कानून व्यवस्था

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Published / 2021-08-24 15:44:44
अब सर्किल रेट पर प्रॉपर्टी टैक्स वसूलेंगे नगर निकाय

रांची। सीएम हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट की बैठक में राज्यकर्मियों को तोहफा देते हुए मकान किराया भत्ता में 9 से 27 प्रतिशत बढ़ोतरी कर दी। बढ़ा हुआ एचआर 1 जुलाई 2021 की तिथि से प्रभावी होगा। कैबिनेट ने छठा वेतनमान पाने वाले अपुनरीक्षित कर्मियों का महंगाई भत्ता 164 से बढ़ाकर 189 प्रतिशत कर दिया है। इसका लाभ पेंशनधारियों और पारिवारिक पेंशनधारियों को भी समान रूप से मिलेगा। यह निर्णय भी एक जुलाई 2021 से प्रभावी होगा। बैठक में कैबिनेट से 24 प्रस्तावों को मंजूरी दी गयी। कैबिनेट ने झारखंड नगरपालिका संशोधन विधेयक 2021 को लागू करने की स्वीकृति दे दी है। झारखंड में नगर निकाय अब सर्किल रेट पर प्रॉपर्टी टैक्स वसूलेगी। 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों और वित्त तथा आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय से प्राप्त प्रॉपर्टी टैक्स रिफॉर्म्स के संबंधित निर्देश को लागू किया जायेगा। इसके तहत अब वार्षिक प्रॉपर्टी टैक्स की जगह सर्किल रेट पर प्रॉपर्टी की गणना कर टैक्स लिया जायेगा। नगरपालिका के नये संशोधन में सरकार के पास मेयर और अध्यक्ष परिषद को हटाने की शक्ति है। अगर कोई मेयर या निकाय अध्यक्ष लगातार बिना पर्याप्त कारणों के तीन बैठकों में गैरमौजूद रहा तो उसे सरकार हटा सकती है। अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में अक्षम या कदाचार और आपराधिक मामले में अभियुक्त होने पर अगर मेयर या अध्यक्ष 6 महीने से ज्यादा फरार हों तो उन्हें शोकॉज के बाद सरकार पद से हटा सकती है। हटाये गये मेयर और अध्यक्ष अपने बचे हुए कार्यकाल में दोबारा अध्यक्ष के रूप में फिर निर्वाचन का पात्र नहीं होगा। कैबिनेट ने दलगत आधार पर नगर निकाय चुनाव नहीं कराये जाने के प्रस्ताव को स्वीकृति दी है। नगर विकास विभाग का कहना है कि नगरपालिका अधिनियम 2011 के तहत मेयर, डिप्टी मेयर और उपाध्यक्ष का निर्वाचन दलीय आधार पर हो रहा है। लेकिन क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दलों की आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति नहीं हो पाती है। इसलिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों के निर्वाचन का आधार स्थानीय होना चाहिए। पंचम वेतनमान पाने वाले कर्मियों का महंगाई भत्ता 312 प्रतिशत से बढ़ाकर 356 प्रतिशत कर दिया गया। झारखंड नगरपालिका संशोधन विधेयक 2021 को मंजूरी दी गयी है। 15वें वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार प्रॉपर्टी टैक्स में सुधार किया गया है, अब सर्किल रेट पर प्रॉपर्टी टैक्स की वसूली की जायेगीण् पहले प्रॉपर्टी टैक्स वार्षिक किराया मूल्य के अनुसार तय किया जाता था। राज्य में खाद्य प्रसंस्करण को प्रोत्साहित करने के लिए वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट की पॉलिसी को मंजूरी दी गयी। रांची के बिजूपाड़ा के बरहे मौजा में फार्मास्यूटिकल फॉर्म की आधारभूत संरचना तैयार करने के लिए 34।94 करोड़ की योजना में राज्यांश के 13।47 करोड़ के खर्च को मंजूरी दी गयी। झारखंड खिलाड़ी सीधी भर्ती योजना में नियमों को शिथिल कर भाग्यवाती चानू को समूह ख में नियुक्ति के प्रस्ताव को मंजूरी दी गयी। भाग्यवती चानू के लिए शैक्षणिक व आयु दोनों वर्गों में नियमों को क्षान्त किया गया। सिद्धो-कान्हू वनोपज सहकारी लिमिटेड का गठन राज्य और जिला स्तर पर किया जायेगा। राज्य में ओपेन विवि स्थापना के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी गयी। सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्राध्यापकों और सह प्राध्यापकों की संविदा आधारित नियुक्ति की नियमावली मंजूर कर ली गयी है। राज्य की जेलों में पदस्थापित प्रोबेशन पदाधिकारी के वेतनमान में संशोधन को मंजूरी दी गयी। संशोधित वेतनमान 1 जनवरी 2006 की तिथि से लागू होगा। आंगनबाड़ी में बच्चों पर अब छह दिन मिलेगा अंडा। दुमका में गोड्डा-रामगढ़-भुइयांजोरी-30 किमी के लिए 39 करोड़, अनगड़ा-हुंडरू पथ-21 किमी के लिए 29 करोड़, नौनिहाट से बासुकीनाथ रोड -28 किमी के लिए 27।46 करोड़ और डालटनगंज-लेस्लीगंज-पांकी रोड के लिए 31 करोड़ की राशि मंजूर की गयी है। राज्य सरकार के पदाधिकारियों को मोबाइल फोन के इस्तेमाल के लिए मिलनेवाले भत्ते में बढ़ोत्तरी की गयी है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की आॅडिट रिपोर्ट को विधानसभा में पेश करने के प्रस्ताव को स्वीकृति दी गयी है।

Published / 2021-08-23 17:00:48
हाईकोर्ट ने पुलिस नियुक्ति में आदेश का पालन नहीं करने पर गृह सचिव को भेजा अवमानना का नोटिस

रांची। झारखंड हाईकोर्ट ने अदालत के आदेश का पालन नहीं करने पर राज्य के गृह सचिव को अवमानना का नोटिस जारी किया है। चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने गृह सचिव को 18 अगस्त तक यह बताने को कहा है कि कोर्ट का आदेश का पालन क्यों नहीं किया गया। पुलिस नियुक्ति नियमावली 2014 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह निर्देश दिया। अदालत ने 16 जनवरी 2017 को इस मामले की सुनवाई करते हुए सरकार को आदेश दिया था कि इस नियमावली के तहत नियुक्त होने वाले कांस्टेबलों के नियुक्ति पत्र में नियुक्ति हाईकोर्ट के अंतिम आदेश से प्रभावित होने की बात अंकित करने को कहा था। लेकिन नियुक्ति पत्र में इसका उल्लेख नहीं किया गया है। खंडपीठ ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा है कि यह अवमानना का मामला बनता है। अदालत ने गृह सचिव को इस नियमावली से नियुक्त सभी कांस्टेबलों को निजी तौर पर यह जानकारी देने को कहा है कि उनकी नियुक्ति कोर्ट के अंतिम आदेश से प्रभावित होगी। साथ ही इसकी आम सूचना भी प्रकाशित करने का निर्देश देते हुए सुनवाई 18 अगस्त को निर्धारित कर दी। झारखंड में सिपाही नियुक्ति नियमावली को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में करीब 50 याचिकाएं दायर की गयी हैं। इसमें कहा गया है कि सरकार की यह नियमावली पुलिस मैनुएल और पुलिस एक्ट के खिलाफ है। नई नियमावली में लिखित परीक्षा के लिए निर्धारित न्यूनतम क्वालिफाइंग मार्क्स की शर्त भी गलत है। इसलिए नई नियमावली को निरस्त कर देना चाहिए। इस मामले में जेएसएससी के अधिवक्ता संजय पिपरवाल का कहना है कि नई नियमावली के अनुसार ही वर्ष 2015 में सभी जिलों में सिपाही और जैप के जवानों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला गया था। नियुक्ति की प्रक्रिया वर्ष 2018 में पूरी कर ली गई है। इस पर वादियों की ओर से कहा गया कि पूर्व में हाईकोर्ट की एकलपीठ ने इस मामले के अंतिम फैसले से नियुक्ति प्रक्रिया प्रभावित होने का आदेश दिया था। लेकिन नियुक्ति पत्र में इसका उल्लेख नहीं किया गया है। इस नियमावली से राज्य में 6800 से अधिक पुलिस और जैप के कांस्टेबलों की नियुक्ति हो चुकी है।

Published / 2021-08-11 15:43:38
अब ओबीसी आरक्षण संशोधन बिल भी पास...

एबीएन डेस्क। संसद के निम्न सदन लोकसभा के बाद उच्च सदन में भी ओबीसी आरक्षण संशोधन बिल बुधवार को पास हो गया। पक्ष-विपक्ष ने इसे एकमत से पास कर दिया। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने इस बिल का सदन में प्रस्ताव किया और चर्चा की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि ये संविधान संशोधन राज्यों को ओबीसी सूची तैयार करने का अधिकार देने के लिए लाया गया है। राज्यसभा में संविधान (127वां) संशोधन विधेयक, 2021 पर चर्चा की गई। लंबी बहस के बाद इस बिल पर मत विभाजन कराया गया। कुछ सांसदों ने संशोधन भी पेश किए लेकिन संशोधन खारिज हो गए। इस तरह वोटिंग के जरिए राज्यसभा में ओबीसी आरक्षण से जुड़ा ये अहम बिल पारित हो गया। इसके पक्ष में 187 वोट पड़े। लोकसभा से ये बिल 10 अगस्त को पास हो गया था। अब बिल मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। बिल पर चर्चा ओपन होने के बाद सबसे पहले कांग्रेस की तरफ से वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने पक्ष रखा। उन्होंने स्पष्ट कहा कि ये संशोधन लाकर सरकार अपनी पुरानी गलती को सुधार रही है। लेकिन दूसरी गलती पर इस बिल में कुछ नहीं कहा गया है। सिंघवी ने कहा कि 50 फीसदी आरक्षण सीमा पर इस बिल में एक शब्द भी नहीं है। सिंघवी ने कहा, ह्वसब राज्य सूचियां बना लेंगे, लेकिन इन सूचियों का क्या करेंगे। ये सूचियां सिर्फ खाली बर्तन जैसी रहेंगी। 75 प्रतिशत राज्य ऐसे हैं जहां आरक्षण पचास प्रतिशत की सीमा से आगे निकल गए हैं। आप उन्हें एक कागजी दस्तावेज दे रहे हैं और एक ऐसा सब्जबाग दिखा रहे हैं जो कानूनी रूप से कार्यान्वित नहीं हो सकता। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की तरफ से भी ये मांग उठाई गई और कहा गया कि 50 फीसदी से जुड़ी एक लाइन जोड़ दीजिए ताकि राज्यों को आसानी हो सके। इसके साथ ही खड़गे ने प्राइवेट सेक्टर को भी आरक्षण के दायरे में लाने की मांग उठाई। बसपा ने भी इसका समर्थन किया। आरजेडी सांसद मनोज कुमार झा ने संविधान संशोधन बिल का समर्थन करते हुए कहा कि मैंने भी कई बार सदन में जातीय जनगणना के आंकड़ों के बारे में पूछा, जिस पर जवाब दिया गया कि आंकड़े करप्ट हो गए हैं। झा ने कहा कि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा की टोपी को हटाना होगा तभी ओबीसी को लाभ मिलेगा। बिल का समाजवादी पार्टी ने समर्थन किया। बिल के समर्थन में बोलते हुए सपा सांसद रामगोपाल यादव ने ये भी कहा कि ओबीसी को धरातल पर कुछ नहीं दिया जा रहा है। यादव ने कहा कि इस बिल के बाद राज्यों को सूची बनाने का जो अधिकार मिलेगा, उसका तब तक लाभ नहीं मिलेगा जब तक 50 फीसदी का कैप नहीं बढ़ाया जाएगा। शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि अगर इस बिल को क्रांतिकारी कहा जा रहा है तो इसका श्रेय महाराष्ट्र को जाता है। लेकिन क्या इस संशोधन के बाद मराठा आरक्षण का रास्ता साफ हो जाएगा, मुझे लगता नहीं है। आम आदमी पार्टी,टीएमसी, डीएमके और एनसीपी समेत अन्य विपक्षी दलों ने भी इस बिल का समर्थन किया।

Published / 2021-07-31 15:33:02
समान कानून व्यवस्था के बावजूद उत्पीड़न की शिकार हैं महिलाएं

एबीएन डेस्क। पिछले दशकों में स्त्रियों का उत्पीड़न रोकने और उन्हें उनके हक दिलाने के बारे में बड़ी संख्या में कानून पारित हुए हैं। अगर इतने कानूनों का सचमुच पालन होता तो भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव और अत्याचार अब तक खत्म हो जाना था। लेकिन पुरुष प्रधान मानसिकता के चलते यह संभव नहीं हो सका है। आज हालात ये हैं कि किसी भी कानून का पूरी तरह से पालन होने के स्थान पर ढेर सारे कानूनों का थोड़ा-सा पालन हो रहा है, लेकिन भारत में महिलाओं की रक्षा हेतु कानूनों की कमी नहीं है। भारतीय संविधान के कई प्रावधान विशेषकर महिलाओं के लिए बनाए गए हैं। इस बात की जानकारी महिलाओं को अवश्य होना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 14 में कानूनी समानता, अनुच्छेद 15 (3) में जाति, धर्म, लिंग एवं जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव न करना, अनुच्छेद 16 (1) में लोक सेवाओं में बिना भेदभाव के अवसर की समानता, अनुच्छेद 19 (1) में समान रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अनुच्छेद 21 में स्त्री एवं पुरुष दोनों को प्राण एवं दैहिक स्वाधीनता से वंचित न करना, अनुच्छेद 23-24 में शोषण के विरुद्ध अधिकार समान रूप से प्राप्त, अनुच्छेद 25-28 में धार्मिक स्वतंत्रता दोनों को समान रूप से प्रदत्त, अनुच्छेद 29-30 में शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार, अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचारों का अधिकार, अनुच्छेद 39 (घ) में पुरुषों एवं स्त्रियों दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार, अनुच्छेद 40 में पंचायती राज्य संस्थाओं में 73वें और 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से आरक्षण की व्यवस्था, अनुच्छेद 41 में बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में सहायता पाने का अधिकार, अनुच्छेद 42 में महिलाओं हेतु प्रसूति सहायता प्राप्ति की व्यवस्था, अनुच्छेद 47 में पोषाहार, जीवन स्तर एवं लोक स्वास्थ्य में सुधार करना सरकार का दायित्व है, अनुच्छेद 51 (क) (ड) में भारत के सभी लोग ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हों, अनुच्छेद 33 (क) में प्रस्तावित 84वें संविधान संशोधन के जरिए लोकसभा में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था, अनुच्छेद 332 (क) में प्रस्तावित 84वें संविधान संशोधन के जरिए राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था है। गर्भावस्था में ही मादा भ्रूण को नष्ट करने के उद्देश्य से लिंग परीक्षण को रोकने हेतु प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994 निर्मित कर क्रियान्वित किया गया। इसका उल्लंघन करने वालों को 10-15 हजार रुपए का जुर्माना तथा 3-5 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है। दहेज जैसे सामाजिक अभिशाप से महिला को बचाने के उद्देश्य से 1961 में दहेज निषेध अधिनियम बनाकर क्रियान्वित किया गया। वर्ष 1986 में इसे भी संशोधित कर समयानुकूल बनाया गया। विभिन्न संस्थाओं में कार्यरत महिलाओं के स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रसूति अवकाश की विशेष व्यवस्था, संविधान के अनुच्छेद 42 के अनुकूल करने के लिए 1961 में प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम पारित किया गया। इसके तहत पूर्व में 90 दिनों का प्रसूति अवकाश मिलता था। अब 135 दिनों का अवकाश मिलने लगा है। महिलाओं को पुरुषों के समतुल्य समान कार्य के लिए समान वेतन देने के लिए समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 पारित किया गया, लेकिन दुर्भाग्यवश आज भी अनेक महिलाओं को समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं मिलता। शासन ने अंतरराज्यिक प्रवासी कर्मकार अधिनियम 1979 पारित करके विशेष नियोजनों में महिला कर्मचारियों के लिए पृथक शौचालय एवं स्नानगृहों की व्यवस्था करना अनिवार्य किया है। इसी प्रकार ठेका श्रम अधिनियम 1970 द्वारा यह प्रावधान रखा गया है कि महिलाओं से एक दिन में मात्र 9 घंटे में ही कार्य लिया जाए। भारतीय दंड संहिता कानून महिलाओं को एक सुरक्षात्मक आवरण प्रदान करता है ताकि समाज में घटित होने वाले विभिन्न अपराधों से वे सुरक्षित रह सकें। भारतीय दंड संहिता में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों अर्थात हत्या, आत्महत्या हेतु प्रेरण, दहेज मृत्यु, बलात्कार, अपहरण एवं व्यपहरण आदि को रोकने का प्रावधान है। उल्लंघन की स्थिति में गिरफ्तारी एवं न्यायिक दंड व्यवस्था का उल्लेख इसमें किया गया है। इसके प्रमुख प्रावधान निम्नानुसार हैं : भारतीय दंड संहिता की धारा 294 के अंतर्गत सार्वजनिक स्थान पर बुरी-बुरी गालियां देना एवं अश्लील गाने आदि गाना जो कि सुनने पर बुरे लगें, धारा 304 बी के अंतर्गत किसी महिला की मृत्यु उसका विवाह होने की दिनांक से 7 वर्ष की अवधि के अंदर उसके पति या पति के संबंधियों द्वारा दहेज संबंधी माँग के कारण क्रूरता या प्रताड़ना के फलस्वरूप सामान्य परिस्थितियों के अलावा हुई हो, धारा 306 के अंतर्गत किसी व्यक्ति द्वारा किए गए कार्य (दुष्प्रेरण) के फलस्वरूप की गई आत्महत्या, धारा 313 के अंतर्गत महिला की इच्छा के विरुद्ध गर्भपात करवाना, धारा 314 के अंतर्गत गर्भपात करने के उद्देश्य से किए गए कृत्य द्वारा महिला की मृत्यु हो जाना, धारा 315 के अंतर्गत शिशु जन्म को रोकना या जन्म के पश्चात उसकी मृत्यु के उद्देश्य से किया गया ऐसा कार्य जिससे मृत्यु संभव हो, धारा 316 के अंतर्गत सजीव, नवजात बच्चे को मारना, धारा 318 के अंतर्गत किसी नवजात शिशु के जन्म को छुपाने के उद्देश्य से उसके मृत शरीर को गाड़ना अथवा किसी अन्य प्रकार से निराकरण, धारा 354 के अंतर्गत महिला की लज्जाशीलता भंग करने के लिए उसके साथ बल का प्रयोग करना, धारा 363 के अंतर्गत विधिपूर्ण संरक्षण से महिला का अपहरण करना, धारा 364 के अंतर्गत हत्या करने के उद्देश्य से महिला का अपहरण करना, धारा 366 के अंतर्गत किसी महिला को विवाह करने के लिए विवश करना या उसे भ्रष्ट करने के लिए अपहरण करना, धारा 371 के अंतर्गत किसी महिला के साथ दास के समान व्यवहार, धारा 372 के अंतर्गत वैश्यावृत्ति के लिए 18 वर्ष से कम आयु की बालिका को बेचना या भाड़े पर देना। धारा 373 के अंतर्गत वैश्यावृत्ति आदि के लिए 18 वर्ष से कम आयु की बालिका को खरीदना, धारा 376 के अंतर्गत किसी महिला से कोई अन्य पुरुष उसकी इच्छा एवं सहमति के बिना या भयभीत कर सहमति प्राप्त कर अथवा उसका पति बनकर या उसकी मानसिक स्थिति का लाभ उठाकर या 16 वर्ष से कम उम्र की बालिका के साथ उसकी सहमति से दैहिक संबंध करना या 15 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ उसके पति द्वारा संभोग, कोई पुलिस अधिकारी, सिविल अधिकारी, प्रबंधन अधिकारी, अस्पताल के स्टाफ का कोई व्यक्ति गर्भवती महिला, 12 वर्ष से कम आयु की लड़की जो उनके अभिरक्षण में हो, अकेले या सामूहिक रूप से बलात्कार करता है, इसे विशिष्ट श्रेणी का अपराध माना जाकर विधान में इस धारा के अंतर्गत कम से कम 10 वर्ष की सजा का प्रावधान है। ऐसे प्रकरणों का विचारण न्यायालय द्वारा बंद कमरे में धारा 372 (2) द.प्र.सं. के अंतर्गत किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि बलात्कार करने के आशय से किए गए हमले से बचाव हेतु हमलावर की मृत्यु तक कर देने का अधिकार महिला को है (धारा 100 भा.द.वि. के अनुसार),दूसरी बात साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 (ए) के अनुसार बलात्कार के प्रकरण में न्यायालय के समक्ष पीड़ित महिला यदि यह कथन देती है कि संभोग के लिए उसने सहमति नहीं दी थी, तब न्यायालय यह मानेगा कि उसने सहमति नहीं दी थी। इस तथ्य को नकारने का भार आरोपी पर होगा। दहेज, महिलाओं का स्त्री धन होता है। यदि दहेज का सामान ससुराल पक्ष के लोग दुर्भावनावश अपने कब्जे में रखते हैं तो धारा 405-406 भा.द.वि. का अपराध होगा। विवाह के पूर्व या बाद में दबाव या धमकी देकर दहेज प्राप्त करने का प्रयास धारा 3/4 दहेज प्रतिषेध अधिनियम के अतिरिक्त धारा 506 भा.द.वि. का भी अपराध होगा। यदि धमकी लिखित में दी गई हो तो धारा 507 भा.द.वि. का अपराध बनता है। दहेज लेना तथा देना दोनों अपराध हैं। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में महिलाओं को संरक्षण प्रदान करने की व्यवस्था है। अत: महिलाओं को गवाही के लिए थाने बुलाना, अपराध घटित होने पर उन्हें गिरफ्तार करना, महिला की तलाशी लेना और उसके घर की तलाशी लेना आदि पुलिस प्रक्रियाओं को इस संहिता में वर्णित किया गया है। इन्हीं वर्णित प्रावधानों के तहत न्यायालय भी महिलाओं से संबंधित अपराधों का विचारण करता है।

Published / 2021-07-08 12:21:36
देश का कानून हर किसी को मानना होगा : अश्विनी वैष्णव

एबीएन डेस्क, रांची। देश का कानून यहां रहने वाले और काम करने वाले हर किसी को मानना होगा। उक्त बातें इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने तब कही जब उनसे ट्विटर के बारे में सवाल किया गया। उन्होंने आज इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री के रूप में अपना पदभार ग्रहण किया। ओडिशा से सांसद अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ लिया है। उन्हें आइटी के साथ-साथ रेल मंत्रालय की जिम्मेदारी भी दी गयी है। पदभार ग्रहण करने के बाद उन्होंने कहा कि यह जिम्मेदारी देने के लिए वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आभारी हैं। अश्विनी वैष्णव आइआइटी कानपुर के छात्र रहे हैं और इन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में 27वां स्थान प्राप्त किया था। गौरतलब है कि नये आइटी नियमों को मानने में ट्विटर लगातार आनाकानी कर रहा है। जब सरकार ने कड़ा रुख अपनाया तो ट्विटर ने एक शिकायत पदाधिकारी की नियुक्ति की थी, लेकिन उसने कुछ ही दिनों में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और उसके बाद से यह पद खाली है। हालांकि ट्विटर ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि उसे एक भारतीय नागरिक शिकायत अधिकारी नियुक्त करने के लिए आठ सप्ताह की आवश्यकता है, जो नये कानून के प्रावधानों में से एक है। उसने अदालत को यह भी बताया कि वह आइटी नियमों के अनुपालन में भारत में एक संपर्क कार्यालय स्थापित करने की प्रक्रिया में है। यह उनका स्थायी संपर्क कार्यालय होगा। गौरतलब है कि पूर्व आइटी मंत्री रविशंकर ने ट्विटर पर यह आरोप लगाया था कि वह जानबूझकर नियमों का अनुपालन करने में कोताही कर रहा है।

Published / 2021-04-12 11:39:32
कुरान की 26 आयतों को हटाने की मांग वाली याचिका खारिज, याचिकाकर्ता पर 50 हजार जुर्माना

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कुरान की 26 आयतों को हटाने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही, शीर्ष अदालत ने याचिका दायर करने वाले पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर कुरान शरीफ की 26 आयतों को हटाने की मांग की थी। रिजवी ने अपनी याचिका में दलील थी कि कुरान की ये 26 आयतें आदमी को हिंसक बनाने के साथ आतंकवाद का पाठ पढ़ा रही हैं। इस मामले की जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ ने सुनवाई के दौरान इस याचिका को खारिज कर दिया। पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि सही मायने में यह याचिका बेहद तुच्छ है। अपनी याचिका में रिजवी ने दावा किया था कि कुरान की इन आयतों का हवाला देकर दुनिया में आतंकवादी बनाये जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका को दाखिल करने के पिछले दिनों आयोजित एक इस्लामी सम्मेलन में रिजवी को इस्लाम से खारिज कर दिया गया था। इसमें शिया और सुन्नी समुदाय के उलेमा शामिल हुए थे। इस सम्मेलन में रिजवी के खिलाफ फरमान जारी किया गया था कि रिजवी को देश के किसी भी कब्रिस्तान में दफन नहीं होने दिया जायेगा। फिलहाल, शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी गायब बताए जा रहे हैं। उन्होंने कहा है कि परिवार ने मेरा साथ छोड़ दिया। उन्होंने आगे कहा कि पत्नी, बच्चे और भाई सबने मेरा साथ छोड़ दिया है। उधर, उनके भाई ने एक वीडियो जारी कर कहा कि परिवार का वसीम से कोई संबंध नहीं है। वह नहीं आते हैं। वह इस्लाम विरोधी हो गए हैं। वह जो कह रहे हैं, उससे परिवार को कोई लेना-देना नहीं है।

Published / 2021-04-08 15:16:08
हाईकोर्ट से याचिका खारिज, नहीं घटेगा जेपीएससी में अभ्यर्थियों की उम्र सीमा का कट आफ डेट

रांची। जेपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में अभ्यर्थियों के लिए उम्र सीमा का कट आफ डेट घटाने की मांग को लेकर दायर याचिका झारखंड हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। जस्टिस एसएन पाठक की अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह सरकार का नीतिगत फैसला है। सरकार ने जो तय किया है उसे चुनौती नहीं दी जा सकती है। इसके पहले हुई सुनवाई में अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिका प्रणय कुमार राय और प्रविण कुजूर ने दायर की थी। मामले में जेपीएससी की ओर से अधिवक्ता संजय पिपरवाल और प्रिंस कुमार सिंह ने दलील दी। याचिका में कहा गया था कि साल 2020 में सिविल सेवा परीक्षा के लिए जारी विज्ञापन में उम्र का कट आफ डेट 2011 रखा गया था। एक साल बाद जेपीएससी की ओर से दोबारा संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा के लिए विज्ञापन निकाला गया, जिसमें उम्र की कट आफ डेट एक अगस्त 2016 तय की गयी। ऐसे मे बहुत से उम्मीदवार परीक्षा से वंचित हो जायेंगे।

Published / 2021-03-27 13:02:27
ड्राइविंग लाइसेंस, रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट और परमिट की फिर से बढ़ी वैलिडिटी

एबीएन डेस्क। कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर सरकार ने ड्राइविंग लाइसेंस, पंजीकरण प्रमाणपत्र और परमिट जैसे मोटर वाहन दस्तावेजों की वैधता को 30 जून 2021 तक बढ़ा दिया है। राज्यों को जारी की गयी एक एडवाइजरी में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने कहा कि फिटनेस, परमिट, ड्राइविंग लाइसेंस, आरसी और अन्य मोटर ह्वीकल दस्तावेजों की वैलिडिटी को बढ़ाया जा रहा है। ये विस्तार उन वाहनों के डॉक्यूमेंट्स के लिए है, जिनकी वैलिडिटी को लॉकडाउन के कारण नहीं बढ़वाया जा सका और इनकी वैधता 1 फरवरी 2020 से या 31 मार्च 2021 तक समाप्त हो जायेगा। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने राज्यों को भेजे एक परामर्श में कहा है कि वह फिटनेस, परमिट, ड्राइविंग लाइसेंस, पंजीकरण और अन्य दस्तावेजों की वैधता को बढ़ा रहा है, जिनका लॉकडाउन के कारण विस्तार नहीं किया जा सकता है और जिनकी वैधता एक फरवरी 2020 को खत्म हो गई है या 31 मार्च 2020 को खत्म हो जाएगी। इससे पहले मोटर वाहन अधिनियम, 1988 और केंद्रीय मोटर वाहन नियम से संबंधित दस्तावेजों की वैधता को कई बार बढ़ाया जा चुका है। मंत्रालय ने राज्यों से कहा कि यह सलाह दी जाती है कि एक फरवरी से समाप्त हो चुके दस्तावेजों की वैधता 30 जून, 2021 तक वैध मानी जा सकती है। परामर्श में कहा गया कि संबंधित अधिकारियों को सलाह दी जाती है कि वे ऐसे दस्तावेजों को 30 जून 2021 तक वैध मानें। कोरोना संकट के मद्देनजर यह पांचवीं बार है, जब मोटर ह्वीकल डॉक्यूमेंट्स की वैलिडिटी को बढ़ाया गया है। इससे पहले सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने मोटर वाहन अधिनियम 1988 और केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 से संबंधित दस्तावेजों की वैलिडिटी को आगे बढ़ाने के लिए 30 मार्च 2020, 9 जून 2020, 24 अगस्त 2020 और 27 दिसंबर 2020 को एडवाइजरी जारी की थी। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने हाल ही में सभी ड्राइवरों से कॉन्टैक्टलेस सर्विसेज का लाभ उठाने के लिए अपने ड्राइविंग लाइसेंस को आधार कार्ड के साथ लिंक करने के लिए कहा। नये नियम का मकसद आम जनता के लिए सेवाओं को परेशानी मुक्त बनाना है। आधार कार्ड को ड्राइविंग लाइसेंस से लिंक कराने का सबसे बड़ा फायदा होगा डुप्लीकेसी खत्म होने का। कोई भी फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बनवा सकेगा। दूसरे एक्सीडेंट या किसी इमरजेंसी की स्थिति में पहचान आसानी से हो सकेगी।

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