रांची। झारखंड में कोरोना वैक्सीन की कमी अब दूर होगी। इसके लिए कोरोना वैक्सीन की एक बड़ी खेप झारखंड पहुंची है। शुक्रवार को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से कोविशील्ड का 6 लाख डोज विशेष विमान से रांची के बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पहुंचा। जहां से उसे नामकुम स्थित स्टेट वेयर हाउस ले जाया गया, वहां से अब वैक्सीन को अलग-अलग जिलों को भेजा जाएगा। शुक्रवार को विशेष विमान से कोरोना वैक्सीन के 50 बॉक्स रांची पहुंचा, जिसमें कुल 6 लाख डोज (6 lakh doses) है। इससे पहले 9 अप्रैल को वैक्सीन का सबसे ज्यादा यानी 10 लाख डोज वैक्सीन रांची आया था, आज ये दूसरी सबसे बड़ी खेप 06 लाख की है। जुलाई महीने में झारखंड को कोविशील्ड और कोवैक्सीन मिलाकर करीब 25 लाख वैक्सीन फ्री-कोटा से मिलेगा, जबकि 08 लाख से ज्यादा वैक्सीन निजी संस्थानों के लिए रिजर्व रखा गया है। झारखंड पहुंचे 06 लाख डोज कोविशील्ड वैक्सीन में से 4 लाख 49 हजार 850 वैक्सीन अलग-अलग जिलों में डिस्ट्रीब्यूट कर दिया गया है। अलग-अलग जिलों से आए वैक्सीन वैन से स्टेट वेयर हाउस से वैक्सीन अलग-अलग जिलों के लिए भेजा गया है। बोकारो 28600, चतरा 14920, देवघर 20540, धनबाद 37210, दुमका 18240, पूर्वी सिंहभूम 28840, गढ़वा 18490, गिरिडीह 34690, गोड्डा 17940, गुमला 13890, हजारीबाग 23380, जामताड़ा 10710, खूंटी 6907, कोडरमा 9250, लातेहार 10040, लोहरदगा 6050, पाकुड़ 12390, पलामू 26530, रामगढ़ 12820, रांची 38820, साहिबगंज 16390, सरायकेला खरसावां 14620, सिमडेगा 7850 और पश्चिमी सिंहभूम 20640 डोज मिला है।
एबीएन डेस्क। कोरोना महामारी ने लगभग पूरी दुनिया को परेशान किया। अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और भारत जैसे बड़े देश भी इससे अछूते नहीं रह पाए। भारत में भी कोरोना ने जमकर कहर मचाया। अस्पतालों में बेड की कमी और आक्सीजन की किल्लत ने तो कई मासूमों की जान ले ली। वहीं, देश में बीते कुछ महीनों पहले कोरोना की जो दूसरी लहर आई, वो अब फिलहाल धीमी होती नजर आ रही है। लेकिन अब कोरोना की तीसरी लहर आने की आशंका जताई जा रही है। कहा जा रहा है कि भारत में तीसरी लहर आने का कारण कोरोना का नया रूप डेल्टा प्लस हो सकता है। वहीं, विश्व स्वास्थय संगठन यानी डब्ल्यूएचओ भी मान चुका है कि कोरोना का ये रूप बेहद खतरनाक है। ऐसे में इसके कुछ हल्के से लेकर गंभीर लक्षण हैं, जिन्हें हमें कभी भूलकर भी हल्के में लेने की गलती नहीं करनी है। तो चलिए जानते हैं इनके बारे में। क्या है डेल्टा प्लस : डेल्टा प्लस प्रकार वायरस के डेल्टा या बी1.617.2 प्रकार में उतपरिवर्तन होने से बना है। इस जीनोम का सबसे पहला क्रम इस साल मार्च महीने के आखिर में यूरोप में पाया गया था। वैज्ञानिकों ने कोरोना के इस नए रूप को डेल्टा प्लस एवाई 1 नाम दिया है। वहीं, माना जा रहा है कि ये भारत में कोरोना की तीसरी लहर आने का कारण बन सकता है। डेल्टा प्लस के सामान्य लक्षण : सूख खांसी होना, बुखार आना, थकान महसूस होना। डेल्टा प्लस के कम लक्षण : दर्द होना, त्वचा पर चकते होना, पैर की उंगलियों और उंगलियों का मलिनकिरण, गले में खराश, स्वाद और गंध की हानि, सिरदर्द होना, दस्त लगना। डेल्टा प्लस के गंभीर लक्षण : सांस फूलना, सीने में दर्द उठना, सांस लेने में कठिनाई होना, बोलने में तकलीफ होना।
एबीएन डेस्क, रांची। विश्व में अभी जो सबसे ज्यादा सक्रिय कोरोना वायरस के स्ट्रेन हैं, उनमें डेल्टा वैरिएंट (बी.1.617.2) भीषण संक्रामक है। यह सबसे पहले भारत में सामने आया था। डब्ल्यूएचओ ने भी इन चार स्ट्रेनों में से डेल्टा को लेकर ज्यादा चिंता जताई थी। इसने दूसरी लहर में भारत में कहर ढाया था। अब इससे ब्रिटेन व अमेरिका में डर पैदा हो रहा है। यह पूर्व में अमेरिका में फैले अल्फा स्ट्रेन के मुकाबले 60% ज्यादा संक्रामक है। चीन के चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुसार डेल्टा पीड़ितों की हालत तेजी से बिगड़ती है। इससे संक्रमित पस्त हो जाते हैं और उनमें सुधार बहुत धीमा होता है। इसी दौरान उनकी हालत बिगड़ने पर उनके साथ अनहोनी हो जाती है। अमेरिका के राष्ट्रीय संक्रामक बीमारी संस्थान के निदेशक डॉ. एंथोनी फोसी के अनुसार अमेरिका में इस समय कुल मामलों में डेल्टा स्ट्रेन से छह फीसदी लोग संक्रमित हैं। मिनेसोटा यूनिवर्सिटी में संक्रामक बीमारी रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर डॉ माइकेल ओस्टरहोल्म के अनुसार यह ज्यादा संक्रामक होने से अल्फा स्ट्रेन को पीछे छोड़ देगा। अमेरिका में हर दो सप्ताह डेल्टा वेरिएंट के मामले दोगुने हो रहे हैं। अमेरिका के जॉर्जिया, अलाबामा, वेस्ट वर्जीनिया, मिसीसिपी जैसे राज्यों में वैक्सीनेशन कम हुआ है। इसलिए सतर्कता की जरूरत बताई जा रही है। यदि नहीं संभले तो इंग्लैंड में 2020 में हुए हालात जैसी स्थिति बनने का खतरा बताया जा रहा है। डेल्टा संक्रमण ने यूरोप में चिंता पैदा कर दी है। इसके बढ़ते संक्रमण के कारण कुछ यूरोपीय देशों ने ब्रिटेन से लोगों की आवाजाही पर बंदिश लगाई हैं। चीन में डेल्टा संकट दक्षिण पूर्व में स्थित गुआंगझाउ शहर के आसपास केंद्रित है। यहां सरकार ने कुछ प्रतिबंध लगाए हैं।
एबीएन डेस्क, रांची। कोरोना की तीसरी लहर पर भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया ने चेतावनी जारी की है। उन्होंने कहा है कि यदि कोरोना गाइडलाइंस का पालन नहीं किया गया और बाजारों या टूरिस्ट स्पॉट पर लगने वाली भीड़ को नहीं रोका गया तो कोरोना की तीसरी लहर सिर्फ 6 से 8 हफ्तों में पूरे देश पर अटैक कर सकती है। डॉ गुलेरिया ने कहा कि अभी तक की रिसर्च में ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं कि कोरोना की तीसरी लहर बड़ों से ज्यादा बच्चों को प्रभावित करेगी। इससे पहले भारत के महामारी विशेषज्ञों ने पहले सितंबर-अक्टूबर तक कोरोना की तीसरी लहर आने की आशंका जतायी थी। देश में अप्रैल और मई महीने के बीच कोरोना की दूसरी लहर भारत में पीक पर पहुंची थी। इस बीच देशभर में कोरोना से मौतों की संख्या में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई थी। अधिकतर राज्यों में इस बीच आॅक्सीजन की शॉर्टेज भी देखी गई थी। इसके बाद पिछले कुछ दिनों से कोरोना के केस घटने शुरू हो गये हैं। तीसरी लहर रोकने के केवल 4 उपाय हैं : 1. भारत की ज्यादा से ज्यादा आबादी का वैक्सीनेशन करना होगा। 2. लोगों को कोविड गाइडलाइंस का पालन करना होगा। 3. ऐसे इलाकों की मॉनिटरिंग करनी होगी, जहां कोरोना केस तेजी से बढ़ रहे हैं। 4. जहां कोरोना पॉजिटिव मरीज 5% से ज्यादा है, वहां कंटेनमेंट क्षेत्र घोषित करें।
एबीएन डेस्क। छह देशों में किए गए एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि शाकाहारी और मछली आधारित आहार का सेवन करने वाले लोगों के लिए कोविड-19 महामारी से गंभीर रूप से पीड़ित होने का खतरा कम रहता है। हालांकि, अध्ययनकर्ताओं के अनुसार यह सर्वेक्षण अनुमान पर आधारित है और निश्चित तौर पर आहार और कोविड-19 स्तर के बीच संबंध को स्थापित नहीं करता। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अध्ययन के निष्कर्षों की व्याख्या करने में सावधानी बरते जाने की आवश्यकता है। बीएमजी न्यूट्रीशियन प्रिवेंशन एंड हेल्थ पत्रिका में प्रकाशित सर्वेक्षण के निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि शाकाहारी भोजन कोरोना से गंभीर रूप से पीड़ित होने के खतरे को 73 फीसदी तक जबकि मछली आधारित आहार 59 फीसदी तक कम कर सकता है। इससे पहले भी कई अध्ययनों में यह बात कही गई है कि कोविड के लक्षणों की गंभीरता व बीमारी की अवधि में आहार की अहम भूमिका हो सकती है। हालांकि इसे मानने या नकारने के लिए साक्ष्य बहुत कम हैं। इस नए सर्वेक्षण में जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, अमेरिका के अध्ययनकर्ता शामिल थे। अध्ययनकर्ताओं ने इस दौरान सार्स-सीओवी-2 से गंभीर रूप से पीड़ित रहे अग्रिम मोर्चे पर तैनात उन 2884 डॉक्टरों और नर्सों की प्रतिक्रिया जानी थी जो फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन, ब्रिटेन और अमेरिका में काम कर रहे हैं। जुलाई से सितंबर 2020 के बीच किए गए इस ऑनलाइन सर्वे में शामिल लोगों से पिछले साल उनके खानपान के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी गई थी।
एबीएन डेस्क, रांची। एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने मंगलवार को कोरोना वायरस की तीसरी लहर के दौरान बच्चों पर बताये जा रहे अधिक खतरे पर बात की। डॉ गुलेरिया ने कहा कि भारत या दुनिया का डाटा देखें, तो अबतक ऐसा कोई डाटा सामने नहीं आया है जिसमें यह दिखाया गया हो कि बच्चे अधिक संक्रमित हो रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रेसवार्ता में मौजूद डॉ गुलेरिया ने कहा कि यहां तक कि कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर के दौरान भी जो बच्चे इस वायरस से संक्रमित हुए, वह हल्के बीमार ही पड़े। उन्होंने आगे कहा कि मैं नहीं समझता कि हमें भविष्य में बच्चों पर किसी गंभीर संक्रमण का खतरा देखने को मिलेगा। केंद्र सरकार ने मंगलवार को कहा कि देश में रोजाना कोरोना वायरस के नए मामलों में लगातार और तेजी से गिरावट आ रही है। हालांकि सरकार ने जोर दिया कि कोविड-19 संबंधी उपयुक्त व्यवहार का पालन किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में किसी और लहर को आने से रोका जा सके। प्रेसवार्ता में स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा कि सात मई को चरम स्तर पर पहुंचने के बाद से दैनिक नए मामलों में करीब 79 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। उन्होंने कोविड की दूसरी लहर पर कहा कि दैनिक नए मामलों में लगातार और तेजी से गिरावट आई है। उन्होंने कहा कि भारत में प्रति दस लाख आबादी पर कोरोना के 20,822 मामले आए और 252 मौतें हुई हैं जो दुनिया में सबसे कम है। भविष्य में कोरोना की और लहरों को रोकने के लिए सरकार ने पूरी आबादी का टीकाकरण होने तक कोविड संबंधी व्यवहार का पालन करने पर जोर दिया।
नयी दिल्ली। केंद्र सरकार ने कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वाले नागरिकों के लिए नई गाइडलाइन जारी की है। इसके तहत अब आप 28 दिन बाद भी इसकी दूसरी डोज लगवा सकते हैं। लेकिन इसके लिए एक शर्त पूरी करनी होगी। शर्त ये है कि सिर्फ विदेश यात्रा पर जाने वाले लोग ही पहली खुराक के 28 दिन बाद कभी भी कोविशील्ड की दूसरी डोज लगवा सकते हैं। हालांकि, सामान्य तौर पर कोविशील्ड के लिए केंद्र सरकार ने पहली डोज और दूसरी डोज के बीच 12 से 16 हफ्ते का गैप रखा है। नई गाइडलाइन में कहा गया है कि विदेश यात्रा के लिए सिर्फ कोविशील्ड वालों को ही वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट दिया जायेगा। इस सर्टिफिकेट पर पासपोर्ट नंबर का भी जिक्र होगा। भारत की दूसरी वैक्सीन कोवैक्सीन इसके लिए क्वॉलिफाई नहीं कर रही है। यह गाइडलाइन उन लोगों के लिए जारी की गई है जो 18 साल से ज्यादा उम्र के हैं और 31 अगस्त तक विदेश यात्रा पर जाना चाहते हैं। इसमें पढ़ाई के लिए विदेश जा रहे स्टूडेंट्स, नौकरी के लिए विदेश जा रहे लोग, तोक्यो ओलिंपिक्स गेम्स में शामिल खिलाड़ी और उनके साथ जाने वाला स्टाफ शामिल है। ये व्यवस्था केवल इन्हीं के लिए की गई है। वैसे तो कोविशील्ड की दो डोज के बीच 12 से 16 हफ्ते का गैप का नियम है, लेकिन इस कैटेगरी में विदेश जाने वालों को जल्द ही दूसरी डोज लग सकती है। अथॉरिटी देखेगी कि पहली डोज को लगे हुए 28 दिन हो गए हैं या नहीं। जल्द ही इस कैटेगरी में विदेश जाने वालों के लिए ये खास व्यवस्था कोविन प्लेटफॉर्म पर भी दिखाई देगी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कोविड-19 की वैक्सीन लगवाने के लिए जरूरी फोटो आईडी में यूनीक डिसैबिलिटी आईडी कार्ड (यूडीआइडी) को भी शामिल करने का निर्देश दिया है। मालूम हो कि वैक्सीन लगवाने के लिए किसी भी मोड से रजिस्ट्रेशन कराने से पहले पहचान पत्र दिखाना होता है। ऐसे में दिव्यांग अब यूडीआईडी दिखाकर टीकाकरण का लाभ ले सकते हैं।
एबीएन डेस्क। कोवैक्सीन की तुलना में कोविशील्ड टीके से ज्यादा एंटीबॉडी बनती है, हालांकि दोनों टीके प्रतिरक्षा को मजबूत करने में बेहतर हैं। एहतियात के तौर पर दोनों टीकों की खुराकें ले चुके स्वास्थ्यकर्मियों पर किए गए रिसर्च में यह बात सामने आई है। यह अध्ययन अभी प्रकाशित नहीं हुआ है और इसे मेडआरएक्सिव पर छपने से पहले पोस्ट किया गया है। रिसर्च में 13 राज्यों के 22 शहरों के 515 स्वास्थ्यकर्मियों को शामिल किया गया। इनमें से 305 पुरुष और 210 महिलाएं थीं। सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया, आक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के कोविशील्ड टीके का निर्माण कर रही है। वहीं हैदराबाद स्थित कंपनी भारत बायोटेक, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) के साथ तालमेल से कोवैक्सीन का निर्माण कर रही है। रिसर्च में शामिल होने वालों के खून के नमूनों में एंटीबॉडी और इसके स्तर की जांच की गयी। अध्ययन के अग्रणी लेखक और जीडी हॉस्पिटल एंड डायबिटिक इंस्टीट्यूट, कोलकाता में कंसल्टेंट एंडोक्राइनोलॉजिस्ट (मधुमेह रोग विशेषज्ञ) अवधेश कुमार सिंह ने ट्वीट किया, दोनों खुराक लिए जाने के बाद दोनों टीकों ने प्रतिरक्षा को मजबूत करने का काम किया। हालांकि, कोवैक्सीन की तुलना में सीरो पॉजिटिविटी दर और एंटीबॉडी स्तर कोविशील्ड में ज्यादा रहा। कोवैक्सीन की खुराकें लेने वालों की तुलना में कोविशील्ड लेने वाले ज्यादातर लोगों में सीरो पॉजिटिविटी दर अधिक थी। अध्ययन के लेखक ने कहा, 515 स्वास्थ्यकर्मियों में दोनों टीकों की दोनों खुराकें लेने के बाद 95 प्रतिशत में सीरो पॉजिटिविटी दिखी। इनमें से 425 लोगों ने कोविशील्ड और 90 लोगों ने कोवैक्सीन की खुराकें ली थी और सीरो पॉजिटिविटी दर क्रमश: 98.1 प्रतिशत और 80 प्रतिशत रही। सीरो पॉजिटिविटी का संदर्भ किसी व्यक्ति के शरीर में बनने वाली एंटीबॉडी से है। अहमदाबाद के विजयरत्न डायबिटिक सेंटर, कोलकाता के जी डी हॉस्पिटल एंड डायबिटिक इंस्टीट्यूट, धनबाद के डायबिटिक एंड हार्ट रिसर्च सेंटर और जयपुर में राजस्थान हॉस्पिटल और महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल के शोधकतार्ओं ने यह अध्ययन किया। अध्ययनकतार्ओं ने कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके और जो लोग संक्रमित नहीं भी हुए उनमें दोनों खुराकें लेने के बाद के नतीजे की तुलना की। ऐसा पाया गया कि जो प्रतिभागी दोनों टीकों की पहली खुराक के कम से कम छह सप्ताह पहले कोविड-19 से उबर गए थे और बाद में दोनों खुराकें ले ली थी, उनमें सीरो पॉजिटिविटी दर 100 प्रतिशत रही और दूसरों की तुलना में उनमें एंटीबॉडी का ज्यादा स्तर था।
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