एबीएन हेल्थ डेस्क। वर्तमान समय की व्यस्त दिनचर्या व हमारे खानपान में आये बदलाव के कारण हम कई गंभीर समस्याओं से घिरते जा रहे हैं, उन्हें में से एक है चाय। चाय हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालती है। चाय के नुकसान के बारे में योगाचार्य महेश पाल बताते कि अगर आप रोजाना सुबह चाय पीते है तो सावधान हो जाइये शायद आपको पता नहीं चाय लोगों को गंभीर रोगों से ग्रस्त कर रही है।
सुबह की शुरुआत अधिकतर लोग चाय के साथ करते हैं, लेकिन यह चाय लोगों को अंदर ही अंदर बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा रही है। उनके स्वास्थ्य को खोखला करती जा रही है। सुबह-सुबह खाली पेट चाय पीना सेहत के लिए खतरनाक होता है। चाय आपके शरीर में पोषक तत्वों को रोकने का काम करती है। चाय उन लोगों के लिए ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है जिन्हें पेट संबंधित परेशानियां रहती है।
सुबह अगर सबसे पहले खाली पेट चाय पी जाये तो यह जहर की तरह असर करती है। चाय में फ्लेवोनोइड्स के साथ केफिन और टेनिंन तत्व पाये जाते हैं और दूध में केसीन नाम का प्रोटीन होता है। जब यह मिलते हैं आपसे मिलकर एक कॉम्प्लेक्स बनाते हैं जो शरीर में फ्लेवोनोइड्स की गतिविधि को कम कर देता है। इससे शरीर को नुकसान होता है।
जैसे कि एंटीआक्सिडेंट की क्षमता कम होना और पाचन तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना, इससे पेट की एसिडिटी बढ़ जाती है। जिससे पेट दर्द, अपच और गैस की समस्या हो जाती है, दूध में मौजूद संतृप्त वसा और कोलेस्ट्रॉल लंबे समय तक अधिक मात्रा मै चाय में सेवन करने पर हृदय स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है। चाय में कैफीन की मात्रा नींद की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है और मानसिक तनाव बढ़ा सकती है।
चाय का अत्यधिक सेवन वजन बढ़ाने में योगदान कर सकता है। वही चाय के अंदर टैनिंन होते हैं जो कि एक तरह का पेनिफेनोल है। टैनिन चाय में पाया जाने वाला एक यौगिक है जो आयरन के अवशोषण को बाधित कर सकता है, जिससे आयरन की कमी हो सकती है। साथ ही स्टमक लाइनिंग को नुकसान पहुंचाता है। साथ ही इससे पेट में एसिड प्रोडक्शन बढ़ता है। दरअसल, हम जो चाय रोजाना पीते हैं, उसमें टैनिन भरपूर मात्रा में होता है।
इसे पीने से न केवल आंतों का स्वास्थ्य खराब होता है बल्कि अन्य बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। चाय में मौजूद टैनिन का लिवर पर इतना बुरा प्रभाव पड़ता है कि इससे सूजन हो सकती है। खाली पेट चाय पीने से गैस, कब्ज एसिडिटी और पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। खाली पेट चाय पीने पर हार्टबर्न यानी सीने में जलन की दिक्कत होती है। इससे अपच और एसिड रिफ्लक्स भी हो सकता है।
हमें लगता है कि एक कप चाय से क्या ही हो जायेगा लेकिन एक कप चाय में भी 10 से 60 प्रतिशत तक कैफीन होता है, जो कोर्टिसोल लेवल्स को अचानक से बढ़ा देता है। यह स्ट्रेस हार्मोन है जिससे फ्रेश महसूस करने के बजाय एंजाइटी महसूस होने लगती है। खाली पेट चाय पीने से दांतों को नुकसान पहुंचता है, इससे दांत सड़ने लगते हैं और मसूड़ों की दिक्कत होने लगती है। इसके अलावा चाय पीने से पेशाब की समस्या हो सकती है।
चाय आपको डिहाइड्रेट कर सकती है सुबह-सुबह खाली पेट चाय पीने से पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है। प्रोस्टेट कैंसर तब शुरू होता है जब प्रोस्टेट में कोशिकाओं के डीएनए में परिवर्तन होता है। कोशिका के डीएनए में निर्देश होते हैं जो कोशिका को बताते हैं कि क्या करना है। स्वस्थ कोशिकाओं में, डीएनए कोशिकाओं को एक निश्चित दर पर बढ़ने और गुणा करने के लिए कहता है।
अत्यधिक चाय पीने से प्रोस्टेट में कोशिकाओं के डीएनए में परिवर्तन होने का खतरा बढ़ने की संभावना अधिक हो जाती है जिससे पुरुषों मै प्रोटेस्ट कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि यह उन पुरुषों को ज्यादा होता है जो दिन में पांच से छह कप चाय पीते हैं लेकिन सुबह खाली पेट पीने से यह खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है। चाय पीने के नुकसान भी बहुत है। चाय में कैफीन के साथ-साथ थियोफिलाइन भी पाया जाता है, जो आपके शरीर में डिहाइड्रेशन का कारण बनता है।
इसकी वजह से कब्ज के साथ कई अन्य परेशानियां भी हो सकती है जिसमें तनाव और चिंता की समस्या अनिद्र, नींद की कमी, एसिडिटी, त्वचा पर मुंहासे, अपच की समस्या, हृदय रोग, चाय में कैफीन और तेज पत्ती अम्ल वाले तत्वों को बढ़ा सकती है, जो आपके शरीर से कैल्शियम को बाहर निकालते हैं। इससे हड्डियां कमजोर हो सकती है।
डायबिटीज का खतरा बढ़ता है, सुबह खाली पेट दूध वाली चाय पीने से इतने सारे हमारे स्वास्थ्य संबंधित नुकसान होते हमें सुबह चाय पीने से बचना चाहिए, फलों का जूस व फल, अंकुरित अनाज, जूस का सेवन करना चाहिए और हमारे दैनिक दिनचर्या में योग प्राणायाम, योग के द्वारा चाय से उत्पन्न हो रही बीमारियों से बचा जा सकता है। जैसे गैस कब्ज हृदय रोग अपच एवं अन्य रोगों से भी बच सकते हैं और हमें हमारे दैनिक दिनचर्या में संतुलित आहार व संतुलित दिनचर्या का पालन करना चाहिए।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। भारत में हर 7 में से 1 व्यक्ति किसी न किसी मानसिक समस्या से जूझ रहा है। फिर भी, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में चुप्पी, शर्म और डर बना हुआ है। लोग डॉक्टर के पास सिरदर्द के लिए तो जाते हैं, लेकिन अंदर के दर्द को छिपा जाते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, डिप्रेशन वर्ष 2030 तक दुनिया में सबसे बड़ी बीमारी बनने जा रही है।
एबीएन हेल्थ डेस्क। योगनिद्रा का अर्थ है आध्यात्मिक नींद, योग निद्रा लें और दिनभर तरोताजा रहें। प्रारंभ में यह किसी योग विशेषज्ञ से सीखकर करें तो अधिक लाभ होगा। योगनिद्रा द्वारा शरीर व मस्तिष्क स्वस्थ रहते हैं। यह नींद की कमी को भी पूरा कर देती है। इससे थकान, तनाव व अवसाद भी दूर हो जाता है। राज योग में इसे प्रत्याहार कहा जाता है। जब मन इन्द्रियों से विमुख हो जाता है। प्रत्याहार की सफलता एकाग्रता लाती है।
योगनिद्रा में से भी हमें एकाग्रता आती है, योग निद्रा ध्यान का मुख्य उद्देश्य शारीरिक मानसिक बीमारियों व समस्याओं का हल करना एवं ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ना है,योगनिद्रा ध्यान का प्रयोग रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, सिरदर्द, तनाव, चिड़चिड़ापन, एकाग्रता, आत्मविश्वास में कमी, भावनात्मक असंतुलन, भय, पेट में घाव, दमे की बीमारी, गर्दन दर्द, कमर दर्द, घुटनों, जोड़ों का दर्द, साइटिका, अनिद्रा, अवसाद और अन्य मनोवैज्ञानिक बीमारियों, स्त्री रोग में प्रसवकाल की पीड़ा में बहुत ही लाभ दायक है।
योगाचार्य महेश पाल ने बताया कि योगनिद्रा ध्यान एक विश्राम तकनीक है, जिसे योगिक नींद भी कहा जाता है। यह एक ऐसी गहरी आराम की अवस्था है, जिसमें व्यक्ति जागते हुए भी गहरी विश्राम की स्थिति में होता है, बिना पूरी तरह से सोए हुए यह जागने और सोने के बीच की स्थिति है, जहां व्यक्ति बाहरी दुनिया से सचेत रहते हुए भी अपने अंदर की शांति और आराम का अनुभव करता है और ईश्वरीय चेतना से जुड़ जाता है।
योगनिद्रा ध्यान के प्रथम चरण में समस्त प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों व समस्याओं से निजात मिलती है, एवं हमारे चारो और धीरे-धीरे सकारात्मक ऊर्जा का घेरा (औरा) विकसित हो जाता है, योगनिद्रा ध्यान के दूसरे चरण में चेतना, अर्धचेतन अवस्था में रहेगी जिसमें स्वयं को स्वंय मैं खोजने का अभ्यास होता है, जिसमे बंद आंखों से अपनी अंत:चेतना से शरीर के बाहरी आवरण एवं अंत:करण को देखने का अभ्यास होता है।
योग निद्रा ध्यान के तीसरे चरण मैं ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ने, ईश्वरीय उच्च चेतना में लीन होने का अभ्यास होता है, यहांं समस्त विचार शून्य हो जाते हैं, योग निद्रा ध्यान का अभ्यास करने से पहले कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना होता है जिसमे अगर आप प्रथम चरण का अभ्यास करने बाले है तो आपको आपकी दैनिक दिनचर्या 7 दिन पहले से सही करनी होगी, योगनिद्रा ध्यान के दूसरे चरण के अभ्यास के लिए 15 दिन पहले से दिनचर्या ठीक करनी होगी।
तीसरे चरण के लिए 21 दिन पहले दैनिक दिनचर्या को ठीक करना होगा तब जाकर हम इसका लाभ लेने मैं सक्षम बनते हैं, हमारी दिनचर्या इस प्रकार होगी योग निद्राध्यान के अभ्यास के पहले सुबह नाश्ते में फल, सलाद और अंकुरित अनाज, जूस ले दोपहर मैं सात्विक भोजन खाये जिसमें चावल, रोटी, हरि सब्जिया, सभी प्रकार की दाल उड़द की दाल को छोड़कर ले सकते हैं, शाम का भोजन सात्विक एवं हलका ले और 4 से 5:30 या 6 बजे तक कर ले।
अगर 5 से 6 बजे तक नहीं खा पाते हैं तो फिर रात्रि मैं भोजन न करे एक गिलास दूध पी सकते हैं, भोजन में लहसुन और प्याज का प्रयोग न करें, उसके पश्चात रात्रि विश्राम 10 बजे तक सो जाए, सोने से पहले सामान्य श्वास - प्रस्वास एवं भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास 5-10 मिनिट जरूरी करके सोये, सुबह 5 बजे उठकर नित्य शौच क्रिया एवं स्नान से फ्री होकर एक गिलास गुनगुने पानी मैं एक चम्मच नींबू एक चम्मच शहद मिलाकर पिए और हल्का योग अभ्यास करे, इससे हमारा संपूर्ण शरीर डिटॉक्स हो जायेगा हमारे मन के विचार संतुलित हो जाएंगे और हम पूर्ण रूप से योग निद्रा ध्यान के लिए तैयार हो जाएंगे, योग निद्रा ध्यान करते समय ढीले और आरामदायक कपड़े पहनें। टाइट या असुविधाजनक कपड़े पहनने से बचें।
एबीएन हेल्थ डेस्क। 19 अप्रैल 2025 को हम 16वां विश्व लिवर दिवस भोजन ही औषधि है। इस थीम के साथ मनाने जा रहे हैं, योगाचार्य महेश पाल बताते हैं कि विश्व लीवर दिवस हर साल 19 अप्रैल को इस दिन का उद्देश्य लीवर के स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाना है और लोगों को लीवर की देखभाल व लीवर महत्व के बारे में जागरूक करना है।
विश्व लीवर दिवस पहली बार 19 अप्रैल, 2010 को मनाया गया था। इसे यूरोपियन एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ द लिवर (ईएएसएल) द्वारा स्थापित किया गया था। ईएएसएल की स्थापना की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में इसे 19 अप्रैल को मनाया जाता है,वर्तमान की व्यस्त दैनिक दिनचर्या व हमारे खान पान में आये परिवर्तन के कारण हमारा लीवर कई सारी बीमारियों से ग्रस्त धीरे-धीरे होता जा रहा है।
लिवर को स्वस्थ बनाने के लिए योग प्राणायाम एक उत्तम विकल्प के रूप में है, आइये हम जाने की लीवर हमारे शरीर में किस प्रकार से काम करता है,लीवर रक्त से विषाक्त पदार्थों को हटाता है, जैसे कि शराब और दवाएं, लीवर पित्त नामक तरल पदार्थ का उत्पादन करता है जो भोजन को पचाने में मदद करता है।
लीवर ग्लूकोज को संग्रहीत करता है और आवश्यकतानुसार रक्त में रिलीज करता है,लीवर रक्त को साफ करने और शरीर में रक्त की मात्रा को नियंत्रित करने में मदद करता है,लीवर प्रोटीन का उत्पादन करता है जो रक्त में रक्त के थक्के और संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं।
लीवर विटामिन और खनिजों को संग्रहीत करता है जो बाद में शरीर द्वारा उपयोग के लिए आवश्यक होते हैं, लीवर हार्मोनों के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है,जो हमारे शरीर की कई प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं,लीवर कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में मदद करता है, जो हृदय स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
एक स्वस्थ लीवर का वजन लगभग 1.2 से 1.5 किलोग्राम के बीच होता है,लीवर पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में पसलियों के पिंजरे के नीचे स्थित होता हैं, हमारे खानपान में आए परिवर्तन के कारण एवं दैनिक दिनचर्या अवस्थित होने के कारण हमारे लीवर से संबंधित कई फंक्शन डिस्टर्ब हो जाते हैं जिसके वजह से लीवर कई रोगों से ग्रस्त हो जाता है, जिसमे है, हेपेटाइटिस (Hepatitis), लिवर में सूजन की स्थिति।
हेपेटाइटिस A, B, और C जैसे वायरल संक्रमण, शराब का सेवन, या ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया के कारण हो सकता है, सिरोसिस लिवर में निशान पड़ने की स्थिति। यह लिवर में सूजन और क्षति के कारण हो सकती है, जिससे लिवर का कार्य प्रभावित होता है, फैटी लिवर रोग, लिवर में वसा का जमा होना। यह शराब के सेवन, मोटापा, और मधुमेह के कारण होता है।
लिवर कैंसर में कोशिकाओं का अनियंत्रित रूप से बढ़ना। यह सिरोसिस या हेपेटाइटिस बी या सी के कारण हो सकता है, लिवर की विफलता लिवर के कार्य में अचानक या धीरे-धीरे कमी होना। यह गंभीर लिवर की बीमारियों या दवाओं के अत्यधिक सेवन के कारण हो सकता है, लिवर की बीमारी के कुछ कारण हमारे सामने नजर आये है जिनमे वायरल संक्रमण, हेपेटाइटिस A, B, और C, अत्यधिक शराब का सेवन, मोटापा और मधुमेह इन स्थितियों से फैटी लिवर रोग हो सकता है।
जब लीवर का कार्य डिस्टर्ब होता या धीरे धीरे लीवर रोगों से ग्रस्त होने लगता हैं तो उसके कुछ लक्षण हमारे सामने नजर आते हैं, पीलिया त्वचा और आंखों का पीला पड़ना,पेट में दर्द, सूजन, और बेचैनी, लगातार थकान या कमजोरी, भूख न लगना, भूख में कमी, पैरों और टखनों में सूजन, खुजली वाली त्वचा, गहरे रंग का मूत्र, पीला मल, आसानी से चोट लगना और रक्तस्राव, अगर अर्ध रात्रि के समय गहरी नींद(12 से 3) में अचानक से हमारी नींद खुलने लगे और यह लगातार हर वीक में दो या तीन बार होता हो तो आप समझ लीजिए आपके लवर से संबंधित कोई बड़ी बीमारी होने वाली है।
लीवर से संबंधित रोगों से बचाव के लिए हमें हमारे दैनिक दिनचर्या व भोजन में परिवर्तन कर योग प्राणायाम को अपने जीवन में स्थान देना चाहिए लीवर से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण योग अभ्यास है, धनुरासन, भुजंगासन, अधोमुख श्वानासन, नौकासन, हलासन, कपालभति, नाड़ी शोधन प्राणायाम।
एबीएन हेल्थ डेस्क। आज के दौर में हम शारीरिक स्वास्थ्य को तो प्राथमिकता देते हैं, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी कर देते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि हम भावनात्मक तनाव को गंभीरता से क्यों नहीं लेते? जब तक कोई बड़ी समस्या न हो, तब तक हम इसे नजरअंदाज करते रहते हैं। लेकिन मानसिक स्वास्थ्य का ख़्याल रखना उतना ही जरूरी है जितना शारीरिक स्वास्थ्य का। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति ही अपने जीवन में संतुलन बना सकता है, बेहतर निर्णय ले सकता है और खुशहाल जीवन जी सकता है।
एबीएन हेल्थ डेस्क। आज दुनियाभर के लोगों में बीमारियों ने अपना घर बना लिया है। लाख जागरूकता के बावजूद लोग इसपर सफलता पाने में असफल हो रहे हैं। जिससे स्थिति दिन-प्रतिदिन भयावह होती जा रही है। इन सबके बीच मानसिक स्वास्थ्य लोगों के बीच आम समस्या बनकर रह गयी है। जिसपर काबू पाना अब बेहद ही जरूरी हो गया है। आज इन्हीं समस्याओं से पार पाने की कोशिश में एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक अदिति भसीन से एबीएन के प्रधान संपादक नंदकिशोर मुरलीधर ने खास बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश...
उत्तर: जब हम बीमार पड़ते हैं, तो डॉक्टर के पास जाते हैं, दवा लेते हैं, आराम करते हैं। लेकिन जब मन थक जाता है, टूट जाता है, तब क्या करते हैं? ज़्यादातर लोग इसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं। मानसिक स्वास्थ्य का मतलब सिर्फ़ मानसिक बीमारियों से बचना नहीं, बल्कि अपनी भावनाओं को समझना, तनाव को संभालना और एक संतुलित जीवन जीना भी है।
उत्तर: पहले इंसान अपनों के साथ बैठकर दिल की बातें करता था, लेकिन आज हमारी दुनिया मोबाइल स्क्रीन में सिमट गई है। सोशल मीडिया पर हम हंसते-मुस्कुराते चेहरों को देखते हैं और अपनी ज़िंदगी से तुलना करने लगते हैं। पढ़ाई, करियर, रिश्तों का दबाव और समाज की उम्मीदें हमें अंदर ही अंदर तोड़ देती हैं। यही कारण है कि डिप्रेशन, एंग्जायटी, और स्ट्रेस जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।
उत्तर: क्योंकि हमें बचपन से यही सिखाया गया कि मज़बूत बनो, रोओ मत, कमज़ोर मत पड़ो। लेकिन क्या कभी किसी ने यह सिखाया कि अगर दर्द हो, तो उसे महसूस करो, अगर कुछ भारी लग रहा है, तो किसी से बात करो? हमारे समाज में मानसिक स्वास्थ्य पर बात करना अभी भी आसान नहीं है, लेकिन हमें इस सोच को बदलना होगा।
उत्तर: सबसे पहले हमें खुद को समझना होगा—क्या चीज़ हमें परेशान कर रही है? क्या हमें वाकई मदद की ज़रूरत है? छोटी-छोटी चीज़ें, जैसे सुबह उठकर थोड़ा ध्यान लगाना, खुद से प्यार करना, सोशल मीडिया से थोड़ा दूर रहना, अपनों से खुलकर बात करना—ये सब हमारी मानसिक सेहत के लिए बहुत ज़रूरी हैं। अगर ज़रूरत लगे, तो किसी मनोवैज्ञानिक या थेरेपिस्ट से मदद लेने में झिझकें नहीं।
उत्तर: EFT (Emotional Freedom Techniques) एक ऐसी तकनीक है जो हमारे शरीर के ऊर्जा बिंदुओं पर टैपिंग करके भावनात्मक तनाव को कम करने में मदद करती है। जैसे जब हमें डर लगता है तो दिल तेज़ धड़कने लगता है, वैसे ही हमारे शरीर में कई जगह भावनाओं का असर पड़ता है। EFT से हम इन भावनाओं को पहचानकर उन्हें ठीक कर सकते हैं, जिससे तनाव और चिंता कम होती है।
उत्तर: मैंने खुद ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं—लोगों का खो जाना, खुद से जूझना, और यहां तक कि कैंसर से भी लड़ना। लेकिन इन अनुभवों ने मुझे सिखाया कि मानसिक शक्ति कितनी ज़रूरी है। मैं बतौर मनोवैज्ञानिक और एडवांस EFT प्रैक्टिशनर लोगों को उनकी भावनाओं को समझने, खुद को अपनाने और अपने दर्द से उबरने में मदद करती हूं। मेरी संस्था Healing Taps With Aditi मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता पर काम कर रही है, ताकि हर किसी को यह समझ आए कि वे अकेले नहीं हैं।
मानसिक स्वास्थ्य सिर्फ़ एक शब्द नहीं, बल्कि हमारे जीने का तरीका है। जब मन हल्का होगा, तभी ज़िंदगी भी खूबसूरत लगेगी। तो खुद से प्यार करें, अपनी भावनाओं को समझें और अगर ज़रूरत हो, तो मदद लेने से न हिचकें। याद रखें—आपकी भावनाएं भी उतनी ही अहम हैं, जितने आप खुद।
एबीएन हेल्थ डेस्क। होली नजदीक आ रही है। रंगों का त्योहार होली पर एक-दूसरे को गुलाल लगाया जाता है, लेकिन कभी-कभी गुलाब से त्वचा पर रिएक्शन हो जाता है जिससे लोग रंगों का इस्तेमाल करने से डरते हैं। वहीं, झारखंड में महिलाओं ने होली के लिए प्राकृतिक विधि से हर्बल गुलाल बनाकर तैयार किया है।
इस साल भी राज्य के बाजारों में झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) के अंतर्गत सखी मंडल की महिलाओं ने पलाश हर्बल गुलाल बनाकर तैयार किया है। विभिन्न जिलों की हजारों महिला उद्यमियों द्वारा इस हर्बल गुलाल का उत्पादन किया जा रहा है। आज से 13 मार्च 2025 तक रांची, हजारीबाग, पलामू, चतरा, रामगढ़, खूंटी और लोहरदगा में पलाश हर्बल गुलाल बिक्री स्टॉल का शुभारंभ किया गया।
सभी जिलों के प्रमुख केंद्रों पर स्टॉल लगाये गये हैं। पलाश हर्बल गुलाल के अलावा यहां रागी लड्डू, हैंडमेड चॉकलेट, कुकीज और अन्य उत्पादों की भी बिक्री की जा रही है। जानकारी के मुताबिक राज्य सरकार के प्रमुख कार्यालय, एफएफपी भवन, सचिवालय (धुर्वा), झारखंड उच्च न्यायालय परिसर, प्रमुख व्यावसायिक स्थल, रांची मॉल, न्यूक्लियस मॉल, स्प्रिंग सिटी मॉल (हिनू), डोरंडा बाजार, अटल वेंडर मार्केट, पैंटालूंस (लालपुर), रिलायंस मॉल (कांके रोड), मोरहाबादी मैदान, एजी मोड़ आदि जगहों पर स्टॉल लगाये गये हैं।
सखी मंडल की महिलाओं ने इस हर्बल गुलाल को पूरी तरह प्राकृतिक सामग्री से तैयार किया है, जो त्वचा के लिए सुरक्षित है। इसमें सूखे हुए पलाश के फूलों का प्रयोग किया गया है। इसमें हरा रंग बनाने हेतु सूखा हुआ पालक साग, गुलाबी रंग बनाने हेतु चुकंदर, पीला रंग बनाने हेतु हल्दी एवं फूल, लाल रंग के लिए फूल का प्रयोग किया गया है और नीले रंग के लिए सिंदूर समेत अन्य प्राकृतिक फूलों और पत्तियों का उपयोग किया गया जो पूर्ण रूप से प्राकृतिक है।
इसे सुगंधित बनाने के लिए प्राकृतिक एसेंस मिलाये गये हैं। इस प्रकार के गुलाल त्वचा को किसी भी प्रकार से नुकसान नहीं पहुंचता। राज्य की ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक स्वावलंबन की ओर बढ़ाने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री द्वारा शुरू किये गये इस अभियान से हजारों ग्रामीण महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है।
एबीएन हेल्थ डेस्क। 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में संयुक्त राष्ट्र ने 1975 में इसे औपचारिक रूप से मान्यता दी, जिससे यह एक महत्वपूर्ण वैश्विक आयोजन बन गया। योगाचार्य महेश पाल बताते है कि यह दिवस केवल जश्न का दिन नहीं, बल्कि आत्ममंथन का भी दिन है।नारी केवल एक शब्द नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि का आधार है। वह जीवनदायिनी है,भारतीय संस्कृति में नारी को शक्ति, ममता, और त्याग का स्वरूप माना गया है।
महिलाओं की भागीदारी को हर क्षेत्र में बढ़ावा देने और महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। यह केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि महिलाओं के संघर्ष और उनके हक की भी लड़ाई की कहानी बयां करता है। इस वर्ष की थीम एक्सीलरेट एक्शन यानी कार्रवाई में तेजी लाना और तेजी से कार्य करना रखी है।
यह थीम हमें बताती है कि महिलाओं को अपने ऊपर बहुत मेहनत और तेजी से काम करने की जरूरत हैं। यह लोगों, सरकारों और संगठनों को महिलाओं के उत्थान, समान अवसर प्रदान करने और भेदभाव समाप्त करने की दिशा में सक्रिय कदम उठाने के लिए प्रेरित करती है। इस दिवस का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की उपलब्धियों को सम्मानित करना और लैंगिक समानता के प्रति जागरूकता फैलाना भी है।
यह दिन महिलाओं के सशक्तिकरण, समाज, अर्थव्यवस्था, संस्कृति और राजनीति में उनके योगदान की पहचान दिलाने के साथ-साथ उनके अधिकारों और अवसरों की वकालत करता है। परिवार, समाज, देश एवं दुनिया के विकास में जितना योगदान पुरुषों का है, उतना ही महिलाओं का है। नया भारत-सशक्त भारत-विकसित के निर्माण की प्रक्रिया में महिलाएं घर परिवार की चार दीवारों को पार करके राष्ट्र निर्माण में अभूतपूर्व योगदान दे रही हैं।
आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, फिर भी कई चुनौतियां उनके सामने खड़ी हैं। जिसमें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और समाज में आज भी घरेलू हिंसा, लैंगिक भेदभाव, शिक्षा में असमानता, दहेज प्रथा, बाल विवाह जैसी बुराइयां मौजूद हैं। वहीं दूसरी और महिलाएं अपने कार्यों में इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि वह अपने स्वास्थ की ओर ध्यान ही नहीं दे पा रही हैं।
वह दिन प्रतिदिन गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से ग्रसित होती जा रही हैं, जिनमें हृदय रोग,किडनी रोग, लीवर के रोग, माइग्रेन, साइनस, हाई ब्लड प्रेशर, लो ब्लड प्रेशर, शुगर (डायबिटीज), अर्थराइटिस (जोड़ों मैं दर्द), मोटापा, डिप्रेशन, लिकोरिया, तनाव, पीसीओडी (PCOD), थायराइड, अस्थमा, चिड़चिड़ापन, गैस, कब्ज, दुबलेपन आदि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बहुत तेजी से महिलाओं में बढ़ रही है।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस जिस प्रकार से महिलाओं के अधिकारों के प्रति उन्हें जागरूक करने का कार्य कर रहा है उसी तरह स्वास्थ्य के प्रति भी उन्हें जागरूक करना पड़ेगा। अगर महिला दिन प्रतिदिन इसी तरह स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से ग्रसित रही तो वह विभिन्न क्षेत्रों में अपने योगदान देने से वंचित हो सकती हैं।
महिलाओं को भी अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग होना पड़ेगा अगर हम पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं है तो हम किसी भी कार्य को अच्छे तरीके से नहीं कर सकते हैं। अपने आप को स्वस्थ रखने का सबसे अच्छा माध्यम है योग प्राणायाम। नारी योग के द्वारा स्वयं को स्वस्थ बनाकर अपने परिवार व समाज को भी स्वस्थ रखने में सक्षम बन सकती हैं।
योग शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि मानसिक स्वास्थ्य एवं विचारों में उच्च गुणवत्ता लाने के साथ भारतीय सनातन संस्कृति व आध्यात्मिक से जोड़ने का कार्य भी करता है। प्रत्येक महिलाओं को अपने जीवन में योग को स्थान देना चाहिए और संतुलित आहार शैली व व्यवस्थित दिनचर्या को जीवन में अपनाना चाहिए, जिससे कि वह विभिन्न प्रकार के रोगों से बचे रहे और अपने लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ते हुए अपने जीवन की उच्च सफलता तक पहुंच सके।
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