एबीएन बिजनेस डेस्क। टाटा स्टील के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने बुधवार को कहा कि उन्हें भरोसा है कि वह ब्रिटेन और नीदरलैंड में हरित इस्पात विनिर्माण की दिशा में बदलाव को तय समय में पूरा कर लेंगे। उन्होंने कंपनी की 118वीं वार्षिक आम बैठक (एजीएम) में शेयरधारकों को संबोधित करते हुए यह बात कही। चंद्रशेखरन ने कहा, हमें पूरा भरोसा है कि अगले कुछ वर्षों में ब्रिटेन और नीदरलैंड में हरित इस्पात विनिर्माण का कार्य हमारी योजनाओं के अनुसार होगा।
ब्रिटेन में, कंपनी ने पोर्ट टैलबोट में दो ब्लास्ट फर्नेस को बंद करने के साथ कम उत्सर्जन वाले इस्पात विनिर्माण की दिशा में प्रगति की है, जिससे वित्त वर्ष 2027-28 तक अत्याधुनिक इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस-आधारित इस्पात विनिर्माण में बदलाव का मार्ग प्रशस्त होगा। इसे ब्रिटेन सरकार के 50 करोड़ पाउंड के वित्तपोषण से समर्थन मिलेगा। उन्होंने कहा कि नीदरलैंड में कंपनी कार्बन उत्सर्जन शून्य करने की अपनी योजना पर वित्तीय और नीति-स्तरीय समर्थन के लिए सरकार के साथ चर्चा कर रही है।
टाटा स्टील ने एक लागत बदलाव कार्यक्रम भी शुरू किया है, जिसका लक्ष्य चालू वित्त वर्ष (2025-26) में 50 करोड़ यूरो की बचत करना है। इन प्रयासों का उद्देश्य टाटा स्टील नीदरलैंड को यूरोप के सबसे कुशल और पर्यावरण अनुकूल इस्पात विनिर्माताओं में से एक के रूप में स्थापित करना है।
भारत स्थित टाटा स्टील, साउथ वेल्स के पोर्ट टैलबोट में 30 लाख टन सालाना क्षमता वाली ब्रिटेन के सबसे बड़े इस्पात कारखाने की मालिक है। कार्बन उत्सर्जन को कम करने के अपने प्रयासों के तहत, कंपनी ब्लास्ट फर्नेस मार्ग से कम उत्सर्जन वाली इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस प्रक्रिया में बदलाव कर रही है।
एबीएन बिजनेस डेस्क। सरकार की तिजोरी में जीएसटी कलेक्शन से उछाल देखने को मिला है। सरकार ने जून 2025 के लिए जीएसटी संग्रह के आंकड़े जारी किये हैं। नये आंकड़ों के मुताबिक, जून में देश का सकल जीएसटी कलेक्शन साल-दर-साल आधार पर 6.2% बढ़कर 1.85 लाख करोड़ पहुंच गया है। हालांकि, यह मई 2025 के मुकाबले कुछ कम है, जब रिकॉर्ड 2.01 लाख करोड़ का संग्रह हुआ था।
वित्त मंत्रालय के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 में कुल जीएसटी संग्रह 22.08 लाख करोड़ रहा, जो अब तक का सर्वाधिक है। यह पिछले वर्ष की तुलना में 9.4% अधिक है। वहीं, पांच साल पहले वित्तीय वर्ष 2020-21 में यह 11.37 लाख करोड़ था इस तरह जीएसटी कलेक्शन में दोगुना बढ़ोतरी दर्ज की गयी है।
एबीएन बिजनेस डेस्क। चीन के हालिया आयात प्रतिबंधों के बाद भारत जापान और वियतनाम से रेयर अर्थ मिनरल्स आयात करने को लेकर बातचीत कर रहा है। इसके अलावा, भारत रेयर अर्थ आक्साइड को मैग्नेट में बदलने के लिए एक प्रोत्साहन योजना शुरू करने की भी तैयारी कर रहा है, जिसे लागू होने में दो साल लग सकते हैं। केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री एच डी कुमारस्वामी ने कहा कि इस योजना पर अगले 15 से 20 दिनों में अंतिम फैसला लिया जायेगा।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प द्वारा बढ़ाये गये टैरिफ के जवाब में, बीजिंग ने 4 अप्रैल को सात भारी और मध्यम रेयर अर्थ मिनरल्स और मैग्नेट के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। इन मिनरल्स में सेमेरियम, गैडोलिनियम, टर्बियम, डिस्प्रोसियम, ल्यूटेशियम, स्कैंडियम और येट्रियम शामिल थे। ये मिनरल्स डिफेंस, एनर्जी और आटोमोटिव टेक्नोलॉजी के लिए जरूरी है।
अब चीनी कंपनियों को इन मिनरल्स के निर्यात के लिए डिफेंस लाइसेंस लेना होगा। कुमारस्वामी ने मंगलवार को इलेक्ट्रिक पैसेंजर कारों के निर्माण को बढ़ावा देने वाली योजना पोर्टल के लॉन्च के दौरान पत्रकारों से कहा, हमने खनन मंत्रालय के साथ चर्चा की है, और वे इस मुद्दे पर काम कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि अगले 15 से 20 दिनों में अंतिम फैसला हो जोगा।
बिजनेस स्टैंडर्ड ने पहले बताया था कि सरकार 3,000 से 5,000 प्रोत्साहन योजनाओं को डेवलप करने और चीन की आपूर्ति से जोखिम कम करने के लिए वैकल्पिक स्रोतों पर विचार कर रही है। अगर मैग्नेट पर निर्यात नियमों में ढील नहीं दी गयी, तो भारत चीन के साथ मोटर और सब-असेंबली के लिए बातचीत कर सकता है।
इसको लेकर स्टेकहोल्डर्स के साथ चर्चा जारी है, और भारी उद्योग मंत्रालय को अलग-अलग प्रस्ताव मिले हैं। कुछ कंपनियों ने 50 प्रतिशत समर्थन की मांग की है, जबकि अन्य ने 20 प्रतिशत समर्थन मांगा है। टऌक के सचिव कामरान रिजवी ने कहा, यह एक प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के अधीन होगा, जो हमें समर्थन का स्तर तय करने में मदद करेगा।
रिजवी ने कहा कि समर्थन की बड़ी जरूरत है, क्योंकि शंघाई स्टॉक एक्सचेंज पर वैश्विक रेयर अर्थ आॅक्साइड और मैग्नेट की कीमतों में केवल 5 प्रतिशत का अंतर है। चीन के एकाधिकार ने मैग्नेट की कीमतों को बहुत कम रखा है। उन्होंने कहा, हम जिस प्रोत्साहन की जरूरत है, वह कंपनियों को आक्साइड से मैग्नेट उत्पादन में निवेश के लिए सहायता देना है। भारत में उत्पादित मैग्नेट वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी हों, इसके लिए सरकारी समर्थन की कितना होगा, यह तय करनी होगी। रेयर अर्थ आॅक्साइड को मैग्नेट में बदलने में कम से कम दो साल लग सकते हैं।
जब पूछा गया कि क्या कैबिनेट की मंजूरी जरूरी होगी, रिजवी ने कहा कि यह प्रोत्साहन की राशि पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा, अगर राशि 1,000 करोड़ रुपये से कम है, तो हमारे मंत्री और वित्त मंत्री इसे मंजूरी दे सकते हैं। अगर यह 1,000 करोड़ रुपये से अधिक है, तो कैबिनेट की मंजूरी जरूरी होगी। हम अभी भी सब्सिडी की राशि का आकलन कर रहे हैं।
इस बीच, मिडवेस्ट ने रेयर अर्थ प्रोसेसिंग में रुचि दिखाई है और इस साल दिसंबर तक 500 टन की आपूर्ति करने का वादा किया है। मंत्री ने इसकी पुष्टि की। बिजनेस स्टैंडर्ड ने पहले बताया था कि हैदराबाद स्थित मिडवेस्ट एडवांस्ड मटेरियल्स ने नॉन-फेरस मटेरियल्स टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट सेंटर से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के साथ रेयर अर्थ माइनिंग और प्रोसेसिंग में रुचि दिखायी है।
वर्तमान में, भारतीय रेयर अर्थ्स लिमिटेड, जो परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत है, देश में रेयर अर्थ मिनरल्स का एकमात्र होल्डर है। इसके पास सालाना 1,500 टन मैग्नेट उत्पादन की पर्याप्त संसाधन क्षमता है। कुमारस्वामी ने इसको लेकर खनन मंत्री से मुलाकात की है, और मंत्रालय ने पुष्टि की कि जापान और वियतनाम जैसे देशों से रेयर अर्थ मिनरल्स आयात करने के प्रयास चल रहे हैं।
जुलाई से संभावित उत्पादन प्रभावों पर, कुमारस्वामी ने कहा कि कंपनियां रुकावट को कम करने के लिए कदम उठा रही हैं। उन्होंने कहा, हालांकि यह समझा गया था कि कुछ रुकावट हो सकती है, लेकिन हाल के घटनाक्रमों से सुधार के संकेत मिलते हैं। उत्पादन रुकने की कोई रिपोर्ट नहीं है। पूरी तरह से असेंबल किये गये कंपोनेंट को अभी भी आयात किया जा सकता है और कंपनियां समाधान पर तेजी से काम कर रही हैं।
उन्होंने कहा, हम मोटर और उनके कंपोनेंट पर चर्चा कर रहे हैं। अगर रुकावटें लंबे समय तक बनी रहती हैं, तो हमें विकल्प तलाशने की जरूरत पड़ सकती है।
इसके अलावा, भारत इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण के लिए वैश्विक आॅटोमोटिव कंपनियों से निवेश आकर्षित करने के लिए अमेरिका, जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया और वियतनाम जैसे देश के साथ-साथ उनके दूतावासों से संपर्क कर रहा है। योजना के तहत चार महीने तक अप्लाई करने का समय दिया जायेगा। हालांकि, अभी तक टेस्ला ने इसमें भाग लेने में रुचि नहीं दिखायी है। रिजवी ने कहा, आखिरकार, हमें 21 अक्टूबर तक पता चल जायेगा कि कौन सी वैश्विक आटोमेकर कंपनियां इसमें शामिल होंगी।
एबीएन बिजनेस डेस्क। भारतीय शेयर बाजारों में आज 23 जून को कारोबारी हफ्ते के पहले दिन जोरदार गिरावट देखने को मिली। पश्चिम एशिया में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के चलते निवेशकों ने चौतरफा बिकवाली की। सेंसेक्स 511 अंक टूटकर 81,896 के स्तर पर बंद हुआ। वहीं निफ्टी में भी 140 अंक की गिरावट रही, ये 24,971 के स्तर पर बंद हुआ।
टीम एबीएन, रांची। कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की इकाई सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) ने चालू वित्त वर्ष में दो नयी कोयला खदानों से उत्पादन शुरू करने की योजना बनाई है। कंपनी के एक शीर्ष अधिकारी ने यह जानकारी देते हुए कहा कि इससे कंपनी की उत्पादन क्षमता में सालाना एक से 1.2 करोड़ टन की बढ़ोतरी होगी। यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष में 11 करोड़ टन और 2030 तक 15 करोड़ टन उत्पादन के आंकड़े को पार करना है।
सीसीएल के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक (सीएमडी) नीलेन्दु कुमार सिंह ने यहां संवाददाताओं से कहा, हमने इस साल दो नई खदानें खोलने की योजना बनायी है। कंपनी की योजना अक्टूबर तक 50 लाख टन (एमटी) की अधिकतम क्षमता वाले कोटरे बसंतपुर ब्लॉक (कोकिंग कोयला खान) में उत्पादन शुरू करने की है।
वहीं 1.5 करोड़ टन सालाना क्षमता की खुली चंद्रगुप्त खान परियोजना (गैर-कोकिंग कोयला) के मामले में उत्पादन मार्च, 2026 तक शुरू होने की उम्मीद है। कंपनी ने बीते वित्त वर्ष 2024-25 में 8.75 करोड़ टन कोयले का उत्पादन किया। यह सीसीएल का अबतक का सबसे ऊंचा सालाना उत्पादन है।
सिंह ने कहा कि सीसीएल को 2030 तक 15 करोड़ टन उत्पादन का लक्ष्य हासिल करने के लिए अभी से तैयारी शुरू करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कंपनी 15 करोड़ टन के उत्पादन लक्ष्य को हासिल करने के लिए मौजूदा खदानों की क्षमता बढ़ाने और नयी खदानों को उत्पादन में लाने का काम तेजी से करने पर ध्यान देगी। सीसीएल फिलहाल झारखंड के आठ जिलों में 35 खुली खदानों और तीन भूमिगत खानों का परिचालन करती है।
एबीएन सेंट्रल डेस्क। इजरायल और ईरान के बीच लड़ाई ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष अनिश्चितता का एक और द्वार खोल दिया है, जिसका असर भारत पर भी पड़ेगा। चूंकि दोनों पक्षों ने पीछे हटने से इनकार कर दिया है और इजरायल ने अपने लिए जो लक्ष्य तय किये हैं उन्हें देखते हुए यह लड़ाई गहराने और लंबी चलने के आसार हैं। पश्चिम एशिया में छिड़ी इस लड़ाई का फौरी असर तेल कीमतों पर महसूस किया जा सकता है। लड़ाई बढ़ने की आशंका से बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड की कीमतें पिछले एक हफ्ते में करीब 9 फीसदी चढ़ गयी हैं।
विश्लेषकों का अनुमान है कि तेल कीमतें मौजूदा 150 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर दोगुनी हो सकती हैं। इससे पहले यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद तेल कीमतें पांच महीने तक 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊंची बनी रहीं। इजरायल और ईरान का विवाद कम से कम दो तरीकों से तेल कीमतों को प्रभावित कर सकता है। पहली बात है उत्पादन। इजरायल ने ईरान के तेल ठिकानों को निशाना बनाया है, जिससे आपूर्ति बाधित हो सकती है।
विश्लेषकों का कहना है कि पेट्रोलियम निर्यातक देशों के समूह के पास कमी पूरी करने की क्षमता है मगर देखना होगा कि वे कितनी जल्दी उत्पादन बढ़ा पाते हैं। मगर यह संघर्ष अन्य भौगोलिक क्षेत्रों में फैला तो इसके परिणाम और भी गंभीर हो सकते हैं। अनिश्चितता का दूसरा कारण है होरमुज जलडमरूमध्य में रुकावट। दुनिया का एक तिहाई तेल इसी रास्ते से होकर जाता है।
कच्चे तेल के साथ गैस की आपूर्ति भी गड़बड़ हो सकती है। पहले ही व्यापारिक अनिश्चितताओं से जूझ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था पर तेल-गैस कीमतों में निरंतर इजाफे का बहुत बुरा असर होगा। तेल और गैस की ऊंची कीमतें भारतीय अर्थव्यवस्था को कई तरह से सीधे प्रभावित करेंगी। तेल कीमतों में तेजी व्यापार घाटा भी बढ़ा सकती है। इस साल चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 1 फीसदी होने का अनुमान है।
मगर विश्लेषकों के अनुमान के मुताबिक तेल कीमतों में लंबे समय तक तेज इजाफा होता रहा तो चालू खाते का घाटा भी काफी बढ़ सकता है। विदेशी मुद्रा भंडार में भारत महफूज है और बाहरी मोर्चे पर अनिश्चितताओं से आसानी से निपट सकता है। लेकिन चालू खाते के घाटे में इजाफा वित्तीय चुनौतियां पैदा कर सकता है क्योंकि वैश्विक वित्तीय हालात भी तंग होते दिख रहे हैं। ऐसे में तेल कीमतें मुद्रा पर और दबाव डाल सकती हैं। कच्चे तेल की ऊंची कीमतें वृद्धि और मुद्रास्फीति को सीधे प्रभावित करेंगी। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमानों के अनुसार तेल कीमतों में 10 फीसदी का इजाफा मुद्रास्फीति को 30 आधार अंक बढ़ा सकता है और वृद्धि को 15 आधार अंक कम कर सकता है।
तेल कीमतों में अधिक इजाफा ज्यादा प्रभाव डालेगा। रिजर्व बैंक की अप्रैल की मौद्रिक नीति रिपोर्ट में कच्चे तेल (इंडियन बास्केट) की कीमतें 2025-26 में 70 डॉलर प्रति बैरल रहने की उम्मीद जताई गई है। हालांकि भारत मुद्रास्फीति के मोर्चे पर सहज है, जिस कारण मौद्रिक नीति समिति नीतिगत दरों में कटौती जारी रख सकी। मगर तेल कीमतें लगातार ऊंची रहीं तो अनुमानों पर असर पड़ सकता है और मुद्रास्फीति की तस्वीर भी बदल सकती है।
ऊंची तेल कीमतों के कारण सरकार ने उत्पाद शुल्क घटाया अथवा तेल कंपनियों से कीमत का बोझ सहने को कहा तो खजाने पर असर पड़ सकता है। अगर तेल कीमतें आर्थिक वृद्धि पर असर डालती हैं तो भी राजकोषीय स्थिति प्रभावित होगी और राजस्व संग्रह प्रभावित होगा। युद्ध और ऊंची तेल कीमतों से उत्पन्न अनिश्चितता के कारण परिवारों और कंपनियों के खपत एवं निवेश के फैसलों पर असर पड़ सकता है। इसका असर वृद्धि की संभावनाओं पर भी पड़ेगा। भारतीय नीति प्रबंधकों को इससे निपटने में सावधानी बरतनी होगी।
एबीएन बिजनेस डेस्क। इजराइल और ईरान के बीच छिड़ी जंग की आंच भारतीय शेयर बाजार तक भी पहुंच गई है। शुक्रवार को बाजार में हलचल मची रही, निफ्टी 24,500 के नीचे खुला, लेकिन दिन के अंत में थोड़ी रिकवरी के साथ 24,700 के ऊपर बंद हुआ।
इस उथल-पुथल में उन कंपनियों के शेयर सबसे ज्यादा डगमगाए, जिनका इजरायल से सीधा कनेक्शन है। अगर ये तनाव और बढ़ा, तो बाजार में और बड़ा भूचाल आ सकता है। आइए, आपको बताते हैं कि कौन-कौन सी कंपनियां इस जंग की चपेट में आ सकती हैं।
एबीएन बिजनेस डेस्क। मई में करीब 22 लाख नए डीमैट खाते खुले। इससे कुल खातों की संख्या बढ़कर 19.66 करोड़ हो गयी। शेयर बाजार में तेजी की वजह से डीमैट खातों की संख्या में इजाफा हो रहा है। यह दिसंबर 2024 से नये खाते खुलने के मामले में पहली मासिक वृद्धि है। जनवरी से अप्रैल के बीच नये डीमैट खातों में बड़ी गिरावट आयी थी। उद्योग के विश्लेषकों को जुलाई के मध्य तक खातों की कुल संख्या 20 करोड़ के पार पहुंच जाने की उम्मीद है।
दलाल पथ ने शेयर भाव में तेजी के बीच नये निवेशकों को आकर्षित किया है। मई में भारतीय इक्विटी बाजार में तेजी आयी। निफ्टी और सेंसेक्स करीब 2-2 फीसदी मजबूत हुए। निफ्टी मिडकैप 100 सूचकांक में 6.1 फीसदी,जबकि निफ्टी स्मॉलकैप 100 में 8.7 फीसदी की तेजी आयी।
कैश सेगमेंट में भी कारोबार आठ महीने की ऊंचाई पर पहुंच गया। इससे निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी का संकेत मिलता है। औसत दैनिक कारोबार (एनएसई+बीएसई) मासिक आधार पर 11 फीसदी बढ़कर 1.19 लाख करोड़ रुपये रहा जो सितंबर 2024 (1.3 लाख करोड़ रुपये) के बाद से सर्वाधिक है।
नये निवेशकों को जोड़ने वाला आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) बाजार दो महीने की सुस्ती के बाद फिर से मजबूत हो रहा है। मई में छह कंपनियों ने 8,983 करोड़ रुपये जुटाए जबकि मार्च में एक भी आईपीओ नहीं आया और अप्रैल में सिर्फ एक कंपनी ने पूंजी जुटायी।
फिर भी, यह सुधार नए डीमैट खातों में मजबूत वृद्धि के रूप में नहीं बदल पाया। मई में जोड़े गये डीमैट खाते 12 महीने के औसत (33 लाख खातों) से काफी कम हैं। विश्लेषकों का मानना है कि इस तिमाही में आगामी बड़े आईपीओ से डीमैट खातों की रफ्तार तेज हो सकती है। हालांकि अल्पावधि में 30 लाख के मासिक आंकड़े पर फिर से पहुंचने की संभावना नहीं दिख रही है।
टोरस फाइनैंशियल मार्केट्स के मुख्य कार्याधिकारी प्रकाश गगडानी ने कहा, हमने पहले ही 19.6 करोड़ डीमैट खातों का आंकड़ा पार कर लिया है। यह कम समय में मजबूत पहुंच का संकेत है। मुख्य सवाल यह है कि क्या रिटेल निवेशक बाजारों से लाभ कमा रहे हैं।
पिछले साल सितंबर के अंत से प्रमुख सूचकांक संघर्ष कर रहे हैं और रिटेल भागीदारी में बढ़ोतरी का रुझान तभी होता है जब प्रमुख सूचकांकों में लगातार बढ़ोतरी होती रहे। उन्होंने कहा कि ब्रोकरों को अपने मुनाफे पर दबाव के कारण ग्राहक जोड़ने पर खर्च करने की सीमा का भी सामना करना पड़ता है।
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