एबीएन सोशल डेस्क। गायत्री मंदिर में चल रहे योग सत्र के दोरान योगाचार्य महेश पाल ने बताया कि, दुनिया तेजी से बदल रही है जिसके कारण बदलती मानवीय जीवनशैली का सबसे गंभीर प्रभाव मानव हृदय पर पड़ा है। आज हृदय रोग केवल वृद्धावस्था तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि यह युवाओं में भी बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। वैश्विक स्तर पर हर साल लाखों लोग दिल से जुड़ी बीमारियों के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं।
पिछले दो-तीन वर्षों से कम उम्र के लोगों में हार्ट अटैक के मामले तेजी से बढ़ते हुए देखे गए हैं। 50 वर्ष से कम उम्र के 50 फीसदी और 40 वर्ष से कम उम्र के 25 फीसदी लोगों में हार्ट अटैक का जोखिम देखा गया है कुछ वर्षों पूर्व पुरुषों की तुलना में महिलाओं में हार्ट अटैक के मामले कम थे। एक नए शोध में यह हृदय रोग अब बराबर देखे गए। हृदय रोगियों की संख्या में वृद्धि हुई।
कुछ वर्षों पूर्व वृद्धावस्था में होने वाली इस बीमारी ने युवकों को भी शिकार बना लिया है। वर्तमान में हार्ट अटैक युवाओं में होने के अनेकों अनेक कारणों का समावेश होता रहा है! इसमें आधुनिक खान पान और जीवन शैली महत्वपूर्ण है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार दुनिया के कुल हृदय रोगियों में से 60 प्रतिशत मरीज अकेले भारत में ही होने की संभावना व्यक्ति की गई है। इन्हीं चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए हर वर्ष विश्व हृदय दिवस मनाया जाता है।
वर्ष 2025 का विषय है एक धड़कन न चूकें यह संदेश केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि एक सामूहिक चेतावनी है कि यदि अब भी लोग, समाज और सरकारें सक्रिय नहीं हुए तो हृदय रोग एक वैश्विक महामारी का रूप ले लेगा। चूंकि हार्ट अटैक समस्या का संभावित समाधान जीवनशैली में सख्त आचार संहिता अपनाकर ओर अपनी दिनचर्या में योग प्राणायाम को शामिल कर हृदयघात से होने वाली मौतों को रोकने में सहभागी बनें अगर हम हार्ट अटैक क्या है और कैसे होता है? इसे समझने की कोशिश करें तो, हार्ट अटैक, इसे चिकित्सकीय भाषा में मायोकार्डियलइंफाशन कहा जाता है, तब होता है जब हृदय की मांसपेशियों तक रक्त का प्रवाह अचानक बाधित हो जाता है।
यह स्थिति प्राय: तब उत्पन्न होती है जब कोरोनरी आर्टरी (हृदय की रक्तवाहिका) में प्लाक (कोलेस्ट्रॉल, वसा और अन्य तत्वों का जमाव जमा होकर ब्लॉकेज पैदा कर देता है। इस ब्लॉकेज से हृदय की मांसपेशियों को पर्याप्त आक्सीजन नहीं मिलती और परिणामस्वरूप हृदय की कोशिकाएं मरने लगती हैं। यदि समय पर इलाज न मिले तो यह व्यक्ति की जान भी ले सकता है। इसके लक्षण कई बार अचानक और गंभीर हो सकते हैं जैसे सीने में तेज दर्द या दबाव, पसीना आना, सांस फूलना, जबड़े या बांह में दर्द, मतली या बेहोशी।
वहीं, कुछ मामलों में हल्के संकेत भी मिलते हैं जिन्हें लोग सामान्य थकान या गैस समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, और यही लापरवाही जीवन के लिए घातक सिद्ध होती है। हार्ट अटैक की समस्या से बचाव के लिए योग प्रणामी काफी उपयोगी है जिसमें योग और प्राणायाम के द्वारा हार्ट अटैक की समस्याओं से बचा जा सकता है योग के अंतर्गत सूर्य नमस्कार, ताड़ासन त्रियक ताड़ासन, भुजंगासन, वज्रासन, वीरभद्रासन, अनुलोम विलोम प्राणायाम, नाड़ी शोधन प्राणायाम, योगनिद्रा ध्यान आदि के अभ्यास से हार्ट अटैक की समस्या से बचा जा सकता है।
वहीं अपनी दैनिक दिनचर्या में परिवर्तन कर और अपनी भोजनाचार्य को व्यवस्थित कर, अपनी दिनचर्या में योग को शामिल किया जा सकता है और हार्ट अटैक के साथ-साथ अन्य गंभीर बीमारियों से भी बचा जा सकता है, अगर हम जीवनशैली और हार्ट अटैक का संबंध को समझने की करें तो, आधुनिक युग की भागदौड़ भरी जीवनशैली हृदय के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है। अधिकतर मामलों में पाया गया है कि हृदय रोग सीधे-सीधे व्यक्ति की आदतों और दिनचर्या से जुड़े होते हैं।
तनाव और अनियमित नींद मानसिक दबाव और नींद की कमी हार्मोनल असंतुलन पैदा कर हृदय रोग का खतरा बढ़ाते हैं। यदि व्यक्ति अपने जीवनशैली विकल्पों में बदलाव कर ले तो हृदय रोग से होने वाले 80 फीसदी समयपूर्व मौतों को रोका जा सकता है। हम विश्व हृदय दिवस को एक वैश्विक बहुभाषी अभियान को समझने की कोशिश करें तो, हर वर्ष 29 सितंबर को विश्व हृदय दिवस मनाया जाता है। यह केवल एक दिन का कार्यक्रम नहीं बल्कि एक वैश्विक अभियान है जिसमें विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों और देशों को एक मंच पर लाकर हृदय स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जाता है।
सरकारें और अंतरराष्ट्रीय संगठन मिलकर नीतिगत हस्तक्षेप की दिशा में कदम उठाते हैं। इस दिन का मुख्य उद्देश्य लोगों को याद दिलाना है कि उनका हृदय ही उनकी जीवन शक्ति है और उसकी देखभाल सबसे पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए।
चिप्स, फ्रेंच फ्राइज, कैंडी, आइसक्रीम, चॉकलेट, कोक, और सोडा जैसी हाई कार्बोहाइड्रेड, शुगर ओर पेंटी, फैटी एसिड वाली चीजों को कंफर्ट फूड में रखा गया है। इनसे हार्ट अटैक का रोग खतरा 33 प्रतिशत बढ़ जाता है। यदि प्रतिदिन लगभग 800/900 ग्राम फल और सब्जियां खाते हैं, तो उनमें हार्ट अटैक का खतरा लगभग 30 प्रतिशत कम होता है।
हृदयाघात की जोखिम बढ़ने के 6 कारणों में से 4 कारण तो जीवनशैली से जुड़े है, जिन्हें नियन्त्रित कर हृदय घात के खतरे को काफी कम करके दिल को मजबूत किया जा सकता। उपरोक्त थीम वैश्विक स्तरपर एक चेतावनी है कि हम सभी को अपने और अपने प्रियजनों के हृदय की जिम्मेदारी लेनी होगी।
इस जागरण अभियान में सरकारों और समाज की भूमिका को समझने की कोशिश करें तो हृदय स्वास्थ्य केवल व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं है। इसमें सरकारों और समाजों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है
यदि यह प्रयास सामूहिक रूप से किए जाएं तो आने वाले वर्षों में हृदय रोग के मामलों में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है। अत: अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विशेषण करें तो हम पाएंगे कि हृदय की धड़कन अमूल्य है। एक धड़कन न चूकें केवल एक नारा नहीं बल्कि एक जीवन मंत्र है। हृदय स्वास्थ्य के लिए व्यक्तिगत जिम्मेदारी, सामूहिक प्रयास और सरकारी नीतियां तीनों जरूरी हैं।
यदि लोग आज ही स्वस्थ जीवनशैली अपनाना शुरू करें, समय पर जांच कराएं और चेतावनी संकेतों को गंभीरता से लें तो असामयिक मौतों को रोका जा सकता है। हृदय एक बार रुक जाए तो जीवन ठहर जाता है, इसलिए अब समय है कि दुनिया भर की सरकारें, समाज और व्यक्ति मिलकर यह संकल्प लें कि आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ और मजबूत हृदय की धड़कन उपहार में देंगे।
एबीएन हेल्थ डेस्क। पोटैशियम, फाइबर, विटामिन बी6 और विटामिन सी जैसे पोषक तत्वों से भरपूर केला एक ऐसा फल है जो न केवल स्वाद में मीठा और नरम होता है, बल्कि सेहत के भी किसी वरदान से कम नहीं माना जाता है, लेकिन क्या इसे खाने के तुरंत बाद पानी पीना सही है? ये जानने के लिए स्टोरी में बने रहिये।
केला एक ठंडा फल माना जाता है, जो पचने में समय लेता है। ऐसे में अगर आप केला खाने के तुरंत बाद ठंडा पानी पीते हैं तो बलगम, खांसी और सर्दी जैसी समस्याओं को बुलावा दे सकते हैं। आयुर्वेद में सलाह दी जाती है कि केला खाने के कम से कम 20 से 30 मिनट बाद ही पानी पीना पीना चाहिए।
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है। यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है। अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें। अइठठी६२24.ूङ्मे इस जानकारी के लिए जिÞम्मेदारी का दावा नहीं करता है।)
एबीएन हेल्थ डेस्क। रोटी हमारी डाइट का वो हिस्सा है जिसके बिना थाली अधूरी लगती है, फिर चाहे दाल हो या आलू सब्जी के साथ जब तक रोटी न परोसी जाये खाने का स्वाद नहीं आता। कई लोग स्वाद-स्वाद में ज्यादा रोटियां खा लेते हैं, लेकिन क्या आपको पता है एक दिन में हमें कितनी रोटियों का सेवन करना चाहिए? जी हां, जरूरत से ज्यादा रोटी खाना शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है। तो चलिये जानते हैं एक दिन में कितनी रोटियां खानी चाहिए? पेट कम करने के लिए एक दिन में कितनी रोटी खानी चाहिए?
गेहूं के आटे की एक रोटी आपके शरीर को करीब 17 ग्राम काबोर्हाइड्रेट देती है और करीब सत्तर ग्राम कार्ब्स देती है। एक्सपर्ट के मुताबिक एक दिन में 2 से 3 रोटी का सेवन करना चाहिए।
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है। यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है। अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें। Abnnews24.com इस जानकारी के लिए जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।)
एबीएन हेल्थ डेस्क। आज के समय में हाई ब्लड प्रेशर यानी उच्च रक्तचाप एक आम समस्या बन चुका है, जिसे साइलेंट किलर के नाम से भी जाना जाता है। शुरूआत में इसके लक्षण नजर नहीं आते, लेकिन समय के साथ यह खतरनाक रूप ले सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, हाई बीपी का सबसे पहले असर हमारे शरीर के उस अंग पर दिखता है, जो सबसे संवेदनशील है : यानी आंख।
हाई ब्लड प्रेशर के प्रभाव का सबसे पहला संकेत आंखों में रेटिना पर दिखाई देता है। रेटिना में मौजूद छोटी ब्लड वेसल्स रक्तचाप में मामूली बदलाव को भी तुरंत दर्शाती हैं। जैसे-जैसे ब्लड प्रेशर बढ़ता है, ये वेसल्स पहले की तुलना में सख्त और संकरी नजर आने लगती हैं। इसका असर आंखों में साफ दिखाई देता है और डॉक्टर इसके माध्यम से मरीज की हाई बीपी की स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं।
अगर हाई बीपी लंबे समय तक बनी रहती है, तो रेटिना को नुकसान पहुंचता है, जिसे मेडिकल टर्म में हाइपरटेंसिव रेटिनोपैथी कहा जाता है। इस स्थिति में रेटिनल आर्टरीज सख्त और मोटी हो जाती हैं। समय के साथ इन आर्टरीज के चारों तरफ सिल्वर वायरिंग दिखाई देने लगती है और ब्लड फ्लो बाधित होने लगता है, जिसे आर्टीरियोवेनस निकिंग कहा जाता है।
अगर यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहे, तो इससे दृष्टि पर असर पड़ने लगता है। इसके अलावा रेटिनल वेन आॅक्लूजन, रेटिनल आर्टरी आॅक्लूजन, मैलिग्नेंट हाइपरटेंशन और आंखों में सूजन या फ्लूएड रिसाव जैसी गंभीर समस्याएं भी हो सकती हैं। लंबे समय तक हाई बीपी का प्रभाव हार्ट और किडनी सहित आंखों पर भी गहरा असर डालता है।
नई दिल्ली के निजी अस्पताल की प्रतिष्ठित नेत्र विशेषज्ञ डॉ रामचंद्र सिंह का कहना है, हाई बीपी सिर्फ हार्ट और किडनी पर असर नहीं डालता, यह आंखों को भी नुकसान पहुंचाता है। इसलिए हाई बीपी के मरीजों को नियमित रूप से आंखों की जांच करवाते रहना चाहिए ताकि समय रहते किसी गंभीर समस्या से बचा जा सके।
टीम एबीएन, रांची। आज राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के सभागार में आयोजित एक महत्वपूर्ण बैठक में राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण, नई दिल्ली के मुख्य कार्यकारी पदाधिकारी सुनील कुमार बरनवाल ने झारखंड स्टेट आरोग्य सोसाइटी के अंतर्गत संचालित आयुष्मान भारत, मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना और आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन की समीक्षा की।
बैठक में झारखंड स्टेट आरोग्य सोसाइटी की कार्यकारी निदेशक डॉ नेहा अरोड़ा, अपर सचिव विद्यानंद शर्मा पंकज, प्रवीण चंद्र मिश्रा, जीएम, जेएसएएस तथा विभाग के अन्य अधिकारी उपस्थित रहे।
समीक्षा के दौरान कार्यकारी निदेशक डॉ नेहा अरोड़ा ने पीपीटी के माध्यम से आयुष्मान भारत - मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना की अद्यतन स्थिति की जानकारी दी। पहले चरण में सरकारी अस्पतालों में नंबर आॅफ केसेस केवल 10 प्रतिशत ही थे, लेकिन पिछले वर्ष यह भागीदारी 50 प्रतिशत तक पहुंच गयी।
श्री बरनवाल ने राज्य में 15 नवंबर 2025 तक ई-केवाईसी को राष्ट्रीय औसत के स्तर तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया। उन्होंने कहा कि राज्य में कम से कम 70% लाभार्थियों का ई-केवाईसी अनिवार्य रूप से पूरा होना चाहिए। इस हेतु व्यापक जन-जागरूकता अभियान चलाने के निर्देश भी दिये गये।
उन्होंने सार्वजनिक अस्पतालों की क्षमताओं को सुदृढ़ करने के लिए क्षेत्रीय कार्यशालाएं (रीजनल वर्कशॉप) आयोजित करने के निर्देश दिये। विशेष रूप से रांची सदर अस्पताल की तर्ज पर अन्य अस्पतालों में भी आॅनलाइन बुकिंग प्रणाली को प्रभावी ढंग से लागू करने पर बल दिया गया।
सीईओ ने कहा कि राज्य के अधिकांश सार्वजनिक अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की उपलब्धता है, लेकिन आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत बुकिंग की संख्या अपेक्षाकृत कम है। इस दिशा में सुधार की आवश्यकता जताई गई।
श्री बरनवाल ने फ्रॉड मामलों के संपन्न आॅडिट को रि आॅडिट करने का निर्देश दिया ताकि योजना की पारदर्शिता और विश्वसनीयता बनी रहे।
उन्होंने राज्य के सभी 6 मेडिकल कॉलेजों एवं अन्य सार्वजनिक अस्पतालों में बड़े पैकेजों को सक्रिय करने के लिए सभी आवश्यक कार्रवाई शीघ्रता से पूरी करने के निर्देश दिए।
आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के बारे में बताते हुए कार्यकारी निदेशक ने कहा कि इसके लिए कई पहल की जा रही हैं। इसके अंतर्गत संबंधित चिकित्सकीय संस्थानों और चिकित्सकों का डाटा एंट्री किया जा रहा है। साथ ही, मरीजों का डिजिटल रिकॉर्ड एकत्र किया जा रहा है।
यह समीक्षा बैठक झारखंड में आयुष्मान भारत योजना की प्रभावशीलता, पारदर्शिता और लाभुकों तक प्रभावी पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में आयोजित की गयी।
एबीएन हेल्थ डेस्क। एक सेब रोज खाओ और डॉक्टर से दूर रहो। सेब के बारे में ये कहावत काफी प्रचलित है। पूरी दुनिया में सेब काफी पसंद किये जाते हैं। कई तरह के रंगों और स्वाद में मिलने वाले सेब के बारे में कहा जाता है कि यह हमें स्वस्थ रहने में मदद कर सकता है। हर साल दुनिया में 10 करोड़ टन सेब पैदा होता है। रोज एक सेब खाकर डॉक्टर को दूर रखने वाली कहावत 1866 में वेल्स की लिखी बात से निकली है, जो कहती है सोने से पहले एक सेब खाकर आप किसी डॉक्टर को रोजी कमाने से महरूम रख सकते हैं।
क्या दूसरे फलों की तुलना में सेब सेहत के लिए ज्यादा अच्छे होते हैं। सबसे पहले ये जान लेते हैं कि सेब में कौन से पोषक तत्व होते हैं। सेब फ़्लेवानोल्स समेत फायटोकेमिकल्स के अच्छे स्रोत होते हैं। इसके कई फायदे होते हैं। दिल को स्वस्थ रखने और वजन कम करने में इससे मदद मिलती है। जाहिर है ये तत्व हृदय रोग का जोखिम कम करता है। सेब सेहत के लिए इतना अच्छा क्यों माना जाता है? सेब में कई प्रकार के पॉलीफेनॉल्स होते हैं, जिसमें एन्थोकेनिन्स भी शामिल है। ये सेब के छिलके को लाल रंग देता है और यह हृदय को भी स्वस्थ रखने में मदद करता है। फ़्लोर्दिजिन एक और पॉलीफेनॉल है जो सेब में पाया जाता है।
इसे खून में ग्लूकोज नियंत्रित करने में मददगार पाया गया है। सेब में काफी मात्रा में फाइबर पाया जाता है, जिसमें सबसे ज्यादा पेक्टिन होता है जो खून में लो डेनसिटी लिपोप्रोटीन्स (एलडीएल- इसे बैड कॉलेस्ट्रोल कहते हैं) की मात्रा कम करता है। हम अपने भोजन से जो शुगर और फैट ग्रहण करते हैं उसे पेक्टिन कम करता है। इस तरह ये हमारे खून में ग्लूकोज के स्तर को स्थिर रखता है। सेब में मौजूद ये न्यूट्रिएंट्स शरीर को स्वस्थ रखने में कारगर मालूम होते हैं। 2017 में पांच अध्ययनों के रिव्यू से से पता चला कि नियमित सेब खाने से टाइप 2 डायबिटीज पनपने का खतरा 18 फीसदी तक कम हो सकता है। 2022 में 18 स्टडीज के एक और रिव्यू के मुताबिक ज्यादा सेब खाने या सेब का रस पीने से कॉलेस्ट्रोल कम हो सकता है।
लेकिन ये तभी कारगर होता है जब आप अपनी इस आदत को एक हफ़्ते से ज्यादा बनाए रखते हैं। आमतौर पर पौष्टिक भोजन से कैंसर का खतरा 40 फीसदी कम हो जाता है। पौष्टिक भोजन में मौजूद बायोएक्टिव कंपाउंड और फोटोकेमिकल्स इसका जोखिम कम करने में मददगार साबित होते हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या सेब दूसरे ऐसे खाद्य पदार्थों से बेहतर है जो पौधों से प्राप्त होते हैं? अमेरिका की मिडिल टेनेसी यूनिवर्सिटी में न्यूट्रिशन और फूड साइंस की प्रोफेसर जेनेट कोलसन कहती हैं, सेब में ज्यादा विटामिन सी नहीं होता। आयरन और कैल्शियम भी ज़्यादा नहीं होता। लेकिन इसमें कई और ऐसे तत्व होते हैं जो बेहतर स्वास्थ्य बनाये रखने में कारगर होते हैं।
इटली की वेरोना यूनिवर्सिटी में प्लांट बायोलॉजी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर, फ़्लविया गूजो का कहना है कि सेब में कई ऐसे कंपाउंड्स होते हैं, जो कई फलों और सब्जियों में भी समान रूप से पाये जाते हैं। इनमें फायदेमंद पॉलीफेनोल्स भी शामिल हैं। पॉलीफेनोल्स ताकतवर एंटीआॅक्सिडेंट अणु होते हैं। ये हमारे शरीर में एंटीआक्सीडेंट और फ्री रेडिकल्स के अनुपात को संतुलित करने में मदद करते हैं। फ्री रेडिकल्स तेजी से प्रतिक्रिया करने वाले और कोशिकाओं को नुकसान पहुुचाने वाले आक्सीजन अणु होते हैं। फ्री रेडिकल्स को नियंत्रण में रखकर हम लंबे समय तक कैंसर और हृदय रोग को बढ़ने से रोक सकते हैं।
अमेरिका के न्यू हैम्पशायर स्थित डार्टमाउथ गीसेल स्कूल आॅफ मेडिसिन में महामारी विज्ञान के सहायक एसोसिएट प्रोफेसर मैथ्यू डेविस का कहना है कि रोजाना सेब खाने और डॉक्टर के पास जाने की संभावना के बीच ज़्यादा संबंध नहीं पाया गया है। वो कहते हैं हमारे विश्लेषण के आधार पर ये निष्कर्ष निकला कि जो लोग सेब खाते हैं, वे सामान्य रूप से अधिक स्वस्थ होते हैं। लेकिन शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जो लोग रोजाना सेब खाते हैं, उनके दवाओं पर निर्भर रहने की संभावना कम होती है। यह निष्कर्ष तब भी अहम रहा जब प्रतिभागियों के सामाजिक-आर्थिक स्तर के फासले के मद्देनजर विश्लेषण किया गया। इसलिए शोधपत्र का निष्कर्ष है कि कहावत को थोड़ा बदला जा सकता है- रोजाना एक सेब खाओ, फार्मासिस्ट से दूर रहो। हालांकि डेविस को रोजाना एक सेब वाली कहावत से कुछ आपत्ति है।
वो कहते हैं कि संभव है कि उन्होंने और उनके साथियों ने रोजाना सेब खाने और डॉक्टर के पास जाने के बीच कोई ठोस संबंध इसलिए नहीं पाया क्योंकि इसके पीछे कुछ और कारण भी हो सकते हैं। वो कहते हैं इस कहावत में छिपी इस धारणा को मान लिया जाता है कि लोग डॉक्टर के पास केवल तब जाते हैं जब वे बीमार होते हैं। लेकिन लोग सालाना हेल्थ चेकअप और बीमारियों की रोकथाम के लिए जरूरी सलाह लेने के लिए भी डॉक्टर के पास जाते हैं। लेकिन आखिरकार वो कहते हैं कि ये धारणा गलत है कि सिर्फ सेब खाने भर से ही आपको डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। दरअसल, आपका पूरा खाना पौष्टिक और सेहतमंद होना चाहिए।
कोलसन भी इस बात से सहमत हैं कि रोजाना एक सेब वाली कहावत का आशय यह है कि लोग नियमित रूप से पौधों से हासिल भोजन लें। सेब इसका एक अच्छा उदाहरण हैं क्योंकि ये आसानी से उपलब्ध हैं। किफायती हैं और इसे लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है। वो कहती हैं फ्रिज आने से पहले लोग सेबों को तहखाने में रखते थे और वे लंबे समय तक ताजा रहते थे। उनमें फफूंद भी नहीं लगती थी। अन्य शोधों में यह पाया गया है कि रोजाना सेब खाने से सेहत को लाभ होता है। लेकिन यह केवल तब जब लोग दिन में एक से अधिक सेब खाते हैं। एक अध्ययन में पाया गया कि रोजाना तीन सेब खाने से लोगों के वजन में कमी आयी।
2020 में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 40 प्रतिभागियों (इन सभी का कोलेस्ट्रॉल स्तर थोड़ा ऊंचा था) को दो समूहों में बांटा। एक समूह को रोजाना दो सेब खाने को कहा गया, जबकि दूसरे समूह को उतनी ही कैलोरी वाला सेब से बना ड्रिंक दिया गया। यह प्रयोग आठ सप्ताह तक चला और प्रतिभागियों ने सेब या इससे बने ड्रिंक के अलावा अपने खानपान में कोई और बदलाव नहीं किया। शोधकर्ताओं ने पाया कि सेब खाने वाले प्रतिभागियों का कोलेस्ट्रॉल स्तर स्टडी के अंत में अहम रूप से कम हो गया। हालांकि इस अध्ययन की एक कमजोरी यह थी कि इसमें केवल 40 प्रतिभागी थे। जो किसी बड़े निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए जरूरी सैंपल से संख्या में कम थे।
एक और अध्ययन में पाया गया कि रोजाना तीन सेब खाने से लोगों का वजन घटा है और ब्लड ग्लूकोज लेवल में सुधार देखा गया। यह अध्ययन अधिक वजन वाली 40 से ज्यादा महिलाओं पर किया गया गया था। जहां तक सेब को खाने का सबसे अच्छा तरीके का मामला है तो रिसर्चर कहते हैं कि सेब का छिलका न उतारें, क्योंकि सेब के छिलके में कई पोषक तत्व और एंटीआक्सीडेंट होते हैं। वो कहती हैं, हमें सेब का छिलका जरूर खाना चाहिए, क्योंकि सेब के अधिकांश पॉलीफेनॉल्स वहीं पाये जाते हैं। उनके मुताबिक जितनी पुरानी प्रजाति का सेब होगा वो नयी प्रजाति से बेहतर होगा।
2021 में, उन्होंने और उनके सहयोगियों ने एक रिसर्च पेपर प्रकाशित किया जिसमें पॉम प्रुशियन नामक एक प्राचीन इटली के उत्तरी भाग में मिलने वाले सेब का अध्ययन किया गया था। उन्होंने पाया कि इस किस्म आधुनिक सेबों की तुलना में अधिक पॉलीफेनॉल्स था। वो कहती हैं, हालांकि जब सेब की नयी किस्में तैयार की जाती हैं तो आमतौर पर अन्य गुणों पर ध्यान देते हैं — जैसे आकार, स्वाद, और पेड़ों की मजबूती पर ध्यान दिया जाता है। वो कहती हैं जहां तक रंग की बात है तो इसका उतना महत्व नहीं है। सेब के छिलकों को लाल या हरा रंग ही देते हैं।
टीम एबीएन, रांची। डॉ बरियार फिजियोथेरेपी एंड न्यूरोरिहैबिलिटेशन द्वारा सिनर्जी ग्लोबल हॉस्पिटल के फिजियोथेरेपी विभाग में सोमवार, 8 सितम्बर को विश्व फिजियोथेरेपी दिवस बड़ी धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया गया। इस वर्ष का विषय था : स्वस्थ बुढ़ापे में फिजियोथेरेपी और शारीरिक गतिविधि की भूमिका - दुर्बलता और गिरने से बचाव पर विशेष ध्यान।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन एवं गणेश वंदना के साथ हुई। मौके पर मुख्य अतिथि न्यूरोसर्जन विशेषज्ञ डॉ सीबी सहाय, हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ रजनीश कुमार, हड्डी एवं स्पाइन रोग विशेषज्ञ डॉ विभाष चंद्रा, हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ राहुल सिन्हा, सीनियर प्लास्टिक सर्जन और डॉ विवेक गोस्वामी उपस्थित थे। सभी अतिथियों का डीबीपीआर परिवार की ओर से स्वागत एवं सम्मान किया गया।
मौके पर डॉ ज्योत्सना रत्नम्, डॉ अफजल अहमद, डॉ आर्यन राजा, डॉ नेहा शर्मा, डॉ शिवानी, डॉ शीला, डॉ धीरज, डॉ पल्लवी, डॉ रश्मि, डॉ तसनीम, डॉ अंगद और डॉ अमृत ने कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
कार्यक्रम का समापन डॉ ज्योत्सना रत्नम् के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। उन्होंने कहा कि एजिंग का आनंद लें, सही जानकारी के साथ आगे बढ़ें। यदि दर्द, मांसपेशियों की कमजोरी या असामान्यता का अनुभव हो, तो फिजियोथेरेपिस्ट से अवश्य मिलें और स्वस्थ रहे।
रिम्स में टूटने लगी मरीजों की आस, 30 से ज्यादा वेंटिलेटर खराब
विभिन्न विभागों में लगातार ऑपरेशन टाले जा रहे हैं। न्यूरो सर्जरी विभाग में पिछले दस दिनों में लगभग 20 से ज्यादा ऑपरेशन टाले जा चुके हैं। वहीं मेडिसिन, कार्डियोलॉजी, सर्जरी सहित कई अन्य विभागों में भी मशीनें खराब पड़ी हैं।
जानकारी के मुताबिक सबसे गंभीर स्थिति क्रिटिकल केयर विभाग की है, जहां क़रीब 10 वेंटिलेटर खराब पड़े हैं। इसका नतीजा यह है कि जिन मरीजों की हालत नाजुक होती है और जिन्हें तुरंत वेंटिलेटर की जरूरत होती है, उन्हें समय पर यह सुविधा नहीं मिल पाती। डॉक्टरों का कहना है कि वेंटिलेटर की कमी के बारे में प्रबंधन को कई बार पत्राचार किया गया है, लेकिन अब तक न तो किसी वेंटिलेटर की मरम्मत हो पाई है और न ही नए वेंटिलेटर खरीदे जा सके हैं।
उल्लेखनीय HC द्वारा रिम्स निर्देशक से इस विषय पर पूछे जाने पर निर्देशक डॉ राज कुमार ने बताया कि स्वास्थ्य मंत्री डॉ इरफान अंसारी द्वारा पत्र लिख कर कहा गया है कि उनकी अनुमति के बिना मशीनों की खरीदारी न की जाए।
मामले को लेकर हाईकोर्ट ने 14 सितंबर तक शासी परिषद की बैठक बुलाने और 19 सितंबर को सुनवाई की तारीख तय की है। उम्मीद जताई जा रही है कि जिस राज्य में विधायकों और मंत्रियों के लिए एयर एंबुलेंस जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं, वहां आम जनता और गरीब मरीजों की उम्मीदें भी इस बैठक के बाद कुछ हद तक पूरी हो सकेंगी।
Subscribe to our website and get the latest updates straight to your inbox.
टीम एबीएन न्यूज़ २४ अपने सभी प्रेरणाश्रोतों का अभिनन्दन करता है। आपके सहयोग और स्नेह के लिए धन्यवाद।
© www.abnnews24.com. All Rights Reserved. Designed by Inhouse