टीम एबीएन, रांची। सरकारी कर्मचारियों के लिए राज्य कर्मी स्वास्थ्य बीमा योजना वरदान साबित हो रही है। करीब 2 महीने की अल्प अवधि में ही इस योजना के तहत 500 से अधिक लाभुकों का इलाज किया जा चुका है। एक लाभुक को 24 लाख से अधिक तो एक के करीब 14 लाख रुपये का कैशलेस इलाज किया जा चुका है। राज्य में अवस्थित अस्पतालों के साथ राज्य के बाहर अवस्थित अस्पतालों में भी इलाज करवा रहे हैं। साथ ही सूचीबद्ध अस्पतालों के अतिरिक्त अस्पताल में भी सीजीएचएस प्रावधानों के अनुसार इलाज किया जा रहा है।
राज्य कर्मी स्वास्थ्य बीमा योजना की शुरुआत जब 1 मार्च को हुई तो किसी ने यह अंदाजा भी नहीं लगाया था यह योजना इतनी लोकप्रिय होगी। अब तक राज्य सरकार के करीब एक लाख 83 हजार से अधिक कर्मचारी, पदाधिकारी और पेंशनरों एवं 4 लाख 65 हजार उनके आश्रित को इस योजना के अंतर्गत शामिल किया गया है। इसके अतिरिक्त झारखंड राज्य के उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करने वाले लगभग 15 हजार अधिवक्ताओं को भी इसी योजना के अंतर्गत शामिल किया गया है। योजना के अंतर्गत कर्मचारी, पदाधिकारी या अन्य लाभुकों की भागीदारी दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।
बीमा कंपनी ने कर्मचारियों के समुचित इलाज के लिए राज्य के 192 और राज्य के बाहर 673 अस्पतालों को सूचीबद्ध किया है। योजना के अंतर्गत देश के 169 शहरों के अस्पतालों को आच्छादित किया गया है। देश के सभी मुख्य शहरों के बड़े अस्पतालों को आच्छादन की योजना है। सूचीबद्ध अस्पतालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। राज्य के सभी प्रमुख अस्पताल जैसे आर्किड, पल्स, सैंफोर्ड, पारस, राज, हेल्थ प्वाइंट जैसे अस्पताल इस के अंतर्गत सूचीबद्ध हैं। इसके साथ मैक्स, यथार्थ ग्रुप, अपोलो और बीएम बिरला जैसे बड़े अस्पतालों में भी कैशलेस इलाज की सुविधा उपलब्ध है।
विभाग से मिली जानकारी के अनुसार अब तक इस योजना के तहत करीब 600 कर्मचारियों ने अपना कैशलेस एवं रिमबर्समेंट मोड (सीजीएचएस दर) में इलाज का लाभ लिया गया है। सूचीबद्ध अस्पतालों के अतिरिक्त अन्य अस्पतालों से इलाज करवाने पर भारत सरकार के द्वारा तय सीजीएचएस के दर पर भुगतान करने का प्रावधान किया गया है। यहां ध्यातव्य है कि इस योजना के अंतर्गत कैशलेस पैकेज की दर में सीजीएचएस की दर से भी अधिक राशि का प्रावधान किया गया है। इलाज के पैकेज में रूम रेंट, मेडिकल प्रोसिडयोर, नर्सिंग खर्च आदि सभी आवश्यक खर्चों का प्रावधान किया गया है।
हम आपको बता दें की योजना के अंतर्गत प्रारंभिक अवस्था में 5 लाख और गंभीर बीमारी की अवस्था में 10 लाख का बीमा कवरेज किया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर 10 लाख से ऊपर आने वाली सारी राशि को कॉरपस फंड से दिया जाता है। इसके अंतर्गत एयर एंबुलेंस की सुविधा भी उपलब्ध कराने हेतु अग्रतर कार्रवाई की जा रही है। योजना की सबसे बड़ी विशेषता यह है की योजना का लाभ पहले दिन से ही मिलना शुरू हो जाता है यानी इसमें कोई वेटिंग पीरियड नहीं है।
साथ ही यदि कोई पहले से बीमारी है उस स्थिति में भी बीमा कवरेज दिया जाता है जबकि अन्य योजनाओं में पहले चेकअप किया जाता है और उच्च प्रीमियम की राशि देनी होती है। इसमें कोई उम्र की सीमा भी नहीं है। महिलाओं के लिए मातृत्व लाभ भी पहले दिन से ही शुरू हो जाता है। विभाग एक मोबाइल एप भी डेवलप कर रहा है। इस ऐप के माध्यम से लाभुक संबंधित सारी जानकारी प्राप्त कर सकेंगे, जैसे वॉलेट में उपलब्ध राशि, इलाज की विवरणी, अस्पताल एवं वहां उपलब्ध इलाज की सुविधा इस माध्यम से उपलब्ध होगी।
एक राज्य कर्मी की सड़क पर दुर्घटना हो गयी। अभी वे से रांची के बहुत बड़े मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल में इलाजरत हैं। उनके इलाज के मद में इस योजना के अंतर्गत अब तक 24 लाख 91 हजार रुपये का भुगतान संबंधित अस्पताल को किया जा चुका है। साथ ही आगे भी 12 लाख रुपये जल्द दिये जायेंगे। इस प्रकार एक अन्य राज्यकर्मी जो की किडनी की बीमारी से पीड़ित हैं उनके इलाज के लिए राज्य के बाहर एवं राज्य के अंतर्गत अस्पतालों में करीब 14 लख रुपये की राशि उपलब्ध करायी गयी है।
टीम एबीएन, रांची। झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री डॉ इरफान अंसारी ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि राज्य की सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति और आदिवासी बहुलता को देखते हुए स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार के लिए विशेष पैकेज दिया जाये। उन्होंने यह मांग केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा द्वारा वर्चुअल माध्यम से आयोजित स्वास्थ्य कार्यक्रमों की समीक्षा बैठक में रखी।
नामकुम स्थित राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के आरसीएच सभागार से इस बैठक में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉ अंसारी ने भाग लिया। उनके साथ अपर मुख्य सचिव अजय कुमार सिंह, अभियान निदेशक अबु इमरान, स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक प्रमुख डॉ चंद्र किशोर शाही एवं अन्य अधिकारी उपस्थित थे। बैठक में टीबी मुक्त भारत अभियान, खसरा-रूबेला टीकाकरण, प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन, 15वां वित्त आयोग अनुदान, और पीएसए प्लांट संचालन पर चर्चा की गयी।
डॉ अंसारी ने बताया कि झारखंड में टीबी मरीजों को अब निक्षय आहार योजना के तहत 500 रुपये के स्थान पर 1000 रुपये प्रति माह पोषण सहायता दी जा रही है। अब तक 12 करोड़ रुपये डीबीटी के माध्यम से मरीजों को हस्तांतरित किए जा चुके हैं। राज्य में अब तक 226 पंचायतों को टीबी मुक्त घोषित किया जा चुका है। साथ ही 100 दिवसीय टीबी मुक्त भारत अभियान को राज्य में गंभीरता से चलाया जा रहा है।
खसरा एवं रुबेला की रोकथाम के लिए वर्ष 2023 में 9 उच्च जोखिम जिलों : साहेबगंज, पाकुड़, गोड्डा, जामताड़ा, धनबाद, देवघर, गिरिडीह, कोडरमा और दुमका में 45 लाख बच्चों का टीकाकरण किया गया। वहीं वित्तीय वर्ष 2024-25 में टफ-1 टीका 8,41,319 बच्चों को और टफ-2 टीका 7,83,165 बच्चों को दिया गया। इसके लिए व्यापक जन-जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है।
डॉ अंसारी ने रांची में एम्स की स्थापना, पांच नये मेडिकल कॉलेज और एक मेडिकल सिटी की मांग दोहराते हुए कहा कि झारखंड जैसे पिछड़े राज्य को स्वास्थ्य के क्षेत्र में विशेष प्राथमिकता दी जानी चाहिए। बैठक के दौरान केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने राज्य में स्वास्थ्य विभाग के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि आप अच्छा कार्य कर रहे हैं, मैं आपकी सोच की सराहना करता हूं और हर संभव मदद करूंगा। उन्होंने डॉ अंसारी को निर्देशित किया कि वे एक सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट के साथ दिल्ली आयें, जिससे झारखंड की आवश्यकताओं पर विस्तृत चर्चा की जा सके।
डॉ अंसारी ने जानकारी दी कि 1170 पंचायतों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र निर्माण की मंजूरी मिल चुकी है, और स्वास्थ्य विभाग तेजी से कार्य कर रहा है ताकि दूर-दराज और दुर्गम क्षेत्रों में भी स्वास्थ्य सुविधाएं सुलभ करायी जा सकें। कोरोना के वर्तमान जेएन-1 वैरिएंट को लेकर भी राज्य सरकार अलर्ट मोड में है। सभी सिविल सर्जनों को तैयारी के निर्देश दिए गए हैं।
राज्य के सभी प्लांट क्रियाशील हैं और शीघ्र ही मॉक ड्रिल के माध्यम से तैयारियों का आकलन किया जायेगा। बैठक में केंद्र सरकार द्वारा 15वें वित्त आयोग की स्वास्थ्य अनुदान राशि को इस वित्तीय वर्ष में प्राथमिकता के साथ खर्च करने के निर्देश भी दिये गये।
टीम एबीएन, रांची। झारखंड फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड के सदस्य और प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक लाल विजय शाहदेव कोरोना वायरस से संक्रमित पाये गये हैं। उन्होंने रविवार को स्वयं सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर इसकी पुष्टि की है। एक बार फिर कोरोना वायरस अपना पांव पसार रहा है। देश के विभिन्न क्षेत्रों से मामले सामने आ रहे हैं। इस बीच 2025 में झारखंड की राजधानी रांची में यह पहला मामला सामने आया है।
सोशल मीडिया फेसबुक पेज पर साझा की गई जानकारी में शाहदेव ने लिखा, भारत में कल तक 257 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं और मैं भी उनमें शामिल गया हूं। 22 मई को जब मैं मुंबई से रांची आ रहा था, उसी दौरान फ्लाइट में मेरी तबीयत बिगड़ गई और मैं बेहोश हो गया।
लाल विजय शाहदेव ने बताया कि वे रांची लौटने के बाद कुछ फिल्मों का प्रिव्यू करने वाले थे लेकिन स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण वे यह कार्य नहीं कर सके। फिलहाल उनका इलाज रांची के प्रतिष्ठित निजी अस्पताल में डॉक्टर मोहित नारायण की निगरानी में हो रहा है। अस्पताल में दिनेश झा उनकी देखभाल कर रहे हैं।
उन्होंने आगे लिखा, अब मैं पहले से बेहतर महसूस कर रहा हूं। इसके साथ ही उन्होंने अपने संपर्क में आए सभी लोगों से अपील की है कि यदि किसी को सिरदर्द, बदन दर्द, बुखार, खांसी या सर्दी जैसे लक्षण महसूस हों तो वे तुरंत कोरोना टेस्ट करवाएं।
इस मामले को लेकर रांची सिविल सर्जन डॉक्टर प्रभात ने कहा है कि निजी अस्पताल में झारखंड फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड के सदस्य प्रबीर शाहदेव उर्फ लाल विजय शाहदेव कोरोना संक्रमित होकर भर्ती हुए हैं। उनके संपर्क में आये तमाम लोगों को चिन्हित किया जा रहा है। एक स्पेशल टीम गठित कर इस मामले की पड़ताल की जा रही है, जो जानकारी मिली है उसके अनुसार मुंबई से रांची आने के क्रम में 22 मई को उनकी तबीयत फ्लाइट में ही बिगड़ी थी।
सिविल सर्जन ने शहर के लोगों से अपील की है कि कोरोना को लेकर वह सतर्क रहें, डरने की जरूरत नहीं है। स्वास्थ्य महकमा इसे लेकर सतर्क है और लोगों को जागरुक भी कर रहा है। वहीं सभी सरकारी और निजी अस्पतालों को भी सतर्कता बरतने का निर्देश दिया गया है। कोरोना के लक्षण दिखने वाले लोगों पर विशेष ध्यान देते हुए वैसे मरीजों को आइसोलेट करने का भी निर्देश दिया गया है।
एबीएन हेल्थ डेस्क। कोविड-19 महामारी के कई साल बाद भी इस बीमारी का वायरस सक्रिय है। हॉन्गकॉन्ग, सिंगापुर और थाईलैंड में इस बीमारी के प्रसार के लिए जिम्मेदार वैरिएंट जेएन.1 को पहली बार अगस्त 2023 में पहचाना गया था। यह ओमिक्रोन वैरिएंट का ही एक प्रकार है, जो बहुत अधिक संक्रामक है। हाल के दिनों में कोविड के मामले तेजी से बढ़े हैं और भारत में भी अब तक इसके 257 सक्रिय मामले दर्ज हो चुके हैं, जिससे चिंता की लहर दौड़ गयी है।
हालांकि 1.4 अरब की आबादी वाले इस देश में यह संख्या बहुत मामूली लग सकती है लेकिन इस पर लापरवाही नहीं होनी चाहिए। स्वास्थ्य कर्मियों और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले समूहों मसलन बुजुर्गों और बच्चों के लिए कोविड खासा दिक्कतदेह हो सकता है। खबरों के मुताबिक सरकार हालात पर नजर बनाये हुए है। कोविड 19 का बार-बार सिर उठाना बताता है कि यह अब स्थानीय बीमारी में बदल चुका है।
संक्रमण में हालिया इजाफे की कई वजह हो सकती हैं। इनमें टीके से मिली रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म होना, बूस्टर खुराक न लेना और सामूहिक प्रतिरक्षा का कमजोर पड़ना शामिल हैं। देश में टीकाकरण के प्रयास भी ढीले हो गए हैं। यह नया सब-वैरिएंट बताता है कि वायरस अपना रूप बदलने और खुद को ढालने में सक्षम है। ऐसे में मौजूदा टीकों की क्षमता भी सवालों के घेरे में है।
प्रतिरक्षा कमजोर पड़ने की संभावना का भी सरकार द्वारा समुचित अध्ययन किया जाना चाहिए। टीकाकरण के शुरूआती दौर के बाद जहां मौत और अस्पताल में दाखिलों की तादाद में तेजी से कमी आई थी वहीं ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उनसे मिला बचाव समय के साथ खत्म हो रहा है। इसका अर्थ है कि हमें वायरस के नए रूपों में सामने आने के साथ ही नयी टीकाकरण नीति भी अपनानी होगी।
कई विकसित देश कोविड-19 टीके की बूस्टर खुराक हर साल लगाने की पेशकश कर रहे हैं, खास तौर पर उन समूहों को जो अधिक जोखिम में हैं। भारत को भी इसी मॉडल पर विचार करना चाहिए। बुजुर्गों को, गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोगों को और स्वास्थ्यकर्मियों को नियमित रूप से टीकाकरण में प्राथमिकता देनी चाहिए। ये टीके भी बदलते वैरिएंट के लिहाज से उन्नत होने चाहिए।
एमआरएनए का विज्ञान ऐसा है कि उस पर आधारित टीकों को अपेक्षाकृत जल्दी बदला जा सकता है और टीके लगाने का बुनियादी ढांचा पहले से मौजूद है। कोविन ऐप को बड़े स्तर पर इस्तेमाल करने की क्षमता के कारण हम महामारी के दौरान लाखों लोगों को बहुत कम समय में टीका लगा सके। तैयारी केवल टीके तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। इसमें जागरूकता और लोगों के व्यवहार में बदलाव भी शामिल होना चाहिए।
जागरूकता अभियान भयभीत करने के लिए नहीं बल्कि बचाव के सरल मगर कारगर व्यवहार पर जोर देने के लिए चलाये जाने चाहिए। भीड़-भाड़ वाली सार्वजनिक जगहों पर मास्क पहनें, नियमित रूप से हाथ साफ करें और कम हवादार जगहों पर जाने से बचें। इससे संक्रमण का प्रसार रूक सकता है। इन उपायों को अपनाने से काफी बदलाव आ सकता है, खास तौर पर जहां जनसंख्या का घनत्व अधिक है।
सकारात्मक बात यह है कि हालिया वैश्विक घटनाक्रम देखते हुए हम तैयारी को लेकर सचेत हैं। तीन सालों की गहन बातचीत के बाद एक वैधानिक रूप से बाध्यकारी महामारी समझौता मंजूर किया जा चुका है। इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्य देशों की हालिया विश्व स्वास्थ्य असेंबली में मंजूर किया गया। यह समझौता कहता है कि टीके और जरूरी संसाधन सभी को उपलब्ध होने चाहिए और राष्ट्रीय स्तर पर तैयारी की पुख्ता योजना होनी चाहिए।
हालांकि रोगाणु और डेटा साझेदारी से संबंधित पैथोजन एक्सेस ऐंड बेनिफिट शेयरिंग सिस्टम्स (पीएबीएस) पर बातचीत जारी है। भारत के लिए इन वैश्विक मानकों से जुड़ना और अंतरराष्ट्रीय ढांचे में सक्रिय भागीदारी करना बहुत अहम है। जरूरत इस बात की भी है कि जीनोम निगरानी को मजबूत किया जाए ताकि फैल रहे रोगाणुओं को पहचाना जा सके, उन्नत खुराकों के साथ टीकाकरण का दायरा बढ़ाया जा सके, बायोफार्मा क्षेत्र में निवेश किया जाए और व्यक्तिगत स्तर पर और साफ-सफाई तथा नियमित स्वास्थ्य जांच सुनिश्चित की जानी चाहिए।
एबीएन हेल्थ डेस्क। पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का नया वैरिएंट तेजी से फैल रहा है। इस वैरिएंट के सबसे ज्यादा संक्रमित मरीज सिंगापुर में मिल रहे हैं। वहीं अगर भारत की बात की जाए तो यहां पर अब तक 2 लोगों की मौत हुई है और 257 मामले सामने आए हैं।
इनमें से सबसे ज्यादा केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में कोरोना फैल रहा है। ऐसे में आपको अपना खास ख्याल रखना होगा और अपने परिवार को भी बचाकर रखना होगा। अब हम जान लेते हैं कि आखिर इस न;२ वैरिएंट का नाम क्या है और ये सबसे ज्यादा किन लोगों तक पहुंच रहा है।
बता दें, संक्रमित होने के 24 से 48 घंटे के अंदर तेज बुखार, सांस लेने में दिक्कत, गला बैठ जाना और थकान जैसे लक्षण सामने आ रहे हैं। कई केसों में मरीजों की हालत तेजी से बिगड़ रही है। इस नए वैरिएंट का नाम जेएन.1 वैरिएंट बताया जा रहा है।
एबीएन हेल्थ डेस्क। वर्तमान समय की बदलती दिनचर्या व अस्त-व्यस्त जीवन शैली के कारण वर्तमान समय में हम विभिन्न प्रकार के रोगों से घिरते जा रहे हैं उन्हीं में से एक है स्लिप डिस्क कमर के निचले हिस्से में दर्द होना, योगाचार्य महेशपाल बताते हैं कि हर्नियेटेड डिस्क या स्लिप डिस्क रीढ़ की हड्डी में होने वाली चोट है जिसमें रीढ़ की हड्डी में हड्डियों (कशेरुक) की एक श्रृंखला शामिल होती है, जो खोपड़ी के आधार से लेकर टेलबोन तक फैली होती है।
कशेरुकाओं के बीच डिस्क के रूप में जाने जाने वाले गोलाकार कुशन होते हैं, जो हड्डियों के बीच बफर के रूप में काम करते हैं और लचीले मूवमेंट को सुविधाजनक बनाते हैं। जब कोई डिस्क फट जाती है या लीक हो जाती है, तो इसे हर्नियेटेड डिस्क कहा जाता है,स्लिप डिस्क के मुख्य तीन प्रकार हैं, सर्वाइकल डिस्क स्लिप, थोरैसिक डिस्क स्लिप और लम्बर डिस्क स्लिप, सर्वाइकल डिस्क स्लिप (Cervical Disc Slip),यह गर्दन में होता है और आमतौर पर C5/6 और C6/7 कशेरुका (Vertebrae) के बीच होता है।
इससे सिर के पिछले भाग, गर्दन, कंधे, बांह और हाथ में दर्द होता है। सर्वाइकल डिस्क स्लिप के लक्षणों में गर्दन में दर्द, हाथ में सुन्नता या झुनझुनी, या कंधे में दर्द शामिल हो सकता है, थोरैसिक डिस्क स्लिप (Thoracic Disc Slip) यह रीढ़ की हड्डी के मध्य भाग में होता है और T1 से T12 कशेरुका के क्षेत्र को प्रभावित करता है,इससे पीठ के मध्य और कंधे के क्षेत्र में दर्द होता है,और कभी-कभी दर्द गर्दन, हाथ, उंगलियों, पैरों, कूल्हे और पैर के पंजे तक भी जा सकता है।
थोरैसिक डिस्क स्लिप के लक्षणों में पीठ में दर्द, सुन्नता या झुनझुनी शामिल हो सकती है। लम्बर डिस्क स्लिप (Lumbar Disc Slip)यह पीठ के निचले हिस्से में होता है और लम्बर क्षेत्र की कशेरुकाओं (L1 से L5) के बीच होता है, इससे पीठ के निचले हिस्से में दर्द होता है और यह दर्द जांघ, पैर और पैर के तलवे तक भी फैल सकता है, लम्बर डिस्क स्लिप के लक्षणों में पीठ में दर्द, सुन्नता, झुनझुनी, या पैर में कमजोरी शामिल हो सकती है, स्लिप डिस्क को हर्नियेटेड डिस्क या प्रोलैप्स्ड डिस्क भी कहा जाता है।
तब होती है जब आपकी रीढ़ की हड्डी के बीच के कुशन (डिस्क) का बाहरी आवरण फट जाता है और अंदर का पदार्थ बाहर निकल जाता है, जो नसों पर दबाव डाल सकता है, स्लिप डिस्क का मुख्य कारण उम्र के साथ डिस्क का घिसाव और फटना है, लेकिन चोट या अत्यधिक तनाव भी इसका कारण हो सकता है, जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, डिस्क का निर्जलीकरण शुरू हो जाता है जिससे उसका लचीलापन कम हो जाता है और वह कमज़ोर हो जाती है।समय के साथ डिस्क की रेशेदार परत में दरारें आने लगती हैं जिससे उसके अंदर का द्रव या तो बाहर आने लगता है या उससे बुलबुला बन जाता है।
न्यूक्लिअस का एक भाग टूट जाता है परन्तु फिर भी वह डिस्क के अंदर ही रहता है डिस्क के अंदर का द्रव (न्यूक्लियस पल्पोसस) कठोर बाहरी परत से बाहर आने लगता है और रीढ़ की हड्डी में उसका रिसाव होने लगता है। हमारी पीठ हमारे शरीर के भार को बांटती है और रीढ़ की हड्डी में मौजूद डिस्क अलग-अलग गतिविधियों में लगने वाले झटकों से हमें बचती हैं इसीलिए वे समय के साथ कमज़ोर हो जाती हैं। डिस्क की बहरी कठोर परत कमज़ोर होने लगती है जिससे उसमें उभार आता है जिससे स्लिप डिस्क हो जाती है।
स्लिप डिस्क चोट लगने की वजह से भी हो सकती है। अचानक झटका या धक्का लगना या किसी भारी वस्तु को ग़लत ढंग से उठाने के कारण आपकी डिस्क पर असामान्य दबाव पड़ सकता है जिससे स्लिप डिस्क हो सकती हैं. ऐसा भी हो सकता है कि उम्र के साथ आपकी डिस्क का क्षरण इतना अधिक हो गया हो कि हलके से झटके (जैसे कि छींकना) के कारण भी आपको स्लिप डिस्क हो जाए। 35 से 50 वर्षों के बीच की उम्र के लोगों को स्लिप डिस्क होने की संभावनाएं अधिक होती हैं।
शरीर का ज़्यादा वज़न आपके शरीर के निचले हिस्से में डिस्क पर तनाव का कारण बनता है।कुछ लोगों को स्लिप डिस्क अनुवांशिक वजह से होती है। शरीर का अतिरिक्त वजन पीठ के निचले हिस्से की डिस्क पर अतिरिक्त दबाव डालता है, शारीरिक रूप से कठिन काम करने वाले व्यक्तियों को पीठ संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है, विशेष रूप से बार-बार होने वाली गतिविधियों जैसे उठाने, खींचने, धकेलने, बगल की ओर झुकने और मुड़ने से, ऐसा माना जाता है कि धूम्रपान से डिस्क में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है, जिससे उनका टूटना तेज हो जाता है।
लंबे समय तक बैठे रहने और मोटर वाहन के इंजन के कंपन के कारण रीढ़ की हड्डी पर दबाव पड़ सकता है, नियमित व्यायाम की कमी से हर्नियेटेड डिस्क का खतरा बढ़ सकता हैं, जब स्लिप डिस्क रोग हमारे शरीर में आता तो हमारे सामने कई प्रकार के लक्षण नजर आते हैं, रीढ़ की हड्डी के किसी भी हिस्से में स्लिप डिस्क हो सकती है (गर्दन से लेकर पीठ के निचले हिस्से तक) लेकिन पीठ के निचले हिस्से में यह सबसे आम है। रीढ़ की हड्डी, तंत्रिकाओं और रक्त वाहिकाओं का एक पेचीदा जाल-तंत्र होता है।
स्लिप डिस्क तंत्रिकाओं और मांसपेशियों पर और इनके आस-पास असामान्य रूप से दबाव डाल सकती है। शरीर के एक तरफ के हिस्से में दर्द या स्तब्धता होना, हाथ या पैरों तक दर्द का फैलना, रात के समय दर्द बढ़ जाना या कुछ गतिविधियों में ज़्यादा दर्द होना, खड़े होने या बैठने के बाद दर्द का ज़्यादा हो जाना, थोड़ी दूरी पर चलते समय दर्द होना, अस्पष्टीकृत मांसपेशियों की कमज़ोरी, प्रभावित क्षेत्र में झुनझुनी, दर्द या जलन।
स्लिप डिस्क से जब कोई रोगी ग्रसित होता है तो उसके शरीर में कई सारे परिवर्तन आते हैं और स्लिप डिस्क कई अन्य समस्याओं को साथ में लेकर आता है जो हमारे शरीर के लिए काफी नुकसानदायक हो सकता है जिसमें स्लिप डिस्क होने पर पीठ के निचले हिस्से में दर्द होता है, जो कभी-कभी पैरों की तरफ भी फैल सकता है। इस दर्द को सायटिका भी कहा जाता है,नसों पर दबाव पड़ने से पैरों या हाथों में सुन्नता और कमजोरी महसूस हो सकती है,स्लिप डिस्क के कारण मांसपेशियों में कमजोरी आ सकती है, जिससे गतिशीलता और दैनिक गतिविधियों को प्रभावित हो सकता है।
कुछ मामलों में, स्पर्श या तापमान महसूस करने की क्षमता भी कम हो सकती है, स्लिप डिस्क मूत्राशय और आंत्र नियंत्रण को भी प्रभावित कर सकती है,अगर स्लिप डिस्क का समय पर इलाज नहीं किया जाता है, तो तंत्रिकाओं को स्थायी नुकसान हो सकता है, जिससे कमजोरी या पक्षाघात( पैरालिसिस) भी हो सकता है, स्लिप डिस्क की समस्या एवं इन सभी समस्याओं से बचाव के लिए योग प्राणायाम अति आवश्यक है योग में आसनों के द्वारा शरीर लचीला हो जाता है जिससे रीढ़ की हड्डी में आई हुई विकृतियों व स्लिप डिस्क की समस्या को दूर किया जाता है।
प्राणायाम के द्वारा हम तनाव व एंजायटी से बचाव कर सकते हैं, और हमारा ब्लड सर्कुलेशन सही रहता है योग से शारीरिक व मानसिक रूप से स्वास्थ बनते हैं और हमारी इम्यूनिटी इंक्रीज होती है हम विभिन्न प्रकार के रोगों से बचे रहते हैं, इसलिए हमें हमारी दैनिक दिनचर्या में योग व परिणाम को अवश्य शामिल करना चाहिए, स्लिप डिस्क के रोगियों को विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि वह आगे की ओर ना झुके और कोई भी भारी कार्य न करें योग प्राणायाम का अभ्यास किसी विशेष योगाचार्य के मार्गदर्शन में ही करें जिससे आपको उसका पूरा लाभ मिल सके।
एबीएन हेल्थ डेस्क। बदली जीवनशैली के चलते देश-दुनिया में बड़ी संख्या में लोग हाइपरटेंशन यानी हाई ब्लड प्रेशर से ग्रस्त हैं। हाई बीपी कई दूसरी गंभीर बीमारियों की वजह बनता है। इसका नियमित चेकअप जरूरी है। वहीं यदि लक्षण सामने आयें तो डॉक्टरी सलाह से उपचार कराना चाहिये। इस रोग को लेकर नई दिल्ली स्थित सर गंगा राम अस्पताल में जनरल फिजिशियन डॉ मोहसिन वली से रजनी अरोड़ा की बातचीत।
हाइपरटेंशन हमारी सेहत के लिए एक बड़े खतरे के रूप में उभर रहा है। उम्र बढ़ने के साथ इसका खतरा भी बढ़ता है, लेकिन आजकल अनियमित जीवनशैली के चलते कम उम्र के वयस्कों में भी इसका खतरा बढ़ गया है। हाइपरटेंशन पीड़ित अधिकतर लोगों को जागरूकता न होने पर पता ही नहीं चलता, जब तक कोई समस्या न खड़ी हो जाए। दुनिया में एक बहुत बड़ी तादाद में लोग हाइपरटेंशन से ग्रस्त हैं जिनमें से दो-तिहाई लोग विकासशील देशों में हैं।
भारत की बात करें तो हर तीन में से एक व्यक्ति को हाइपरटेंशन की समस्या है। गांवों में 10 प्रतिशत व शहरों में 25 प्रतिशत लोग इससे ग्रस्त हैं। मरीजों में से दो-तिहाई की उम्र 60 साल से कम होती है। वहीं 85 प्रतिशत लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें हाइपरटेंशन के विकार के साथ कोई दूसरी बीमारी भी होती है।
हृदय हमारे शरीर में एक पंप के रूप में काम करता है और उससे ब्लड सर्कुलेशन पूरे शरीर में होता है। ब्लड सर्कुलेशन के समय होने वाले ब्लड के दवाब को ब्लड प्रेशर कहते हैं। जब हार्ट ब्लड को पंप करता है तब प्रेशर ज्यादा होता है जिसे सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर कहा जाता है। वहीं दूसरी बीट से पहले हार्ट रिलेक्स कर रहा होता है तब ब्लड प्रेशर कम होता है जिसे डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर कहते हैं।
विभिन्न व्यक्तियों में ब्लड प्रेशर में अंतर हो सकता है। व्यक्ति को ब्लड प्रेशर के नंबर जानना जरूरी है यानी सिस्टोलिक (ऊपर वाला) और डायस्टोलिक (नीचे वाला) का पता होना चाहिए। ब्लड प्रेशर दैनिक प्रक्रियाओं से प्रभावित होता है। अगर व्यक्ति का ब्लड प्रेशर 140/90 या उससे अधिक हो तो इसे हाइपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर की अवस्था कहते हैं।
कई बार हार्ट आर्टरीज पर दबाव पड़ने से उनके अंदर की लाइनिंग ब्लॉक हो जाती है। ब्लड सकुर्लेशन बाधित होने पर ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। जबकि स्वस्थ रहने के लिए ब्लड प्रेशर के दोनों पॉइंट्स को कंट्रोल करना जरूरी है। खासकर 55-60 साल से ज्यादा उम्र के बाद सिस्टोलिक हाइपरटेंशन का नियमित चैकअप कराना जरूरी है। इससे कार्डियोवेस्कुलर डिजीज होने का खतरा रहता है।
मरीजों की बड़ी संख्या है जिन्हें हाइपरटेंशन के कारणों का पता नहीं लगता। जिनमें कारणों का पता चल जाता है, उनका समुचित इलाज किया जा सकता है। छोटे बच्चों और युवाओं में हाइपरटेंशन के कई सेकंडरी कारण रहते हैं।
जैसे- अनियमित और आरामपरस्त जीवनशैली, अनहेल्दी खानपान, खाने में नमक की अधिकता, पढ़ाई और कैरियर को लेकर तनाव, मोटापा, किडनी की बीमारी, आर्टरीज में ब्लॉकेज, हार्मोन संबंधी तकलीफ, गर्भावस्था, थायरॉयड, फैमिली हिस्ट्री, स्मोकिंग, एल्कोहल और नमकीन स्नैक्स का अधिक सेवन।
हाइपरटेंशन को साइलेंट किलर भी कहा जाता है क्योंकि इससे ग्रस्त 90 प्रतिशत रोगियों में इसके कोई लक्षण नहीं होते। बढ़ने पर सिरदर्द, धड़कन तेज होना, चलते समय सांस फूलना, चक्कर आना व थकावट आदि लक्षण होते हैं।
सामान्य व्यक्ति में सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर 140 और डायसिस्टोलिक 90 से नीचे होना चाहिए। जबकि डायबिटीज के मरीजों में रिस्क बहुत बढ़ जाता है इसलिए उनका ब्लड प्रेशर 130/80 से कम होना चाहिए।
हाई ब्लड प्रेशर को पहचानकर सही इलाज न हो तो इसका बढ़ा हुआ स्तर हार्ट, ब्रेन, लिवर, आंखों आदि को क्षति पहुंचाता है। मरीज को कई समस्याएं हो सकती हैं जैसे- हार्ट अटैक, हार्ट फेल्योर, ब्रेन हैमरेज, ब्रेन स्ट्रोक, पैरालाइसिस होने का खतरा, रेटिनल हैमरेज, पेरिफरल मस्कुलर डिजीज, किडनी फेल्योर आदि।
हाइपरटेंशन के मरीज लक्षण या दिक्कत महसूस न होने पर आमतौर पर उपचार कराने से कतराते हैं। लेकिन इससे उनका ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और दूसरी समस्याएं होने की संभावना बढ़ जाती है।
जबकि हाई ब्लड प्रेशर की जांच शुरूआती स्टेज पर होने और समुचित ध्यान रखने पर इसे ठीक किया जा सकता है। डॉक्टर मरीज को जीवनशैली में बदलाव लाने की सलाह देते हैं। अगर 2 महीने तक मरीज का हाई ब्लड प्रेशर कंट्रोल में नहीं आता, तो उसे मेडिसिन दी जाती हैं।
जरूरी है नियमित रूप से हाई ब्लड प्रेशर की जांच करवायें और जानें कि आपका ब्लड प्रेशर स्टेटस क्या है। अगर आप प्री- हाइपरटेंशन मरीज की कैटेगरी में आते हैं तो इससे बचाव के समुचित कदम उठाने जरूरी हैं। समुचित जांच, सही सलाह और जीवनशैली में बदलाव से सिस्टोलिक हाइपरटेंशन को नियंत्रित किया जा सकता है। खासकर युवाओं को अपना ब्लड प्रेशर जरूर चैक कराना चाहिए। अगर ब्लड प्रेशर ज्यादा हो तो डॉक्टर को कंसल्ट करें। घर के बने संतुलित और पौष्टिक आहार का सेवन करें जिसमें ज्यादा से ज्यादा मौसमी फल-सब्जियां हों।
केला, मौसमी, अनार, नारियल पानी जैसे पोटेशियम रिच पदार्थों का सेवन अधिक करें। फास्ट फूड, जंक फूड व वसायुक्त आहार से परहेज करें। ज्यादा नमक वाली चीजें कम खाएं। चाय-कॉफी का सेवन सीमित मात्रा में करें। घर पर ब्लडप्रेशर मॉनीटर से रेगुलर चैक करें। अगर आपका ब्लड प्रेशर काफी समय से 140/90 मिमी एचजी से अधिक हो तो डॉक्टर के परामर्श से नियमित दवाई लें। वॉक, योगा, मेडिटेशन या एक्सरसाइज करें।
टीम एबीएन, रांची। झारखंड के स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा एवं परिवार कल्याण विभाग के अपर मुख्य सचिव अजय कुमार सिंह के द्वारा राज्य के सभी सिविल सर्जन और उपाधीक्षकों के साथ स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत आने वाले सभी निकासी एवं व्ययन पदाधिकारियों के कार्यों की समीक्षा की गयी।
इस समीक्षा बैठक में अपर मुख्य सचिव ने सभी को निर्देश देते हुए कहा कि जितने भी 108 एंबुलेंस छोटी-मोटी खराबी के कारण बंद हैं उन्हें 15 दिनों के अंदर प्रस्ताव तैयार प्राक्कलन के अनुसार राशि उपलब्ध करवाई जाये। उन्होंने कहा कि एंबुलेंस 100 प्रतिशत संचालित होने चाहिए।
इसके साथ उन्होंने सभी अस्पतालों में सभी प्रकार के आवश्यक उपकरण एवं मशीनों का आंकलन कर उसकी सूची विभाग को प्रेषित करने के निर्देश दिए ताकि मशीनों का क्रय किया जा सके। वीडियो कांफ्रेंस के दौरान उन्होंने जिन अस्पतालों में एक्स रे मशीन नहीं है उसकी सूची उपलब्ध कराने के निर्देश दिए।
साथ ही एक सप्ताह के अंदर मॉड्यूलर ओटी का प्रस्ताव उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। वीसी के दौरान सीटी स्कैन और एमआरआई मशीन पर भी चर्चा की गयी। अपर मुख्य सचिव ने कहा कि जहां जगह नहीं है वहां आईपीएच मानक के अनुरूप स्थान उपलब्ध कराया जाए।
वर्ष 2025-26 में आवंटित राशि उपावंटन के साथ-साथ एनएचएम की योजनाओं की समीक्षा तथा आवश्यक दिशा निर्देश दिये गये। अपर मुख्य सचिव ने सभी जिलों के सिविल सर्जन और उपाधीक्षकों को सदर अस्पताल से लेकर पीएचसी तक के स्वास्थ्य केंद्रों के रंग-रोगन एवं सुसज्जित करने का निर्देश दिया।
उन्होंने निर्देश देते हुए कहा कि 1 महीने के अंदर सभी कार्यों को संपन्न करते हुए सभी का फोटोग्राफ अपलोड करें। एक महीने के बाद फिर से कृत कार्रवाई की समीक्षा की जाएगी। वर्तमान वित्तीय वर्ष की वांछित राशि उपलब्ध करा दी गई है, जिस पर अपर मुख्य सचिव ने विस्तार से चर्चा की।
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