एबीएन हेल्थ डेस्क। षट्कर्म शब्द की उत्पत्ति षट् और कर्म इन दो शब्दों के मेल से हुई है। इनमें षट् का अर्थ है छः (6) और कर्म का अर्थ है कार्य । इस प्रकार षट्कर्म का अर्थ हुआ छः कार्य। हां पर षट्कर्म का अर्थ ऐसे छः विशेष कर्मों से है जिनके द्वारा शरीर की शुद्धि होती है।
हठयोग में इन छः प्रकार के शुद्धि कर्मों को षट्कर्म कहते हैं। इन्हें अंग्रेजी में सिक्स बॉडी क्लींजिंग प्रोसेस कहा जाता है। योगाचार्य महेश पाल विस्तार पूर्वक बताते हैं कि महर्षि घेरण्ड ने छः षट्कर्मों को घेरण्ड संहिता में सप्तांग योग (घटस्थ योग) के पहले अंग के रूप में वर्णित किया है।
उनका मानना है कि बिना षट्कर्म के अभ्यास के कोई भी साधक योग मार्ग में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता । सबसे पहले शरीर की शुद्धि आवश्यक है। बिना शरीर की शुद्धि के योग के अन्य अंगों के पालन में साधक को आगे बढ़ने में कठिनाई होती है। इसलिए महर्षि घेरण्ड ने षट्कर्म को योग के पहले अंग के रूप में स्वीकार किया है।
स्वामी स्वात्माराम ने हठप्रदीपिका में षट्कर्म का वर्णन करते हुए कहा है कि जिन साधको के शरीर में चर्बी ( मोटापा ) और कफ अधिक है उन साधको को पहले षट्कर्मों का अभ्यास करना चाहिए। जिनमें चर्बी व मोटापा नहीं है उन योग साधकों को षट्कर्मों की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार स्वामी स्वात्माराम ने केवल चर्बी व कफ की अधिकता वालों के लिए ही षट्कर्म करने का उपदेश दिया है ।
मुख्य रूप से यह छह कर्मों द्वारा बॉडी को डिटॉक्स किया जाता है जिनमें, धौति, बस्ति, नेति,त्राटक लौलिकी( नौलि),कपालभाति शामिल हैं धौति क्रिया से पाचनतंत्र एवं आहार नलिका की सफाई होती है और कब्ज, अपच, अम्लता ( एसिडिटी ) व कफ रोग ठीक होते हैं, वस्ति क्रिया से उत्सर्जन तंत्र व बड़ी आँत की सफाई होती है।
कब्ज, बवासीर, भगन्दर , प्लीहा, वायु गोला, वात, पित्त व कफ से उत्पन्न रोग समाप्त होते हैं, नेति क्रिया से आँख, नाक व गले से सम्बंधित बीमारियों को ठीक होती है, नौलि क्रिया को लोकिकी भी कहा जाता है । यह उदर ( पेट ) से सम्बंधित रोगों के लिए उपयोगी होती है, त्राटक क्रिया से हमारी आँखों की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं जिससे हमारे आँखों के रोग दूर होते हैं।
कपालभाति क्रिया मस्तिष्क सम्बंधित रोगों के लिए बहुत ही लाभकारी होती है । इससे हमारे श्वसनतंत्र की शुद्धि होती है ।षट्कर्मों की हमारे जीवन में बहुत उपयोगिता है इनके अभ्यास से हमारे सारे शरीर की शुद्धि होती है ।षट्कर्म का अभ्यास करने से पहले हमें कुछ सावधानी बरतनी चाहिए षट्कर्मों के अभ्यास से पूर्व साधक को अपने आहार की शुद्धि रखनी चाहिए ।
साधक को केवल पथ्य (सात्विक) आहार ही ग्रहण करना चाहिए। किसी भी प्रकार का तामसिक भोजन नहीं लेना चाहिए । आहार का योग साधना में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। किसी बीमारी या रोग की अवस्था में पहले चिकित्सक से सुझाव लेना आवश्यक है । उसके बाद ही आप षट्कर्मों का अभ्यास करें षट्कर्मों के अभ्यास की शुरुआत अकेले ही घर पर नहीं करनी चाहिए,इसके लिए विधिवत रूप से योग केन्द्र पर जाकर, योग गुरु से ही इनका प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए।
एबीएन हेल्थ डेस्क। राष्ट्रीय खेल संस्थान पटियाला में योगासन भारत द्वारा द्वितीय राष्ट्रीय कोच प्रशिक्षण प्रारंभ हो चुका है, जिसका शुभारंभ एनएस एनआईएस निर्देशक डॉ कल्पना शर्मा एवं योगासन भारत के महासचिव डॉ जयदीप आर्य ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया। जिसमें भारत के सभी राज्यों के योग में प्राप्त विशेष अनुभव 150 से भी अधिक कोचों को शामिल किया गया है।
योगाचार्य महेश पाल ने जानकारी देते हुए बताया कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम 16 जून 2024 तक चलेगा, जिसमें योगासन खेल की बारीकियों के बारे में बॉडी मूवमेंट के बारे में एवं योग के अनुसार आहार शैली कैसी होना चाहिए। बॉडी को किस तरह फ्लैक्सिबल बनाते हुए विभिन्न प्रकार के एडवांस आसनों को सीखते हुए नेशनल और इंटरनेशनल व खेलो इंडिया में योग के खिलाड़ी किस तरह अच्छा परफॉर्मेंस कर सकते हैं।
इस विषय से संबंधित विस्तार पूर्वक विशेष ट्रेनिंग दी जायेगी, योगासन भारत, भारत सरकार के युवा मामले एवं खेल मंत्रालय के अंतर्गत मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय खेल महासंघ है जो ग्राम स्तर से तहसील स्तर जिला स्तर स्टेट और नेशनल स्तर तक के बच्चों को योग के क्षेत्र में उनकी प्रतिभाओं को पहचान कर उनको आगे बढ़ता है और खेलो इंडिया नेशनल गेम्स एशियाई योगासन वर्ल्ड योगासन प्रतियोगिताओं में बच्चों को आगे बढ़ाता है।
यह महासंघ योगासन खेल से संबंधित लगभग 12 प्रकार योगासन खेल प्रतियोगिताएं आयोजित करवाता है। योगासन भारत के महासचिव डॉ जयदीप आर्य ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस कोचेस ट्रेनिंग प्रोग्राम में जो कोच ट्रेनिंग ले रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर की उन कोचेस को विदेश में भी योगासन खेल के माध्यम से ट्रेनिंग और कोचिंग के लिए उन्हें आगे बढ़ाया जायेगा, जिससे कोचेस का भी भविष्य योगासन खेल महासंघ से उज्ज्वल हो सके।
मौके पर भारतीय खेल प्राधिकरण के मुख्य कोच सीके मिश्रा, एशियाई योगासन के उपाध्यक्ष डॉ निरंजन मूर्ति, रचित कौशिक, उमेश नारंग, पियूषकांत मिश्रा, रोहित कौशिक, पंजाब योगासन की अध्यक्ष डॉ अकलकला, विक्रम बाबा, बंदना कोरपाल उपस्थित रहे।
एबीएन हेल्थ डेस्क। सहितो द्विविधा प्रोक्तः सागरभश्च निगर्भकः, सागरभो बीजमुच्चार्य निगर्भो बीज वर्जितः अनुवाद:- सहित प्राणायाम दो प्रकार का होता है : सगर्भ और निगर्भ। सगर्भ प्रकार का अभ्यास बीज मंत्र का जाप करके किया जाता है और निगर्भ प्रकार का अभ्यास इसके बिना किया जाता है।
योगाचार्य महेश पाल विस्तार से बताते हैं कि घेरण्ड संहिता मैं वर्णित सहित सगर्भ प्राणायाम महत्वपूर्ण आठ प्राणायामों में से एक है, सहित कुंभक प्राणायाम (योगिक श्वास अभ्यास) में सांस रोकने का एक रूप है। यह शब्द संस्कृत के शब्द सह से आया है, जिसका अर्थ है साथ ज , जिसका अर्थ है पैदा होना और कुंभक , जिसका अर्थ है सांस रोकना।
इसका मतलब है सांस को स्वाभाविक रूप से रोकना, जिसमें सांस अंदर लेना या बाहर छोड़ना शामिल न हो। इसे कभी-कभी केवला कुंभक का पर्याय माना जाता है लेकिन जब अंतर किया जाता है, तो केवला को समाधि की स्थिति या ईश्वर के साथ मिलन के बराबर माना जाता है, जिसमें सांस लेना और छोड़ना आवश्यक नहीं है।
कुंभक आमतौर पर प्रत्याहार या इंद्रियों की वापसी द्वारा उत्पन्न होता है, जो योग का पांचवां अंग है सहित कुंभक प्राणायाम का एक प्रमुख घटक है, जिसका उपयोग ध्यान और कुछ योग आसनों के साथ किया जाता है।यह अभ्यास शरीर में गर्मी बढ़ाता है और ऊर्जा प्रणालियों को संतुलित करता है, जिससे शारीरिक और मानसिक कई लाभ मिलते हैं।
यह त्वचा संबंधी विकारों से लेकर मधुमेह तक कई तरह की बीमारियों को रोकने और उनका इलाज करने में मदद करता सहित या सहज कुंभक एक मध्यवर्ती अवस्था है, जब इंद्रियों की वापसी के चरण में, योग के आठ अंगों में से पांचवां, प्रत्याहार, सांस रोकना स्वाभाविक हो जाता है। सहित कुंभक प्राणायाम हमारे बहिर्मुखी इंद्रियों को अंतर्मुखी कर देता है, जिससे हमारी पंच ज्ञानेंद्रिय से भटकने वाला मन स्थिर हो जात हैं और हमारे चित्र में उठने वाले विचार शांत हो जाते हैं।
हमारी इंद्रियां हमारे बस में हो जाती हैं जिससे हम बीज मंत्र पर ध्यान केंद्रित कर पाते है और समाधि की ओर अग्रसर हो जाते हैं सहित प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए पद्मासन या किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठें, रीढ़ सीधी होनी चाहिए। दोनों नथुनों से धीरे-धीरे और जितना संभव हो सके उतनी लंबी सांस अंदर लें।जिस क्षण आपको यह एहसास हो कि अब आप नाक से सांस नहीं ले सकते, तब अपने होठों (कौवा चोंच) से हवा को निगल लें। पहले जीभ लॉक का प्रयोग करें, फिर ठोड़ी लॉक का।
अपनी क्षमता के अनुसार सांस को रोककर रखें (अंतर कुम्भक)।फिर ठोड़ी को खोलें, फिर जीभ को खोलें और दोनों नथुनों से गहरी और लंबी सांस छोड़ें। इस तकनीक के बाद 5 प्राकृतिक श्वास लें।फिर, चार गिनती तक अपनी नाक से सांस अंदर लें, चार गिनती तक सांस को ऊपरी हिस्से में रोककर रखें, चार गिनती तक अपनी नाक या मुंह से सांस छोड़ें और अंत में, चार गिनती तक सांस को नीचे की तरफ रोककर रखें। इस पैटर्न को कम से कम 2-3 मिनट तक अभ्यास को दोहराएं।
इस प्राणायाम के अभ्यास से फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है, शरीर में शारीरिक शक्ति का विकास होता है, जिससे शरीर ताजा, सक्रिय और मजबूत बनता है। चेहरे पर सुन्दरता और चमक बढ़ती है। मन को प्रसन्न और शांत बनाता है। इस प्राणायाम से मानसिक समस्याएं समाप्त होती हैं। भूख और प्यास को नियंत्रित किया जा सकता है। एकाग्रता और ध्यान के लिए बहुत उपयोगी है। यह अभ्यास हृदय रोगी, उच्च रक्तचाप, मिर्गी रोगियों के लिए वर्जित है।
टीम एबीएन, रांची। झारखंड में पिछले कुछ वर्षों से कभी न कभी और किसी न किसी भाग में बर्ड फ्लू की पुष्टि हो जा रही है। वर्ष 2023 में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के रांची स्थित आवास पर पाली गयी मुर्गियों में बर्ड फ्लू के वायरस एच5एन1 मिलने की पुष्टि हुई थी।
इस वर्ष अप्रैल महीने में होटवार स्थित पशुपालन विभाग के क्षेत्रीय कुक्कुट प्रक्षेत्र की मुर्गियों में बर्ड फ्लू के वायरस मिले थे, तो इस महीने मोराबादी-बरियातू स्थित रामकृष्ण मिशन आश्रम के फार्म हाउस की मुर्गियों में बर्ड फ्लू के वायरस की पुष्टि हुई है।
बर्ड फ्लू की पुष्टि के बाद पशुपालन विभाग, जिला प्रशासन के साथ साथ स्वास्थ्य महकमा भी अलर्ट मोड में आ जाता है। लेकिन आम जनता में बर्ड फ्लू को लेकर उतनी गंभीरता नहीं आम जनता में नहीं दिखती। ऐसे में एक बड़ा सवाल है कि जब बर्ड फ्लू का संक्रमण पक्षियों से इंसानों में आने की संभावना बहुत ही कम है तो फिर स्वास्थ्य महकमा इतना अलर्ट क्यों हो जाता है?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने रांची सदर अस्पताल के उपाधीक्षक और वरिष्ठ पैथोलॉजिस्ट डॉ बिमलेश कुमार सिंह से बात की। डब्ल्यूएचआ की एक स्टडी का हवाला देते हुए डॉ बिमलेश सिंह ने कहा कि दुनिया भर में अब तक करीब 900 लोगों को बर्ड फ्लू का संक्रमण हुआ है।
यह संख्या काफी कम है, लेकिन दुखद बात यह है कि जिन लोगों को बर्ड फ्लू का संक्रमण हुआ उसमें लगभग आधे की मौत हो गयी। यानी इंसानों में भी इसकी मोर्टेलिटी रेट काफी हाई है। इस वजह से कहीं भी बर्ड फ्लू के केस मिलने पर स्वास्थ्य महकमा ज्यादा चौकस और चौकन्ना हो जाती है। ताकि यह इंसानों में न फैले।
एबीएन से बातचीत में डॉ बिमलेश कुमार सिंह ने कहा कि इसके साथ साथ हम सब जानते हैं कि वायरस में म्यूटेशन बहुत जल्दी जल्दी होता है। कौन सा बदलाव इंसानी स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो जाये, यह कोई नहीं जानता, यही वजह है कि हम सबको ज्यादा चौकन्ना रहना होता है।
डॉ बिमलेश कुमार सिंह के अनुसार संक्रमित पक्षियों से एच5एन1 वायरस के इंसानों में आने की संभावना रेयर आफ रेयरेस्ट होने के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि इंसानों को बर्ड फ्लू नहीं हो सकता।
रांची सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ बिमलेश सिंह ने कहा कि कछर यानी इन्फ्लुएंजा लाइक सिंड्रोम होने पर एक बार डॉक्टर्स की सलाह लेकर दवा जरूर लें। उन्होंने बताया कि होटवार में बर्ड फ्लू के पिछले महीने केस मिलने के बाद ही सदर अस्पताल में बर्ड फ्लू या वायरल इन्फेक्शन की दवा टेमी फ्लू मंगा ली गयी थी। आपात स्थिति को ध्यान में रखते हुए 10 वार्ड का आइसोलेशन वार्ड भी तैयार रखा गया है। उन्होंने कहा कि कोरोना के दौरान जो एहतियात हम बरतते थे जैसे मास्क लगाना, हाथों को सेनेटाइज करना वह अब भी करें। सर्दी, आंख लाल होने, आंख और नाक से पानी आने, बुखार होने पर खुद को आइसोलेट कर लें।
एबीएन हेल्थ डेस्क। केवली कुंभक प्राणायाम की एक उच्च अवस्था है, केवली कुंभक का अर्थ है साँस को रोकना। मन को विचारों से रहित करना, योगाचार्य महेश पाल इस प्राणायाम के बारे में विस्तार से समझाते की केवली कुंभक प्राणायाम घेरंड संहिता में वर्णित 8 प्राणायाम में से एक है, कुंभक दो प्रकार का होता है, सहिता और केवल।
जो सांस लेने और छोड़ने के साथ जुड़ा होता है उसे सहिता कहा जाता है। जो इनसे रहित है उसे केवल (अकेला) कहते हैं। जब आपको सहिता में महारत हासिल हो जाती हैं तब केवली कुंभक् के लिए प्रयास किये जाते हैं, केवली कुंभक् आध्यात्मिक मिलन, या समाधि का अंतिम चरण माना जाता है।
केवल कुम्भक का अर्थ केवल सांस लेने या छोड़ने के बीच सांस को रोकना नहीं है। इसे प्राण को सांस लेने और छोड़ने की गतिविधियों से पूरी तरह अलग रखने वाला माना जाता है और यह सांस का एक बिना रुके रुकना है जो प्राणायाम के माध्यम से प्राप्त समाधि अवस्था के भीतर होता है।
योगियों का मानना है कि केवल कुम्भक शरीर के भीतर मौजूद प्राण को प्रभावित करता है, जिससे स्वयं के भीतर जीवन शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है,साधक पूर्ण एकाग्रता से त्रिबन्ध सहित प्राणायाम के अभ्यास द्वारा केवली कुम्भक से पुरुषार्थ सिद्ध होता है उसकी व्यापकता बढ़ जाती है।
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर इन छः शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। केवली कुम्भक सिद्ध होने पर उस योगी के लिए तीनों लोक में कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता। कुण्डलिनी जागृत होती है, शरीर पतला हो जाता है, मुख प्रसन्न रहता है, नेत्र मलरहित होते हैं। सर्व रोग दूर हो जाते हैं। बिन्दु पर विजय होती है। जठराग्नि प्रज्वलित होती है।
केवली कुंभक प्राणायाम के अभ्यास से हमारा मन एक जगह स्थिर होता है। अंत:करन मैं चित्र में उठने वाले विचार शांत होते ब्रह्मचर्य स्थापित होता है एवं बिंदु उधर्वगामी होकर ऊर्जा के रूप मैं मूलाधार से होते हुए आज्ञाचक्र और सहस्रार चक्र तक ऊर्जा नीचे से ऊपर की ओर उठती है।
जिससे कुंडलिनी शक्ति का विकास होता ध्यान में प्रांगण होकर समाधि की ओर बढ़ जाते हैं, केवली कुंभक् प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए सबसे पहले स्वच्छ तथा उपयुक्त वातावरण में सिद्धासन में बैठ जायें। अब दोनों नाक के छिद्र से वायु को धीरे-धीरे अंदर खींचकर फेफड़े समेत पेट में पूर्ण रूप से भर लें।
इसके बाद क्षमता अनुसार श्वास को रोककर रखें। फिर धीरे-धीरे से सांस को छोड़ दे इस प्रकार 5 मिनिट तक इस अभ्यास को करे इस प्राणायाम के अभ्यास के कई प्राप्त होते हैं, आयु में वृद्धि होती है, शरीर निरोग रहता है, भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी और अनेक द्वन्दों से मुक्त मिलती है, ध्यान में दृढ़ता आती है।
दिव्य दृष्टि का विकास होता है, विंदु पर विजय प्राप्त होती हैं इस प्राणायाम के अभ्यास को करते समय हमें कुछ विशेष सावधानियां रखनी चाहिए हृदय रोग, अनियंत्रित उच्च रक्तचाप या उच्च रक्तचाप, मस्तिष्क धमनीविस्फार और मानसिक विकारों से पीड़ित लोगों के लिए यह प्राणायाम वर्जित है।
एबीएन हेल्थ डेस्क। एस्ट्राजेनेका की कोविड-19 वैक्सीन को लेकर एक और चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। एस्ट्राजेनेका की कोविड वैक्सीन में एक और खतरनाक ब्लड क्लॉटिंग डिसआर्डर मिला है। शोधकर्ताओं का दावा है कि आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सहयोग से बनायी गयी ब्रिटिश-स्वीडिश फार्मा दिग्गज एस्ट्राजेनेका की कोविड-19 वैक्सीन-प्रेरित इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिया और थ्रोम्बोसिस (वीआईटीटी) के खतरे को और अधिक बढ़ाती है - वीआईटीटी एक दुर्लभ लेकिन घातक रक्त का थक्का जमने वाला विकार है।
हालांकि, खून का थक्का जमाने वाला ये रेयर डिसआर्डर (किसी-किसी को होने वाला) है, लेकिन खतरनाक है। हालांकि यह नया नहीं है, वीआईटीटी एडेनोवायरस वेक्टर-आधारित आक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के बाद एक नई बीमारी के रूप में उभरा - जिसे भारत में 2021 में कोविड महामारी के चरम पर कोविशील्ड और यूरोप में वैक्सजेवरिया के रूप में बेचा गया।
रिसर्च के अनुसार, खतरनाक ब्लड एंटीबॉडी प्लेटलेट फैक्टर 4 (पीएफ 4) वीआईटीटी के लिए जिम्मेदार है। प्लेटलेट फैक्टर 4, प्रोटीन के खिलाफ काम करता है। 2023 में प्लेटलेट फैक्टर 4 (या पीएफ4) नामक प्रोटीन के विरुद्ध निर्देशित एक असामान्य रूप से खतरनाक रक्त आटोएंटीबॉडी को वीआईटीटी के कारण के रूप में पाया गया था।
अलग-अलग शोध में, कनाडा, उत्तरी अमेरिका, जर्मनी और इटली के वैज्ञानिकों ने समान पीएफ4 एंटीबॉडी के साथ लगभग समान विकार का वर्णन किया जो प्राकृतिक एडेनोवायरस (सामान्य सर्दी) संक्रमण के बाद कुछ मामलों में घातक था। अब एक नए शोध में आस्ट्रेलिया में फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी और अन्य अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने पाया कि एडेनोवायरस संक्रमण से जुड़े वीआईटीटी और क्लासिक एडेनोवायरल वेक्टर वीआईटीटी दोनों में पीएफ4 एंटीबॉडी समान मॉलिक्यूलर में है।
फ्लिंडर्स के प्रोफेसर टॉम गॉर्डन ने कहा कि वास्तव में इन विकारों में घातक एंटीबॉडी बनने का तरीका समान है। शोधकर्ता ने कहा कि हमारे समाधान वीआईटीटी संक्रमण के बाद रक्त के थक्के जमने के दुर्लभ मामलों पर लागू होते हैं, यह टीके के विकास पर भी काम करते हैं।
इसी टीम ने 2022 के एक शोध में पीएफ4 एंटीबॉडी के मॉलिक्यूलर का पता लगाया था, साथ ही एक आनुवंशिक जोखिम की पहचान की थी। यह शोध एस्ट्राजेनेका की ओर से फरवरी में हाई कोर्ट में प्रस्तुत एक कानूनी दस्तावेज में स्वीकार किए जाने के बाद आया है कि इसका कोविड टीका बहुत ही दुर्लभ मामलों में थ्रोम्बोटिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक सिंड्रोम (टीटीएस) का कारण बन सकता है।
टीटीएस एक दुर्लभ दुष्प्रभाव है जिसके कारण लोगों में रक्त के थक्के बन सकते हैं और रक्त में प्लेटलेट की संख्या कम हो सकती है। इसे ब्रिटेन में कम से कम 81 लोगों की मौत के साथ-साथ सैकड़ों गंभीर चोटों से जोड़ा गया है। कंपनी ने स्वेच्छा से यूरोप और अन्य वैश्विक बाजारों से अपने कोविड वैक्सीन के विपणन प्राधिकरण को भी वापस ले लिया है।
एबीएन हेल्थ डेस्क। मूर्छा प्राणायाम को प्राणायाम के सबसे महत्वपूर्ण रूपों में से एक माना जाता है और इसके आध्यात्मिक महत्व के कारण इसे अत्यधिक माना जाता है। योगाचार्य महेश पाल मूर्छा प्राणायाम के बारे में विस्तार से बताते हैं कि मूर्छा शब्द बेहोशी को दर्शाता है और इसलिए मूर्छा प्राणायाम नाम का अर्थ है बेहोशी या बेहोशी वाली सांस।
प्राणायाम के इस रूप में व्यक्ति धीरे-धीरे सांस लेता है और फिर उसे लंबे समय तक बनाये रखता है। मूर्छा या मूर्छा का संस्कृत में अर्थ है बेहोशी या संवेदना की हानि। प्राणायाम या साँस लेने की तकनीक के इस रूप में ठोड़ी को थायरॉयड ग्रंथि के करीब रखकर सांस को पूरी तरह और लंबे समय तक रोकना है। ऐसी स्थिति तब तक बनी रहती है जब तक अभ्यासकर्ता लगभग बेहोशी की स्थिति का अनुभव करता है।
चूंकि यह प्राणायाम का एक उन्नत रूप है, इसलिए इसका अभ्यास केवल उन पुरुषों और महिलाओं द्वारा किया जाता है जिन्हें अन्य प्रकार के प्राणायामों पर पर्याप्त पकड़ होती है। जब सही ढंग से अभ्यास किया जाता है, तो लोग अर्ध-चेतन बेहोशी के साथ-साथ आरामदायक उत्साह की तीव्र और लंबे समय तक भावना का अनुभव कर सकते हैं। मूर्छा प्राणायाम आध्यात्मिक चेतना को बढ़ाने में मदद करता है।
इस श्वास पैटर्न के माध्यम से उत्पन्न तथाकथित बेहोशी की अनुभूति अस्तित्वहीनता की तीव्र भावना को जन्म देती है। इसका मतलब यह है कि आप अपने शरीर की भौतिक सीमाओं की अनुभूति खो देते हैं और तैरना शुरू कर देते हैं। इससे उल्लास और उल्लासपूर्ण आनंद की लगभग अप्राकृतिक भावना उत्पन्न होती है जिसे आप अपने दैनिक जीवन में कभी अनुभव नहीं कर पाते हैं। नियमित अभ्यास से, आप विश्राम की इस गहन स्थिति को पूरे दिन तक बढ़ा सकते हैं।
हालांकि, मूर्छा प्राणायाम का अभ्यास आपको उससे आगे जाने और शांति की भावना महसूस करने में मदद करता है, जो यह अनुभव सोने के समान है और जब आप जागते हैं तो आप इसे दोहराने की कोशिश करते हैं। जब आप अपना ध्यान बाहरी दुनिया पर केंद्रित करते हैं, तो आप अपने अहंकार और भौतिक वास्तविकता से पहचान करना शुरू कर देते हैं।
हालांकि, जब आप अपनी दृष्टि अंदर की ओर मोड़ते हैं, तो आप एक आध्यात्मिक वास्तविकता की पहचान करना शुरू कर देते हैं जो प्रकृति में सार्वभौमिक है। यह अहंकार के विघटन और उच्च चेतना के साथ विलय की ओर भी ले जाता है। इस कारण से उन लोगों के लिए मूर्छा प्राणायाम की अत्यधिक अनुशंसा की जाती है जो अपनी आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ाना चाहते हैं। जब आप अपनी कुंडलिनी ऊर्जा को जागृत करना चाहते हैं तो यह अत्यधिक प्रभावी होता है। चक्कर आने के कुछ सामान्य कारणों में भूख, थकान, हाइपोग्लाइसीमिया (निम्न रक्त शर्करा) चिंता शामिल हैं।
चक्कर आना न्यूरोलॉजिकल विकारों के कारण भी होता है। जैसे मल्टीपल स्क्लेरोसिस, पार्किंसंस रोग और मिरगी, सिर का चक्कर (आपके आसपास के वातावरण की गति) वेस्टिबुलर प्रणाली में गड़बड़ी से जुड़ी है, जो संतुलन को नियंत्रित करती है। क्योंकि आपके कान इस प्रणाली से जुड़े होते हैं। कान में संक्रमण और बीमारियां, जैसे मेनियार्स का रोग, आपके संतुलन की भावना और आपकी चाल को प्रभावित कर करता है।
मूर्छा प्राणायाम न्यूरोलॉजिकल विकार, पार्किंसस रोग, मिर्गी, चिंता इन सभी समस्याओं से उभारने में मदद करता है एवं वर्टिगो (चक्कर आना) जैसी समस्याओं से बचाने में हमारी मदद करता है, मूर्छा प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए सिद्धासन में बैठ जायें और गहरी श्वास लें फिर श्वास को रोककर जालन्धर बंध लगायें।
फिर दोनों हाथों की तर्जनी और मध्यमा अंगुलियों से दोनों आंखों की पलकों को बंद कर दें। दोनों कनिष्का अंगुली से नीचे के होठ को ऊपर करके मुंह को बंद कर लें। इसके बाद इस स्थितियां में तब तक रहें, जब तक श्वास अंदर रोकना सम्भव हों। फिर धीरे-धीरे जालधर बंध खोलते हुए अंगुलियों को हटाकर धीरे-धीरे श्वास बाहर छोड़ दें। इस क्रिया को 3 से 5 बार करें।
इस प्रणाम के अभ्यास से शरीर पर कई लाभ देखे गये हैं, इस क्रिया को करते वक्त पानी बरसने जैसी आवाज कंठ से उत्पन्न होती है तथा वायु मूर्छित होती है, जिससे मन मूर्छित होकर अंततः शान्त हो जाता है। इस प्राणायाम के अभ्यास से तनाव, भय, चिंता आदि दूर होते हैं। यह धातु रोग, प्रमेह, नपुंसकता आदि रोगों को खत्म करता है। इस प्राणायाम से शारीरिक और मानसिक स्थिरता कायम होती है।
इस प्राणायाम को करते समय कुछ सावधानियां रखनी होती है, हृदय रोग, अनियंत्रित उच्च रक्तचाप, मस्तिष्क धमनी विस्फार और मानसिक विकारों से पीड़ित लोगों के लिए मूर्छा प्राणायाम वर्जित है। इस प्रकार कह सकते हैं कि मूर्छा प्राणायाम मन और शरीर के बीच एक सेतु का काम करता है। इसके अलावा यह सांस लेने की कला को भी संतुलित करता है। जब आपका मन किसी भी विचार से रहित हो जाता है, तो आप शुद्ध आनंद प्राप्त कर सकते हैं।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। सरकार ने आम तौर पर इस्तेमाल होने वाली 41 दवाओं और मधुमेह, हृदय और लीवर जैसी बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाले छह फॉर्मूलेशन की कीमतें कम कर दी हैं। फार्मास्यूटिकल्स विभाग और राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) द्वारा जारी एक अधिसूचना के अनुसार, एंटासिड, मल्टीविटामिन और एंटीबायोटिक्स उन दवाओं में से हैं जो सस्ती हो जायेंगी
फार्मा कंपनियों को निर्देश दिया गया है कि वे विभिन्न दवाओं की कम कीमत की जानकारी तत्काल प्रभाव से डीलरों और स्टॉकिस्टों को दें। एनपीपीए की 143वीं बैठक में यह निर्णय लिया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आवश्यक दवाओं की कीमत जनता के लिए सस्ती रहे।
भारत दुनिया में मधुमेह के सबसे अधिक मामलों वाले देशों में से एक है, देश में 10 करोड़ से अधिक मधुमेह रोगी हैं, जिन्हें कीमत में कटौती से लाभ होने की उम्मीद है। पिछले महीने, फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने 1 अप्रैल से प्रभावी, 923 अनुसूचित दवा फॉर्मूलेशन के लिए अपनी वार्षिक संशोधित छत कीमतें और 65 फॉर्मूलेशन के लिए संशोधित खुदरा कीमतें जारी कीं।
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