एबीएन डेस्क। निपाह वायरस के बढ़ते खतरे को देखते हुए कर्नाटक ने केरल से लगती सीमाओं को सील कर दिया है। दक्षिण कन्नड़ जिले में भी अलर्ट जारी किया गया है। जिले के उपायुक्त केवी राजेंद्र ने लोगों से सावधानी बरतने को कहा है और स्वास्थ्य विभाग से एहतियाती उपाय करने के निर्देश दिए हैं। उपायुक्त राजेंद्र ने कहा कि दक्षिण कन्नड़ की सीमा केरल से लगती है और यहां से काफी लोग नौकरी और शिक्षा के लिए आते हैं। एहतियातन सीमा के इलाके में टीकाकरण और जांच को बढ़ा दिया गया है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने विशेषज्ञों को निर्देश दिए हैं कि निपाह को लेकर अध्ययन कर इससे निपटने के तरीके के बारे में अपने सुझाव दें। सीमा के इलाके में टीकाकरण और जांच को बढ़ा दिया गया है। केंद्र और राज्य सरकार को भी सतर्क रहने को कहा गया है। वहीं, केरल में निपाह वायरस से जान गंवाने 12 वर्षीय बच्चे के करीबी संपर्क में आए लोगों की जांच रिपोर्ट में संक्रमण नहीं होने की पुष्टि हुई है। केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीणा जॉर्ज ने बताया कि बच्चे के करीबी संपर्क में आए आठ लोगों के नमूनों की जांच रिपोर्ट आ गई है, जिनमें कोई भी संक्रमित नहीं पाया गया है। गौरतलब है कि तीन सितंबर को केरल के कोझिकोड के 12 वर्षीय बच्चे की निपाह वायरस के कारण मौत हो गई थी। केरल की स्वास्थ्य मंत्री जार्ज ने बताया कि आठ लोगों के 24 सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं। उन्होंने बताया कि अब और सैंपलों की जांच की जा रही है। कर्नाटक सरकार ने जारी किया परामर्श : राज्य सरकार की ओर से ताजा हालात को लेकर मंगलवार को एक परामर्श भी जारी किया गया। इसमें कर्नाटक सरकार ने कहा है कि लोगों को अक्तूबर के अंत तक केरल जाने से बचना चाहिए। शैक्षणिक/नर्सिंग/पैरामेडिकल संस्थानों के अफसरों, अस्पतालों, कारखानों आदि के मालिकों से अपने कर्मचारियों आदि जो जो कर्नाटक नहीं लौटे हैं को अक्तूबर के अंत तक वापसी स्थगित करने का निर्देश देने के लिए भी कहा गया है। कर्नाटक सरकार ने उन सभी छात्रों और कर्मचारियों से जो अभी तक केरल से कर्नाटक नहीं लौटे हैं, कहा है कि केरल में कोविड-19 की स्थिति को देखते हुए अक्तूबी 2021 के अंत तक राज्य में अपनी वापसी को टालने या स्थगित कर दें।
एबीएन डेस्क। कोरोना के नए वैरिएंट सी.1.2 ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की चिंता बढ़ा दी है। डेल्टा से भी ज्यादा संक्रामक इस वैरिएंट पर डब्लूएचओ की तकनीकि प्रमुख डॉ. मारिया वॉन ने ट्वीट करके कहा है कि सी.1.2 के बारे में ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार दक्षिणी अफ्रीका के शोधकर्ताओं से संपर्क साधे हुए है और कोविड-19 महामारी के दौरान उनके शोधों पर चर्चा कर रहा है। आगे कहा कि हम दक्षिण अफ्रीका के शोधकर्ताओं को धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने सबसे पहले सी.1.2 के बारे में स्वास्थ्य संगठन को जानकारी दी और अपनी शोध को भी साझा किया। 100 से ज्यादा मामले आए सामने : डब्लूएचओ का कहना है कि दक्षिण अफ्रीका में 21 मई को इस वैरिएंट का पहला मामला सामने आने के बाद दुनिया भर में अब तक इस वैरिएंट के 100 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। डब्ल्यूएचओ की तकनीकि प्रमुख का कहना है कि हमें इस नए वैरिएंट के और भी सीक्वेंस के बारे में पता करने की आवश्यकता है। क्योंकि, अभी तक डेल्टा वैरिएंट ही सबसे ज्यादा संक्रामक प्रतीत हो रहा है। काफी खतरनाक हो सकता है नया वैरिएंट : वैज्ञानिकों का कहना कि अब तक पूरी दुनिया डेल्टा वैरिएंट से खतरे को लेकर परेशान थी, इस बीच इस नए वैरिएंट ने समस्याओं को और बढ़ा दिया है। अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने यह भी पाया है कि यह नया वैरिएंट शरीर में वैक्सीनेशन से बनी प्रतिरक्षा प्रणाली को आसानी से मात दे सकता है। ऐसे में एक बार फिर सभी लोगों के लिए कोरोना का खतरा बढ़ता हुआ नजर आ रहा है। तेजी से अपना रूप बदल सकता है कोरोना का यह वैरिएंट : कोरोना के इस नए वैरिएंट को म्यूटेशन के लिहाज से भी वैज्ञानिक बेहद खतरनाक बता रहे हैं। 24 अगस्त को प्रीप्रिंट रिपोजिटरी मेडरेक्सिव पर पीयर-रिव्यू अध्ययन के लिए पोस्ट किए गए डेटा के अनुसार सी.1 की तुलना में कोरोना के इस नए वैरिएंट सी.1.2 में तेजी से म्यूटेशन हो सकता है। इसका मतलब यह है कि कोरोना के इस नए वैरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में काफी तेजी से बदलाव होता रह सकता है। प्रतिरक्षा प्रणाली को चकमा देने की क्षमता : कोरोना के इस नए वैरिएंट को लेकर शोधकर्ताओं की सबसे बड़ी चिंता यह है कि यह वैरिएंट शरीर में संक्रमण या वैक्सीनेशन से बनी प्रतिरक्षा प्रणाली को आसानी चकमा दे सकता है। शोधकर्ता बताते हैं, सार्स-सीओवी-2 वायरस अपने स्पाइक प्रोटीन का उपयोग करके मानव कोशिकाओं को संक्रमित करते हुए उनमें प्रवेश करता है। इस नए वैरिएंट सी.1.2 में N440K और Y449H जैसे म्यूटेशनों का पता चला है। यह म्यूटेशन शरीर में बनीं प्रतिरक्षा को आसानी से मात देने की क्षमता रखते हैं। हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि जिन लोगों ने वैक्सीन की दोनों डोज ले ली हैं, उनमें खतरा अन्य लोगों के मुकाबले कम हो सकता है। भारत में अभी एक भी मामला नहीं : कोरोना के इस नए वैरिएंट ने जहां दुनिया भर की चिंता बढ़ा दी है तो वहीं भारत के लिए राहत की खबर है। भारत सरकार का कहना है कि सी.1.2 वैरिएंट का अभी तक एक भी मामला सामने नहीं आया है। हालांकि, भारत इस नए खतरे को लेकर चिंतित और सतर्क है।
एबीएन डेस्क। देश में कोरोना महामारी के खिलाफ तेज गति से वैक्सीनेशन अभियान चल रहा है। शुक्रवार को देश में पहली बार एक दिन में एक करोड़ से अधिक कोरोना वैक्सीन की डोज लगाई गई हैं। देर रात एक करोड़ से अधिक डोज का आंकड़ा पार कर देश ने इतिहास रच दिया। इस उपलब्धि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों को ट्वीट कर बधाई दी है।
एबीएन डेस्क। वैज्ञानिकों का कहना है कि वायरस में म्यूटेशन के कारण उसके स्पाइक प्रोटीन का अमिनो एसिड प्रभावित होता है। वायरस की संरचना में होने वाले इस बदलाव को वैज्ञानिक भाषा में पी681आर म्यूटेशन कहते हैं। नेचर जनरल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार वायरस के स्पाइक प्रोटीन में बदलाव उसके फ्यूरिन क्लीवेज साइट में होता है जिसकी मदद से वायरस तेजी के साथ फैलता है। प्लाज्मा मेंब्रेन को करता है फ्यूज : यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्यो के वायरोलॉजिस्ट प्रो. की सातो का कहना है कि वायरस के स्पाइक प्रोटीन में पी681आर म्यूटेशन स्वस्थ कोशिकाओं की प्लाज्मा मेंब्रेन को तीन गुना अधिक तेजी से फ्यूज करता है। डेल्टा में 300 गुना अधिक वायरल लोड : कोरोना के डेल्टा वैरिएंट की चपेट में आने वाले लोगों में वायरल लोड अन्य स्ट्रेन की तुलना में 300 गुना अधिक होता है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि ये वैरिएंट 300 गुना अधिक संक्रामक है।
एबीएन डेस्क। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि राज्यों को इस माह दो करोड़ अतिरिक्त कोविड-19 टीकों की खुराकें उपलब्ध कराई गई हैं और उनसे पांच सितंबर को शिक्षक दिवस से पहले सभी स्कूली शिक्षकों को टीका लगाने को कहा गया है। उन्होंने एक ट्वीट में कहा, इस महीने हर राज्य को टीका उपलब्ध कराने की योजना के अलावा दो करोड़ से ज्यादा खुराक उपलब्ध कराई गई हैं। हमने सभी राज्यों से शिक्षक दिवस से पहले प्राथमिकता के आधार पर सभी स्कूली शिक्षकों को टीका लगाने की कोशिश करने का अनुरोध किया है। कोरोना वायरस संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन से पहले पिछले साल मार्च में सभी स्कूलों को बंद कर दिया गया था। केंद्र ने पिछले साल अक्टूबर में कोविड-19 की स्थिति के अनुरूप स्कूलों को फिर से खोलने की अनुमति दी थी। कई राज्यों ने स्कूलों को आंशिक रूप से खोलना शुरू भी कर दिया था लेकिन कोविड-19 की खतरनाक दूसरी लहर आने के बाद अप्रैल में फिर से सभी स्कूल पूरी तरह बंद कर दिए गए थे। कोविड-19 की स्थिति में सुधार होने के साथ, कई राज्यों ने अब स्कूलों को फिर से खोलना शुरू कर दिया है, लेकिन शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों का पूर्ण टीकाकरण न हो पाने के कारण चिंता भी बनी हुई है।
देवघर। झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल के अंतर्गत बाबानगरी देवघर में मंगलवार से एम्स में OPD सेवा की शुरूआत हो गई। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने नयी दिल्ली से इसका ऑनलाइन उद्घाटन किया। उद्घाटन समारोह में मंत्री हफिजुल हसन अंसारी, सांसद निशिकांत दुबे, विधायक नारायण दास उपस्थित थे। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि भगवान बिरसा की धरती पर झारखंड के लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधा एम्स में मिलेगी। इलाज के लिए उन्हें बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। एम्स की टीम से उन्होंने कहा कि वे सेवाभाव से काम कर जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरें। देवघर एम्स में ओपीडी की सेवा के लिए 30 रुपये में रजिस्ट्रेशन होगा। जांच के दौरान मरीजों को दवा दी जाएगी। एक बार रजिस्ट्रेशन कराने पर मरीज साल भर तक इलाज करा सकेंगे। फिलहाल 20 से अधिक रोगों की जांच होगी। देवघर एम्स में रोजाना 200 मरीजों का रजिस्ट्रेशन किया जाएगा। देवघर एम्स में डॉक्टरों का ड्यूटी रोस्टर तैयार कर लिया गया है। डॉक्टरों के नाम व विभाग देवघर एम्स की वेबसाइट www.aiimsdeoghar.edu.in में भी है। ओपीडी में जांच, चिकित्सीय परामर्श व दवाइयां मरीजों को दी जायेंगी. हर तरह की बीमारी से संबंधित मरीजों को पूरी सलाह दी जाएगी। डॉक्टरों को अगर लगेगा कि मरीज दवा से ठीक हो सकते हैं तो उन्हें रियायत दरों पर रैन बसेरा बिल्डिंग में अमृत फार्मेसी से दवाएं दी जाएंगी। अलग-अलग दवाओं में 60 फीसदी तक छूट मिलेगी। पूर्वी भारत में देवघर एम्स में पहला रैन बसेरा बना है। इस रैन बसेरा में मरीज के साथ आनेवाले परिजन रात में रुक पायेंगे, उन्हें भटकना नहीं पड़ेगा। फिलहाल रैन बसेरा में एम्स के छात्रों की लैब की पढ़ाई होगी। छह माह बाद एम्स की अन्य बिल्डिंग हैंडओवर होने के बाद रैन बसेरा से छात्रों का लैब दूसरे भवन में शिफ्ट कर दिया जाएगा।
एबीएन डेस्क। कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान पूरी दुनिया में बच्चों में संक्रमण आठ से दस फीसदी के बीच ही रहा है। इसमें से भी अधिकांश बच्चों में कोरोना के लक्षण नहीं पाए गए थे और ज्यादातर अपने घर पर ही रहकर स्वस्थ हो गए। बहुत कम बच्चों को ही कोरोना के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी। अब जबकि कोरोना की तीसरी लहर को लेकर लोगों की चिंताएं बढ़ गई हैं, स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि तीसरी लहर में भी बच्चों में होने वाला संक्रमण स्तर इसके आसपास ही रह सकता है। इसलिए बच्चों के माता-पिता को बहुत चिंता करने की नहीं, लेकिन कोरोना संबंधित व्यवहार के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है। हालांकि, एहतियात के तौर पर निजी और सरकारी अस्पतालों में 20 फीसदी बेड्स विशेष तौर पर बच्चों के लिए बनाकर सुरक्षित रखे जा रहे हैं। देश के अस्पतालों में आॅक्सीजन की उपलब्धता की स्थिति लगातार बेहतर हो रही है। सामान्य कोरोना बेड्स भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। इससे आपात स्थिति से निबटने में मदद मिलेगी। लेकिन क्या कोरोना की तीसरी लहर ज्यादा भयावह रहेगी? आॅल इंडिया इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज, दिल्ली के पूर्व निदेशक एमसी मिश्रा ने अमर उजाला को बताया कि तीसरी लहर के आने की संभावना और इसके असर को लेकर अभी तक कोई प्रामाणिक अध्ययन नहीं है। लेकिन कुछ आंकड़ों के आधार पर नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ डिजास्टर मैनेजमेंट और आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने तीसरी लहर के बारे में तीन स्तर की संभावनाएं व्यक्त की हैं। सबसे पहली संभावना यह है कि यदि हमारी सारी गतिविधियां सामान्य स्थिति की तरह शुरू हो जाती हैं, तो इससे लोगों का आपसी संपर्क बढ़ेगा। इस स्थिति में अक्तूबर महीने तक कोरोना की तीसरी लहर आ सकती है। लेकिन वैक्सीनेशन और कोविड होने के कारण लोगों में पैदा हुई प्रति?ोधी क्षमता की वजह से इस दौरान कम लोग बीमार पड़ सकते हैं। इस दौरान लगभग तीन लाख लोग रोजाना संक्रमित हो सकते हैं, दूसरी लहर में चार लाख से ज्यादा लोग रोजाना संक्रमित हो रहे थे। दूसरी संभावना यह है कि अगर डेल्टा वैरियेंट की तरह कोरोना का कोई नया म्यूटेशन सामने आ जाता है और वह डेल्टा से भी ज्यादा संक्रामक पाया जाता है (चिली में मिला नया वैरियेंट ज्यादा संक्रामक बताया जा रहा है) और उसकी संक्रमण क्षमता दो से अधिक होती है तो इससे तीसरी लहर का पीक अक्तूबर की बजाय सितंबर महीने में ही आ सकता है। इस दौरान दूसरी लहर से ज्यादा लगभग पांच लाख लोग रोजाना संक्रमित हो सकते हैं। तीसरी संभावना है कि अगर इस दौरान लोगों में वैक्सीनेशन बढ़ा और लोगों ने मास्क लगाने, शारीरिक दूरी बनाए रखने के नियमों का पालन किया तो तीसरी लहर अक्तूबर माह के अंत तक आएगी, इसकी संक्रामकता भी दूसरी लहर की तुलना में काफी कम यानी लगभग आधी रह सकती है। अब तक लगभग 59 करोड़ लोगों को वैक्सीन की खुराकें दी जा चुकी हैं। अगस्त के अंत तक यह संख्या 65 करोड़ के लगभग हो सकती है। इसी प्रकार सितंबर तक 75-80 करोड़ हो जाएगा। इसके अलावा जिन्हें कोविड हो चुका है, उन्हें प्राकृतिक तौर पर सुरक्षा मिल गई है। इस तरह अगर कोरोना की तीसरी लहर आई तो भी इससे नुकसान कम होने की संभावना है। मार्च से जून के बीच किए गए एम्स के सीरो सर्वे में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में सकारात्मकता दर 55.7 फीसदी और वयस्कों में 63.5 फीसदी थी। लेकिन हर्ड इम्यूनिटी के लिए अब 90 फीसदी से अधिक सकारात्मकता दर को ही विशेषज्ञ सुरक्षित मान रहे हैं। चूंकि, कोरोना की दोनों डोज लेने के बाद भी लोगों को कोरोना हो रहा है, वैक्सीन लेने के बाद भी संक्रमण से स्वयं को सुरक्षित नहीं माना जा सकता। इस दौरान भी लोगों को पूरी सावधानी बरतने की आवश्यकता है। बच्चों के संपर्क में जो लोग भी आएं, उन्हें वैक्सीन की दोनो डो़ज लग चुकी हो। घर पर माता-पिता, घरेलू नौकर और स्कूल में टीचर-सपोर्टिंग स्टाफ पूरी तरह वैक्सीनेटेड होने चाहिए। स्कूल तभी खोलें जब आसपास के माहौल में कोरोना के मामले बहुत कम हो गए हैं। अगर दूर के इलाकों में कोरोना के मामले हैं तो सुरक्षा उपायों के साथ स्कूल खोले जा सकते हैं। लेकिन अगर संक्रमण बहुत ज्यादा है तो स्कूल खोलने से पूरी तरह दूरी रखनी चाहिए। जैसे ही बच्चों के लिए वैक्सीन उपलब्ध हो जाती है, बच्चों को प्राथमिकता के साथ वैक्सीन लगवाने की कोशिश की जानी चाहिए। यह बात ध्यान रखने की है कि जिन छोटे-छोटे देशों में वैक्सीनेशन लगभग पूरा हो चुका है, इसके बाद भी वहां दोबारा संक्रमण हो रहा है। यानी कोरोना की समस्या खत्म नहीं हुई है, और हाल-फिलहाल में इसके खत्म होने की कोई संभावना भी नहीं है। ऐसे में भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें। जितनी जल्द संभव हो सके, बच्चों को वैक्सीन की डोज लगवाएं और हर संभव तरीके से मास्क लगाकर चलें और बच्चों को भी इसके लिए प्रेरित करें।
नयी दिल्ली। कोरोना की तीसरी लहर को लेकर वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि यह लहर बच्चों को भी प्रभावित कर सकती है, लेकिन इसी बीच एक राहत भरी खबर सामने आ रही है। दरअसल, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने जानकारी दी है कि अगस्त महीने में ही बच्चों को लगने वाली कोविड-19 वैक्सीन भारत में आ सकती है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने यह सूचना मंगलवार को भाजपा की संसदीय दल की बैठक के दौरान दी। भाजपा संसदीय दल की बैठक में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि सरकार अगले महीने से बच्चों को कोविड-19 का टीका लगवाना शुरू कर देगी। उन्होंने यह भी कहा कि भारत जल्द ही सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक देश बनने जा रहा है क्योंकि अधिक कंपनियों को उत्पादन लाइसेंस मिलेगा। देश में अब तक जितनी भी कोरोना की वैक्सीन लगाई जा रही हैं, वे केवल 18 साल से अधिक लोगों के लिए ही बनाई गई हैं। वहीं, अब 18 से भी कम उम्र के बच्चों की कोरोना टीका आ जाने पर विशेषज्ञों का कहना है कि इससे महामारी के संक्रमण की चेन को तोड़ने में आसानी होगी। साथ ही बच्चों को टीका लगाने का यह कदम स्कूलों को खोलने की दिशा में बहुत महत्वपूर्ण साबित होगा। बता दें कि अब तक यह उम्मीद जताई जा रही थी बच्चों को लगने वाली कोरोना वैक्सीन भारत में सितंबर महीने तक आ पाएगी। एम्स के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने भी कुछ दिन पहले कहा था कि देश में सितंबर तक बच्चों को कोरोना का टीका लगना शुरू हो सकता है क्योंकि जाइडस कैडिला ने बच्चों को लगने वाली वैक्सीन का ट्रायल कर लिया है। हालांकि, जायड्स कैडिला की वैक्सीन को आपात इस्तेमाल की मंजूरी का इंतजार है।
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