एबीएन सेंट्रल डेस्क। नया जीवन पाने वाले इन हृदय रोगियों के लिए विश्व हृदय दिवस की पूर्व संध्या पर बत्रा हास्पिटल में सम्मान समारोह का आयोजन हुआ। बत्रा हार्ट एंड मल्टीस्पिशयलिटी ग्रुप, फरीदाबाद ने समय पर और तत्परता से इलाज के जरिए पिछले एक साल में हृदयाघात से भर्ती सभी 110 मरीजों की जान बचा कर शून्य मृत्युदर का कीर्तिमान बनाया है। इन मरीजों में ज्यादातर वे थे जिन्हें गंभीर रूप से दिल का दौरा पड़ा था या हृदय संबंधी गंभीर समस्याएं थीं।
विश्व हृदय दिवस की पूर्व संध्या पर हास्पिटल में आयोजित एक सम्मान और सालगिरह समारोह को संबोधित करते हुए कार्डियक साइंसेज के निदेशक और अध्यक्ष डॉ. पंकज बत्रा ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा, पिछले साल भर में हमारे पास हृदय रोगों और हृदयाघात के 110 मरीज आये और विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा उनके सफलतापूर्वक इलाज से उन्हें जीवनदान मिला। इस कार्यक्रम में उपस्थित अधिकांश मरीजों को गंभीर रूप से दिल के दौरे पड़े थे और उनकी धमनियों में 100 प्रतिशत ब्लॉकेज था।
इस कार्यक्रम में कश्मीर से लेकर केरल तक के 55 से 85 वर्ष की आयु के मरीजों ने बत्रा हार्ट एंड मल्टीस्पेशलिटी हास्पिटल, फरीदाबाद में नया जीवन पाने के अपने अनुभवों को साझा किया। दिल्ली के अधेड़ आयु के एक मरीज डेविड ने बताया कि किन हालात में वे इस अस्पताल पहुंचे और किस तरह डॉ. पंकज की तत्परता से उनका जीवन बच पाया। उन्होंने बताया, मुझे हृदय की समस्या थी जबकि मैं इसे पेट में गैस और जलन की समस्या समझता रहा।
जब सीने में दर्द बढ़ने लगा तो मुझे बत्रा हास्पिटल लाया गया जहां डॉ. पंकज ने तुंरत मेरे मर्ज को पहचान कर समय से मेरा इलाज कर मेरा जीवन बचाया। डेविड की पत्नी ने भी इसी बात को दोहराया और वहां मौजूद उन मरीजों की भावनाओं को अभियक्ति जिन्हें इस हास्पिटल में जीवनदान मिला।
ज्यादातर मरीजों ने छुट्टियों में भी गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों को आपात चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने की बत्रा हास्पिटल की प्रतिबद्धता की चर्चा करते हुए उम्मीद जताई कि यह रविवार और छुट्टियों के दिन भी खुला रहेगा।
डॉ. पंकज ने कहा, शून्य मृत्युदर हमारी टीम के समर्पण और उनकी विशेषज्ञता का प्रमाण है। हमने आपातकालीन चिकित्सा जिसे डोर बैलून टाइम कहते हैं और जहां मरीज की जान बचाने के लिए 30 मिनट से भी कम का समय मिलता है, में अपनी विशेषज्ञता से नये मानदंड स्थापित करते हुए इसे एक जीवनरक्षक प्रारूप बनाया है। मरीजों को सम्मानित करने के साथ ही अस्पताल प्रबंधन ने गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) के स्टाफ, नर्सों, डॉक्टरों और मरीज के अस्पताल में भर्ती होने से पहले व उसके बाद इलाज व देखभाल में शामिल सभी कर्मचारियों को भी मेरिट प्रमाणपत्र से सम्मानित किया।
इस मौके पर बत्रा हर्ट एंड मल्टी स्पेशियलिटी हास्पिटल, फरीदाबाद के अध्यक्ष रमेश कुमार बत्रा ने डॉ पंकज की किताब प्रीवेंशन आॅफ हर्ट डिजीज का लोकार्पण किया। हृदय की बीमारियों से बचाव के लिए जीवनशैली में सुधार की जरूरत की चर्चा करते हुए डॉ. पंकज ने नियमित व्यायाम, टहलने, तनावमुक्त रहने, धूम्रपान नहीं करने और ब्लड प्रेशर एवं मधुमेह पर नजर रखते हुए समय-समय पर चिकित्सा जांच कराते रहने की सलाह दी।
उन्होंने कहा, चिकित्सा विज्ञान में तमाम अविष्कारों के बावजूद 2019 के आंकड़े बताते हैं कि हृदय संबंधी बीमारियों से दुनिया में 1.80 करोड़ लोगों की मौत हुई जिसमें 58 प्रतिशत लोग एशिया के थे। इसकी बड़ी वजह अनियमित नींद, मोबाइल का लगातार इस्तेमाल, जंक फूड और धूम्रपान है। बत्रा हास्पिटल हृदय दशकों से हृदय चिकित्सा के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है और देशभर के मरीजों की उम्मीदों पर खरा उतरा है।
एबीएन हेल्थ डेस्क। बदलती लाइफस्टाइल और गलत तरीके के खान-पान की वजह से लोग कोलेस्ट्रॉल जैसी कई समस्याओं के शिकार हो रहे हैं। शरीर में एलडीएल कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ने से धमनियों में ब्लॉकेज का जोखिम होता है। इसलिए इसको नियंत्रित रखना बेहद जरूरी है। ऐसे में आप अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव करके हाइ कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कंट्रोल में रख सकते हैं।
जो लोग फिजिकल एक्टिविटी कम करते हैं और जिनकी खराब खान-पान की आदत के साथ जीवन शैली भी गड़बड होती है। उन्हें हाई बीपी, डायबिटीज और कोलेस्ट्रॉल जैसी गंभीर बीमारियां बड़ी ही आसानी से अपने चपेट में ले लेती हैं। बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल की समस्या को खुद से दूर रखना जरूरी है। वरना हम कई अन्य गंभीर बीमारियों का भी शिकार बन सकते हैं।
कुछ खाद्य पदार्थों में फैट अधिक मात्रा में पाया जाता है, जिनके अधिक सेवन से कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ जाता है, जिसे हाई कोलेस्ट्रॉल कहते हैं। शरीर में एलडीएल कोलेस्ट्रॉल का स्तर जब ज्यादा होने लगता है तो रक्त वाहिकाओं में फैट जमा होने लगता है और यह आपकी धमनियों के जरिए रक्त प्रवाह में परेशानी खड़ा करता है। वहीं जब खून हार्ट की मांसपेशियों तक ठीक तरह से नहीं पहुंच पाता है तो हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ जाता है, जिससे हम हार्ट अटैक और स्ट्रोक के शिकार भी हो सकते हैं।
डॉक्टर दवाओं की मदद से कोलेस्ट्रॉल के बढ़े हुए लेवल को कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं लेकिन अगर जीवन शैली अच्छी न हो तो इन दवाओं का असर भी धीरे-धीरे कम हो जाता है। अगर आप बैड कोलेस्ट्रॉल की समस्या को जड़ से खत्म करना चाहते हैं तो लाइफस्टाइल में कुछ छोटे-छोटे बदलाव आपके जीवन में असरदार साबित हो सकते हैं। इससे खराब कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रण में रखा जा सकता है।
इस बीमारी को खुद से दूर रखना जरूरी है। वरना हम कई अन्य गंभीर बीमारियों के भी शिकार बन सकते हैं। शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल के बढ़ने पर हाई ब्लड प्रेशर और वजन अधिक होने जैसी समस्या भी देखी जाती है। हाई कोलेस्ट्रॉल के खुद कोई खास लक्षण नहीं होते हैं।
ऐसे में 20 या उससे अधिक उम्र के लोगों को हर 5 सालों में कम से कम एक बार ब्लड में कोलेस्ट्रॉल के लेवल की जांच करानी चाहिए। अगर आपके घर के किसी सदस्य में हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या का अनुवांशिकी इतिहास रहा है तो डॉक्टर आपको बार-बार कोलेस्ट्रॉल की जांच करने की सलाह भी दे सकते हैं।
हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल दो तरह के होते हैं। एक गुड कोलेस्ट्रॉल और दूसरा है बेड कोलेस्ट्रॉल। इसको हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया या हाइपरलिपिडेमिया और हाई कोलेस्ट्रॉल कहा जाता है। जानवरों से बने फूड्स जैसे अंडे, दूध, मीट, पनीर और मक्खन के साथ सैचुरेटेड फैट को लेने से उच्च कोलेस्ट्रॉल की समस्या हो सकती है। पैकेट बंद खाद्य पदार्थों जैसे बिस्किट, नमकीन और चिप्स का सेवन भी हाई कोलेस्ट्रॉल के कारणो में शामिल होता है।
अधिक वजन के कारण भी एलडीएल कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ सकता है। जो लोग फिजिकल एक्टिविटी नहीं करते उनके शरीर में एलडीएल कोलेस्ट्रॉल तेजी से बढ़ सकता है। हाइपोथाइरॉएडिज्म और किडनी लिवर जैसे रोगों के कारण भी हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या का खतरा बढ़ सकता है। धूम्रपान और शराब का सेवन खराब कोलेस्ट्रॉल को बढ़ा सकता है।
कोलेस्ट्रॉल के जोखिम को कम करने के लिए भले ही आप दवाइयों का सहारा ले रहे हो लेकिन जीवनशैली में कुछ बदलाव आपके लिए मददगार साबित हो सकते हैं। कोलेस्ट्रॉल को हमेशा ठीक रखना चाहते हैं तो स्वस्थ भोजन खाएं। अपने डाइट में साबूदाना, मिलेट्स, लीन प्रोटीन, फल, सब्जियां इत्यादि जरूर शामिल करें।
आहार में बदाम, अखरोट, एवोकाडो, अलसी के बीज और मछली जैसे ओमेगा 3 फैटी एसिड से भरपूर फूड्स को शामिल करें। कोलेस्ट्रॉल को कम करने में बैलेंस डाइट अहम भूमिका निभाती है। जिन फूड्स में ट्रांस फैट्स और सैचुरेटेड फैट्स कम मात्रा में पाया जाता है, ही अपनी डाइट का हिस्सा बनाएं।
एबीएन हेल्थ डेस्क। भारत में दवाओं की बढ़ती क़ीमतें आम लोगों के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। इस बीच जब ये पता चले की डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों को कंट्रोल करने वाली कुछ दवाएं लैब टेस्ट में फेल हैं तो फिर ये चिंता का विषय है।
भारत की भारत में ड्रग रेगुलेटरी अथॉरिटी केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने 53 दवाओं को लैब क्वालिटी टेस्ट में फेल किया है। इनमें हाई ब्लड प्रेशर और टाइप-2 डायबिटीज को कंट्रोल करने वाली दवाएं भी शामिल हैं। भारत में डायबिटीज के 10 करोड़ से ज्यादा मरीज हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, आमतौर पर डायबिटीज के कुल मरीजों में से 80 फीसदी से ज्यादा टाइप-2 वाले होते हैं। इसी तरह भारत में हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों की संख्या भी 20 करोड़ है। ऐसे में अब सोचिए कि इतनी बड़ी आबादी जिस बीमारी की दवा खाती है उनकी क्लाविटी अच्छी नहीं है।
जो दवाएं टेस्ट में फेल हुई हैं उनमें हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने वाली मेडिसिन टेल्मिसर्टन और टाइप-2 डायबिटीज की दवा ग्लिमेपिराइड भी शामिल है। हालांकि इन नाम की सभी मेडिसिन फेल नहीं है, इन दवाओं को बनाने वाली दो कंपनियों की दवा की ही क्वालिटी खराब मिली है।
इस बीच यह जानना भी जरूरी है की टेस्ट में फेल दवाएं अगर कोई खा चुका है तो वह कैसे शरीर को नुकसान पहुंचाती है। क्या सभी दवाएं ही खराब हैं? इसको जानने के लिए हमने एक्सपर्ट्स से बातचीत की है। दिल्ली में मेडिसिन के डॉ अजय कुमार बताते हैं कि लैब टेस्ट में फेल होने वाली दवाएं वह होती हैं। जिनको खाने से सेहत खराब हो सकती है।
आमतौर पर दवा किडनी और लिवर को खराब करती है, चूंकि डायबिटीज और हाई बीपी की दवाएं लोग आमतौर पर हर दिन ही खाते हैं तो अगर टेस्ट में फेल दवा कोई खा चुका है तो इससे लिवर में खराबी या किडनी की कोई बीमारी होने की आशंका रहती है। हालांकि लैब टेस्ट में फेल होने का ये मतलब नहीं है कि भारत या दुनिया में मौजूद सभी ग्लिमेपिराइड और टेल्मिसर्टन दवा खराब हैं। ऐसा बिलकुल नहीं है।
डॉ कुमार बताते हैं कि हर दवा को कई कंपनियां अपने-अपने ब्रांड नेम से बनाती हैं।मैसर्स, मैस्कॉट हेल्थ सीरीज़ प्रा. लिमिटेड की ओर से बनाई जा रही ग्लिमेपिराइड लैब टेस्ट में फेल हुई है। इसी तरह स्विस गार्नियर लाइफ कंपनी की टेल्मिसर्टन फेल है। यानी सिर्फ इन कंपनी की ओर से बनाई जा रही ग्लिमेपिराइड और टेल्मिसर्टन दवाओं की गुणवत्ता अच्छी नहीं है। बाकी कंपनियों की दवाएं ठीक है। उनको आप खा सकते हैं. उनसे नुकसान नहीं है।
जीटीबी हॉस्पिटल में सीनियर रेजिडेंट डॉ अंकित कुमार बताते हैं कि कई बार खराब मौसम और किसी बैक्टीरिया के दवाओं के स्टॉक में जाने से कुछ स्टॉक खराब हो जाता है। कुछ मामलों में सेंपलिंग एरर की वजह से भी दवाएं लैब टेस्ट में फेल हो जाती हैं।
ऐसे में जरूरी नहीं होता कि कंपनी की ओर से बनाई गई सभी दवाएं ही खराब हों, या आगे जो दवा बनेंगी वो भी फेल हो जाएं, ये सब जरूरी नहीं है। हालांकि फिर भी दवा कंपनियों को सभी चीजों का ध्यान रखना चाहिए। कंपनियों को स्टॉक की सही से जांच करनी चाहिए। इसके बाद ही दवाएं आम लोगों तक जानी चाहिए।
एबीएन हेल्थ डेस्क। दुनियाभर में लाखों लोगों की जान लेने वाला कोरोना वायरस एक बार फिर पैर पसार रहा है। इसी साल जून में जर्मनी के बर्लिन में कोरोना वायरस का एक नया वेरिएंट XEC (MV.1) सामने आया था, जानकारी के मुताबिक यह वेरिएंट दुनियाभर में तेज़ी से फैल रहा है।
स्क्रिप्स रिसर्च के आउटब्रेक डॉट इन्फो पेज पर 5 सितंबर को दी गयी जानकारी के मुताबिक अमेरिका के 12 राज्यों और 15 देशों में इस वेरिएंट के 95 मरीज पाये गये हैं। वहीं ऑस्ट्रेलिया के डाटा इंटिग्रेशन स्पेशलिस्ट माइक हनी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर जानकारी दी है कि यूरोप, नॉर्थ अमेरिका और एशिया के करीब 27 देशों में इस नए वेरिएंट के 100 से ज्यादा मरीजों की पहचान की जा चुकी है।
माइक हनी ने आशंका जतायी है कि आने वाले दिनों में यह वेरिएंट ओमिक्रॉन के DeFLuQE की तरह चुनौती बन सकता है। अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक इस महीने की शुरुआती दो हफ्तों में ओमिक्रॉन वेरिएंट का KP.3.1.1 स्ट्रेन (जिसे DeFLuQE के नाम से जाना जाता है) हावी रहा है।
1 से 14 सितंबर के बीच अमेरिका में इस वेरिएंट के करीब 52.7 % मरीज पाये गये हैं। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि जितनी तेजी से XEC वेरिएंट फैल रहा है, वह जल्द ही KP.3 वेरिएंट के बाद दूसरा बड़ा खतरा हो सकता है। इस वेरिएंट के लक्षण भी बुखार और सर्दी की तरह हैं। इसमें तेज बुखार आना, शरीर में दर्द, थकान, खांसी और गले में खराश महसूस हो सकती है।
इसके अलावा सांस लेने में परेशानी, सिरदर्द, स्वाद और सुगंध का पता न चलना, उल्टी और डायरिया जैसे लक्षण भी सामने आ सकते हैं। कोरोना वायरस से ग्रसित ज्यादातर लोग कुछ ही हफ्तों में ठीक महसूस करने लगते हैं लेकिन इस वेरिएंट से संक्रमित मरीज को ठीक होने में ज्यादा समय लगता है।
टीम एबीएन, रांची। एडीज मच्छर के काटने से फैलने वाली बीमारी डेंगू तेजी से राज्य के कई जिलों में पांव पसार रहा है। राजधानी के अलग-अलग निजी और सरकारी अस्पतालों में डेंगू के लक्षण के साथ पहुंच रहे हैं। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग जहां अलर्ट मोड में हैं तो वहीं दूसरी ओर डॉक्टर इससे बचाव के उपाय भी लोगों को बता रहे हैं।
झारखंड में वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल के नोडल पदाधिकारी डॉ बीके सिंह ने बताया कि इस वर्ष राज्य के गोड्डा, पाकुड़ और जामताड़ा जिले को छोड़ बाकी के 21 जिलों में डेंगू के मरीज मिल चुके हैं। सबसे ज्यादा 122 डेंगू मरीज की पहचान रांची में हुई है जबकि पूर्वी सिंहभूम में 66, खूंटी में 59 मरीज मिले हैं।
स्वास्थ्य निदेशालय के अनुसार बोकारो में 09, चतरा में 05, देवघर में 06, धनबाद में 09, दुमका में 01, गढ़वा में 16, गिरिडीह में 18, गुमला में 08, हजारीबाग में 20, कोडरमा में 04, लातेहार में 04, लोहरदगा में 03, पलामू में 13, रामगढ़ 06, साहिबगंज में 24, सरायकेला-खरसावां में 15, सिमडेगा में 04 और पश्चिमी सिंहभूम में 24 डेंगू के कंफर्म केस मिल चुके हैं।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। एक नयी रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ( आइसीएमआर) के अनुसार, देश के 21 प्रमुख अस्पतालों में सुपरबग्स की खतरनाक उपस्थिति देखी गई है। इन सुपरबग्स के कारण अस्पतालों में भर्ती मरीजों के जीवन को खतरा हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा क्लासीफाइड सुपरबग्स (क्लेबसिएला न्यूमोनिया और एस्चेरिचिया कोलाई) मुख्य रूप से एम्स दिल्ली, पीजीआइ चंडीगढ़, अपोलो अस्पताल चेन्नई और दिल्ली के गंगाराम अस्पताल सहित कई अन्य अस्पतालों में पाये गये।
आईसीएमआर रिपोर्ट में कहा गया है कि ये सुपरबग्स मरीजों के सैंपल में पाये गये, जिनमें खून, यूरीन और अन्य तरल पदार्थ शामिल हैं, जो आउट पेशेंट विभागों (ओपीडी), वार्डों और आईसीयू से एकत्र किए गए थे। इस खुलासे से अस्पतालों में अलार्म बज गया है और उन्हें सुपरबग्स के आगे प्रसार को रोकने के लिए दवाओं का बेहतर मैनेजमेंट और जीवाणु अपशिष्ट के निपटान के लिए सख्त प्रोटोकॉल का पालन करने की सलाह दी गयी है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनइपी) द्वारा इस साल की शुरुआत में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया था कि 2050 तक सुपरबग्स कैंसर जितने बड़े खतरे में हो सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि ऐसे सुपरबग्स के प्रत्यक्ष आर्थिक परिणाम 2030 के अंत तक लगभग 3.4 ट्रिलियन डॉलर प्रति वर्ष होंगे। इसके अलावा, 24 मिलियन लोग चरम गरीबी में धकेले जा सकते हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि पशु पालन और फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा प्रदूषण से सुपरबग्स का उदय बढ़ गया है।
सुपरबग्स बैक्टीरिया, वायरस, फंगी या परजीवी के ऐसे स्ट्रेन हैं जो ज्यादातर एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति रजिस्टेंस होते हैं, जिनमें आधुनिक दवाएं भी शामिल हैं। वे अक्सर एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग के कारण होते हैं। कीटाणुनाशक, एंटीसेप्टिक्स और एंटीबायोटिक्स जो जर्म्स को मजबूत बनाने में मदद कर सकते हैं, हर जगह मौजूद हैं, टूथपेस्ट और शैम्पू से लेकर गाय के दूध और गंदे पानी तक।
टीम एबीएन, रांची। विश्व फिजियोथेरेपी दिवस पर सिनर्जी ग्लोबल हॉस्पिटल के फिजियोथेरेपी डिपार्टमेंट में वर्ल्ड फिजियोथेरेपी दिवस को बहुत ही हर्ष उल्लास के साथ मनाया गया। इस बार वर्ल्ड फिजियोथेरेपी डे का थीम रोल आफ फिजियोथेरेपी इन मैनेजमैंट एंड प्रिवेंशन इन लो बैक पैन था। जिस विषय पर हमारे मुख्य अतिथि और प्रवक्ता ने अपने विचारों को साझा किया।
डॉ रजनीश कुमार (हड्डी रोग विशेषज्ञ) ने बताया कि हेल्थ केयर प्रोफेशन में जितना इंपोर्टेंट रोल हमारा है, उतने ही महत्वपूर्ण रोल फिजियोथेरेपी का है। सर्जरी के बाद पेशेंट को वापस दैनिक दिनचर्चा में लाने में फिजियोथेरेपी का पचास प्रतिशत का योगदान है। साथ ही डॉ राहुल (हड्डी रोग विशेषज्ञ) ने भी बताया कि जितने पेशेंट हमारे पास आते हैं उनमें से अस्सी- नब्बे प्रतिशत मामला का मुख्य कारण कमर दर्द से रिलेटेड ही रहता है।
जिसे ठीक करने हेतु हम फिजियोथेरेपी की सलाह देते हैं। फिजियोथेरेपी अतिथि के रूप में मौजूद संध्या आर मेहता (आईपीएस, डीआइजी, सीआईडी) मैम ने भी फिजियोथेरेपी को लेकर अपने जीवन के अनुभव को शेयर किया कि कैसे फिजियोथेरेपी की मदद से पुराने कमर दर्द से राहत पाया और वापस से दर्द से निजात पाया। विशेष अतिथि लवली चौबे (स्वर्ण विजेता भारत) (लॉन बॉल) और कॉमनवेल्थ गेम्स ने भी बताया कि खेलने के दौरान उन्होंने फिजियोथेरेपी के मदद से कैसे अपने सपनों को साकार किया।
साथ ही गेस्ट के तौर पर डॉ कुमकुम विद्यार्थी मैम (सीनियर ज्ञानिकोलोजिस्ट) और डॉ संगीत सौरभ सर (गैस्ट्रोलॉजिस्ट) ने भी फिजियोथेरेपी के जागरूकता हेतू अपने अपने विचार प्रकट किये। आखिरी स्पीकर के तौर पर डीबीपीआर के संस्थापक डॉ रजनीश कुमार बरियार, डॉ प्रियंका बरियार ने सभी अतिथियों को सौल और मोमेंटो देकर उनका सम्मान किया और डॉ बरियार ने बताया कि हम कैसे अपने समाज के हर व्यक्ति को फिजियोथेरेपी के एक्सरसाइज से हम उन्हें कमर के दर्द से दूर रख सकते हैं।
उनका बस एक ही उद्देश्य है कि समाज का हर व्यक्ति को स्वस्थ रहना है। उनकी पूरी टीम कैसे इस कार्य में जुटी हुई है और अंत में डॉ सुभालक्ष्मी खटुआ ने वोट आफ थैंक्स देकर कार्यक्रम का समापन किया। डॉ शुभालक्ष्मी ने उन सारे मरीज का भी सम्मान किया और उन्हें शॉल और गुलदस्ता देकर उनका स्वागत भी किया गया।
कार्यक्रम में डॉ ज्योत्सना, डॉ अफजल, डॉ आर्यन, डॉ राहुल, डॉ नेहा, डॉ शिवानी, डॉ शीला, डॉ धीरज, डॉ मेहर, डॉ सबाना, जौनुअल, निशांत, राज सिंह, संजू सिंह, डॉ नसीम, डॉ जावेद, डॉ हेमलता, सबीना, पिंकी सुशांत ने अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। सबने फिजियोथेरेपी की जागरूकता को लेकर कमर के दर्द के इलाज और इसके रोक थाम के बारे में बेहतरिन जानकारी दी।
एबीएन हेल्थ डेस्क। योग एक आध्यात्मिक विज्ञान है, जिससे शरीर का समग्र विकास होता है। यदि किसी को अपनी एकाग्रता शक्ति बढ़ानी है, तो उसके लिए कई विशेष योग निर्धारित किये गये हैं। इन योग में से एक है त्राटक योग योगाचार्य महेश पाल बताते हैं कि त्राटक योग ध्यान का एक रूप है, जिसे एकाग्र दृष्टि के रूप में भी जाना जाता है। इसे आमतौर पर कैंडल ग्लेजिंग यानी मोमबत्ती देखने वाले योग के रूप में जाना जाता है।
त्राटक क्रिया मोमबत्ती ध्यान के साथ साथ गोलाकार, चक्राकार, बिंदु, अग्नि, चन्द्रमा, सूर्य, आदि दृश्य पर भी ध्यान किया जाता है। त्राटक मूल रूप से षट्कर्म का भाग है। यह आंतरिक अंगों को शुद्ध करने के लिए उपयोग है। त्राटक योग का उपयोग सबसे पहले मन की अस्थिरता को दूर करने और एकाग्रता को बढ़ावा देने के साथ-साथ आंखों की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए किया जाता है। त्राटक योग के अभ्यास को मुक्ति और मोक्ष के मार्ग की तैयारी के लिए बताये गये छह षट्कर्म में से एक माना गया है।
जब त्राटक योग का अभ्यास करने की बात आती है, तो इसे करने के कई तरीके हैं। चाहे उसका बौद्ध-प्रभावित श्वास-केंद्रित ध्यान हो, मंत्र के साथ वैदिक ध्यान हो या आपकी शारीरिक संवेदनाओं का ध्यानपूर्वक अवलोकन करना हो, परंपरागत रूप से योगियों द्वारा न केवल आंखों पर इसके लाभकारी प्रभावों के लिए, बल्कि एकाग्रता में सुधार पर इसके जबरदस्त प्रभाव के लिए भी विभिन्न तरीकों से इसका अभ्यास किया जाता है।
इस योगीक क्रिया को करने के लिए सबसे पहले मोमबत्ती जलायें और इसे आंखों के स्तर पर रखें, सुनिश्चित करें कि मोमबत्ती की लौ हवा के कारण हिले नहीं, हाथों को घुटनों पर रखकर आरामदायक ध्यान मुद्रा में बैठें। शरीर को आराम देने के लिए धीरे-धीरे सांस लें अब आंखें बंद करें और कुछ सेकंड बाद धीरे-धीरे आंखें खोलें और बिना पलक झपकाये मोमबत्ती की लौ एकटक देखने की कोशिश करें।
आंखों पर दबाव डाले बिना, जितना संभव हो सके लौ को देखते रहें और फिर जरूरत पड़ने पर आंखें बंद कर दें आंखें बंद करके अपना पूरा ध्यान भौंहों पर केन्द्रित करें, इस अवस्था में ही मस्तिष्क में मोमबत्ती की लौ की कल्पना करें और उस पर ध्यान केंद्रित करें। साथ ही बंद आंखों से नजर आने वाले किसी भी रंग का अध्ययन करें। जब मस्तिष्क के भीतर उभरने वाली छवि गायब हो जाए, तो इस प्रक्रिया को 5-10 मिनट तक जारी रखें।
यदि मन भटकता है,तो श्वास पर ध्यान केंद्रित करें। त्राटक योग अभ्यास करने से कई अनेक लाभ प्राप्त होते हैं जिसमें, आंखों की मांसपेशियों के रोग निकट दृष्टि दोष, एकाग्रता और स्मृति में सुधार करता है, इसलिए स्कूली बच्चों को इस योग का अभ्यास जरूरी है त्राटक योग के जरिए नींद से संबंधित विकारों, सिरदर्द, अनिद्रा व बुरे सपने, बेचैन मन शांत, मानसिक, व्यावहारिक और भावनात्मक बीमारियों को दूर करने में भी मदद करता है त्राटक योग से आपका आत्मविश्वास, धैर्य और इच्छाशक्ति को बढ़ावा मिलता है। त्राटक योग क्रिया के अभ्यास से पहले कुछ सावधानी बरतनी जरूरी है।
त्राटक योग खाली पेट और प्राणायाम अभ्यास के बाद सुबह 4-6 बजे के बीच अधिक प्रभावी है। आप रात में सोने से पहले भी इस योग का अभ्यास कर सकते हैं। त्राटक योग का अभ्यास करते समय इस बात का ध्यान रखें कि कमरा न तो रोशनी से भरा हो और न ही उसमें बहुत अंधेरा हो। प्रतिदिन 10-15 मिनट इसका अभ्यास किया जा सकता है। ग्लूकोमा जैसे गंभीर नेत्र विकार होने पर त्राटक योग नहीं करना चाहिए।
इसके अलावा, सिजोफ्रेनिया या मतिभ्रम जैसी मानसिक समस्याओं से ग्रस्त लोगों के लिए त्राटक योग उपयुक्त नहीं है। योगाचार्य के मार्गदर्शन में ही त्राटक योग क्रिया का अभ्यास किया जाना चाहिए त्राटक योग प्रभावी और लाभकारी विशेष योग है। इसके माध्यम से आप अपनी एकाग्रता शक्ति को बढ़ा सकते हैं। अगर आपको ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत होती है, तो यह योग आपके लिए लाभदायक साबित होगा।
Subscribe to our website and get the latest updates straight to your inbox.
टीम एबीएन न्यूज़ २४ अपने सभी प्रेरणाश्रोतों का अभिनन्दन करता है। आपके सहयोग और स्नेह के लिए धन्यवाद।
© www.abnnews24.com. All Rights Reserved. Designed by Inhouse