल के लिए उन्नत तकनीक, हर तरह की जाँच, आक्सीजन लाइन, आवश्यक दवाओं और मरीजों की उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सीय देखभाल के लिए आवश्यक उपकरणों से सुसज्जित हैं। वैसे मरीज जो गंभीर रूप से बीमार है उनको भी तत्काल चिकित्सीय सहायता देने के लिए आपातकालीन विभाग में वेंटिलेटर तक की भी सुविधा उपलब्ध है। डॉ श्याम ने बताया कि हमने आपातकालीन विभाग में ही, गंभीर एवं समय-संवेदनशील बीमारियों  से पीड़ित मरीजों जैसे की सड़क यातायात में दुर्घटनाग्रस्त, मस्तिष्क स्ट्रोक, दिल का दौरा, सेप्सिस इत्यादि का इलाज किया है। 

कई बार हमने ऐसे मरीजों को थ्रोम्बोलाइज किया है जिन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ था और इससे मरीज की जान बच गई और उन्हें जल्दी से ठीक होने में मदद मिली। एनएबीएच द्वारा निर्धारित मानक यह सुनिश्चित करेंगे कि अस्पताल गंभीर रूप से बीमार या घायल सभी रोगियों के लिए सुरक्षित, प्रभावी और समय पर देखभाल प्रदान करे। 

राज अस्पताल के सीईओ- साहिल गंभीर ने कहा कि राज अस्पताल शहर का 30 साल से अधिक पुराना कॉपोर्रेट अस्पताल है और मेरी हमेशा से यह इच्छा रही है कि जब गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल में सर्वोत्तम मानक स्थापित करने की बात आती है तो हमारा संगठन इस क्षेत्र में अग्रणी रहे। फरवरी 2023 में जब हमारे अस्पताल को एनएबीएच की, 5वां संस्करण पूर्ण मान्यता प्रदान किया गया तो हमने अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित की और हमारे आपातकालीन विभाग को एनएबीएच की मान्यता हमारी एक और उपलब्धि है। वर्तमान में राज अस्पताल, रांची में 25 से अधिक चकित्सिय विभाग एवं 8 अति विशिष्ट  चकित्सिय सेवाएं उपलब्ध है जहां हम मरीज को उचित मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण उपचार और देखभाल प्रदान करते हैं। हमारा अस्पताल 24 घंटे सातों दिन उन्नत जांच की सेवाओं, ए एल एस, फार्मेसी और विशेषज्ञ देखभाल से सुसज्जित है। हम आर्थिक और नैतिक दोनों तरीकों से इस क्षेत्र में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 

इतना ही नहीं, इस क्षेत्र में एक प्रमुख संस्थान के रूप में हम शिक्षा पर भी अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और उन डॉक्टरों के लिए जो आपातकालीन चिकित्सा के क्षेत्र में बेहतर करना चाहते है उनके लिए  केवल आपातकालीन चिकित्सा पर केंद्रित 3 वर्षो का मास्टर्स इन इमरजेंसी मेडिसन (एमईएम) कार्यक्रम सफलतापूर्वक चला रहे हैं जिसे (सोसाइटी आफ इमरजेंसी मेडिसिन इन इंडिया (एसईएमआई) के द्वारा मान्यता प्राप्त है।

Published / 2025-02-19 21:15:22
माइग्रेन रोग बन सकता है हार्टअटैक व डिप्रेशन का कारण : योगाचार्य महेश पाल

बचाव के लिए करें अनुलोम विलोम प्राणायाम  

एबीएन हेल्थ डेस्क। आज के समय में बदलते लाइफ स्टाइल और अनहेल्दी डाइट कई बीमारियों की जड़ मानी जाती है। लोग काम के चक्कर में न समय से खा पाते हैं, ना हीं चैन से सो पाते हैं। साथ ही दिन का ज्यादातर समय  स्क्रीन पर ही बिताते हैं, जैसे- मोबाइल, लैपटॉप या टेलीविजन। इन्हीं में एक है माइग्रेन की बीमारी, जिसे अधकपारी के नाम से भी जानते हैं। 

योगाचार्य महेश पाल बताते है कि माइग्रेन एक बहुत ही आम न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, माइग्रेन एक तरह का सिरदर्द होता है, जो आमतौर पर सिर के आधे हिस्से में होता है। यह मस्तिष्क में तंत्रिका तंत्र के विकारों के कारण होता है। इस बीमारी में अक्सर सिर में हल्का और तेज कष्टदायी दर्द होता है।लेकिन यह आम सिरदर्द से काफी अलग होता है। 

यह दर्द किसी भी समय हो सकता है, जिसे बर्दाश्त कर पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। माइग्रेन ग्रीक शब्द हेमिक्रेनिया से लिया गया है, जिसे गैलेन ने 2000 ई. में दिया था। इस रोग से पूरे वैश्विक स्तर पर 14.4% और भारत में 17-18% लोग ग्रस्त है और यह संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है माइग्रेन होने से पहले हमें कई लक्षण हमारे सामने नजर आते हैं जिसमें आंखो के आगे काला धब्बा दिखना, त्वचा में चुभन महसूस होना,कमजोरी लगना, आंखों के नीचे काले घेरे,ज्यादा गुस्सा आना, चिड़चिड़ापन होना, सिर के एक ही हिस्से में दर्द होना, प्रकाश और ध्वनी के प्रति संवेदनशीलता बढ़ना आदि माइग्रेन रोग कई प्रकार के होता है।

क्रोनिक माइग्रेन में हर महिने 15 दिन से ज्यादा समय तक दर्द शामिल होता है। पीरियड्स माइग्रेन यह माइग्रेन पीरियड्स के दौरान महसूस होता हैं। एब्डोमिनल माइग्रेन 14 साल के कम उम्र के बच्चों को होता है, जो आंत और पेट के अनियमित कार्य की वजह से हो सकता है। वेल्टिबुलर माइग्रेन में गंभीर चक्कर आते हैं। हेमिप्लेजिक माइग्रेन में शरीर के एक तरफ अस्थाई रूप से कमजोरी हो जाती है। माइग्रेन की समस्या से ग्रस्त होने के पीछे कई कारण सामने नजर आए है।

जिसमें शरीर हाइड्रेट नहीं रहना, ज्यादा चिंता करना, आवश्यकता से ज्यादा तनाव लेना, महिलाओं में हार्मोनल बदलाव तेज प्रकाश, तेज ध्वनी, नींद में बदलाव करना,सिगरेट और शराब पीना, अवस्थित दैनिक दिनचर्या व आहारचर्या माइग्रेन की समस्या से बचाव में योग प्राणायाम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और तंत्रिका तंत्र के विकारों को ठीक करने में मदद करता है मस्तिष्क में आॅक्सीजन के प्रवाह को बढ़ाता है जिससे हम माइग्रेन की समस्या से बचाव करने मैं सक्षम बनते हैं।

अनुलोम विलोम प्राणायाम शरीर में सांसों की क्रियाओं पर नियंत्रण करता है।अनुलोम विलोम प्राणायाम से शरीर के सभी अंगों में शुद्ध आॅक्सीजन का संचार होता है, खासतौर पर गर्दन और मस्तिष्क में। इससे माइग्रेन के अटैक या सिरदर्द की समस्या को काफी हद तक रोका जा सकता है। अनुलोम विलोम प्राणायाम के अभ्यास के लिए सर्वप्रथम सुखासन या पद्मासन में बैठ जाए बांयी नासिका से सांस ले दायीं नासिका से सांस छोड़ दें फिर दांयी नासिका से सांस ले और बांयी नासिका से सांस छोड़ दें इस प्रकार 5 से 10 मिनट तक यह अभ्यास दोहराते रहे।

अगर हम माइग्रेन रोग का समय पर रोकथाम नहीं कर पाते हैं तो हमें कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है  जिसमें माइग्रेन शरीर के ब्लड सकुर्लेशन को प्रभावित करता है, जिसके कारण हार्ट अटैक जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यह मानसिक तनाव का कारण भी बनता है, जिसके कारण व्यक्ति को डिप्रेशन चला जाता है। यदि ओकुलर माइग्रेन हो तो यह आपकी आखों को नुकसान पहुंचा सकता है।

आंखों में खून का बहाव कम हो सकता है।माइग्रेन में एंग्जायटी के कारण अनिद्रा की भी समस्या हो सकती है। इसलिए माइग्रेन वह अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचाव के लिए योग प्राणायाम प्रभावी चिकित्सा उपाय है इसको हमें हमारी दिनचर्या में अवश्य शामिल करना चाहिए जिससे हम विभिन्न प्रकार के रोगों से बचे रहे और स्वयं व अपने परिवार को योग ऊर्जा से ऊजार्वान बनाए रखें।

Published / 2025-02-08 15:08:13
युवाओं में बढ़ता साइनस रोग बचाव के लिए करे नेति यौगिक क्रिया : योगाचार्य महेशपाल

एबीएन हेल्थ डेस्क। अभी हाल ही में देखने में आया है कि साइनस रोग दिन प्रतिदिन युवाओं में अधिक संख्या में बढ़ता जा रहा है जिसके कारण सिर दर्द वार वार छीकें आना, सर्दी-जुखाम की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।

यह रोग सर्दियों के समय सबसे ज्यादा घातक हो जाता है, नेति षट्कर्म नासिका मार्ग को साफ करने और शुद्ध करने की प्रक्रिया है, जिसमें गुनगुना नमकींन जल, सूत्र (धागा) दूध और घी का प्रयोग किया जाता है, जिससे साइनस में जमा हुआ मैल बाहर निकलता है और संतुलित श्वास को बढ़ावा मिलता है। योगाचार्य महेश पाल बताते हैं की नेति हठयोग में वर्णित एक महत्वपूर्ण शरीर शुद्धि योग क्रिया है। नेति, षटकर्म का महत्वपूर्ण अंग है।

नेति मुख्यत: सिर के अन्दर वायु-मार्ग को साफ करने की क्रिया है। हठयोग प्रदीपिका और घेरंड सहिता में नेति के बहुत से लाभ वर्णित हैं। नेति के मुख्यत: दो रूप हैं : जलनेति तथा सूत्रनेति। जलनेति में जल का प्रयोग किया जाता है; सूत्रनेति में धागा या पतला कपड़ा प्रयोग में लाया जाता है जलनेति में पानी से नाक की सफाई की जाती है और आपको साइनस, सर्दी, जुकाम, पोल्लुशन इत्यादि से बचाता है।

जलनेति में नमकीन गुनगुना पानी का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें पानी को नेतिपोट से नाक के एक छिद्र से डाला जाता है और दूसरे से निकाला जाता है। फिर इसी क्रिया को दूसरी नॉस्ट्रिल से किया जाता है। अगर संक्षेप में कहा जाए तो जलनेति एक ऐसा यौगिक क्रिया है जिसमें पानी से नाक की सफाई की जाती है और नाक संबंधी बीमारीयों से आप निजात पाते हैं। जलनेति दिन में किसी भी समय की जा सकती है। 

यदि किसी को जुकाम हो तो इसे दिन में कई बार भी किया जा सकता है। इसके लगातार अभ्यास से यह नासिका क्षेत्र में कीटाणुओं को पनपने नहीं देती।सूत्र नेति में, गीली डोरी या पतली सर्जिकल ट्यूबिंग की लंबाई को सावधानीपूर्वक और धीरे से नाक के माध्यम से मुंह में डाला जाता है। फिर छोर को मुंह से बाहर निकाला जाता है और दोनों सिरों को एक साथ पकड़कर बारी-बारी से डोरी को नाक और साइनस से अंदर और बाहर खींचा जाता है।

इसका उपयोग नाक को साफ करने और नाक के पॉलीप्स को हटाने के लिए भी किया जाता है ।सूत्र नेति एक नाक साफ करने वाला योगाभ्यास है जिसमें नाक के क्षेत्र और बाहरी श्वसन क्षेत्रों को नरम धागे की मदद से साफ किया जाता है। नेति योग क्रिया का अभ्यास योग गुरु या योगाचार्य के मार्गदर्शन मैं ही किया जाना चाहिए, साइनस नाक के आसपास चेहरे की हड्डियों के भीतर नम हवा के रिक्त स्थान हैं, जिन्हें वायुविवर या साइनस (sinus) कहते हैं। 

साइनस पर उसी श्लेष्मा झिल्ली की परत होती है, जैसी कि नाक और मुँह में। जब किसी व्यक्ति को जुकाम तथा एलर्जी हो तो साइनस ऊतक अधिक श्लेष्म बनाते हैं एवं सूज जाते हैं। साइनस का निकासी तंत्र अवरुद्ध हो जाता है एवं श्लेष्म इस साइनस में फँस सकता है। बैक्टीरिया, कवक एवं वायरस वहाँ विकसित हो जाते हैं तथा वायुविवरशोथ या साइनसाइटिस रोग (Sinusitis) का कारण बन जाते हैं।

वायुविवरशोध साइनसाइटिस की रोकथाम के लिए नेति योग क्रिया का अभ्यास किया जाता है जिससे नासिका के अंदर बैक्टीरिया, कवक वायरस विकसित न हो और हम साइनस रोग से बच्चे रहे नैति क्रिया जिसमें जल नेति, सूत्र नैति के द्वारा बैक्टीरिया फंगस और वायरस को साफ किया जाता है अगर कोई रोगी साइनस रोग से ग्रसित हैं वह भी निरंतर नेति क्रिया से धीरे-धीरे ठीक हो जाता है नैति क्रिया के अभ्यास से शरीर पर कई लाभ देखे गये, जिसमें  जुकाम और कफ  कान, आंख, गले  सिर दर्द, तनाव, क्रोध आदि समस्याओं मैं लाभकारी है।

यह गले की खराश, टॉन्सिल्स और सूखी खांसी एवं आंसू नलिकाओं को साफ करने में मदद करता है, जिससे दृष्टि स्पष्ट होती है और आंखों में चमक आती है। नाक के मार्ग को साफ करता है जिससे गंध की अनुभूति में सुधार होता है, नैति क्रिया के अभ्यास से संबंधित कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए, जलनेति के बाद नाक को सुखाने के लिए भस्त्रिका प्राणायाम व अग्निसार क्रिया का अभ्यास करे इस योग क्रिया को करते समय मुंह से ही सांस लेनी चाहिए।

अभ्यास खाली पेट सुबह किया जाना चाहिए इस तरह नैति योगक्रिया षट्कर्म के अभ्यास से हमारे आंखों में चमक आती है और हमारे चेहरे का ओज और तेज बढ़ता है और संपूर्ण शरीर स्वस्थ बनता है और शरीर मै स्फूर्ति का विकास होता है, हमारी दैनिक दिनचर्या मैं एक हफ्ते में एक बार नेति योग क्रिया का अभ्यास जरूर करना चाहिए जिससे हम विभिन्न प्रकार के आंख नाक कान गले  से संबंधित रोगों से हम बच रहे हैं।

Published / 2025-02-01 18:49:00
बोर्ड परीक्षा के समय तनाव व अनिद्रा की समस्या बच्चों के लिए बन सकता है, खतरा बचाव के लिए करें योग-प्राणायाम : योगाचार्य महेश पाल

एबीएन हेल्थ डेस्क। अभी हाल ही मैं बोर्ड परीक्षाएं प्रारंभ होने जा रही है। इस समय विद्यार्थियों को तनाव, डिप्रेशन, अनिद्रा एवं स्वास्थ्य संबंधी बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। योगाचार्य महेश पाल बताते हैं कि परीक्षा के दिनों में जहां विद्यार्थियों से सबसे अच्छे अंक लाने की ज्यादा अपेक्षा की जाती है। वहीं माता-पिता को अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की चिंता सताती है। 

परीक्षा के समय पैदा हुए ऐसे माहौल से बच्चों में मानसिक दबाव इतना बढ़ जाता है कि कभी-कभी वे परीक्षा ही नहीं दे पाते या फेल हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप कई बच्चे अवसाद (डिप्रेशन) में चले जाते हैं। यहां तक कि कुछ बच्चे आत्महत्या तक कर लेते हैं। 

बीते सालों में ऐसी कई घटनाएं सामने आयी हैं, जिनमें परीक्षा में खराब प्रदर्शन या अच्छे अंकों से पास नहीं होने की वजह से बच्चों ने गलत कदम उठाये, ऐसे में परीक्षा के दौरान होने वाले तनाव के कारणों से होता है। ऐसे कई कारण हमारे सामने नजर आये है जिसमें, माता- पिता कई बार अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चों से करने लगते हैं। इसका बच्चे के मस्तिष्क पर गलत प्रभाव पड़ता है। 

ऐसे में माता-पिता और रिश्तेदारों की महत्वाकांक्षाओं पर खरा न उतरने पर विद्यार्थियों का आत्मविश्वास कम हो सकता है। इसका सीधा असर परीक्षा प्रदर्शन पर पड़ता है,  कई बार विद्यार्थी अपने दोस्तों व अन्य सहपाठियों से प्रतियोगिता करने लगता है। ऐसे में अगर परीक्षा में कम अंक आयें, तो दोस्त विद्यार्थी का मजाक बनाते हैं। वहीं, फेल होने पर दोस्तों से अलग होने का डर भी हो जाता है। 

एग्जामोफोबिया - मतलब परीक्षा का डर। कई विद्यार्थियों परीक्षा को लेकर यही सोचते हैं कि वे अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायेंगे। उन्हें हर समय परीक्षा से जुड़े बुरे विचार ही मन में आते हैं। इस कारण वे परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते। अधिक नींद आना या बिल्कुल भी नींद न आना, याददाश्त को मजबूत करने के लिए अच्छी नींद बेहद जरूरी है, जो परीक्षा के तनाव में बच्चे नहीं लेते हैं। 

कुछ विद्यार्थी इस दौरान बिल्कुल नहीं सोते हैं तो कुछ बहुत अधिक सोते हैं। परीक्षा में अच्छे प्रदर्शन करने के लिहाज से ये दोनों स्थितियां सही नहीं हैं। इन सभी कारणों को देखते हुए बोर्ड परीक्षा के समय विद्यार्थियों को तनाव डिप्रेशन अनिद्रा की समस्या से बचाव के लिए योग प्राणायाम अति आवश्यक है। 

हमारी दैनिक दिनचर्या में योग अभ्यास महत्वपूर्ण योगदान देता है, जिसमें हम सूर्य नमस्कार, वृक्षासन, ताड़ासन, अर्ध ताड़ासन, भुजंगासन, शसकासन, उष्ट्रासन, सर्वांगासन, अनुलोम-विलोम, नाड़ी शोधन प्राणायाम, चंद्रभेदी प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम और आज्ञा चक्र पर ध्यान, योग के माध्यम से तनाव मुक्त रहकर बोर्ड परीक्षा में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकते हैं। 

  • सूर्य नमस्कार : सूर्य नमस्कार का अभ्यास संपूर्ण शरीर को लचीला बनाता है। इसके अभ्यास से पाचन-तंत्र दुरुस्त रहता है। यह शरीर को डिटॉक्स करता है। 
  • ताडासन : लाभ-ताड़ासन के अभ्यास से शारीरिक और मानसिक संतुलन बना रहता है। ताड़ासन करने से पाचन तंत्र सही रहता है। 
    वृक्षासन : सीधे खड़े होकर दायें पैर को उठा कर बायें जंघा पर इस प्रकार रखें कि पैर का पंजा नीचे की ओर तथा एड़ी जंघा के मूल में लगी हुई हो। दोनों हाथों को नमस्कार की स्थिति मे सामने रखे यह आसान एकाग्रता बढ़ाने में मदद करता है। 
  • भुजंगासन : पेट के अंगों को उत्तेजित करता है भुजंगासन तनाव और थकान को दूर करने में मदद करता है। 
  • अनुलोम-विलोम प्राणायाम : इसके अभ्यास से तनाव और चिंता, अनिद्रा की समस्या को ठीक करता है यह पूरे शरीर में शुद्ध आॅक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाता है। 
  • भ्रामरी : यह आपके मस्तिष्क को शांत बनाए रखने में मदद करता है। भ्रामरी प्राणायाम रक्तचाप को नियंत्रित करता है, जिससे हाई ब्लड प्रेशर से राहत मिलती है। यह तनाव को दूर करता है, बेहतर नींद के लिए इसे रात्रिकालीन नियमित योग के रूप में शामिल किया जाता है। 
  • ध्यानयोग : ध्यान योग करने के लिए कमर गर्दन सीधी करके बैठ जायें। दोनों आंखों को बंद कर ले दोनों भौहों के बीच में आज्ञा चक्र पर अपना पूरा ध्यान लगायें। श्वास की गति सामान्य रखें। इसके अभ्यास से नींद की समस्या, अनिद्रा तनाव, चिंता भय को समाप्त करता है। 

इन सभी योग अभ्यास के माध्यम और एक अच्छी दिनचर्या व संतुलित आहारचर्या से विद्यार्थी अपने आप को पूर्णता चिंतामुक्त तनावमुक्त रहकर अपनी परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन कर सकता है। योग से विद्यार्थी का आत्मविश्वास बढ़ता है, जिससे बह हर समस्या से बाहर निकलने में सक्षम बनता है। इसलिए हमें योग को अपनी दिनचर्या में जरूर स्थान देना चाहिए।

Published / 2025-01-23 23:02:03
क्या आप भी टॉयलेट में यूज करते हैं फोन, तो हो जायें सावधान

राजकुमारी पाण्डेय

एबीएन हेल्थ डेस्क। टॉयलेट सीट पर मोबाइल फोन चलाने से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती है। इसलिए, टॉयलेट सीट पर मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए।

टॉयलेट सीट पर मोबाइल फोन चलाने से होने वाले नुकसान

  • टॉयलेट में बैठकर लंबे समय तक मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने से पेल्विक फ़्लोर की मांसपेशियां कमज़ोर हो सकती हैं।
  • टॉयलेट में मोबाइल फोन चलाने से बवासीर जैसी समस्या हो सकती है।
  • टॉयलेट में मोबाइल फोन चलाने से आंतों से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।
  • टॉयलेट में मोबाइल फोन चलाने से गर्दन और रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ सकता है।
  • टॉयलेट में मोबाइल फोन चलाने से पीठ दर्द, गर्दन में खिंचाव, और असुविधा हो सकती है।
  • टॉयलेट में मोबाइल फोन चलाने से स्वच्छता संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
  • टॉयलेट में मोबाइल फोन चलाने से साल्मोनेला और ई कोलाई जैसे कीटाणु फैल सकते हैं।

Published / 2025-01-18 18:10:07
अल्सर बन सकता है आंतो में कैंसर का कारण : महेश पाल

बचाव के लिए हमेशा करें योग प्राणायाम

एबीएन हेल्थ डेस्क। अल्सर एक प्रकार का घाव या छाला है जो शरीर की अंदरूनी सतहों पर बनता है। योगाचार्य महेश पाल बताते हैं कि  यह आमतौर पर पेट की अंदरूनी परत, छोटी आंत या ग्रासनली (इसोफेगस) में होता है। पेट में बनने वाला एक्स्ट्रा एसिड गैस्ट्रिक अल्सर का मुख्य कारण है अल्सर का यदि समय पर सही इलाज न किया जाये तो यह आंतों में कैंसर का कारण भी बन सकता है। 

अल्सर तब होता है जब पेट में बनने वाला अम्ल (एसिड) इन आंतरिक सतहों को नुकसान पहुंचाता है, जिससे छाले या घाव हो जाते हैं, जो पेट, आहार नाल या आंतों की अंदरूनी सतह पर विकसित होते हैं, जिस जगह पर अल्सर होता है उसके आधार पर इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे पेट में होने वाले अल्सर को गैस्ट्रिक अल्सर कहा जाता है।

उसी तरह छोटी आंत के अगले हिस्से में होने वाले अल्सर को डुओडिनल अल्सर कहा जाता है, गैस्ट्रिक अल्सर, जिसे पेट का अल्सर भी कहा जाता है, पेट की आंतरिक परत में होने वाला एक घाव या छाला है। यह तब होता है, जब पेट की म्यूकस परत कमजोर हो जाती है और पेट के अम्ल द्वारा क्षतिग्रस्त हो जाती है, अल्सर को बढ़ावा देने के लिए हेलीकोवेक्टर पाईलोरी बैक्टीरिया भी जिम्मेदार माना जाता है।

यह बैक्टीरिया पेट की म्यूकस परत को कमजोर करता है, जिससे पेट का अम्ल (एसिड) आंतरिक परत को नुकसान पहुंचाता है, बही दूसरी और नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स, जैसे कि इबुप्रोफेन, एस्पिरिन और नेप्रोक्सेन का लंबे समय तक या अधिक मात्रा में सेवन करने से अल्सर हो सकता है। ये दवाएं पेट की सुरक्षा करने वाली म्यूकस परत को कमजोर करती हैं। 

जब हम अल्सर से ग्रसित होते हैं तो हमारे सामने कई समस्याओं उत्पन्न होती हैं जिसमें अल्सर से पेट और छोटी आंत की दीवार में छेद हो जाता है इससे पेट की गुहा में गंभीर संक्रमण हो सकता है। आंतरिक रक्तस्राव  रक्तस्राव के कारण धीरे-धीरे रक्त की कमी से एनीमिया हो सकता है, जबकि गंभीर रक्त हानि के लिए रक्त आधान की आवश्यकता हो सकती है।

गंभीर मामलों में खूनी उल्टी, मल में रक्त आना पेप्टिक अल्सर पाचन तंत्र को अवरुद्ध कर देता हैं, जिससे हम बिना किसी संभावित स्पष्टीकरण के आसानी से भरा हुआ महसूस कर सकते हैं, बार-बार सीने में जलन, वजन तेजी से घटने,  गैस बनना, भूख न लगना आदि पेट में अल्सर होने के ही कारण है।

जब हमें यह महसूस होता है कि हमें अल्सर धीरे-धीरे हमारे शरीर में हो चुका है तो उसके कई लक्षण हमारे सामने नजर आते हैं जिसमें रात में, खाली पेट या खाने के कुछ समय बाद तेज दर्द, गैस और खट्टी डकार, उल्टी, पेट के उपरी हिस्से में दर्द, पेट का भारीपन, भूख में कमी, वजन घटना, सुबह-सुबह हल्की मितली, अल्सर होने के पीछे के कारण नजर सामने आते हैं।

जिसमें हेलीकोवेक्टर पाईलोरी बैक्टीरिया, धूम्रपान, अत्यधिक शराब का सेवन, तनाव- चिंता, मसालेदार व तला हुआ भोजन, अवस्थित दिनचर्या व भोजनचर्या आदि, अल्सर व अल्सर से होने वाली समस्याओं से बचाव के लिए योग-प्राणायाम काफी उपयोगी साधन के रूप में है जिससे हम अपने शरीर को अल्सर व अन्य होने वाली बीमारियों से बचा सकते हैं जिसमें अल्सर से बचाव के लिए,पवनमुक्त आसन  यह आपके पेट में जमा होने वाली सभी गैसों से छुटकारा पाने में मदद करता है और अल्सर के प्रभाव से बचाता है। 

अर्द्धमत्येंद्रासन का अभ्यास हेलीकोवेक्टर पाईलोरी बैक्टीरिया के संक्रमण से बचाता है जो अल्सर होने के लिए जिम्मेदार है, नाड़ी शोधन प्राणायाम  तनाव व चिंता से बचाव करता है, कपालभाति के अभ्यास से आंतो को ऊर्जा मिलती है और पाचन तंत्र व कब्ज की समस्या से राहत मिलती है, यह अभ्यास  आंतो को स्वस्थ बनाता है, यदि हमें कोई गंभीर शारीरिक रोग है तो उसके लिए योग अभ्यास के द्वारा हम धीरे-धीरे ठीक कर सकते हैं लेकिन योग अभ्यास योगाचार्य, योग गुरु के ही मार्गदर्शन में ही किया जाये, जिससे हमें योग का पूरा लाभ मिल सके।

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