एबीएन डेस्क। पिछले दशकों में स्त्रियों का उत्पीड़न रोकने और उन्हें उनके हक दिलाने के बारे में बड़ी संख्या में कानून पारित हुए हैं। अगर इतने कानूनों का सचमुच पालन होता तो भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव और अत्याचार अब तक खत्म हो जाना था। लेकिन पुरुष प्रधान मानसिकता के चलते यह संभव नहीं हो सका है। आज हालात ये हैं कि किसी भी कानून का पूरी तरह से पालन होने के स्थान पर ढेर सारे कानूनों का थोड़ा-सा पालन हो रहा है, लेकिन भारत में महिलाओं की रक्षा हेतु कानूनों की कमी नहीं है। भारतीय संविधान के कई प्रावधान विशेषकर महिलाओं के लिए बनाए गए हैं। इस बात की जानकारी महिलाओं को अवश्य होना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 14 में कानूनी समानता, अनुच्छेद 15 (3) में जाति, धर्म, लिंग एवं जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव न करना, अनुच्छेद 16 (1) में लोक सेवाओं में बिना भेदभाव के अवसर की समानता, अनुच्छेद 19 (1) में समान रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अनुच्छेद 21 में स्त्री एवं पुरुष दोनों को प्राण एवं दैहिक स्वाधीनता से वंचित न करना, अनुच्छेद 23-24 में शोषण के विरुद्ध अधिकार समान रूप से प्राप्त, अनुच्छेद 25-28 में धार्मिक स्वतंत्रता दोनों को समान रूप से प्रदत्त, अनुच्छेद 29-30 में शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार, अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचारों का अधिकार, अनुच्छेद 39 (घ) में पुरुषों एवं स्त्रियों दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार, अनुच्छेद 40 में पंचायती राज्य संस्थाओं में 73वें और 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से आरक्षण की व्यवस्था, अनुच्छेद 41 में बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में सहायता पाने का अधिकार, अनुच्छेद 42 में महिलाओं हेतु प्रसूति सहायता प्राप्ति की व्यवस्था, अनुच्छेद 47 में पोषाहार, जीवन स्तर एवं लोक स्वास्थ्य में सुधार करना सरकार का दायित्व है, अनुच्छेद 51 (क) (ड) में भारत के सभी लोग ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हों, अनुच्छेद 33 (क) में प्रस्तावित 84वें संविधान संशोधन के जरिए लोकसभा में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था, अनुच्छेद 332 (क) में प्रस्तावित 84वें संविधान संशोधन के जरिए राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था है। गर्भावस्था में ही मादा भ्रूण को नष्ट करने के उद्देश्य से लिंग परीक्षण को रोकने हेतु प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994 निर्मित कर क्रियान्वित किया गया। इसका उल्लंघन करने वालों को 10-15 हजार रुपए का जुर्माना तथा 3-5 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है। दहेज जैसे सामाजिक अभिशाप से महिला को बचाने के उद्देश्य से 1961 में दहेज निषेध अधिनियम बनाकर क्रियान्वित किया गया। वर्ष 1986 में इसे भी संशोधित कर समयानुकूल बनाया गया। विभिन्न संस्थाओं में कार्यरत महिलाओं के स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रसूति अवकाश की विशेष व्यवस्था, संविधान के अनुच्छेद 42 के अनुकूल करने के लिए 1961 में प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम पारित किया गया। इसके तहत पूर्व में 90 दिनों का प्रसूति अवकाश मिलता था। अब 135 दिनों का अवकाश मिलने लगा है। महिलाओं को पुरुषों के समतुल्य समान कार्य के लिए समान वेतन देने के लिए समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 पारित किया गया, लेकिन दुर्भाग्यवश आज भी अनेक महिलाओं को समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं मिलता। शासन ने अंतरराज्यिक प्रवासी कर्मकार अधिनियम 1979 पारित करके विशेष नियोजनों में महिला कर्मचारियों के लिए पृथक शौचालय एवं स्नानगृहों की व्यवस्था करना अनिवार्य किया है। इसी प्रकार ठेका श्रम अधिनियम 1970 द्वारा यह प्रावधान रखा गया है कि महिलाओं से एक दिन में मात्र 9 घंटे में ही कार्य लिया जाए। भारतीय दंड संहिता कानून महिलाओं को एक सुरक्षात्मक आवरण प्रदान करता है ताकि समाज में घटित होने वाले विभिन्न अपराधों से वे सुरक्षित रह सकें। भारतीय दंड संहिता में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों अर्थात हत्या, आत्महत्या हेतु प्रेरण, दहेज मृत्यु, बलात्कार, अपहरण एवं व्यपहरण आदि को रोकने का प्रावधान है। उल्लंघन की स्थिति में गिरफ्तारी एवं न्यायिक दंड व्यवस्था का उल्लेख इसमें किया गया है। इसके प्रमुख प्रावधान निम्नानुसार हैं : भारतीय दंड संहिता की धारा 294 के अंतर्गत सार्वजनिक स्थान पर बुरी-बुरी गालियां देना एवं अश्लील गाने आदि गाना जो कि सुनने पर बुरे लगें, धारा 304 बी के अंतर्गत किसी महिला की मृत्यु उसका विवाह होने की दिनांक से 7 वर्ष की अवधि के अंदर उसके पति या पति के संबंधियों द्वारा दहेज संबंधी माँग के कारण क्रूरता या प्रताड़ना के फलस्वरूप सामान्य परिस्थितियों के अलावा हुई हो, धारा 306 के अंतर्गत किसी व्यक्ति द्वारा किए गए कार्य (दुष्प्रेरण) के फलस्वरूप की गई आत्महत्या, धारा 313 के अंतर्गत महिला की इच्छा के विरुद्ध गर्भपात करवाना, धारा 314 के अंतर्गत गर्भपात करने के उद्देश्य से किए गए कृत्य द्वारा महिला की मृत्यु हो जाना, धारा 315 के अंतर्गत शिशु जन्म को रोकना या जन्म के पश्चात उसकी मृत्यु के उद्देश्य से किया गया ऐसा कार्य जिससे मृत्यु संभव हो, धारा 316 के अंतर्गत सजीव, नवजात बच्चे को मारना, धारा 318 के अंतर्गत किसी नवजात शिशु के जन्म को छुपाने के उद्देश्य से उसके मृत शरीर को गाड़ना अथवा किसी अन्य प्रकार से निराकरण, धारा 354 के अंतर्गत महिला की लज्जाशीलता भंग करने के लिए उसके साथ बल का प्रयोग करना, धारा 363 के अंतर्गत विधिपूर्ण संरक्षण से महिला का अपहरण करना, धारा 364 के अंतर्गत हत्या करने के उद्देश्य से महिला का अपहरण करना, धारा 366 के अंतर्गत किसी महिला को विवाह करने के लिए विवश करना या उसे भ्रष्ट करने के लिए अपहरण करना, धारा 371 के अंतर्गत किसी महिला के साथ दास के समान व्यवहार, धारा 372 के अंतर्गत वैश्यावृत्ति के लिए 18 वर्ष से कम आयु की बालिका को बेचना या भाड़े पर देना। धारा 373 के अंतर्गत वैश्यावृत्ति आदि के लिए 18 वर्ष से कम आयु की बालिका को खरीदना, धारा 376 के अंतर्गत किसी महिला से कोई अन्य पुरुष उसकी इच्छा एवं सहमति के बिना या भयभीत कर सहमति प्राप्त कर अथवा उसका पति बनकर या उसकी मानसिक स्थिति का लाभ उठाकर या 16 वर्ष से कम उम्र की बालिका के साथ उसकी सहमति से दैहिक संबंध करना या 15 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ उसके पति द्वारा संभोग, कोई पुलिस अधिकारी, सिविल अधिकारी, प्रबंधन अधिकारी, अस्पताल के स्टाफ का कोई व्यक्ति गर्भवती महिला, 12 वर्ष से कम आयु की लड़की जो उनके अभिरक्षण में हो, अकेले या सामूहिक रूप से बलात्कार करता है, इसे विशिष्ट श्रेणी का अपराध माना जाकर विधान में इस धारा के अंतर्गत कम से कम 10 वर्ष की सजा का प्रावधान है। ऐसे प्रकरणों का विचारण न्यायालय द्वारा बंद कमरे में धारा 372 (2) द.प्र.सं. के अंतर्गत किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि बलात्कार करने के आशय से किए गए हमले से बचाव हेतु हमलावर की मृत्यु तक कर देने का अधिकार महिला को है (धारा 100 भा.द.वि. के अनुसार),दूसरी बात साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 (ए) के अनुसार बलात्कार के प्रकरण में न्यायालय के समक्ष पीड़ित महिला यदि यह कथन देती है कि संभोग के लिए उसने सहमति नहीं दी थी, तब न्यायालय यह मानेगा कि उसने सहमति नहीं दी थी। इस तथ्य को नकारने का भार आरोपी पर होगा। दहेज, महिलाओं का स्त्री धन होता है। यदि दहेज का सामान ससुराल पक्ष के लोग दुर्भावनावश अपने कब्जे में रखते हैं तो धारा 405-406 भा.द.वि. का अपराध होगा। विवाह के पूर्व या बाद में दबाव या धमकी देकर दहेज प्राप्त करने का प्रयास धारा 3/4 दहेज प्रतिषेध अधिनियम के अतिरिक्त धारा 506 भा.द.वि. का भी अपराध होगा। यदि धमकी लिखित में दी गई हो तो धारा 507 भा.द.वि. का अपराध बनता है। दहेज लेना तथा देना दोनों अपराध हैं। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में महिलाओं को संरक्षण प्रदान करने की व्यवस्था है। अत: महिलाओं को गवाही के लिए थाने बुलाना, अपराध घटित होने पर उन्हें गिरफ्तार करना, महिला की तलाशी लेना और उसके घर की तलाशी लेना आदि पुलिस प्रक्रियाओं को इस संहिता में वर्णित किया गया है। इन्हीं वर्णित प्रावधानों के तहत न्यायालय भी महिलाओं से संबंधित अपराधों का विचारण करता है।
एबीएन डेस्क, रांची। देश का कानून यहां रहने वाले और काम करने वाले हर किसी को मानना होगा। उक्त बातें इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने तब कही जब उनसे ट्विटर के बारे में सवाल किया गया। उन्होंने आज इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री के रूप में अपना पदभार ग्रहण किया। ओडिशा से सांसद अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ लिया है। उन्हें आइटी के साथ-साथ रेल मंत्रालय की जिम्मेदारी भी दी गयी है। पदभार ग्रहण करने के बाद उन्होंने कहा कि यह जिम्मेदारी देने के लिए वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आभारी हैं। अश्विनी वैष्णव आइआइटी कानपुर के छात्र रहे हैं और इन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में 27वां स्थान प्राप्त किया था। गौरतलब है कि नये आइटी नियमों को मानने में ट्विटर लगातार आनाकानी कर रहा है। जब सरकार ने कड़ा रुख अपनाया तो ट्विटर ने एक शिकायत पदाधिकारी की नियुक्ति की थी, लेकिन उसने कुछ ही दिनों में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और उसके बाद से यह पद खाली है। हालांकि ट्विटर ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि उसे एक भारतीय नागरिक शिकायत अधिकारी नियुक्त करने के लिए आठ सप्ताह की आवश्यकता है, जो नये कानून के प्रावधानों में से एक है। उसने अदालत को यह भी बताया कि वह आइटी नियमों के अनुपालन में भारत में एक संपर्क कार्यालय स्थापित करने की प्रक्रिया में है। यह उनका स्थायी संपर्क कार्यालय होगा। गौरतलब है कि पूर्व आइटी मंत्री रविशंकर ने ट्विटर पर यह आरोप लगाया था कि वह जानबूझकर नियमों का अनुपालन करने में कोताही कर रहा है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कुरान की 26 आयतों को हटाने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही, शीर्ष अदालत ने याचिका दायर करने वाले पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर कुरान शरीफ की 26 आयतों को हटाने की मांग की थी। रिजवी ने अपनी याचिका में दलील थी कि कुरान की ये 26 आयतें आदमी को हिंसक बनाने के साथ आतंकवाद का पाठ पढ़ा रही हैं। इस मामले की जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने सुनवाई के दौरान इस याचिका को खारिज कर दिया। पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि सही मायने में यह याचिका बेहद तुच्छ है। अपनी याचिका में रिजवी ने दावा किया था कि कुरान की इन आयतों का हवाला देकर दुनिया में आतंकवादी बनाये जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका को दाखिल करने के पिछले दिनों आयोजित एक इस्लामी सम्मेलन में रिजवी को इस्लाम से खारिज कर दिया गया था। इसमें शिया और सुन्नी समुदाय के उलेमा शामिल हुए थे। इस सम्मेलन में रिजवी के खिलाफ फरमान जारी किया गया था कि रिजवी को देश के किसी भी कब्रिस्तान में दफन नहीं होने दिया जायेगा। फिलहाल, शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी गायब बताए जा रहे हैं। उन्होंने कहा है कि परिवार ने मेरा साथ छोड़ दिया। उन्होंने आगे कहा कि पत्नी, बच्चे और भाई सबने मेरा साथ छोड़ दिया है। उधर, उनके भाई ने एक वीडियो जारी कर कहा कि परिवार का वसीम से कोई संबंध नहीं है। वह नहीं आते हैं। वह इस्लाम विरोधी हो गए हैं। वह जो कह रहे हैं, उससे परिवार को कोई लेना-देना नहीं है।
रांची। जेपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में अभ्यर्थियों के लिए उम्र सीमा का कट आफ डेट घटाने की मांग को लेकर दायर याचिका झारखंड हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। जस्टिस एसएन पाठक की अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह सरकार का नीतिगत फैसला है। सरकार ने जो तय किया है उसे चुनौती नहीं दी जा सकती है। इसके पहले हुई सुनवाई में अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिका प्रणय कुमार राय और प्रविण कुजूर ने दायर की थी। मामले में जेपीएससी की ओर से अधिवक्ता संजय पिपरवाल और प्रिंस कुमार सिंह ने दलील दी। याचिका में कहा गया था कि साल 2020 में सिविल सेवा परीक्षा के लिए जारी विज्ञापन में उम्र का कट आफ डेट 2011 रखा गया था। एक साल बाद जेपीएससी की ओर से दोबारा संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा के लिए विज्ञापन निकाला गया, जिसमें उम्र की कट आफ डेट एक अगस्त 2016 तय की गयी। ऐसे मे बहुत से उम्मीदवार परीक्षा से वंचित हो जायेंगे।
एबीएन डेस्क। कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर सरकार ने ड्राइविंग लाइसेंस, पंजीकरण प्रमाणपत्र और परमिट जैसे मोटर वाहन दस्तावेजों की वैधता को 30 जून 2021 तक बढ़ा दिया है। राज्यों को जारी की गयी एक एडवाइजरी में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने कहा कि फिटनेस, परमिट, ड्राइविंग लाइसेंस, आरसी और अन्य मोटर ह्वीकल दस्तावेजों की वैलिडिटी को बढ़ाया जा रहा है। ये विस्तार उन वाहनों के डॉक्यूमेंट्स के लिए है, जिनकी वैलिडिटी को लॉकडाउन के कारण नहीं बढ़वाया जा सका और इनकी वैधता 1 फरवरी 2020 से या 31 मार्च 2021 तक समाप्त हो जायेगा। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने राज्यों को भेजे एक परामर्श में कहा है कि वह फिटनेस, परमिट, ड्राइविंग लाइसेंस, पंजीकरण और अन्य दस्तावेजों की वैधता को बढ़ा रहा है, जिनका लॉकडाउन के कारण विस्तार नहीं किया जा सकता है और जिनकी वैधता एक फरवरी 2020 को खत्म हो गई है या 31 मार्च 2020 को खत्म हो जाएगी। इससे पहले मोटर वाहन अधिनियम, 1988 और केंद्रीय मोटर वाहन नियम से संबंधित दस्तावेजों की वैधता को कई बार बढ़ाया जा चुका है। मंत्रालय ने राज्यों से कहा कि यह सलाह दी जाती है कि एक फरवरी से समाप्त हो चुके दस्तावेजों की वैधता 30 जून, 2021 तक वैध मानी जा सकती है। परामर्श में कहा गया कि संबंधित अधिकारियों को सलाह दी जाती है कि वे ऐसे दस्तावेजों को 30 जून 2021 तक वैध मानें। कोरोना संकट के मद्देनजर यह पांचवीं बार है, जब मोटर ह्वीकल डॉक्यूमेंट्स की वैलिडिटी को बढ़ाया गया है। इससे पहले सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने मोटर वाहन अधिनियम 1988 और केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 से संबंधित दस्तावेजों की वैलिडिटी को आगे बढ़ाने के लिए 30 मार्च 2020, 9 जून 2020, 24 अगस्त 2020 और 27 दिसंबर 2020 को एडवाइजरी जारी की थी। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने हाल ही में सभी ड्राइवरों से कॉन्टैक्टलेस सर्विसेज का लाभ उठाने के लिए अपने ड्राइविंग लाइसेंस को आधार कार्ड के साथ लिंक करने के लिए कहा। नये नियम का मकसद आम जनता के लिए सेवाओं को परेशानी मुक्त बनाना है। आधार कार्ड को ड्राइविंग लाइसेंस से लिंक कराने का सबसे बड़ा फायदा होगा डुप्लीकेसी खत्म होने का। कोई भी फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बनवा सकेगा। दूसरे एक्सीडेंट या किसी इमरजेंसी की स्थिति में पहचान आसानी से हो सकेगी।
क्या आपने अपने पैनकार्ड को आधार से लिंक करा लिया है? अगर नहीं, तो ध्यान दें आपके पास इस काम के लिए 31 मार्च तक का समय है। अगर आपने 31 मार्च तक अपना पैन और आधार लिंक नहीं कराया तो आपका पैन कार्ड डिएक्टिव हो जायेगा और जिसके बाद आप पैसों का कोई भी बड़ा ट्रांजेक्शन नहीं कर पायेंगे। 10 हजार रुपये का पेनाल्टी लगेगा : आयकर विभाग ने बताया है कि पैन को आधार से लिंक करने की समय सीमा को बढ़ाया नहीं जायेगा। साथ ही जो लोग आधार से लिंक नहीं करायेंगे उन्हें नॉन-पैन कार्ड होल्डर समझा जायेगा और उनपर इनकम टैक्स एक्ट 272इ के तहत 10,000 रुपये का पेनाल्टी लगाया जायेगा। कब लगेगा फाइन : आधार कार्ड से लिंक नहीं करने पर पैन कार्ड को डिएक्टिव कर दिया जायेगा ऐसे में अगर आपने अपने बैंक एकाउंट से 50 हजार रुपये से अधिक का ट्रांजेक्शन किया और अपने डिएक्टिव पैन कार्ड का इस्तेमाल किया तो आपपर 10 हजार रुपये का फाइन लगाया जायेगा। साथ ही आप किसी भी तरह का बड़ा ट्रांजेक्शन भी नहीं कर पायेंगे। आधार से कैसे करें लिंक : पैन कार्ड को आधार से लिंक करने का तरीका बहुत ही आसान है। आप दो तरीके से आधार से पैनकार्ड को लिंक कर सकते हैं। एसएमएस के जरिये : अपने फोन में कैपिटल लेटर में आईडीपीएन टाइप करें, फिर स्पेस देकर आधार नंबर और पैन नंबर लिखें। फिर उस मैसेज को 567678 या 56161 पर भेज दें। इसके बाद आयकर विभाग दोनों दस्तावेजों को लिंक करने की प्रक्रिया शुरू कर देगा। आॅनलाइन तरीका : आयकर विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर बाईं तरफ क्विक लिंक विकल्प में लिंक आधार पर क्लिक करें। अगर आपका अकाउंट नहीं बना है तो पहले रजिस्ट्रेशन करें। यहां आपको पैन, आधार नंबर और नाम भरना होगा, जिसके बाद आपके रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर ओटीपी आयेगा। ओटीपी भरने के बाद आपका आधार और पैनकार्ड लिंक हो जायेगा। डिएक्टिव कार्ड को ऐसे करें एक्टिव : अगर आपका कार्ड निष्क्रिय हो गया है तो इसे आपरेटिव किया जा सकता है। इसके लिए आपको एक मैसेज बॉक्स में जाकर अपने रजिस्टर्ड मोबाइल से 12 अंकों वाला आधार नंबर इंटर करना होगा उसके बाद स्पेस देकर 10 अंकों वाला आधार नंबर डालना होगा जिसके बाद 567678 या 56161 पर एसएमएस करना होगा।
सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों और फैक्ट्रियों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए खुशखबरी है कि पहली अप्रैल से देशभर में श्रम कानून के नये नियम लागू कर दिये जायेंगे। केंद्र सरकार नए श्रम कानूनों के तहत देश में कंपनियों में कर्मचारियों के लिए कैंटीन जरूरी करने और सरकारी योजनाओं को मजबूती से लागू करने के लिए वेलफेयर आॅफिसर नियुक्त करने के नियम बनाए हैं। केंद्र सरकार की तरफ से पिछले साल जारी व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता 2020 में इस बारे में खास प्रावधान किए गए हैं, जिन्हें सभी हितधारकों के साथ चर्चा के बाद लागू किया जा सकता है। सरकार प्रवासी मजदूरों के हितों को ध्यान पर रखते हुए यह भी नियम लागू करेगी कि अगर कंपनी उन्हें साइट पर ले जा रही है और काम खत्म होने पर वो घर लौट रहे हैं, तो उन्हें यात्रा भत्ता देना भी जरूरी होगा। ओवरटाइम के नियमों में भी बदलाव किया गया है। नए नियमों के हिसाब से कामकाजी घंटों के बाद अगर कामगार से 15 मिनट भी ज्यादा काम कराया गया तो उसे ओवरटाइम माना जाएगा। पहले यह दायरा आधा घंटा हुआ करता था। कर्मचारी कॉन्ट्रैक्ट पर हो या फिर स्थायी उस पर लगातार लगातार पांच घंटे से ज्यादा काम का दबाव नहीं बनाए जाने के भी प्रावधान तय किए गए हैं। कंपनी के लिए उसे हर पांच घंटे में आधे घंटे का ब्रेक देना जरूरी किया जाएगा। साथ ही ब्रेक का यह समय भी कामकाजी घंटों में ही जोड़ा जाएगा।
कानून व्यवस्था एक ऐसा शब्द है जो आये दिन खबरों के माध्यम से आप सुनते और पढ़ते हैं। यह शब्द केवल खबरों के लिहाज से ही नहीं बल्कि सामाजिक तौर पर भी महत्वपूर्ण है। बेहतर कानून व्यवस्था अच्छे समाज और माहौल का निर्माण करती है। क्या है कानून व्यवस्था : किसी भी राज्य, शहर अथवा क्षेत्र में शांति बनाये रखना, अपराधों पर नियंत्रण कर इसे कम करना और नागरिकों को सुरक्षा देना कानून व्यवस्था का मुख्य अंग है। अक्सर जहां कहीं राजनीतिक या सामाजिक बवाल या टकराव होता है या फिर माहौल तनावपूर्ण हो जाता है, तो कानून व्यवस्था का संकट खड़ा हो जाता है। यानी किसी क्षेत्र में अशांति या हिंसा होना भी कानून व्यवस्था का सकंट ही होता है। कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी : भारत का गृह मंत्रालय देश की आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मामलों के लिए उत्तरदायी है। यह आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए कानून अधिनियमित करता है। देश में पुलिस बल को सार्वजनिक व्यवस्था का रख-रखाव करने और अपराधों की रोकथाम और उनका पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। भारत के प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश का अपना अलग पुलिस बल है। राज्यों की पुलिस के पास ही कानून व्यवस्था को बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है। कानून व्यवस्था में केंद्र की भूमिका : भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत पुलिस और लोक व्यवस्था राज्य के विषय हैं। अपराध रोकना, पता लगाना, दर्ज करना, जांच-पड़ताल करना और अपराधियों के विरुद्ध अभियोजन चलाने की मुख्य जिम्मेदारी राज्य सरकारों और खासकर पुलिस को दी गई है। संविधान के मुताबिक ही केंद्र सरकार पुलिस के आधुनिकीकरण, अस्त्र-शस्त्र, संचार, उपस्कर, मोबिलिटी, प्रशिक्षण और अन्य अवसंरचना के लिए राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। एनसीआरबी है मददगार : कानून व्यवस्था और अपराधों से संबंधित घटनाओं को रोकने के लिए केन्द्रीय सुरक्षा और सूचना एजेंसियां राज्य की कानून और प्रवर्तन इकाइयों को नियमित रूप से जानकारी देती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) गृह मंत्रालय की एक नोडल एजेंसी है, जो अपराधों को बेहतर ढंग से रोकने और नियंत्रित करने के लिए राज्यों की सहायता करती है। और राज्यों को अपराध संबंधी आंकड़े जुटाने और उनका विश्लेषण करती है। सीसीआईएस भी है सहायक : अपराध अपराधी सूचना प्रणाली (सीसीआईएस) के तहत देश के सभी जिलों में जिला अपराध रिकार्ड ब्यूरो (डीसीआरबी) और राज्य अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एससीआरबी) को कंप्यूटरीकृत प्रणाली से जोड़ दिया गया है। यह प्रणाली अपराध रोकने, उनका पता लगाने और सेवा प्रदाता तंत्रों में सुधार करने में सहायक है। इसकी मदद के पुलिस और कानूनी प्रवर्तन एजेंसियां अपराधों, अपराधियों और अपराध से जुड़ी संपत्ति का राष्ट्र स्तरीय डाटाबेस रखती हैं। कानून व्यवस्था को मजबूत करेगी ओसीआईएस : एनसीआरबी के दिशा निर्देश में संगठित अपराध के खतरे से प्रभावी ढंग से निपटने के मकसद से एक और नई प्रणाली स्थापित की जा रही है। जिसे संगठित अपराध सूचना प्रणाली यानी ओसीआईएस का नाम दिया गया है। इसके तहत विभिन्न अपराधों से संबंधित आंकड़े आसानी से उपलब्ध होंगे जो कानून व्यवस्था को बेहतर बनाने में सहायक साबित होंगे।
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