एबीएन डेस्क। कोविड-19 को पहले फेफड़ों की बीमारी बताया गया था लेकिन जैसे-जैसे यह महामारी फैलती गयी तो अहसास हुआ कि यह मनुष्य के शरीर के और अंगों में भी फैलती है। कोविड-19 का संबंध त्वचा पर चकत्ते होने, रक्तस्राव विकार और हृदय तथा किडनी को पहुंचने वाली क्षति से रहा है। इससे मस्तिष्क और दिमाग की दिक्कतें भी हो रही हैं। तनाव का करना पड़ सकता है सामना शुरुआत के अध्ययनों से यह डर पैदा हो गया कि आघातों, मस्तिष्क में सूजन और मांसपेशियों के विकार की लहर से स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं ढह जाएंगी। कोरोना वायरस के पूर्व की समीक्षाओं में यह चेतावनी दी गई कि कोविड-19 से उबरने वाले लोगों को तनाव और पीटीएसडी (पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) जैसी मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि इन चिंताओं को साबित या गलत साबित करने के लिए विश्वसनीय आंकड़ें मिलना मुश्किल था। 13,000 से अधिक खंगाले गए दस्तावेज अध्ययन में पाया गया कि कोविड-19 और मस्तिष्क के बीच संबंध के ज्यादातर मामले मरीजों के छोटे, उच्च चयनित समूहों से जुड़े हैं। इससे निपटने के लिए कोविड-19 के तंत्रिका विज्ञान और मनोविज्ञान से संबंधित 13,000 से अधिक दस्तावेज खंगाले गए। इनमें 30 देशों के 1,05,000 लोगों की जानकारी थी। इन अध्ययनों में तंत्रिका-मनोविकार के सबसे आम लक्षण गंध का चले जाना, कमजोरी, थकान और स्वाद में बदलाव था। जिन मरीजों का अध्ययन किया उनमें से 30 प्रतिशत से अधिक में गंध चले जाने और कमजोरी के लक्षण दिखाई दिए। मरीजों में देखी गई अवसाद और बेचैनी मस्तिष्क से संबंधित गंभीर स्थितियां जैसे कि मस्तिष्क में सूजन और प्रतिरक्षा प्रणाली के तंत्रिकाओं पर हमले करने को दुर्लभ रूप से ही मरीजों में देखा गया। बहरहाल अध्ययन में पाया कि कुछ अहम मानसिक बीमारियां जैसे कि अवसाद और बेचैनी कोविड-19 के 25 प्रतिशत मरीजों में देखी गयी। इससे आने वाले वर्षों में मरीजों पर काफी बोझ पड़ सकता है। यहां तक कि काफी कम होने वाली तंत्रिका तंत्र संबंधी बीमारियां जैसे कि आघात भी मरीजों और स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। दिलचस्प बात यह है कि कई लक्षण (मांसपेशियों में दर्द और गंध का चले जाना) असल में उन लोगों में ज्यादा दिखाई दिए जिन्हें ज्यादा गंभीर संक्रमण नहीं था। साथ ही कई लोगों में थकान और सिर में दर्द जैसे लक्षण भी देखे और ये ऐसे मरीज थे जिन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं कराया गया।
रांची। केंद्र सरकार ने कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज में उपयोगी माने जानेवाले रेमडेसिविर इंजेक्शन के अलग-अलग राज्यों के लिए आवंटन जारी किया है। झारखंड को 21 अप्रैल से 23 मई तक के लिए कुल एक लाख छह हजार रेमडेसिविर इंजेक्शन का आवंटन किया गया है। महाराष्ट्र को सबसे ज्यादा 14 लाख 92 हजार रेमडेसिविर इंजेक्शन दिये गये हैं, जबकि बिहार को इस अवधि के लिए कुल 2 लाख इंजेक्शन मुहैया कराये जा रहे हैं। केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने आज 23 मई 2021 तक के लिए किए गए रेमडेसिविर के आवंटन की घोषणा की। उन्होंने कहा कि रेमडेसिविर के उत्पादन और आवंटन में पर्याप्त वृद्धि हुई है और केंद्र सरकार की कोशिश है कि हर राज्य में रेमडेसिविर की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए इसकी पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करायी जाये। केंद्र ने राज्यों को भेजा पत्र, इंजेक्शन वितरण पर रखें निगरानी : फार्मास्युटिकल विभाग और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों को पत्र लिखकर इस आवंटन की जानकारी दी गयी है। पूरे देश के लिए आगामी 23 मई तक के लिए कुल 76 लाख रेमडेसिविर इंजेक्शन उपलब्ध कराये गये हैं।राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को कहा गया है कि दवा के उचित और विवेकपूर्ण उपयोग के अनुरूप इसमें सरकारी और निजी अस्पतालों को शामिल किया जाये। पत्र में यह भी कहा गया है कि इंजेक्शन के वितरण पर उचित निगरानी भी रखी जाये। राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को सलाह दी गयी है कि वे इस आवंटन के अलावा इंजेक्शन चाहती हैं तो संबंधित कंपनियों से पर्याप्त खरीद की मात्रा के लिए शीघ्र आदेश दें। कहा गया है कि राज्य में प्राइवेट सप्लाई के लिए भी को-ऑर्डिनेट किया जा सकता है।
एबीएन डेस्क। कोरोना वायरस से हर उम्र के लोग संक्रमित हो जा रहे हैं। इस महामारी को खत्म करने के लिए फिलहाल जो टीके बनाए गए हैं वे केवल वयस्कों के लिए ही है। हालांकि, जल्द ही बच्चों के लिए भी इस घातक बीमारी से बचने के लिए वैक्सीन आ जाएगी। दरअसल, जर्मनी की दवा कंपनी बायोएनटेक का कहना है कि वह यूरोप में 12 से 15 साल के बच्चों के लिए जून में कोरोना की वैक्सीन लॉन्च करेगी। बता दें फाइजर और उसकी सहयोगी जर्मन कंपनी बायोएनटेक ने इसी साल मार्च के अंत में यह दावा किया था कि उसकी कोविड-19 वैक्सीन 12 साल से बड़ी उम्र के बच्चों के लिए भी पूरी तरह सुरक्षित और व्यस्कों की तरह ही कोराना वायरस महामारी का असर रोकने में कारगर है। कंपनी ने 12 से 15 साल की उम्र वाले 2260 अमेरिकी वॉलेंटियरों को कोरोना की वैक्सीन देने के बाद सामने आए प्राथमिक डाटा के आधार पर यह दावा किया। फाइजर का यह दावा स्कूलों में बच्चों को वापस लौटाने की दिशा में बेहद अहम माना जा रहा है। फाइजर के सीईओ अर्ल्बअ बौरला ने कहा कि उनकी कंपनी जल्द ही 12 साल से बड़ी उम्र के बच्चों के लिए वैक्सीन उपयोग की आपातकालीन मंजूरी मांगने के लिए यूएसएफडीए और यूरोपीय नियामकों के पास आवेदन दाखिल करेगी। कई कंपनियां बना रहीं टीका : उल्लेखनीय है कि केवल फाइजर व बायोएनटेक ही नहीं बल्कि करीब आधा दर्जन से अधिक कंपनियां बच्चों के लिए कोरोना वायरस से बचाव का टीका बाजार में उतारने की होड़ में जुटी हुई हैं। कंपनियों का दावा है कि जल्द ही छह माह के बच्चे के लिए भी बाजार में कोरोना टीका उपलब्ध होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इस महामारी को रोकना है तो बच्चों का भी टीकाकरण करना ही होगा। अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना भी 12 से 17 साल तक के बच्चों पर कोरोना वैक्सीन के प्रभाव को लेकर अध्ययन कर रही है। सूत्रों का कहना है कि मॉडर्ना के अध्ययन में सामने आए तथ्य बेहद सकारात्मक हैं। इसके चलते यूएसएफडीए पहले ही फाइजर और मॉडर्ना को 6 साल की उम्र वाले नवजात बच्चे तक पर कोविड-19 के प्रभाव पर शोध करने की अनुमति दे चुका है। इन दोनों कंपनियों के अलावा एस्ट्राजेनेका पिछले महीने ही ब्रिटेन में 6 से 17 साल तक की उम्र वाले बच्चों पर अपनी वैक्सीन के प्रभाव पर शोध शुरू कर चुकी है।
देशभर में कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच अब सरकार का कहना है कि अब समय आ गया है कि हमें घर पर रहते हुए भी मास्क लगाने की जरूरत है. नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने सोमवार को कहा कि यह समय किसी को भी घर पर आमंत्रण देने का नहीं है बल्कि घर पर रहने और घर पर भी मास्क लगाकर रहने का है. वहीं कोरोना के शुरुआती लक्षण देखे जाने पर लोगों से घर पर ही आइसोलेट होने के लिए कहा है. डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि शुरुआती लक्षण दिखने पर खुद को तत्काल आइसोलेट करें. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट आने तक का इंतजार ना करें. उन्होंने कहा कि ऐसे में आरटी-पीसीआर टेस्ट निगेटिव आने की संभावना है, लेकिन फिर भी लक्षण को देखते हुए खुद को संक्रमित मानें और सभी गाइडलाइन को फॉलो करें. इसके अलावा स्वास्थ्य संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने मास्क नहीं लगाने पर बढ़ने वाले खतरे की बात की. उन्होंने कहा कि अगर दो लोग मास्क नहीं पहनते हैं और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करते हैं तो इससे कोरोना संक्रमण का खतरा 90 फीसदी तक बढ़ सकता है. वहीं अगर व्यक्ति मास्क लगाता है और गाइडलाइन का पालन करता है तो खतरा 30 फीसदी तक कम हो सकता है.
एबीएन डेस्क। आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अतिरिक्त आंकड़े जारी किए हैं जिनसे पुष्टि होती है कि फाइजर-बायोएनटेक और एस्ट्राजेनेका दोनों कंपनियों द्वारा विकसित कोविड-19 टीके की पहली खुराक लेने के बाद ही संक्रमण का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है। अध्ययनकर्ताओं ने शुक्रवार को प्रकाशित अपने अनुसंधान में कहा है कि कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे को कम करने की क्षमता को लेकर टीकों में कुछ खास अंतर नहीं है। यह अध्ययन अभी तक किसी प्रतिष्ठित समीक्षा पत्रिका में प्रकाशित नहीं हुआ है लेकिन यह दिसंबर से अप्रैल के बीच इंग्लैंड और वेल्स में 3,70,000 से ज्यादा लोगों की नाक और गले के स्वाब के नमूनों के विश्लेषण पर आधारित है। वैज्ञानिकों का कहना है कि फाइजर-बायोएनटेक या एस्ट्राजेनेका दोनों में से किसी भी टीके का पहली खुराक लगवाने के तीन सप्ताह बाद लोगों में कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा 65 प्रतिशत तक कम हो गया। वहीं दूसरी खुराक लेने के बाद खतरा और भी काफी कम हो गया साथ ही यह टीके सबसे पहले ब्रिटेन में पहचाने गए वायरस के नये स्वरूप के खिलाफ भी प्रभावी है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर कोएन पॉवेल्स ने कहा कि कुछ उदाहरण है जहां टीका लगने के बाद भी उस व्यक्ति को संक्रमण हो गया है और टीका लगवा चुके लोगों से भी सीमित संख्या में संक्रमण फैलने की भी घटना हुई है। पॉवेल्स ने एक बयान में कहा, इससे स्पष्ट है कि लोगों को संक्रमण फैलने के खतरे को कम करने के लिए प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए, मास्क लगाएं और दो गज की दूरी बनाए रखें।
एबीएन डेस्क। कोरोना मरीजों को स्वस्थ होने के लिए एक हेल्दी डाइट की बहुत जरूरत होती है. कोरोना वायरस शरीर के इम्यून सिस्टम पर सबसे अधिक प्रभाव डालता है। इससे मरीजों की शारीरिक क्षमता में कमी आती है और शरीर रोगों से लडने की ताकत खो देता है। हालांकि उपचार के साथ कोरोना मरीजों को हेल्दी डाइट दी जाए, तो कोरोना को हराया जा सकता है. सूबे के कई जिलों में करीब 15 हजार संक्रमित मरीज होम आइसोलेशन में हैं। इम्यूनिटी को बूस्ट और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने के लिए नेशनल हेल्थ मिशन के न्यूट्रीशन एक्सपर्ट ने एक डाइट चार्ट जारी किया है। इसमें होम आइसोलेशन में रहने वाले मरीजों री इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए क्या-क्या और किस मात्रा में खाना चाहिए इसका पूरा ब्यौरा दिया गया है।
एबीएन डेस्क। देश में 17 अप्रैल को लगातार तीसरे दिन कोरोना के 2 लाख से ज्यादा नये मामले सामने आने के बाद से चिंता बढ़ गई है। इधर दिल्ली में वीकेंड लॉकडाउन बीती रात 10 बजे से सोमवार सुबह 6 बजे तक लागू किया गया है। झारखंड-यूपी-बिहार के साथ-साथ बंगाल में भी कोरोना संक्रमण के ज्यादा केस निकल रहे हैं। महाराष्ट्र में नये मामले रोज रिकार्ड तोड़ रहे हैं। देश में वैक्सीनेशन को लेकर केंद्र सरकार भी पूरी तरह सक्रिय है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि इस समय राज्यों के पास एक करोड़ 58 लाख डोज हैं और सप्लाई के अंदर वैक्सीन की 1,16,84,000 डोज हैं। वैक्सीन की कोई कमी नहीं है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने 11 राज्यों के स्वास्थ्य मंत्री से वीडियो कॉफ्रेंसिंग के जरिये बात भी की। उन्होंने कहा कि देश में आज सुबह तक राज्यों को वैक्सीन की 14 करोड़ 15 लाख डोज सप्लाई की गयी है। वेस्टेज को मिलाकर सब राज्यों ने लगभग 12,57,18,000 वैक्सीन की डोज का इस्तेमाल कर भी लिया है। अभी वैक्सीनेशन के लिए आयु सीमा 45 वर्ष रखी गयी है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कोरोना महामारी की मौजूदा स्थिति को लेकर शनिवार को केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि वैक्सीनेशन के लिए आयु सीमा को घटाकर 25 साल किया जाये तथा अस्थमा, मधुमेह और कुछ अन्य बीमारियों से पीड़ित युवाओं को प्राथमिकता के आधार पर वैक्सीन लगायी जाये। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने प्रधानमंत्री से खुले बाजार में कोरोना वैक्सीन की बिक्री की अनुमति देने की अपील की।
एबीएन डेस्क। भारत सरकार ने रुसी वैक्सीन स्पूतनिक वी के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है। आज एक्सपर्ट कमेटी की बैठक में इस बात पर फैसला किया गया। स्पूतनिक वी के इस्तेमाल को मंजूरी मिलने के बाद यह भारत में इस्तेमाल की जाने वाली तीसरी वैक्सीन होगी। हिंदुस्तान टाइम्स ने यह जानकारी प्रकाशित की है। इससे पहले भारत सरकार ने कोवैक्सीन और कोविशील्ड को इस्तेमाल की अनुमति दी है। रुस में सबसे पहले इसी वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल को मंजूरी दी गयी थी, जिसे वहां के राष्ट्रपति पुतिन ने लगवाया था, हालांकि बीच में इस वैक्सीन के इस्तेमाल पर रोक लगी थी लेकिन उसे फिर से चालू कर दिया गया था। गौरतलब है कि हैदराबाद की दवा कंपनी डॉ रेड्डी ने पिछले सप्ताह सरकार से वैक्सीन को मंजूरी देने की मांग की थी। रुस ने भारतीय कंपनी डॉ रेड्डी के साथ 2020 में समझौता किया था जिसके तहत कंपनी भारत में इसके परीक्षण का संचालन करेगी। रुसी वैक्सीन का तीसरे चरण का परीक्षण हो चुका है जिसमें यह 91.6 प्रतिशत तक कारगर साबित हुआ है। रूस ने 19,866 लोगों पर परीक्षण किया है। स्पूतनिक-वी का दावा है कि यह वैक्सीन सस्ती है और आसानी से आम आदमी के बजट में आ जायेगी। इस वैक्सीन को 2 से 8 त्डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान पर रखा जा सकता है। भारत में कोरोना मरीजों की संख्या रोज बढ़ रही है। आज एक लाख 68 हजार से ज्यादा केस सामने आये हैं और 934 लोगों की मौत हुई है। देश में नौ करोड़ से ज्यादा लोगों को वैक्सीन दिया जा चुका है। लेकिन देश में कोरोना की रफ्तार थम ही नहीं रही है। यही वजह है कि सरकार वैक्सीनेशन बढ़ाने पर जोर दे रही है और ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगाया जा रहा है।
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